
In interiors, fashion and jewellery, the Ancient Greek aesthetic is being embraced (Credit: Mind the Gap Wallpaper)
प्रधानमंत्री के एक ट्वीट से प्रभावित ग्रामांचल की विजया पवार को प्रेरणा मिली और उन्होंने महिलाओं को स्वरोजगार से जुड़ने के अपने अभियान को गति दी। विजया का कहना है कि ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक पोस्ट से मेरी और मेरे साथ काम करने वाली महिलाओं की जिंदगी बदल गई। हम पिछले 20 साल से स्ट्रगल कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने हमारे काम की तारीफ करके हमारा सम्मान बढ़ाया है।
महाराष्ट्र के पुणे जिले के ग्राम नरेह की रहने वाली विजया पवार की बंजारा हस्तकला के क्षेत्र में विशेष पहचान है। वह बताती हैं कि बंजारा हस्तकला हमारे क्षेत्र की पहचान है। मैं छोटी से बड़ी इसी में हुई हूं। वैसे तो यह कला यहां मां से बेटी को मिलने वाली विरासत है। ससुराल में सास से मेरे पति ने इसे सीखा, फिर उनसे मैंने सीखा। जब इस काम में रुचि बढ़ी तो इसी पर फोकस किया फिर ट्रेडिशनल चीजों का डुप्लीकेट बनाया और एक एनजीओ रजिस्टर कराया। गांव की सभी महिलाओं को ट्रेनिंग दी। इसके बाद जिला स्तर पर महिलाओं को जोड़ा।
विजया बताती हैं कि केंद्रीय वस्त्र एवं उद्योग मंत्रालय की अंबेडकर हस्तशिल्प विकास योजना के तहत उनके एनजीओ ने 682 महिलाओं को पांच साल तक ट्रेनिंग दी। उन्होंने काम के साथ ये भी सिखाया कि इस क्षेत्र में रोजगार कैसे कर सकते हैं। इस काम को सीखकर आज 450 महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हैं। आज यह महिलाएं देशभर में लगने वाली प्रदर्शनी, चाहे वो खादी हो या महालक्ष्मी सरस या सूरजकुंड और दिल्ली सब जगह जाती हैं। आज यह खुद का बिजनेस कर रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा था, मैं अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स उन महिलाओं को समर्पित कर दूंगा, जिनकी जिंदगी और काम हम सभी को प्रेरित करता है। इससे यह महिलाएं लाखों लोगों का हौसला बढ़ाने में मदद कर सकेंगी।
हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। माघ महीने में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को मुक्ति का द्वार भी कहा जाता है।
धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे भगवन्! आपने माघ के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यन्त सुंदर वर्णन किया। आप स्वदेज, अंडज, उद्भिज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए। इसका क्या नाम है, इसके व्रत की क्या विधि है और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है?
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन्! इस एकादशी का नाम 'जया एकादशी' है। इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है तथा इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुमसे पद्मपुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूँ।
देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे।
पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। हे राजन्! वह पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था।
इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा हे मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो।
इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वहाँ उनको महान दु:ख मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी।
उस जगह अत्यन्त शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दाँत बजते रहते। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है। अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे।
दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यन्त ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई।
हे राजन् ! जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ।
माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजा युधिष्ठिर ! इस जया एकादशी के व्रत से बुरी योनि छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं।
जैसलमेर जो राजस्थान राज्य के पश्चिमी इलाके में स्थित है जयपुर से 550 किलोमीटर और जोधपुर से 280 किलोमीटर वही उदयपुर से 490 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ यह खूबसूरत रेगिस्तान जो दुनिया भर में पर्यटन क्षेत्र में प्रसिद्द है
सैम सैंड डून्स
जैसलमेर के थार रेगिस्तान में पर्यटकों को आनंद करने का सबसे उत्तम है जहा पर आप राजस्थान की छवि को जैसलमेर के सैम सैंड डून्स में देखने को मिलता है –
सैंड डून्स जब आप पहुंचेंगे तो यहा पर आपको ढेर सारे डेजर्ट हाउस देखने को मिलेगा जहा आप किसी भी डेजर्ट में रुक सकते है हर किसी का चार्ज ऊपर नीचे हो सकता है ।
यहाँ पर एक दिन का चार्ज 2 लोगो के लिए 3000 से 4000 तक होता है जिसमे आपको मिलेगा नास्ता , लंच , डिनर , और ठहरने के अलाबा रात में यहाँ पर होता ही राजस्थानी कल्चर एक्टिविटी
सभी डेजर्ट हाउस में बीचो बीच राजस्थानी कल्चर एक्टिविटी जिसमे आपको देखने को मिलती है जो जैसलमेर घूमने का एक शानदार अनुभव प्रदान करती है
जैसलमेर का किला
दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तानी किला और राजस्थान का दूसरा सबसे पुराना किला इस किले का निर्माण 1156 में यदुबंशी भाटी रावल जैसिंघ ने बलुए पत्थर से बनवाया था.
