2024 लोकसभा चुनाव के सेकेंड फेज में शुक्रवार को 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 88 सीटों पर वोटिंग होगी।
पहले इस फेज में 89 सीटों पर वोटिंग होनी थी, लेकिन मध्य प्रदेश की बैतूल सीट पर बसपा प्रत्याशी के निधन के बाद इस सीट पर अब 7 मई को चुनाव होंगे।
2019 में इन सीटों पर सबसे ज्यादा भाजपा को 50 और NDA के सहयोगी दलों ने 8 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के खाते में 21 सीटें गईं थीं। अन्य को 9 सीटें मिली थीं।
चुनाव आयोग के मुताबिक, इलेक्शन के दूसरे फेज में 1,198 कैंडिडेट्स मैदान में हैं। इनमें 1,097 पुरुष और 100 महिला उम्मीदवार हैं। एक प्रत्याशी थर्ड जेंडर है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने 1,192 उम्मीदवारों के हलफनामे में दी गई जानकारी पर एक रिपोर्ट तैयार की। इनमें से 21% यानी 250 उम्मीदवार पर क्रिमिनल केस दर्ज हैं।
390 यानी 33% उम्मीदवार करोड़पति हैं। इनके पास एक करोड़ या उससे ज्यादा की संपत्ति है। 6 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है, जबकि तीन के पास 500 से 1,000 रुपए की संपत्ति है।
167 कैंडिडेट्स पर हत्या, किडनैपिंग, 21 पर हेट स्पीच का मामला
ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 फीसदी यानी 167 ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन पर गंभीर मामले दर्ज हैं। गंभीर मामलों में हत्या, किडनैपिंग जैसे अपराध शामिल होते हैं। 3 उम्मीदवारों पर हत्या और 24 पर हत्या की कोशिश के मामले दर्ज हैं। 25 उम्मीदवारों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं। इनमें से एक पर रेप का मामला भी दर्ज है। वहीं, 21 कैंडिडेट्स पर हेट स्पीच से जुड़े मामले दर्ज हैं।
केरल के 3 कैंडिडेट्स पर सबसे ज्यादा क्रिमिनल केस
केरल के भाजपा अध्यक्ष और वायनाड सीट से उम्मीदवार के. सुरेंद्रन पर सबसे ज्यादा 243 आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं, राज्य की ही एर्नाकुलम सीट से भाजपा कैंडिडेट डॉ. के.एस. राधाकृष्णन पर 211 आपराधिक मामले दर्ज हैं। तीसरे नंबर पर इडुक्की सीट से कांग्रेस उम्मीदवार डीन कुरियाकोस पर 88 आपराधिक मामले दर्ज हैं।
33 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति
ADR के मुताबिक, सेकेंड फेज में 1,192 उम्मीदवारों में से 390 यानी 33 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं। इनके पास एक करोड़ या उससे ज्यादा की संपत्ति है। कैंडिडेट्स के पास औसत संपत्ति 5.17 करोड़ रुपए है। 6 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है, जबकि तीन के पास 300 से 1,000 रुपए की संपत्ति है।
महाराष्ट्र के नांदेड़ से निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मण नागोराव पाटिल के पास कुल संपत्ति 500 रुपए है। केरल के कासरगोड़ से राजेश्वरी केआर ने 1000 रुपए और महाराष्ट्र के अमरावती से पृथ्वीसम्राट मुकींद्राव दीपवंश ने 1,000 रुपए की कुल संपत्ति घोषित की है।
केरल की वायनाड सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। 2019 में राहुल गांधी यहां से पहली बार चुनाव लड़े और जीते। हालांकि, वे अपनी परंपरागत सीट अमेठी से भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए। इस बार राहुल गांधी के खिलाफ I.N.D.I. ब्लॉक की एक और पार्टी CPI (M) ने महिला प्रत्याशी ऐनी राजा को उतारा है। वहीं भाजपा ने केरल के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को टिकट दिया है।
ऐनी राजा CPI महासचिव डी राजा की पत्नी हैं। एनी राजा राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले को वामपंथी पार्टियों को कमजोर करने की साजिश करार देती हैं। वहीं सुरेंद्रन सबरीमाला आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे। उस दौरान उन्हें 21 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा था। सुरेंद्रन पर 243 मामले दर्ज हैं।
