नई दिल्ली, 24 नवंबर (हि.स.)। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय हाल के जलवायु संकट और तीव्र प्रौद्योगिकीय उन्नति के मद्देनजर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) में किसान-अनुकूल बदलाव करने के लिए तत्पर है।
कृषि और किसान कल्याण सचिव मनोज आहूजा ने गुरुवार को कहा कि खेती जलवायु संकट का सीधा शिकार होती है। इस लिए यह जरूरी है कि प्रकृति के उतार-चढ़ाव से देश के कमजोर किसान समुदाय को बचाया जाए। फलस्वरूप, फसल बीमा में बढ़ोतरी संभावित है और इसी लिए हमें फसल व ग्रामीण, कृषि बीमा के अन्य स्वरूपों पर ज्यादा जोर देना होगा, ताकि भारत में किसानों को पर्याप्त बीमा कवच उपलब्ध हो सके।
आहूजा ने कहा कि वर्ष 2016 में पीएमएफबीवाई की शुरुआत के बाद, यह योजना सभी फसलों और नुकसानों को समग्र दायरे में ले आई। इसके तहत बुवाई के पहले के समय से लेकर फसल कटाई तक की अवधि को रखा गया है। पहली वाली राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और संशोधित योजना में इस अवधि को नहीं रखा गया था। उन्होंने कहा कि 2018 में इसकी समीक्षा के दौरान भी कई नई बुनियादी विशेषताएं इसमें जोड़ी गईं, जैसे फसल के नुकसान की सूचना देने का समय 48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे कर दिया गया। इसमें इस बात को ध्यान में रखा गया कि स्थानीय आपदा आने पर नुकसान के निशान 72 घंटे के बाद या तो विलीन हो जाते हैं या उनकी निशानदेही नहीं हो पाती। इसी तरह, 2020 के संशोधन के उपरान्त, योजना में वन्यजीव के हमले के बारे में स्वेच्छा से पंजीकरण कराने और उसे शामिल करने का प्रावधान किया गया, ताकि योजना को अधिक किसान अनुकूल बनाया जा सके।
उन्होंने कहा कि पीएमएफबीवाई फसल बीमा को अपनाने की सुविधा दे रही है। साथ ही, कई चुनौतियों का समाधान भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संशोधित योजना में जो प्रमुख बदलाव किए गए हैं, वे राज्यों के लिए अधिक स्वीकार्य हैं, ताकि वे जोखिमों को योजना के दायरे में ला सकें। इसके अलावा किसानों की बहुत पुरानी मांग को पूरा करने के क्रम में सभी किसानों के लिए योजना को स्वैच्छिक बनाया गया है।
आहूजा ने स्पष्ट किया कि कुछ राज्यों ने योजना से बाहर निकलने का विकल्प लिया है। इसका प्राथमिक कारण यह है कि वे वित्तीय तंगी के कारण प्रीमियम सब्सिडी में अपना हिस्सा देने में असमर्थ हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्यों के मुद्दों के समाधान के बाद, आंध्रप्रदेश जुलाई 2022 से दोबारा योजना में शामिल हो गया है। आशा की जाती है कि अन्य राज्य भी योजना में शामिल होने पर विचार करेंगे, ताकि वे अपने किसानों को समग्र बीमा कवच प्रदान कर सकें। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ज्यादातर राज्यों ने पीएमएफबीवाई के स्थान पर क्षतिपूर्ति मॉडल को स्वीकार किया है। याद रहे कि इसके तहत पीएमएफबीवाई की तरह किसानों को समग्र जोखिम कवच नहीं मिलता।
हिन्दुस्थान समाचार/अजीत