किले के चारो तरफ 99 किला बंदी मीनारे है जो मीलो दूर से दिखयी देती है खास तौर पर सनसेट और सनराइज के समय इसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती जब पूरा किला गोल्डन दिखाई पड़ता है ।
ये किला दुनिया का सबसे पुराना एक मात्रा किला जहा राजा के अलाबा गलियां , , हवेलिया , म्युसियम मंदिर , होटल सभी एक साथ मौजूद है ।
और तो और जैसलमेर किला विश्व का इकलौता ऐसा किला जिसकी छत लकड़ी से बनी हुयी है और दीवारों पर गौमूत्र का लैप किया गया है पहाड़ी पर बना ए किला फेमस है
हवेलिया
जैसलमेर प्रसिद्द है अपने सुन्दर नक़्क़शी दार मार्वल की हवेलियों के लिए जिन्हे 19 सेंचुरी में बनवाया गया था यहाँ 5 अलग – अलग हवेलियों का समूह है । जिनमे से –
पटवों की हवेली – ये हवेली प्रसिद्ध है अपने सुन्दर खिड़कियों , बाल्कनिया , इंटीरियर डिज़ाइन और संग्रहालय सोने चंडी के आभूषण और कलाकृतिया मौजूद है ।
मोती महल
नथमल जी की हवेली
गाढ़ीसर झील
जैसलमेर शहर के भीतर स्थित इस लेक में आप चाहे तो बोटिंग कर सकते है और यहाँ पर एक बाग़ है जो की इसे भी विजिट कर सकते है यहाँ पर आपको सुन्दर स्मारक देखने को मिलेगा ।
इस झील के किनारे बहुत सारे मंदिर देखने को मिलेंगे चाहे तो यहाँ भी विजिट कर सकते है । सनसेट के समय यहाँ का नजारा काफी खूबसूरत हो जाता है अगर आप कपल है एक बार इस लेक में आप जरूर विजिट करे ।
जैसलमेर में पानी के स्रोत के लिए रावल जैसल ने और बाद में 1367 में महाराज गड़सिंघ ने इसका पुनर निर्माण करवाया । ये झील कभी नहीं सोखने बाली लेक है जिसको गर्मिओ में इंद्रगढ़ी नगर से भरा जाता है ।
बाबा रामदेवरा समाधी टेम्पल
जैसलमेर के मुख्य देवता है ऋणी चारा धनि जी जिनका भव्य मंदिर और समाधी जैसलमेर के रामदेवरा में जिन्हे हिन्दुओं के द्वारा वृषनु का अवतार और मुस्लिमो के द्वारा राम पीर का रूप मान जाता है
अमर सागर झील
जैसलमेर से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यहाँ झील हमेशा पानी से भरी हुयी रहती यहाँ पर पर्यटक इसकी खूबसूरती को देखने के लिए हर समय मौजूद रहते है ।
झील के अलाबा इसके नजदीक में ही विजिट कर सकते है जैन मंदिर और शिव मंदिर जिसकी डिजाइन एक अपार्टमेंट की तरह है ।
डेजर्ट नेशनल पार्क
यदि आप प्रकृति प्रेमी है और पक्षियों और जानवरो को प्यार करते है तो ये जगह आपके लिए बिलकुल उपयुक्त है राजस्थान का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण है
डेजर्ट नेशनल पार्क जहा आपको रेगिस्तान में पाए जाने बाले बिभिन्न प्रकर के पक्षियों का समूह देखने को मिलता है । इसके अलाबा बिभिन्न जानवरो की फ़ौज देख सकते है ।
लकड़ियों के जीवाश्म
ये जगह फेमस है जीवाश्म के लिए यहाँ पर लगभग 18 करोड़ वर्ष पहले के जीवास्म मिले है जिसकी बजह से ये स्थान जैसलमेर में टूरिस्ट प्लेस बन चूका है ।
यहाँ पर पर्यटकों को देखने के लिए ऑस्ट्रेलियाई पक्षी और लकड़ी को पूरी तरह से पत्थर में बदलते हुए देख पाएंगे
कुलधरा गांव –
ये वो गांव है जो एक ही रात में पूरा गांव खाली हो गया था जिसकी बजह से इसे भूतिहा जगह मना जाता है यहाँ पहुंचने पर आपको 200 वर्ष पुराने मिटटी के घर देखने को मिलते है ।