2. तिरुवनंतपुरम, केरल
तिरुवनंतपुरम सीट पर तीन बार से कांग्रेस सांसद शशि थरूर के सामने भाजपा ने केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को टिकट दिया है। राजीव 2006 से राज्यसभा के सदस्य हैं। 2018 में उन्हें तीसरी बार राज्यसभा के लिए चुना गया और 2021 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया। उनका पैतृक घर त्रिशूर जिले में है, हालांकि उनका जन्म अहमदाबाद में हुआ था।
शशि थरूर ने करीब 29 साल तक UN में काम कर चुके हैं। भारत सरकार ने शशि का नाम UN महासचिव पद के लिए रखा था। चुनाव में वे दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद उन्होंने UN से इस्तीफा दे दिया और 2009 में राजनीति में आ गए। वे मनमोहन सिंह सरकार में विदेश राज्य मंत्री और मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे हैं।
3. कोटा, राजस्थान
कोटा से भाजपा के उम्मीदवार 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला हैं। वे पिछले दो बार से जीत रहे हैं। इससे पहले कोटा दक्षिण से तीन बार विधायक भी रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने दो बार भाजपा विधायक रहे प्रह्लाद गुंजल को उतारा है। वे 21 मार्च को ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। वसुंधरा राजे के करीबी गुंजल कोटा-बूंदी, भीलवाड़ा, टोंक-सवाई माधोपुर से टिकट मांग रहे थे। टिकट न मिलने पर वे कांग्रेस में आ गए।
4. जोधपुर, राजस्थान
भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह चुनाव मैदान में हैं। वे पिछले दो बार से जीतते आ रहे हैं। यहां की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर भाजपा का कब्जा है। जोधपुर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह नगर है। वे यहां से पांच बार सांसद रहे हैं, लेकिन 2019 के चुनाव में उनके बेटे वैभव यहां से हार गए थे। कांग्रेस ने इस सीट पर करण सिंह उचियारड़ा को उतारा है। वे राज राजेश्वरी आशापूर्णा मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। वे जोधपुर बिल्डर्स एंड डेवलपर्स एसोसिशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
5. बाड़मेर, राजस्थान
बाड़मेर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी मैदान में हैं। वे 2019 में यहां से पहली बार संसद पहुंचे थे। वहीं, कांग्रेस ने उम्मेद राम बेनीवाल को टिकट दिया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) प्रमुख हनुमान बेनीवाल के करीबी रहे उम्मेद राम बेनीवाल करीब 1 महीने पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए हैं। तीसरी ओर रविंद्र सिंह भाटी भी निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं।
6. मेरठ, उत्तर प्रदेश
भाजपा ने मेरठ सीट से अरुण गोविल को मैदान में उतारा है। ‘रामायण’ सीरियल में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले अरुण को तीन बार से सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काट कर प्रत्याशी बनाया गया है। वहीं, सपा की ओर से सुनीता वर्मा को मैदान में उतारा गया है। वे पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी हैं। दो बार टिकट बदलने के बाद सपा ने इन्हें फाइनल किया। इनमें से एक सरधना से विधायक अतुल प्रधान नामांकन तक दाखिल कर चुके थे। नामांकन के आखिरी दिन टिकट बदलकर सुनीता को दिया गया।
7. मथुरा, उत्तर प्रदेश
मथुरा से दो बार की सांसद और प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी को भाजपा ने तीसरी बार टिकट दिया है। स्थानीय संगठन और जनता की नाराजगी के बावजूद पार्टी ने यह कदम उठाया है। वहीं, बसपा ने कमलकांत उपमन्यु का टिकट बदलकर सुरेश सिंह को टिकट दिया है। सुरेश जांच एजेंसी ED के डिप्टी डायरेक्टर रह चुके हैं और कुछ दिन CBI में भी तैनात रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काफी मजबूत पकड़ रही है। विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष रहे सुरेश 2014 से ही भाजपा का टिकट मांग रहे थे। 2014 के चुनाव में उनकी टिकट कट गई थी।
8. राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
इस सीट पर 1999 से ही भाजपा का कब्जा है। सिर्फ 2007 में उपचुनाव के बाद कांग्रेस के देवव्रत सिंह 2 साल सांसद रहे। कांग्रेस ने इस बार पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को यहां से उतारा है। यूथ कांग्रेस से राजनीति शुरू करने वाले भूपेश पाटन से पांच बार के विधायक हैं। वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं।
वहीं, भाजपा ने वर्तमान सांसद संतोष पांडे को दोबारा टिकट दिया हैे। 2019 में इन्हें पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे और तत्कालीन सांसद अभिषेक सिंह का टिकट काटकर मौका दिया गया था।
9. टीकमगढ़, मध्य प्रदेश
भाजपा ने टीकमगढ़ से केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक को उतारा है। वे छह बार सांसद रह चुके हैं। 2009 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई सीट पर खटीक लगातार जीतते आ रहे हैं। यह सीट बुंदेलखंड में आती है और पूरे टीकमगढ़, निमाड़ जिले समेत छतरपुर का भी कुछ हिस्सा आता है।
कांग्रेस ने यहां से पंकज अहिरवार को उतारा है। वे एससी मोर्चा के उपाध्यक्ष हैं। 2023 विधानसभा चुनाव में उन्होंने जतारा से टिकट मांगा था लेकिन कांग्रेस ने किरण अहिरवार पर भरोसा जताया था। इसके चलते नाराज चल रहे पंकज को पार्टी ने बड़ा मौका दिया है।
10. पूर्णिया, बिहार
बिहार की इस सीट पर कांग्रेस में अपनी पार्टी विलय कर चुके राजेश रंजन यानी पप्पू यादव निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। कारण यह है कि ये सीट गठबंधन के तहत लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के खाते में चली गई। दूसरी तरफ RJD ने जनता दल यूनाइटेड (JDU) छोड़कर आईं बीमा भारती को मैदान में उतारा है। वहीं, NDA खेमे से JDU ने दो बार से जीत रहे सांसद संतोष कुमार कुशवाहा फिर से टिकट दिया है।
11. मांड्या, कर्नाटक
कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर (JDS) के साथ भाजपा गठबंधन में है। यह सीट JDS के खाते में गई है। लिहाजा JDS के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में इसी सीट से उनके बेटे निखिल कुमारस्वामी चुनाव हार गए थे। तब भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सुमालाथा ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने यहां से वेंकटरमणे गौड़ा (स्टार चंद्रू) को टिकट दिया है। वे पेशे से कॉन्ट्रैक्टर हैं और दूसरे चरण के चुनाव में सबसे अमीर प्रत्याशी हैं। उनके भाई गौरीबिदानूर सीट से निर्दलीय विधायक हैं।
12. बेंगलुरु उत्तर, कर्नाटक
इस सीट से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी सरकार में मंत्री रहे डी.वी. सदानंद गौड़ा सांसद हैं। भाजपा ने उनका टिकट काटकर केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे को मैदान में उतारा है। शोभा पिछले दो चुनाव उडुपी-चिकमंगलूर लोकसभा सीट से जीत रही हैं। वहीं, कांग्रेस ने IIM बेंगलुरु में प्रोफेसर रहे एम.वी. राजीव गौड़ा को उतारा है। उनके पिता राज्य विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं। वे भी 2014-2020 के बीच राज्यसभा के सदस्य रहे हैं।
देश की 543 सीटों के लिए चुनाव सात फेज में होगा। पहले फेज की वोटिंग 19 अप्रैल को और आखिरी फेज की वोटिंग 1 जून को होगी। 4 जून को नतीजे आएंगे। चुनाव आयोग ने लोकसभा के साथ 4 राज्यों- आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विधानसभा चुनाव की तारीखें भी जारी की हैं। ओडिशा में 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को वोटिंग होगी।
