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Art & Music

हडप्पा की मूर्तिकला धड़कती है बस्तर में

Date : 17-Sep-2022
रोटी और मकान की जरूरतें पूर्ण हो जाती हैं तब कला हृदय में जन्म लेती है - इस प्रसिद्ध कोट को पूर्णतः
गलत साबित करता है बस्तर का विष्व में प्रषंसनीय षिल्प ढोकरा षिल्प । यह कला नहीं , बस्तर के घड़वा
समुदाय के अत्यंत गरीब , निम्नतम आवष्यकताओं में जीवनयापन करने वाली जनजाति के लोगों की
जीवनपद्धति है , लाइफस्टाइल है । यह तपस्या है , साधना है । यह बाहरी ज्ञान नहीं , न तकनीकि ज्ञान है
यह एक ऐसा भाव है जिसे षिल्प में ढाल कर कलाकार बार- बार एक नवजीवन का आनंद लेता है ।
 
यह शिल्पकला उतनी ही स्वाभाविक है जैसे फूलों का खिलना । ऐसा युग विष्व में कहीं कभी भी नहीं रहा
जब मानव कला से विहीन रहा हो । मानव होने की पहचान यही है कला से प्रेम ।
 
बस्तर के शिल्प  बीज सिन्धु सभ्यता में ही अंकुरित हो चुके थे । इस षिल्प का संबंध हड़प्पा में पाई गई
नृत्यमुद्रा में स्त्री की मूत्र्ति , डांसिंग गर्ल 2300-1700 बी.सी. से है । ढोकराशिल्प मूत्र्तियां ब्रांज -टिन व
तांबा तथा ब्रास -जिंक व तांबा मिली हुई धातुओं से बनायी जाती हैं । यह कलाकारी बहुत परिश्रम , धैर्य व
समय लेती है ।
 
बस्तर के शिल्प जैसा ही प. बंगाल व उड़ीसा के आदिवासी भी बनाते हैं । बंगाल में धातु ढलाई का
काम ढाकरा कमार समुदाय के लोग करते हैं इसलिये भी इसे ढोकरा षिल्प कहते हैं । बस्तर में कसेर जाति
बर्त्तन  बनाने वाले धातु का काम करने वाले लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सीख कर इस सुंदर परंपरा को संजोये हुए हैं|
कोई भी आकृति बनाने के लिए पहले उसे मिट्टी से बनाते हैं फिर उस पर मोम का धागा लपेटा जाता है|
 
प्राकृतिक मोम ठंडा होने पर भी अपना लचीलापन कायम रखता है । जिससे यह लपेटने के लिए एक उत्कृश्ट
विकल्प है । इसके उपर पुनः मिट्टी चढ़ा कर इसे भट्टी में पकाया जाता है । इतने उच्चतम ताप में मोम
गायब हो जाता है और मिट्टी का खोखला ढांचा तैयार हो जाता है । इस खोखले सांचे में पिघली हुई धातु
भर दी जाती है । ठंडा हो कर षिल्प तैयार हो जाता है ।
 
पारंपरिक रूप से नंदी ,बैलगाड़ी , ताड़ वृक्ष , माड़िया युवक -युवती की जोड़ी ,हाथी घोड़ा , हिरण , देवी
देवता , अनेक मूत्र्तियां बनाई जाती हैं ।
 
यह सबसे विषिश्ट इस अर्थ में है कि सैकड़ों की संख्या में बनने के बावजूद प्रत्येक शिल्प अपनी तरह का एक
ही पीस होता है । हर कलाकार अपनी रचनात्मकता व कला कौषल , अपनी सूझ-बूझ से हमेषा कुछ नया
बनाता है ।
 
श्री भगतराम उनकी बेटी सुनीता झारा और गुलापी बाई इस शिल्प के प्रसिद्ध कलाकार हैं ।
झिटकू और मिथकी प्रेमी थे । आदीवासी इनकी पूजा करते हैं । इस प्रेमी जोड़े की मूत्तियों में
ढोकरा शिल्प, कला- सौन्दर्य के श्रेश्ठ षिखर पर है ।
 
 बस्तर ढोकराशिल्प , समय और समाज के सतत परिवर्तनों के सामने सदियों से अपने मूल रूप में
विजेता हैं।। हमें बस्तर ढोकरा शिल्प के कलाकारों का आभारी होना चाहिये ।

लेखिका :-शशि खरे 

 

 
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