बारा बाग़ मंदिर
जैसलमेर के राजो की शाही समाधी स्थल या क्षत्रियो के सेट आप एक सामान देख सकते है जिसकी शुरुआत जैसिंघ समाधी के साथ 1764 में की गयी थी ।
युद्ध संग्रहालय जैसलमेर
दोस्तों जैसलमेर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बना है यह संग्रहालय जहा आपको भारत पाकिस्तान के कारगिल युद्ध में इस्तेमाल किये जाने बाले हथियार और कुछ हवाई जहाज देखने को मिल जाएगी ।
व्यास छतरी
जैसलमेर में घूमने की जगह में एक और शानदार प्लेस जहा आपको देखने को मिलेगा सनसेट शाम के समय ढलता हुआ सूरज आपकी पिकनिक को और ज्यादा बेहतरीन बना देगा ।
सोनार का किला
किला के प्रवेश द्वार पर अंकित रानियों के हाथो के निशान इसके बारे में बताया जाता है की जब अलउद्दीन खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया था और युद्ध के दौरान रानियों को सूचना मिली की महाराजा युद्ध में मारे गए।
तब रानियों ने जौहर कर लिया उन्ही के हांथो के निशान आज भी इस किला के मुख्य द्वारा पर गवाही देता है इसीलिए इस जगह को जौहर कुंड के नाम से जाना जाता है ।
लौंगेवाला युद्ध बाथल
ये एतिहासिक जगह जैसलमेर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ये वही जगह है जहा पर 4 दिसम्बर 1971 की रात को मात्र 100 भारतीय सैनिको ने पाकिस्तान के 2000 से भी ज्यादा सैनिको तथा 60 टैंक्स को हराया था ।
तनोट माता मंदिर
लौंगवाला से 35 तथा जैसलमेर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस चमत्कारी मंदिर को जैसलमेर में घूमने लायक जगह में शामिल कर सकते है ।
इस मंदिर को चमत्कारी मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योकि 1965 तथा 1971 भारत और पाकिस्तान युद्ध के दौरान यहाँ पर बहुत बम गिराए गए थे फिर भी मंदिर और भारतीय जवान बिलकुल सुरक्षित थे।
तब से इस मंदिर का रख रखाव Bsf के जवान करते है । यहाँ पर आज भी उस समय के ब्लास्ट हुए बम को देख सकते है । बॉडर बॉलीवुड फिल्म इसी पर आधारित है
ताजिया टावर
जैसलमेर में स्थित ये पांच मंजिला ईमारत जिसकी ऊंचाई की बजह से इसे बादल महल भी कहा जाता है यहाँ का मुख्य आकर्षण केंद्र इस्लमिक संरचना में बना।
इसका सबसे ऊपरी हिस्से की नक्काशी बिलकुल ताजिया की तरह है इसीलिए इसे ताजिया भी कहते है । बर्तमानसमय में इसे म्यूजियम और होटल में तब्दील कर दिया गया है
दक्षिण भारत के संस्कृति
भारत के दक्षिणी भाग को दक्षिण भारत कहते हैं, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु राज्यों को कवर करते हैं। दक्षिण भारत के क्षेत्र को द्रविड़ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसे भारत के राष्ट्रगान में प्रयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीयों का बहुमत द्रविड़ भाषा बोलता है: कन्नड़, मलयालम, तमिल और तेलुगु अन्य भाषाओं में दक्षिण भारत अंग्रेजी और हिंदी में बोलती
अंग्रेजी नाम दक्षिण भारत के अलावा, भारत के दक्षिणी भाग को कई अन्य ऐतिहासिक नामों से जाना जाता है। आदि शंकर ने 8 वीं सदी में द्रविड़ नाम का आविष्कार किया क्योंकि उन्होंने खुद को द्रविड़ शिशु (द्रविड़ चाइल्ड) कहते हैं, दक्षिण भारत का बच्चा शब्द दक्कन, और दक्षिणी शब्द का अर्थ दक्षिण से निकला हुआ है, केवल दक्षिण क्षेत्र का हिस्सा है जो डेक्कन पठार का है। दक्कन पठार एक ज्वालामुखीय पठार है जो प्रायद्वीपीय भारत के अधिकांश इलाकों को शामिल करता है जिसमें कोस्टल क्षेत्र को छोड़ दिया जाता है।