लोकसभा के फर्स्ट फेज में 21 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर 19 अप्रैल को वोटिंग हुई। सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक हुई वोटिंग में 68.29 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। 2019 के मुकाबले यह आंकड़ा 1 प्रतिशत ही कम है। 2019 में फर्स्ट फेज में 91 सीटों पर 69.43% वोटिंग हुई थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को दिल्ली स्थित पार्टी दफ्तर में 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा का मैनिफेस्टो जारी किया। इसे 'भाजपा का संकल्प-मोदी की गारंटी' नाम दिया गया है। मोदी के साथ मंच पर जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, अमित शाह और निर्मला सीतारमण मौजूद थे।
लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 6 अप्रैल को 48 पेज का घोषणा पत्र जारी किया। दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में सोनिया, राहुल, खड़गे और मेनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष पी चिदंबरम ने 5 न्याय और 25 गारंटी का ऐलान किया। पार्टी के घोषणा पत्र में मजदूरी 400 रुपए दिन करने, गरीब परिवार की महिला को साल में 1 लाख रुपए देने, MSP को कानून बनाने और जाति जनगणना कराने का जिक्र है।
लुटेरों और अपराधी कबीलों को सेना से जोड़कर कर सत्ता तक पहुंचने का काम मध्यकाल में आक्रांताओं ने किया। लेकिन स्वतंत्रत भारत में भी एक चिंतनधारा ऐसी है जो मुस्लिम समाज में केवल अपराधियों और वनवासियों में माओवादी हिसकों के प्रति सहानुभूति या सद्भाव दिखाकर अपने राजनीतिक लाभ का आकलन करती है । ऐसी झलक किसी एक प्रांत में नहीं अपितु लगभग पूरे भारत में दिखती है ।
भारत विविधताओं से भरा देश है । यह विविधता भाव, भाषा, भूषा और भोजन में ही नहीं, लोकजीवन की परंपराओं में भी है । यह हम कश्मीर, केरल, कर्नाटक, बंगाल, उत्तर प्रदेश और सुदूर वनवासी अंचल बस्तर के समाज जीवन से समझ सकते हैं। किन्तु इस विविधता के बीच एक सूत्र है जो इन सभी प्रांतों में बिल्कुल एक जैसा दिखाई देता है, वह है माओवादी हिंसक आंतकियों और मुस्लिम समाज से संबंधित अपराधियों के अपराध की गंभीरता को कम करने लिये विषयान्तर करने संबंधी राजनीतिक वक्तव्य ।
ऐसा करने वाले कोई दर्जन भर राजनीतिक दल हैं जो इन दोनों विषयों से संबंधित घटनाओं और अपराध पर ऐसे वक्तव्य देते हैं जिनसे लोग अपराध पर नहीं अपितु राजनीति पर चर्चा करने लगते हैं । ऐसे कुछ दलों में तो आपसी राजनीतिक तालमेल भी नहीं है । पर इन दोनों विषयों पर सबकी शैली एक है, एक दूसरे के स्वर में स्वर मिलाते हैं। पता नहीं क्यों इन दलों को अपना हित अपराधियों के प्रति सद्भाव प्रदर्शित करने में क्यों दिखता है। मुस्लिम समाज में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिक, केके मोहम्मद जैसे पुरातत्व विशेषज्ञ और अब्दुल हमीद जैसे बलिदानी भी हुए।
किन्तु इन विभूतियों के लिये वैसी लामबंदी नहीं होती जैसी माफिया डाॅन मुख्तार अंसारी और शाहजहां शेख, दो मासूम बच्चों के हत्यारे साजिद, लव जिहाद में हत्या के आरोपी फैयाज और बस्तर के एनकाउंटर में मारे गये नक्सलियों के प्रति देखी गई । मुस्लिम समाज से संबंधित किसी अपराधी या माफिया डान का नाम आते ही कुछ राजनीतिक दल के नेता ऐसे वक्तव्य जारी करने लगते हैं जिनसे या तो अपराध की गंभीरता कम होती है अथवा सुरक्षा बलों की लक्ष्य मूलक कार्रवाई पर प्रश्न उठने लगते हैं ।
यदि हम अतीत में घटी असंख्य घटनाओं को छोड़ दें, जिनमें गोधरा कांड के अपराधियों को बचाने का अभियान, बटाला हाउस एनकाउंटर में मारे गये आतंकवादी के लिये किसी नेता की आंख में आंसू आने की चर्चा, पाकिस्तान प्रायोजित कश्मीर के आतंकवाद में संलग्न आतंकवादियों को भटके हुये नौजवान कहना, पालघर में साधुओं की हत्या पर राजनीति करके हत्याओं की गंभीरता को कम करना, कुख्यात आतंकवादी अफजल की बरसी मनाने और उसमें भारत के टुकड़े होने के नारे लगाने जैसी घटनाएं घटीं हैं, केवल पिछले एक माह के भीतर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में घटी कुछ घटनाओं को देखें तो भी इस तथ्य को आसानी से समझा जा सकता है ।
