विश्व मार्बल डे पर बचपन के झरोखे से "कंचों (चिरंगा /चिड़ंगा) की कहानी"
Date :29-Mar-2024
लेखक - डॉ. आनंद सिंह राणा
हाल ही में अंग्रेजी में एक किताब बाजार में आई है-द की टू टोटल हैप्पीनेस। इस पुस्तक में एकात्म मानव दर्शन का गहराई से विवेचन किया गया है। इसका हिंदी में अर्थ होता है-सम्पूर्ण सुख की कुंजी। केंद्र सरकार ने 2022 से 2047 तक की 25 वर्ष की अवधि को "अमृत काल" घोषित किया है। ऐसे में इस किताब का महत्व और बढ़ जाता है। इस दौरान देश की हर महिला, पुरुष और युवा को यह दिखाना होगा कि 2047 तक भारत एक विकसित देश बनेगा।
इस शुभ समय के दौरान भारत को 'शाश्वत सुख की तलाश में आगे बढ़ने' की कठिन चुनौती का सामना करना होगा। हालांकि, वर्तमान समय में एक तरफ आश्चर्यजनक तकनीकी प्रगति और दूसरी तरफ पूरी मानवता गहरे संकट में है। मानव इतिहास में सबसे आकर्षक प्रयास यह है कि धरती पर हर कोई आदिकाल से ही खुशी के लिए प्रयास करता रहा है। यह कार्य इतना कठिन क्यों प्रतीत होता है? क्या हमें व्यक्ति, समाज और शांति के बीच संबंधों के बारे में कोई गलतफहमी है? पीढ़ियों के संघर्ष के बाद, हमने भौतिक विकास हासिल किया है; फिर भी, पैसे की प्यास कम नहीं हुई है। प्रौद्योगिकी उन्नत हो गई है, लेकिन अभी भी व्यापक तौर पर उथल-पुथल है। हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि एक ओर, सतत विकास हो और साथ ही जीवन आसान और अधिक शांतिपूर्ण हो?
'एकीकृत मानव दर्शन' यह प्रदर्शित करने का प्रयास करता है कि मानवता इन सभी चिंताओं का स्वीकार्य समाधान प्रदान करके कैसे एक खुश, शांतिपूर्ण और व्यवहारपूर्ण अस्तित्व जी सकती है। अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस मिथक को फैलाने से क्या हासिल हुआ है कि पश्चिमी विचार भारतीय दर्शन से श्रेष्ठ और पुरातन है? पिछली शताब्दी में दो विश्व युद्ध, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग, गरीब देशों का शोषण, सामाजिक असंतुलन, नक्सलवाद, समाज में मानसिक और शारीरिक तनाव की समस्या, आतंकवाद, नशीली दवाओं का अत्यधिक उपयोग, आत्महत्या, राजनीतिक शक्ति का ध्रुवीकरण, धर्म परिवर्तन की साजिश, पारिवारिक व्यवस्था के अवमूल्यन के कारण तलाक दर में वृद्धि, क्या इन चिंताओं का कोई समाधान है? क्या वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के कारण हो रहा है, क्या यह वास्तविक विकास है? जब भारत में सनातन धर्म अपनाया गया तब समाज में शांति थी। सम्पूर्ण दुनिया परस्पर सहजीवन का आनन्द ले रहा था। पर्यावरण का ख्याल रखा जा रहा था। साथ ही, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति भी हासिल की जा रही थी। यह कैसे प्राप्त किया जा सका, इसका अध्ययन अभी भी भारत और दुनिया भर में किया जा रहा है। 1965 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रस्तावित 'एकात्म मानव दर्शन' ऐसे अध्ययन का एक अच्छा उदाहरण है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मानवता के सभी पहलुओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से विभिन्न विचार प्रणालियों का गहराई से अध्ययन किया। राजशाही, समाजवाद, साम्यवाद और धर्मनिरपेक्षता कुछ राजनीतिक व्यवस्था के प्रयोग हैं जिनका पिछली कुछ शताब्दियों में प्रयोग किया गया है। भारत को 1947 में आजादी मिली। इससे पहले, दुनिया में इन सभी राजनीतिक चिंतन धाराओं की उत्पत्ति, दुनिया भर के कई देशों में उनके व्यावहारिक अनुप्रयोग और उनके परिणामों की जांच की गई थी। दीनदयाल जी ने 1965 तक स्वतंत्र भारत द्वारा अपनाई गई नीतियों का मूल्यांकन किया। सभी सीखों की परिणति के रूप में, उन्होंने अप्रैल 1965 में मुंबई में चार वार्ताओं में अपने विचार प्रस्तुत किए। उस विचार को बाद में एकात्म मानववाद (एकात्म मानव दर्शन) के रूप में अपनाया गया, जिससे भारत को मदद मिल सकती