दक्षिण भारत के इतिहास
उथल-पुथल चल रहा था और उत्तर में राज्य बढ़ते और गिर रहे थे, दक्षिण भारत अपेक्षाकृत शांत और स्थिर रहा। पल्लव, चोल और पंड्याज ने तमिल देश में सत्ता साझा की चेरस केरल शासन और चालुक्य ने कर्नाटक राज्य किया। द्वितीय शताब्दी ईस्वी के करीब, गौतमम्पुत्र सातकर्णी की मृत्यु के बाद सातवाहन साम्राज्य टुकड़ों में टूट गया और जब तक इक्ष्वाकस ने अपना अधिकार ग्रहण नहीं किया तब तक अंद्राओं पर शासन किया।
पल्लव कंची (वर्तमान कांचीपुरम) के साथ-साथ दक्षिण में अब तक राजधानी में सत्ता में उठे थे, जहां कुछ चौथी सदी में राजधानी थी। 6 वीं शताब्दी में, सिम्हाविष्णु ने सीलोन के शासक सहित अपने सभी दक्षिणी पड़ोसियों को जीत लिया और चोलों के देश को जब्त कर लिया। सिमविविष्णु के समय पल्लवों और उनके विद्वान चालुक्य के बीच एक महान संघर्ष उभर आया। पीढ़ियों तक संघर्ष जारी रहा। 8 वीं शताब्दी के पहले छमाही में, चालुक्य ने कांची को संभाला। 9वीं शताब्दी के आखिर तक आदित्य चोल ने अपराजित पल्लव को पराजित किया और अपने राज्य का कब्जा कर लिया।
पल्लव के शासनकाल के दौरान, कांची ब्रह्मवैज्ञानिक और बौद्ध शिक्षा का एक महान केंद्र बन गया। इस युग के दौरान कई प्रसिद्ध मंदिर बनाए गए थे। कांची के पल्लव कलाकारों ने कंबोडिया और जावा में महान मंदिर बनाने में मदद की हो सकती है
6 6 वीं शताब्दी ईसवी में कराटे या कनारेस बोलने वाला देश चालु (वर्तमान बादामी) के रूप में राजधानी के रूप में चालुक्य सत्ता में आए। राजवंश का असली संस्थापक पल्केसिन मैं था जो सत्ता में पहुंचने के लिए ‘असिममेगा यगा’ का प्रदर्शन करता था। उनके बेटों ने सभी दिशाओं में साम्राज्य का विस्तार किया। पुलकिक्सिन द्वितीय (60 9 -642) ने महाराष्ट्र में अपनी शक्ति को समेकित कर दिया और लगभग पूरे डेक्कन पर विजय प्राप्त की। 753 ईस्वी, विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा, चालुक्य राजा को दंडिर्गार्गा ने परास्त किया और रास्ट्रकोंट नामक एक नए साम्राज्य की स्थापना की।
दक्षिण में गुजरात के उत्तर प्रदेश में मालु और बागलाखण्ड से दक्षिण में तनेजोर तक का राष्ट्रकूट साम्राज्य का विस्तार हुआ। 973 में टेलिया द्वितीय में, प्रारंभिक चालुक्यों से एक वंशज ने वंश को उखाड़ दिया।
850 ईस्वी तक, चोलस सत्ता में उठे और तंजौर से दक्षिण तमिल देश का शासन किया। राजराज I के तहत (985-1018) और उनके पुत्र राजेंद्र चोल I (1018-1048) चोल ने पूरे तमिल देश पर विजय प्राप्त की। वे गंगा तक गए और सीलोन, निकोबार द्वीप समूह, मलय प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों और भारतीय आर्किपेलेगो पर अपनी ताकत पर जोर दिया। राजेन्द्र ने बंगाल के मणिपाल I को हराया उन्होंने मुसांगी में चालुक्य को भी परास्त किया राजेंद्र चोल कुलाथुंगा के बाद चोल साम्राज्य गिरा। पंजियों ने साम्राज्य के दक्षिणी भाग पर कब्जा कर लिया। गोदावरी और गंगा के बीच देश में कलिंग और उड़ीसा के साम्राज्यों में वृद्धि हुई।