इनमें कश्मीर की तीन टारगेट किलिंग, कर्नाटक में लव जिहाद किलिंग, केरल में लड़कियों के गायब होने और उन्हें धर्म विशेष का प्रचारक बनाने का विवरण सामने आना, बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के सामूहिक शोषण, बस्तर में नक्सलियों और बदायूं में दो मासूम बच्चों के हत्यारे के एनकाउंटर और माफिया डाॅन मुख्तार की मौत पर जो राजनीतिक वक्तव्य आये, इन सबमें एक ही शैली है। जिससे अपराधियों और देश विरोधी तत्वों को राजनीतिक परदे में छिपने का अवसर मिला ।
कश्मीर में टारगेट किलिंग और वक्तव्य: अप्रैल में ही कश्मीर में टार्गेट किलिंग की तीन घटनाएं हुईं । आतंकवादियों ने 8 अप्रैल को शोपियां जिले के पदपावन में ड्राइवर परमजीत सिंह की हत्या की, 17 अप्रैल को अनंतनाग में बिहार के प्रवासी मजदूर शंकर शाह की गोली मारकर हत्या की और इसी सप्ताह राजौरी में एक सिपाही के भाई की हत्या की। कश्मीर में ऐसी हत्याओं के पीछे किसका हाथ है और कौन कर रहा है, इन हत्याओं का उद्देश्य क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है । इसके तार सीमापार पाकिस्तान से जुड़े माने जाते हैं । ये गतिविधियां देश के सद्भाव, संविधान और मानवता के विरुद्ध तो हैं हीं ये देश विरोध की सीमा में भी आती हैं । फिर भी कश्मीर के दो प्रमुख नेताओं महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के वक्तव्यों में हत्यारों के प्रति गुस्सा नहीं सहानुभूति की झलक दिखती है । लगता है कि वे इन अपराधों की गंभीरता से ध्यान हटाकर राजनीतिक बहस खड़ी करना चाहते हैं । पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने घटना की निंदा तो की पर साथ ही भाजपा पर हमला बोला और कहा "इस तरह की घटनाओं का इस्तेमाल देश में मुसलमानों की छवि खराब करने के लिए किया जा रहा है । नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुला ने तो यहां तक कहा कि "ये तब तक नहीं रुकेगा जब तक न्याय नहीं मिलता।" उन्होंने इन घटनाओं को 370 की बहाली से भी जोड़ा। कश्मीर में कौन अन्याय कर रहा है और किसको न्याय चाहिए ? कश्मीर के मूल निवासी तो कश्मीरी पंडित हैं जिन्हें तो खदेड़कर बाहर कर दिया गया । उनके घर मकान सब पर कब्जा कर लिया गया। तो अन्याय किसके साथ हुआ ? यदि भारत के लोग संसार भर के अन्य देशों में जाकर काम कर सकते हैं तो अपने देश के प्रांत कश्मीर में क्यों नहीं कर सकते ? यदि कश्मीर जाकर काम करने का प्रयास करेंगे तो गोली मार दी जायेगी ? उमर अब्दुल्ला क्यों 370 की बहाली चाहते हैं ? यदि भारतीय नागरिक अमेरिका और ब्रिटेन में जाकर बस सकते हैं और संपत्ति खरीद सकते हैं तब देश के ही प्रांत कश्मीर में क्यों नहीं ? सर्दी के दिनों में कश्मीरी नागरिक भारत के कोने-कोने में जाकर शाल बेचते हैं। उन्हें तो कोई कहीं से नहीं भगाता लेकिन कश्मीर में किसी अन्य कोई स्थान नहीं। उन्हें मार डाला जाता है और कुछ राजनेता अपराध की गंभीरता से ध्यान हटाकर घटनाओं को राजनीतिक मोड़ देने का प्रयास करते हैं।
बदायूं और बस्तर में एनकाउंटर पर उठाए गए सवाल: इस माह के भीतर दो चर्चित एनकाउंटर हुये । एक उत्तर प्रदेश के बदायूं में और दूसरा छत्तीसगढ़ के बस्तर में। सुरक्षा बलों ने बदायूं में साजिद नाम के युवक का एनकाउंटर किया जिसने घर में घुसकर दो मासूम बच्चों की हत्या की थी । जब साजिद उस घर में पहुंचा तो उन बच्चों की मां साजिद के लिए चाय बनाने चली गई और ये बच्चे पानी लेकर पहुंचे। साजिद इन दोनों बच्चों की हत्या कर भाग गया। जब पुलिस पकड़ने पहुंची तो साजिद ने पुलिस पर हमला किया, एनकाउंटर हुआ और साजिद मारा गया । इसके लिए सुरक्षा बलों की प्रशंसा की जानी थी लेकिन समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए और सुरक्षा बलों की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाए ।