थी। न केवल अपनी राजनीतिक यात्रा के मार्ग की पहचान करें, बल्कि उस टिप्पणी का उपयोग उन नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए भी करें जो मानवता को हमेशा के लिए प्रसन्न करेंगी। हालांकि, इस दृष्टि के जन्म के तीन साल बाद, पंडित दीन दयाल का जीवन समाप्त हो गया और 'एकात्म मानव दर्शन' की अवधारणा का प्रसार प्रतिबंधित हो गया। इसके अलावा, भारत में राजनीतिक माहौल इस विचारधारा पर विचार करने के लिए अनुकूल नहीं था। अगले 50 वर्षों में गठबंधन सरकारें देखी गईं। स्वाभाविक रूप से, कार्रवाई की दिशा कई विचारधाराओं के मिश्रण से निर्धारित होती थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के माहौल का प्रभाव वैश्विक परिदृश्य पर पड़ा। दुनिया भर में कई घटनाएं घटीं, जिनमें सोवियत संघ का 15 संप्रभु राज्यों में विभाजन, बर्लिन की दीवार का गिरना और समाजवाद और साम्यवाद के मिश्रण पर आधारित नीति की स्थापना शामिल है। जापान, जर्मनी, फ़्रांस और अन्य देशों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण प्रयासों के दौरान अपनी एकता का परीक्षण किया। इसकी तुलना में भारत इन सभी देशों से काफी पीछे रह गया। इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी देशों में उभरी सोच की प्रवृत्ति के प्रभावों की सही मायने में जांच 1995 में शुरू हुई थी। तब तक, इन अवलोकन अध्ययनों का विवरण देने वाले कई पत्र प्रकाशित हो चुके थे। उनमें से कुछ का उल्लेख पडित दीन दयाल के दर्शन में मिलता है; पश्चिमी लेखकों के विचार क्या हैं, प्रोफेसर नारायण गुने ने 2018 में इंग्लैंड के न्यूकैसल नॉनडुम्ब्रिया विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में अध्ययन किया। ये सभी "द की टू टोटल हैप्पीनेस " पुस्तक में समाहित हैं।
पुस्तक की संरचना और उद्देश्यः पंडित दीन दयाल के चार व्याख्यानों से 61 अंक लिए गये हैं। इन्हें निम्नलिखित सात भागों में विभाजित किया गया है।
1-दिशा, 2-व्यक्ति एवं समाज का सहजीवन, 3- राज्य और राष्ट्र एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, 4- रिलीजन, धर्म और मजहब अलग-अलग हैं, 5- खुशी के लिए आर्थिक संरचनाएं, 6-कल्याणकारी राज्य एवं समाज कल्याण और 7- विराट जागृति। इसमें प्रत्येक विषय की व्याख्या, भारतीय दर्शन पर पश्चिमी दार्शनिकों का शोध और "एकात्म मानव दर्शन" के आदर्शों पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य के साथ-साथ भविष्य के कार्यान्वयन के प्रस्ताव भी शामिल हैं। प्रत्येक ट्रैक में सारांश के साथ-साथ महत्वपूर्ण शब्द भी शामिल हैं।
यह पुस्तक व्यक्तियों, समाजों, प्रकृति और अदृश्य शक्तियों के गुणों की पड़ताल करती है। कई बुद्धिजीवियों के अनुसार, छात्र, शिक्षक, समुदाय के नेता और राजनीतिक नेता लगातार इस बात पर विचार कर रहे हैं कि कैसे लोग और समाज मानव जाति को स्थायी खुशी, संतुष्टि और खुशहाली प्रदान कर सकते हैं। इस पुस्तक को प्राप्त करने के लिए ई-मेल [email protected] पर लिखा जा सकता है।
लेखक - पंकज जगन्नाथ जयस्वाल
विश्वभर मे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की बनी पहचान को अगर कहीं ज्यादा मजबूती मिली है तो उसमे निश्चित रूप से हमारी साझी संस्कृति से जुड़ा एक देश विएतनाम भी है। जहां विकास द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है। पिछले दस साल में भारत से मिले सहयोग से इस देश ने प्रगति के एक नए पथ को प्रशस्त किया है। दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की विस्तारवादी नीति का शिकार हमारा पड़ोसी देश विएतनाम भी रहा है। चीन से भय ही उसकी तरक्की के रास्ते में बाधा बना हुआ था, अन्यथा ऊर्जा के विशाल स्त्रोत और विविध खाद्य पदार्थों की बहुलता के जरिए विएतनाम काफी आगे निकाल सकता था। भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा के बाद विएतनाम को नया संबल मिला है। चीन से मिल रही आर्थिक और सामरिक चुनौती को विएतनाम काफी हद तक कमजोर करने में सफल हुआ है। भारत के साथ मिलकर वह अपनी साझी सामरिक शक्ति को लगातार बढ़ा कर अपने लिए एक सुरक्षित ढांचा तैयार कर लिया है। सब मरीन से लेकर अन्य सैन्य साजो समान से लैस विएतनाम की सेना को भारत से लगातार प्रशिक्षण मिल रहा है। विएतनाम के बंदरगाहों का विकास भी त्वरित तरीके से हो रहा है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को युद्ध मे परास्त करने वाले इस देश को रूस से ज्यादा अब भारत की साझेदारी पर भरोसा है।
विएतनाम एक कम्युनिस्ट देश है। वहां की वेशभूषा और रहन-सहन या फिर कहें कि भौगोलिक परिस्थिति के कारण जापान, साउथ कोरिया या फिर चीन जैसे देशों का प्रभाव दिखता है। इसके बावजूद आज विएतनाम भारत के साथ सहज महसूस अगर कर रहा है तो उसके पीछे हाल के दिनों में भारत की सांस्कृतिक विरासत को लेकर किया जा रहा काम है। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा के बाद हुई है। यह पिछले तीन साल के अंदर भारतीय विदेश सेवाके अधिकारी डॉ. मदन मोहन शेट्टी के अथक परिश्रम का नतीजा है। यह सुखद संयोग है कि इस अधिकारी की तैनाती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यात्रा के बाद की गई। शेट्टी विएतनाम के हो च मिन्ह (मुम्बई की तरह विएतनाम की व्यवसायिक शहर है) के कांसुलेट जनरल हैं। उन्होंने विएतनाम के 64 राज्यों में से 30 ज्यादा राज्यों का तूफानी दौरा किया और स्थानीय शासन के साथ मजबूत संबंध स्थापित किए। कम्युनिस्ट देश होने के बावजूद यहां के स्थानीय शासन की दिलचस्पी भारत के साथ अपनी सांस्कृतिक साझेदारी विकसित करने में दिखाई दे रही है।
पिछले 40 से 50 साल के बाद नरेन्द्र मोदी के रूप मे भारत के किसी प्रधानमंत्री की यात्रा से यहां के लोग खुशी से झूम उठे थे। विदेशमंत्री एस जयशंकर ने भी प्रधानमंत्री का अनुसरण किया और डॉ. मदन जैसे एक ऐसे तेजतर्रार भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी यहां भेजा, जिन्होंने म्यांमार में भारत की मजबूत कूटनीति स्थापित करने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यह सुखद संयोग है कि विएतनाम की एक चोटी से भगवान शिव के 9 फीट ज्यादा ऊंचा शिव लिंग निकल रहा है तो वहां की सरकार हिन्दू मंदिरों का अधिग्रहण कर उसका जीर्णोद्धार कर रही है। विश्व का आठवां आश्चर्य वहां के पहाड़ों की चोटी पर बुद्ध स्तूप की स्थापना है। लद्दाख के लामा ने इसे यहां स्थापित किया है। ऐसे कई और प्रकल्पों को अब और बढ़ावा मिलेगा, क्योंकिभारत से गए सम्मिट इंडिया के एक प्रतिनिधिमंडल ने स्वयंभू शिवशंकर तीर्थ क्षेत्र और बुद्धिज़्म के विस्तार को लेकर निवेश सहमति पत्र हस्ताक्षर किया। भारत और विएतनाम की साझी सांस्कृतिक विरासत को इससे और मजबूती मिलेगी।
विएतनाम अपनी प्रगति में भारत के महत्व को बखूबी समझता है। इसका प्रमाण यह है कि पिछले कुछ साल में भारत से विएतनाम को किये जा रहे निर्यात में आया उछाल है। भारत और वियतनाम के बीच लंबे समय से व्यापार और आर्थिक संबंध हैं जो समय के साथ लगातार बढ़े हैं। वर्ष 2000 में मात्र 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर से, द्विपक्षीय व्यापार 2022 में बढ़कर 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। 2022-2023 के दौरान, द्विपक्षीय व्यापार 3.98% की वृद्धि दर्ज करते हुए 14.70 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। वियतनाम को भारत का निर्यात 5.91 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जबकि वियतनाम से भारतीय आयात 8.79 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 13.92% की वृद्धि दर्ज करते हुए 15.