पुराने त्रावणकोर के हिस्से के साथ ही वर्तमान में मदुरै और थिरुनेलवेली जिले पर पांडिया ने कब्जा कर लिया। उन्होंने व्यापार और सीखने में उत्कृष्टता हासिल की एक पांड्या राजा ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में रोमन सम्राट ऑगस्टस को एक दूत भेजा था। पांड्या साम्राज्य 13 वीं शताब्दी के दौरान प्रसिद्धि के लिए गुलाब। काफ़ूर ने 14 वीं शताब्दी की शुरुआत में राज्य पर विजय प्राप्त की। विजयनगर साम्राज्य एक संक्षिप्त अवधि के बाद इसे अवशोषित कर लेता है।
1328 में, हेलसाह साम्राज्य मोहम्मद बिन तुगलक के पास गिर गया। तुगलक की वापसी के बाद, विजयनगर साम्राज्य और बहमनी सल्तनत की स्थापना दक्षिण में हुई थी।
विजयनगर साम्राज्य: हिंदू गठबंधन के इस राज्य की स्थापना 1336 में मुम्बई की सत्ता का मुकाबला करने के लिए हम्पी में राजधानी के साथ हुई थी। विजयनगर साम्राज्य दो सदियों के लिए सबसे मजबूत और धनी हिंदू साम्राज्य बन गया। बुक्का 1 के शासन के तहत, लगभग सभी दक्षिण भारत अपने शासन के अधीन था।
बहमनी सल्तनत: मुस्लिम बहमनी राज्य 1345 में गुलबर्गा में राजधानी और बाद में विजयनगर साम्राज्य के बिदर उत्तर में स्थापित किया गया था। 15 वीं शताब्दी तक बहमनी सल्तनत को अलग-अलग पांच राज्यों में विभाजित किया गया, जिसमें बेरार, अहमदनगर, बीजापुर, गोलकोंडा और अहमदाबाद शामिल थे।
पड़ोसियों के बीच झगड़े ने एक दूसरे पर हार के लिए कई खूनी लड़ाइयों को उभारा। लेकिन 1482 तक विजयनगर साम्राज्य बहमनी सल्तनत के विघटन के परिणामस्वरूप बेहतर हुआ। 1520 में विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय ने बीजापुर पर विजय प्राप्त की। साम्राज्य अगले कुछ वर्षों में अपने चरम पर पहुंच गया लेकिन गिरावट भी इसके साथ शुरू कर दिया। मुस्लिम सल्तनत ने एक नए गठजोड़ का गठन किया, जबकि कई बलों ने आंतरिक रूप से साम्राज्य को विभाजित किया। 1565 में, सल्तनत गठबंधन ने तालकोटा में विजयनगर सेना को हराया नतीजतन, इस क्षेत्र की शक्ति मुस्लिम शासकों या स्थानीय सरदारों को पारित कर दी गई थी लेकिन अंततः, आर्यंजसेब ने बहामनी शासकों को पराजित किया और उनके राज्यों को मुगल साम्राज्य के साथ जोड़ा गया।
दक्षिण भारत के संस्कृति
दक्षिण भारत की संस्कृति दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के समान है, क्योंकि दक्षिण भारत के कई वंशों ने दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया पर शासन किया। दक्षिण भारत अनिवार्य रूप से शरीर और मातृत्व की सुंदरता के जश्न के माध्यम से शाश्वत ब्रह्मांड का उत्सव है, जो उनके नृत्य, कपड़े और मूर्तियों के माध्यम से मिसाल है। दक्षिण भारतीय व्यक्ति सफेद पंचा या रंगीन लुंगी को ठेठ बाटिक पैटर्न पहनता है और महिलाओं को परंपरागत शैली में एक साड़ी पहनती है। दक्षिण भारत में चावल सबसे अधिक भोजन है, जबकि मछली दक्षिण भारतीय भोजनों के मूल्य का अभिन्न अंग है। केरल और आंध्र प्रदेश में नारियल एक महत्वपूर्ण घटक है। हैदराबाद के बिरयानी, डोसा, इडली, उत्ताम लोकप्रिय दक्षिण भारतीय भोजन पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं।