ठीक यही शैली बस्तर में हुए नक्सली एनकाउंटर पर कांग्रेस की रही । इस एनकाउंटर में 29 ईनामी नक्सली मारे गए । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताया और आरोप लगाया कि नक्सलियों के नाम पर निर्दोष आदिवासियों को मारा जा रहा है । ये नक्सली माओवादी हिंसक हैं जिन्होंने सैकड़ों निर्दोष आदिवासियों की हत्या की है । उन्होंने इस एनकाउंटर में मरने वालों की सूची जारी की और अपने दल का सदस्य बताया । यह एक प्रकार से सुरक्षा बल के दावे का सत्यापन है लेकिन कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने एनकाउंटर को फर्जी बताया । इस एनकाउंटर पर इस बयान ने खुद कांग्रेस को असहज बना दिया है ।
माफिया मुख्तार अंसारी और कुख्यात अपराधी शाहजहां शेख का महिमा मंडन: माफिया डान मुख्तार अंसारी का उत्तर प्रदेश के दस जिलों में आतंक था । उस पर कुल 61 मुकदमे दर्ज थे, चार में सजा हो चुकी थी भाजपा नेता सहित चौबीस हत्याओं के आरोप थे । समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में उसकी गहरी पैठ थी । उत्तर प्रदेश में जैसे योगी सरकार आई वह पंजाब चला गया । वह उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथ न लगे इसके लिए पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी और सरकारी खजाने के लाखों रुपये व्यय कर दिए । जेल में मुख्तार की मौत हो गई । सपा और बसपा ही नहीं कांग्रेस और एआईएमआईएम के नेता औबेसुद्दीन औबेसी ने भी मुख्तार अंसारी को जननेता बताया, मौत पर हाय तौबा की और सुरक्षा बल की भूमिका पर प्रश्न उठाये ।
इससे दस कदम आगे बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पूरी सरकार उस शाहजहां शेख को बचाने में पूरी शक्ति लगा रही है जो संदेशखाली में महिलाओं के शोषण और उनकी संपत्ति पर कब्जा करने का आरोपी है । शेख का परिवार बांग्लादेशी है । शेख ने एक मजदूर के रूप में जिन्दगी शुरू की और केवल तीस वर्ष में अरबों की संपत्ति का स्वामी बन गया । उसके शोषण के विरुद्ध कुछ महिलाओं ने आवाज उठाई और पूरे देश के सामने यह प्रकरण आया । जांच के लिये एनआईए टीम गई तो उसपर हमला किया गया। पश्चिम बंगाल ही नहीं पूरे देश में संदेशखाली की घटना से आंदोलित है लेकिन जहां पूरी तृणमूल कांग्रेस शेख का बचाव कर रही है वहीं कांग्रेस, सपा, बसपा, साम्यवादी पार्टी चुप्पी साधे हुए हैं।
कर्नाटक में लव जिहाद: पंथ विशेष के अपराधियों के प्रति कुछ राजनीतिक दलों की सद्भावात्मक शैली केवल वक्तव्यों तक सीमित नहीं है उनके दलों की सरकारों में देखने को मिलती है । पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में भी ऐसी झलक मिली । कर्नाटक के हुबली स्थित बीवीबी कॉलेज कैंपस में एमबीए प्रथम वर्ष की छात्रा नेहा की फैयाज नामक युवक ने हत्या कर दी । नेहा के पिता कांग्रेस जुड़े हैं और पार्षद हैं फिर भी पुलिस तब सक्रिय हुई जब भाजपा, बजरंग दल आदि प्रदर्शन के लिए सड़क पर आए । नेहा के पिता ने मीडिया के सामने स्वीकार किया कि प्रदेश में लव जिहाद तेजी से फैल रहा है। अब पता नहीं यह कर्नाटक सरकार और कांग्रेस की व्यस्तता थी या आरोप को गंभीर न मानना कि घटना के तीन दिन तक न तो पुलिस की सक्रियता दिखी और न कांग्रेस का कोई पदाधिकारी पीड़ित परिवार के घर पहुंचा। घटना की प्रतिक्रिया पूरे कर्नाटक में हुई लेकिन सरकार घटना की सीआईडी जांच के आगे न बढ़ी। यह सभी घटनाएं अलग-अलग प्रान्तों की हैं लेकिन यही एक बात समान है कि आरोपी या अपराधी पंथ विशेष से संबंधित हैं । ये घटनाएं पहली नहीं हैं और न अंतिम। लेकिन यह प्रश्न अवश्य उठता है कि पंथ विशेष का सद्भाव या समर्थन जुटाने के लिये आखिर आरोपियों और अपराधियों को ही क्यों सिरमौर माना जाता है ।
लेखक : रमेश शर्मा
आज उनके पुण्यतिथि पर, पढ़ें उनकी लिखी कविताओं में से कुछ प्रसिद्ध कविताएं:
छत्तीसगढ़ के कांकेर में पिछले सप्ताह केंद्रीय सुरक्षाकर्मियों ने एक ऑपरेशन के तहत बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया। सूचनाएं थी कि नक्सली चुनाव में गड़बड़ी करने वाले थे। उनका निशाना पोलिंग बूथ थे। उनके पास से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ। नक्सलियों पर इस कार्रवाई को लेकर एक दफा फिर कांग्रेस ने प्रमाणिकता पर सवाल उठाए हैं। वाजिब सवाल ये है कि आखिर चुनाव के बीच नक्सल और सुरक्षाबलों के बीच चले इस संघर्ष को राजनीतिक रंग देने में किसका भला होगा? भूपेश बघेल तो मुठभेड़ को फर्जी भी बता रहे हैं। वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी बिना सोचे समझे नक्सलियों से हमदर्दी जताई। हालांकि, विरोध होने पर अब दोनों अपने बयानों को लेकर लीपापोती करने में लगे हैं। कुछ विपक्षी नेताओं ने इससे पूर्व भी नक्सलियों को शहीद बताकर उनके प्रति हमदर्दी जताई थी। यह तो जगजाहिर है ही कि कांग्रेस नक्सल आंदोलन के हिंसावादी रवैये की प्रति शुरू से नरम रही है। जबकि, कायदे से देखें तो नक्सलियों ने उनके भी कई नेताओं को मौत के घाट उतारा है।
बहरहाल, कांकेर मुठभेड़ को लेकर कांग्रेस और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच जमकर वाकयुद्ध जारी है। पर, नक्सलवाद की समस्या चुनाव तक ही सीमित नहीं रहने वाली? क्योंकि देश विगत 70 वर्षों से नक्सल आतंकवाद झेलता आया है। अब समय की मांग है कि इसे जड़ से खत्म किया जाए। केंद्र की योजना फिलहाल इसी ओर अग्रसर भी है। अभी तक हजारों नक्सली मारे गए हैं जिनमें बड़ी संख्या में हमारे जवान भी शहीद हुए हैं। इसलिए इस समस्या को राजनीतिक चश्मे से देखने कतई औचित्य नहीं? इस समस्या को जड़ से मिटाने की राष्ट्रीय नीति के प्रति सभी को एक समान विचार रखना चाहिए। केंद्र सरकार ने गत दस वर्षों में नक्सल उन्मूलन की नीति पर एक निरंतरता बनाया हुआ है जिसके बेहतरीन परिणाम भी मिले हैं।
आंकड़ों पर गौर करें तो 2004-14 के यूपीए के दस सालों के नक्सली हमलों या मुठभेड़ों में 1,750 सुरक्षा बलों के जवानों की शहादत हुई थी, लेकिन 2014-23 में करीब 72 फीसदी तक कमी आई। इस दौरान 485 सुरक्षाबलों के जवानों की जान गई। इसी अवधि में नागरिकों की मौत की संख्या भी 68 प्रतिशत घटकर 4,285 से 1,383 हुई। कांग्रेस सरकार अपने वक्त में ये तय नहीं कर पाई थी कि वह आर्म्ड वाम विद्रोह के खिलाफ केंद्रीय नीति किस तरह की रखे। कांग्रेस के नेताओं में इस पर एकमत था ही नहीं। प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह उच्चस्तरीय सुरक्षा सम्मेलनों में तो यह कहते रहे कि नक्सलवाद देश के लिए खतरा है। पर, गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम ने सशस्त्र विद्रोह के प्रति कोई आक्रामक नीति कभी बनाई ही नहीं? मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने नक्सलवाद के मूल कारणों को ढूंढने के अपने सिद्धांत बना लिए और उसी की वकालत करते रहे।
सन 2009 में यूपीए सरकार ने ऑपरेशन 'ग्रीन हंट' शुरू किया था। तब कहा गया था कि सरकार नक्सलियों को पूरी तरह खत्म कर देगी। सीआरपीएफ को इसके लिए खास तरह के टास्क दिए गए। इस अभियान में भारतीय सेना को भी लगाया गया। लेकिन, यह ऑपरेशन सुरक्षा बलों के लिए ही काल बन गया। अप्रैल-2010 में नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में एक ही दिन 76 सीआरपीएफ के जवानों की हत्या कर दी। घरेलू मोर्चे पर यह ऑपरेशन 'ब्लूस्टार' के बाद सुरक्षाबलों की सबसे ज्यादा मौतों की यह घटना बन गई। यूपीए में तीन-तीन गृह मंत्री बनाए गए, शिवराज पाटिल, चिदंबरम और सुशील शिंदे। नक्सलवाद को लेकर तीनों की अपनी अलग-अलग राय थी। यूपीए सरकार में ही हिंसक नक्सलियों को गुमराह और नेक इरादे वाले लोगों के रूप में वर्णन किया गया। यूपीए सरकार ने ही मलकानगिरी के कलेक्टर विनील कृष्णा के बदले में आठ माओवादियों को रिहा किया। उसी दौरान माओवादी समर्थकों का एक पढ़ा लिखा वर्ग भी तैयार हुआ, जिन्हें आज अर्बन नक्सली कहा जाता है। फिलहाल केंद्र सरकार अब ये दावा करती है कि उसने हिंसक वाम आंदोलन और उग्रवाद खिलाफ जोरदार अभियान छेड़ा है।