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। भारत द्वारा निर्यात 1.95% की वृद्धि के साथ 7.08 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जबकि भारत द्वारा आयात 7.96 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ गया। भारत से वियतनाम को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में लोहा- इस्पात, विद्युत मशीनरी और उपकरण, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, ऑटो घटक, मांस और मत्स्य उत्पाद, अनाज, मक्का, कपास, रसायन और रासायनिक उत्पाद, सामान्य धातु, रत्न और आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स शामिल हैं। वियतनाम से भारत में आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएं इलेक्ट्रॉनिक्स और बिजली के सामान, धातु और धातुओं से बनी वस्तुएं, रसायन, मशीनरी और यांत्रिक हिस्से, इस्पात की वस्तुएं, प्लास्टिक की वस्तुएं, कॉफी और चाय, जूते, रबर की वस्तुएं, उर्वरक और रेशम।
भारतीयों की विएतनाम में संख्या भी लगातार बढ़ रही है। यहां 70 हजार से ज्यादा भारतीय हैं जो आज विएतनाम की समृद्धि में नई इबारत लिख रहे हैं। हर भारतीय यहां अरबों डॉलर के व्यवसाय को चला रहे हैं। भारत के उत्पादों को लेकर अगर वेयरहाउसिंग जैसी सुविधा भारत बढ़ा दे तो विएतनाम के अंदर भारतीय व्यवसायियो के व्यवसाय को बड़ा बढ़ावा मिल सकता है। रेल, शिक्षा चिकित्सा और पोर्ट जैसे क्षेत्र में यहां निवेश की अपार संभावना है। अडानी ग्रुप इस काम में यहां तेजी से काम कर रहा है।
आर्थिक रूप से सम्पूर्ण विश्व की कमर तोड़ देने वाली विभीषिका कोरोना से विएतनाम भी पूरी तरह हिल गया था। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने सहयोग का हाथ बढ़ाया। चिकित्सा सहायता के साथ विएतनाम को आर्थिक मदद करने में भी भारत पीछे नहीं रहा।विएतनाम सरकार को ऐसा लगने लगा कि भारत ही उसके दुख-सुख का साथी बन सकता है। फिर कॉन्सुलेट जनरल डॉ मदन मोहन ने विएतनाम सरकार से कई एक फैसले ऐसे करवाने में सफल रहे जिससे भारत और विएतनाम के बीच व्यापारिक सहयोग परवान चढ़ने लगा है। भारत से होने वाले व्यापार की दुश्वारियों को कम कर दिया गया है।
विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के कगार पर खड़े भारत के लिए विएतनाम का साथ मायने रखता है। भारत सरकार भी इसे समझती है। अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की दिशा में भारत विएतनाम को स्वाभाविक साझेदार मानता है। इसलिए आने वालों समय मे विएतनाम सरकार और भी सहूलियतों के साथ भारत से अपनी व्यापारिक भागीदारी को बढ़ाने पर ध्यान देने जा रही है। विएतनाम की कई देशों के साथ फ्री व्यापार की संधि है, जिसके जरिए भारत के निवेशकों को मजबूती देने का काम कर सकता है।
लेखक:- महेश वर्मा
55 ईसा पूर्व में रोम का पहला स्टोन थिएटर - पोम्पी द ग्रेट ने रोम में पहला स्थायी स्टोन थिएटर बनाया।
1585 में, जिसे दुनिया का सबसे पुराना थिएटर माना जाता है, इटली के विसेंज़ा में टीट्रो ओलम्पिको का उद्घाटन सोफोकल्स के "ओडिपस द किंग" के प्रदर्शन के साथ किया गया था।
1962 में, पहला विश्व रंगमंच दिवस - पहली बार, विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च को दुनिया भर के आईटीआई केंद्रों, आईटीआई सहयोग सदस्यों, थिएटर पेशेवरों और संगठनों, थिएटर अकादमियों और थिएटर प्रेमियों द्वारा मनाया जाता है।
विश्व रंगमंच दिवस रंगमंच कला के महत्व को मनाने और उसके बारे में जागरूकता बढ़ाने का दिन है। हर साल की तरह इस साल विश्व रंगमंच दिवस 2024 का थीम "थिएटर और शांति की संस्कृति" है।
महादेवी वर्मा एक ऐसी कवयित्री हैं, जिन्होंने भारत के गुलामी और आजादी दोनो के दिन देखकर साहित्यिक रचनाएं की है। इनके परिवार में पहले कई पीढ़ियों से लड़कियां नहीं हुई इस कारण जब ये पैदा हुई तो इनके दादाजी बाबा बाबू बाँके विहारी जी ने इनको घर के देवी मानते हुए इनका नाम महादेवी रख दिया।