दक्षिण भारत के भूगोल
दक्षिण भारत एक प्रायद्वीप है, जो कि अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और उत्तर में विंध्य और सतपुरा पर्वत तक फैला हुआ है। दक्षिण भारतीय एक प्रायद्वीप है, जो अरब सागर के पश्चिम में, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और उत्तर में विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला है। सातपुरा पर्वतमाला दक्कन पठार की उत्तरी शाखा को परिभाषित करती है। पश्चिम घाट, पश्चिमी तट के साथ, पठार की एक और सीमा को चिह्नित करते हैं। कोंकण क्षेत्र में पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच हरी भूमि की संकरी पट्टी इस क्षेत्र की प्रमुख नदियों गोदावरी, कृष्णा और कावेरी हैं, जो पूर्व की ओर बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में खाली हैं। सभी तीन नदियों बंगाल की खाड़ी से पहले deltas बनाते हैं और कोस्टल डेल्टा क्षेत्रों पारंपरिक रूप से दक्षिण भारत के चावल के कटोरे का गठन किया है।
दक्षिण भारत के भोजन
दक्षिण भारत का भोजन इसकी रोशनी, कम कैलोरी भक्षण करने के लिए जाना जाता है। दक्षिण भारत का पारंपरिक भोजन मुख्य रूप से चावल आधारित है स्वादिष्ट होंठ धड़कता हुआ डोसा, वडा, इडली और यूटापैम तैयार करने के लिए यह चावल और मसूर के अद्भुत मिश्रण के लिए प्रसिद्ध है। दक्षिण भारतीय व्यंजन सिर्फ स्वादिष्ट नहीं हैं, बल्कि बहुत आसानी से पचने योग्य हैं। सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि दक्षिण भारतीय अपने भोजन को खाना पकाने के लिए ज्यादा तेल का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
समर मुख्य पाठ्यक्रम में जरूरी है। यह आम तौर पर ज्यादातर खाद्य पदार्थों का एक साथी होता है तो यह इडली, वडा या डोसा होता है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में से अधिकांश में सांभर, रसम, सब्जी करी और पचड़ी (दही) शामिल हैं। जब चावल की तैयारी की बात आती है, दक्षिण भारतीय असली विशेषज्ञ होते हैं उनके नींबू चावल को लगभग सभी लोगों ने सराहा और सराहा है चावल की अन्य तैयारी में नारियल चावल, गाजर चावल और तली हुई चावल, नारियल, करी पत्ते, उराद दाल, इमली, मूंगफली, मिर्च और मेथी के बीज शामिल हैं।
दक्षिण भारतीय चटनी अच्छी तरह से लोग पसंद करते हैं दरअसल, चटनी, विशेष रूप से नारियल से बनाई गई एक, कई लोगों के लिए एक ऐसे रेस्तरां का दौरा करने का प्रमुख आकर्षण है जो दक्षिण भारतीय व्यंजनों में माहिर है। विभिन्न चटनी तैयार करने के मुख्य तत्व नारियल, मूंगफली, दाल, इमली, मेथी के बीज और कोलांटो हैं। दक्षिण भारतीय शैली में पकाए गए दाल उत्तर भारतीय तैयारी से काफी भिन्न होते हैं। वे उत्तर भारतीय शैली में पकाए गए दालों की तुलना में अधिक सूपी हैं।