नक्सल वामपंथी उग्रवाद को किसी भी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी। 2015 में मोदी सरकार ने आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ ’राष्ट्रीय नीति और कार्ययोजना’ शुरू की थी, जिसमें हिंसा के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात कही गई थी। सरकार ने उसी समय से किसी भी तरह की हिंसा से निपटने के लिए पुलिस और सुरक्षाबलों का आधुनिकीकरण करना शुरू कर दिया। प्रशिक्षण के लिए विशेष तौर पर फंड जारी किए। इसके साथ ही सरकार ने हिंसा प्रभावित राज्यों की सहायता के लिए विशेष बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की योजना पर काम शुरू किया। सुरक्षा जरूरतों में आने वाले खर्चों के लिए अलग से धनराशि जारी की। इतना ही नहीं इस पूरे काम की निगरानी करने के लिए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय में एक अलग डिवीजन बनाया। इसे वामपंथी उग्रवाद प्रभाग का नाम दिया गया।
वामपंथी उग्रवादियों का मुकाबला करने और राज्य पुलिस बलों की क्षमता को बढ़ाने के लिए राज्यों में इंडिया रिजर्व बटालियन का भी गठन किया गया। लगातार ऑपरेशन से माओवादियों और नक्सलियों के पांव उखड़ गए हैं। हिंसा और अपराधों के आकड़े में लगातार कमी आई है। वर्ष 2014 से 2023 के बीच में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में 52 फीसदी से अधिक की कमी आई है। इस तरह कुल मौतों में भी 69 फीसदी की कमी आई है। सुरक्षाबलों के हताहतों की संख्या इस समय काफी कम है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। ये तभी संभव हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्र और राज्यों के बीच एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त किया, जिसके चलते ही विगत वर्षों में उग्रवादी गुटों के कई सदस्य सरकार के सामने आत्मसमर्पण करने को भी मजबूर हुए।
केंद्र सरकार ने कई मर्तबा वामपंथी उग्रवादियों को हिंसा छोड़ने और बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। उनके लिए केंद्र ने कई विकास परियोजनाएं भी शुरू करने की बात कही। इनमें वामपंथी उग्रवाद से ग्रस्त क्षेत्रों में 17,600 किलोमीटर सड़कों को मंजूरी देना। केंद्र ने राज्यों को नियमित निगरानी के लिए हेलीकॉप्टर और मानव रहित हवाई वाहन उपलब्ध करवाना। सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए स्पेशल फंड्स जारी किए। इस मद में करीब 971 करोड़ रुपये की परियोजनाएं मंजूरी भी हुईं। इन परियोजनाओं में 250 किलेबंद पुलिस स्टेशन स्थापित करने का काम शुरू भी हुआ। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क आवश्यकता योजना को केंद्र सरकार ने आठ राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश के 34 जिलों में लागू किया है। इस योजना में 5,362 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो भी चुका है।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए सरकार ने अगस्त 2014 में इन क्षेत्रों में मोबाइल टावरों की स्थापना को भी मंजूरी दी। अब तक 4885 मोबाइल टावर लगाए गए हैं। दूसरे चरण में 2,542 मोबाइल टावर और लगाए जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने वामपंथी उग्रवाद के पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे को 2017 में 5 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिए और अब इसमें बढ़ोतरी करके 40 लाख रुपये कर दिए हैं। नक्सली फिर भी बाज नहीं आ रहे। तभी हारकर अब उनके खिलाफ 'पुलिस टेक्नोलॉजी मिशन' शुरू हुआ है। ताकि इनपर अंतिम प्रहार किया जाए। कांकेर मुठभेड़ उसी का हिस्सा है।
लेखक :- डॉ. रमेश ठाकुर
"कालयुक्त नव संवत्सर के राजा एवं प्रबंधन के आदि गुरु विश्वव्यापी हनुमान का प्राकट्योत्सव"
(महाबली हनुमान जी का अवतरण जयंती नहीं प्राकट्य है