रायपुर/जशपुर, 14 नवंबर (हि.स.)। जनजातीय गौरव हमारे गौरव का मूल है। जनजाति जीवन पद्धति हमारे जीवन पद्धति का मूल है। जनजाति रीति-रिवाज हमारे अनेक रीति-रिवाजों का मूल है। भारतवर्ष मूल कृषि और वनों में है, वहां से उभरी हुई संस्कृति है। उस संस्कृति की दुनिया को आवश्यकता है। जनजातीय धर्म संपूर्ण भारत का गौरव है।
सोमवार को छत्तीसगढ़ के जशपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने बड़ी संख्या में जुटे आदिवासियों से कहा कि वे अपने धर्म-संस्कृति और गौरव के साथ खड़े रहे। भगवान बिरसा मुंडा और स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव के जीवन से ही हमें यही सीख मिलती है। हम जो भी हैं, सारी दुनिया पर भारी हैं।
स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद एक आम सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि हमारे पास अपना गौरव है। भगवान बिरसा मुंडा और दिलीप सिंह जूदेव जैसे आदर्श हैं।हम जैसे हैं, वैसा जिएंगे और अपना स्थान दुनिया में प्राप्त कर लेंगे। संघ प्रमुख ने लोगों से आग्रह किया कि वे अपने गौरव के साथ बने रहे।
बड़ी संख्या में उपस्थित आम जनों के साथ-साथ वनवासी समुदाय को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उनके लिए यह बड़ा सौभाग्य है कि उनके दर्शन हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि मैं नागपुर में हूं लेकिन मैं जहां का रहने वाला हूं, वह वनवासी जिला है चंद्रपुर। बचपन में तो बहुत ज्यादा शहर, वनवासी, ग्रामीण या भेद नहीं था। आना-जाना चलता था, इसलिए जब आम लोगों के बीच आता हूं तो मैं अपने घर आया हूं, ऐसा लगता है। संयोग की बात यह है कि आने का जो यह योग बना हुआ, विचार करके तय नहीं हुआ। आज जनजाति गौरव दिवस, भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन है। साथ ही स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा का अनावरण, दोनों बातें संयोग से जुड़ गई।
भागवत ने कहा कि वह दिलीप सिंह जूदेव से 4-5 बार मिले, उनके कार्यक्रमों में रहे। जूदेव वीर प्रकृति के व्यक्ति, निर्भय और संपत्ति सत्ता सब कुछ रहने के बाद भी विनम्र रहने वाले, जनजाति समाज के गौरव के लिए सदा खड़े रहने वाले व्यक्ति थे। ऐसा मैंने देखा है।इस काम को वह बड़ा पवित्र मानते थे। जीवन में जो कुछ बने उसका उपयोग किया। अपने देश संस्कृति और देशवासियों के प्रति उनके मन में बहुत प्रेम था। भगवान बिरसा मुंडा को भी इसी ने हम सब के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
जनजाति समाज के गौरव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अपने पूर्वजों की परंपरा, अपना गौरव है, क्योंकि वे बताते हैं कि हम को कैसे जीना है। धर्म के मामले में जनजाति गौरव, भारत का धर्म गौरव है।भारत का धर्म कहां से आया। इतने सारे देवी देवता के बाद भी सब का व्यवहार एक सा रहता है। यह धर्म खेतों और जंगलों से उपजा है। भारत के सभी धर्मों को यहां के कृषकों, वनवासियों ने दिया है ।उस धर्म का गौरव, जनजाति गौरव, दोनों का गौरव है, इसलिए भारत का गौरव है।
मोहन भागवत ने कहा कि आप जिस प्रकार सत्य के पीछे चलते हैं जनजाति समाज के प्रसिद्ध दी है जनजाति समाज में झूठा प्रामाणिकता नहीं होती। आज भी ग्रामीण इलाके के जंगलों में कोई रास्ता भटक जाए तो जब तक उसे जंगल में मनुष्य, गांव मिलेंगे तो भूखा प्यासा नहीं रहेगा। यह करुणा कहां से आई, किसने दी, इसी जनजाति समाज ने दी। हमारा धर्म सब में पवित्रता देखता है क्योंकि स्वयं का अंतःकरण पवित्र है। नदी नाले पक्षी सबने पवित्रता देखता है, इसलिए वह पर्यावरण का मित्र है। पर्यावरण का विकास करता है। अपनी उन्नति के लिए पर्यावरण को खराब नहीं करता। पर्यावरण में देवी -देवता मानना जनजाति बंधु ने ही सिखाया। जन जाति धर्म संपूर्ण भारत का गौरव है।
उन्होंने आह्वान किया कि जनजाति समाज की सुरक्षा गौरव की वृद्धि के लिए उनके साथ खड़ा होना चाहिए ,जैसे दिलीप सिंह जूदेव खड़े रहते थे ।उनके जीवन से यह संदेश लेना है । एक बार इस गौरव को समझ गए तो सब कुछ ठीक हो जाएगा ।हमारे पास यह गौरव है ।उसकी सारी दुनिया को जरूरत है। भारतवर्ष को इस गौरव को धारण कर खड़ा होना है ।हम अपने संस्कारों को रीति-रिवाजों ,देवी देवता, पूर्वज उनके पराक्रम को ना भूले । भूल जाएंगे तो बड़े-बड़े पराक्रमी निठल्ले हो जाते हैं।
संघ प्रमुख ने रामायण की कथाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारा भी गौरव है। जनजाति गौरव हमारे गौरव का मूल है। जनजाति जीवन पद्धति हमारी भारतीय जीवन पद्धति का मूल है। भारतवर्ष मूल कृषि और वनों में है। वहां से उपजी हुई यह संस्कृति है। उस संस्कृति की दुनिया को आवश्यकता है, यह भगवान का काम है। भगवान का काम उपस्थित हुआ है। हमको जागना है, अपने गौरव का रक्षण करना है। अपने देश धर्म संस्कृति और समाज का गौरव पक्का रखना है। हमको हमारे भोलेपन का लाभ लेकर ठगने वाले दुनिया में भले ही होंगे ,लेकिन हम मजबूत है तो क्या बात है। उस संस्कृति की दुनिया को आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हम जो भी है सारी दुनिया पर भारी है। हमारे पास अपना गौरव है। दिलीप सिंह जैसे निर्भयता हमारे पास है। दिलीप सिंह और बिरसा मुंडा जैसे आदर्श हैं। हम जैसे हैं, वैसे जिएंगे, अपना स्थान दुनिया में प्राप्त कर लेंगे। यह संयोग भाषण, आपके लिए नहीं मेरे लिए भी है। कितनी बड़ी संख्या में पारंपरिक वेशभूषा में आप सभी को देखा। सारी बातें मेरे मन में आए, जो निष्कर्ष मुझे मिला, आपके चिंतन के लिए, आपके सामने रख दिया है। अपने धर्म, संस्कृति-समाज और देश के लिए स्वाभिमानी निर्भय होकर चलते रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / केशव शर्मा