दक्षिण भारत का भोजन उत्तर भारतीय व्यंजनों की तुलना में गर्म है। दक्षिण भारतीय गर्म मसाला और अन्य सूखे मसाले का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते हैं। हालांकि, हल्दी, काली मिर्च और इलायची एक अपवाद हैं दक्षिण भारत के भोजन के लिए, यह कहा जा सकता है कि यह स्वाद, रंग और स्वाद का सही मिश्रण है और पोषक संतुलन का ख्याल भी रखता है। यहां तक कि, दक्षिण भारतीय व्यंजनों की दृश्य अपील काफी आकर्षक है। दक्षिण भारतीय आमतौर पर अपने भोजन के बाद कॉफी पीने पसंद करते हैं। ठीक है, कॉफी पूरे देश में एक लोकप्रिय पेय बन गई है। दक्षिण भारत में नारियल का दूध भी काफी सामान्य है
दक्षिण भारतीय व्यंजनों में चार राज्यों, अर्थात् आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के व्यंजन शामिल हैं। सभी चार व्यंजनों में बहुत सी बातें हैं; हालांकि, वे मसाला सामग्री के संदर्भ में उनके भोजन की तैयारी में भिन्न होते हैं।
पदायणी दक्षिणी केरल की सबसे रंगीन और लोकप्रिय नृत्यों में से एक है। पदयनी कुछ मंदिरों के पर्व के साथ जुड़ा हुआ है, जिन्हें पादाणी या पैडेनी कहा जाता है। ऐसे मंदिर एलेप्पी, क्विलोन, पत्तनमथिट्टा और कोट्टायम जिले में हैं। पदायणी में प्रदर्शित मुख्य कोला (भव्य मुखौटे) भैरवी (काली), कालान (मौत का देवता), यक्षी (परी) और पक्षि (पक्षी) है। पदायणी में एक दिव्य और अर्ध-दिव्य अनुकरण की श्रृंखला शामिल है, विभिन्न आकारों और रंगों के कोलाम को लगाया जाता है। पदायणी के प्रदर्शन में, नर्तक, अभिनेता, गायक और वादक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अभिनेता या नर्तक कोल्हों पहनते हैं, जो बहुत सारे हेडगेयर हैं, कई अनुमानों और उपकरणों और चेहरे या छाती के टुकड़े के लिए मुखौटा और कलाकार के पेट को कवर करने के लिए।
कुमी (तमिलनाडु)
कुम्मी तमिलनाडु का लोकप्रिय लोक नृत्य है त्यौहारों के दौरान आदिवासी महिलाओं द्वारा कुम्मी नृत्य किया जाता है। कुम्मी एक सरल लोक नृत्य है जहां नर्तक मंडलियां बनाते हैं और लयबद्ध तरीके से ताली बजाते हैं।
कोलाट्टम
‘कोलकत्ता’ या छड़ी नृत्य आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की सबसे लोकप्रिय नृत्यों में से एक है। कोलाट्टम कोल (एक छोटी सी छड़ी) और एटाम (नाटक) से लिया गया है। इसे कोलानालु या कोलकाल्लनु के नाम से भी जाना जाता है कोलट्टम नृत्य लयबद्ध आंदोलनों, गीतों और संगीत का एक संयोजन है और स्थानीय गांव के त्योहारों के दौरान किया जाता है। कोलाट्टम को भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। कोलट्टम ग्रुप में नर्तकियों की श्रेणी में 8 से 40 की संख्या होती है। कालीट्टम नृत्य में इस्तेमाल किया जाने वाला छड़ी मुख्य ताल प्रदान करता है।
पेरिनी
पेरिनी थांडवम योद्धाओं का पुरुष नृत्य है। परंपरा के एक हिस्से के रूप में, योद्धाओं ने युद्ध के मैदान के लिए जाने से पहले, नटराज या भगवान शिव की मूर्ति के सामने इस प्रमुख नृत्य का प्रदर्शन किया। यह आंध्र प्रदेश राज्य के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय है। पहले के समय में काकतिया वंश के शासकों ने इस प्रकार के नृत्य का संरक्षण किया था। पेरिनी नृत्य ड्रम की हरा के साथ-साथ किया जाता है।
थापेटा गुलु (आंध्र प्रदेश)
