भारत के पश्चिमी तट पर स्थित सूरत, कभी देश का सबसे समृद्ध शहर और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है। तापी नदी के किनारे बसे इस ऐतिहासिक शहर में आज भी अनेक प्राचीन जल-स्मारक मौजूद हैं, जो उस दौर की जीवनशैली और स्थापत्य कला की गौरवगाथा सुनाते हैं। इन्हीं में से एक है – खममावती वाव, जो सूरत रेलवे स्टेशन के पास लाल दरवाजा क्षेत्र में स्थित है।
600 वर्षों से खड़ी स्थापत्य की मिसाल
लगभग 600 साल पुरानी यह बावड़ी 15वीं सदी में मुग़ल शासनकाल के दौरान बनाई गई थी और इसे नंदा शैली की अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण माना जाता है। लाल दरवाजा के पास छोवाला गली में स्थित यह सात मंजिला वाव न केवल सूरत की, बल्कि गुजरात की ऐतिहासिक धरोहरों में प्रमुख स्थान रखती है। इसे वणजारी वाव या स्थानीय भाषा में "बा नो बंगलो" भी कहा जाता है।
बावड़ी की संरचना और विशेषताएं
यह बावड़ी 300 फीट लंबी और 20 फीट चौड़ी है, जिसमें नीचे उतरने के लिए कुल 100 सीढ़ियाँ हैं। इसका निर्माण मोटी ईंटों, पत्थरों और रेत से किया गया है। बावड़ी दक्षिणाभिमुख है और इसका एक ही प्रवेश द्वार है। इसकी दीवारें भारतीय शिल्पशास्त्र के अनुसार बनाई गई हैं, और इसका ऊपरी भाग आज भी विशाल गुम्बद के रूप में विद्यमान है।
इसका निर्माण वणजारा समुदाय द्वारा कराया गया था – जो व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न होकर बैलों के जरिए देश के एक कोने से दूसरे कोने तक वस्तुएं पहुंचाया करते थे। यह वणजारे सिर्फ व्यापारी नहीं, बल्कि सामाजिक योगदानकर्ता भी थे, जो अपने मार्गों में यात्रियों और जानवरों की प्यास बुझाने के लिए ऐसी बावड़ियाँ बनवाते थे।
लाखा वणजारा से जुड़ी लोककथा
ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, लाखा वणजारा नामक व्यापारी के पास एक लाख बैल थे और वह देशभर में व्यापार करता था। वह जहाँ-जहाँ गया, वहाँ स्थानीय लोगों के सहयोग से जलस्रोतों का निर्माण भी करवाया। माना जाता है कि सूरत की यह खममावती वाव भी लाखा वणजारा द्वारा ही बनवाई गई थी।
धार्मिक महत्व और आस्था का केंद्र
लाल दरवाजा क्षेत्र, जो सूरत का प्राचीन प्रवेश द्वार माना जाता है, धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां खोडियार माताजी, सती माताजी और खममावती माताजी की पूजा होती है। वाव के पास ही खममावती माताजी का मंदिर भी स्थापित है, जो लोगों की गहरी आस्था का केंद्र है। नवरात्र और गरबा जैसे उत्सवों में यहाँ दूर-दूर से लोग एकत्र होते हैं।
विरासत जो आज भी जीवंत है
खास बात यह है कि बावड़ी में आज तक कभी पानी नहीं सूखा और न ही इसमें गिरने से किसी की मृत्यु की घटना हुई है। यह तथ्य इसे एक चमत्कारी स्थल के रूप में भी लोकप्रिय बनाता है। समय भले ही बदल गया हो, लेकिन यह वाव आज भी सूरत के इतिहास, संस्कृति और सामाजिक योगदान की जीवंत गवाही देती है।