थापेटा गुलु, श्रीकाकुलम जिले, आंध्र प्रदेश का लोक नृत्य रूप है। थापेटा गुलु नृत्य में दस से अधिक व्यक्ति भाग लेते हैं। स्थानीय देवी की प्रशंसा में प्रतिभागियों या कलाकार गाने गाते हैं थापेटा गुलु नृत्य प्रदर्शन करते समय, नर्तक ड्रम का इस्तेमाल करते हैं, उनकी गर्दन के आसपास लटकाते हैं। नर्तक अपनी कमर के आसपास घिनौनी घंटी पहनते हैं।
यहां आज भी प्राचीन पद्धति से जलती है ज्योति कलश
पुरानी बस्ती स्थित मां महामाया मंदिर का इतिहास 1400 साल पुराना माना जाता है। इसलिए इस मंदिर में आज भी प्राचीन परंपरा जीवंत है। इस मंदिर की परंपरा है कि यहां की प्रधान ज्योत वैदिक मंत्रोत्चार के बीच चकमक पत्थर के टूकड़ों को jxM+us से उठी चिंगारी से प्रज्जवलित की जाती है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की प्राचीन महामाया मंदिर बेहद ही चमत्कारिक मंदिर माना जाता है। तांत्रिक पद्धति से बने इस मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी भक्त पहुंचते हैं। वहीं, नवरात्र में सच्चे मन से मांगी गई मन्नत तत्काल पूरी हो जाती है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार हैहयवंशी राजाओं ने छत्तीसगढ़ में छत्तीस किले बनवाए और हर किले की शुरुआत में मां महामाया के मंदिर बनवाए। मां के इन छत्तीसगढ़ों में एक गढ़ हैं, रायपुर का महामाया मंदिर, जहां महालक्ष्मी के रुप में दर्शन देती हैं मां महामाया और
रायपुर. पुरानी बस्ती महामाया मंदिर में मां महामाया का दरबार कई मायनों में खास है। एक तो इस बात को लेकर कि गर्भगृह में मां की प्रतिमा दरवाजे की सीध में नहीं दिखती। इसे लेकर कई किवदंतियां हैं। ऐसी ही एक किंवदंती के मुताबिक एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धती देवी के साथ राज्य भ्रमण पर निकले शाम होने पर राजा अपनी सेना के साथ खारून नदी के तट पर रूक गए.जब रानी अपनी दासियों के साथ स्नान करने नदी पहुंची तो उन्होने देखा कि एक पत्थर का टिला पानी में तैर रही है तीन विशालकाय सांप फन काढ़े उस टिले की रक्षा कर रहे थे..ये देखकर रानी और दासियां डर गई और चिल्लाते हुए पड़ाव में लौट आईं..जब राजा मोरध्वज को ये बात पता चली तो उन्होने अपने राज ज्योतिषों से विचार करवाया.ज्योतिषों ने उन्हे बताया कि ये कोई टिला नहीं बल्कि देवी की मूर्ति है।
राजा ने पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ कर मूर्ति को बाहर निकाला.जब मूर्ति नदी से बाहर निकली तो लोग ये देखकर आश्चर्य हो गए कि ये कोई साधारण मूर्ति नहीं बल्कि सिंह पर खड़ी हुई मां महिषासुरमर्दिनी की अष्टभुजी भगवती की मूर्ति है।इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि स्वयं मां महामाया ने ही राजा से कहा कि मुझे कंधे पर उठाकर मंदिर तक ले जाया जाए और मंदिर में मेरी स्थापना कराई जाए.राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श किया। सभी ने सलाह दी कि भगवती माँ महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए। रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखें नहीं। अगर प्रतिमा को कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। राजा ने मंदिर पहुंचने तक प्रतिमा को कहीं नहीं रखा लेकिन मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के बाद वे मां की बात भूल गए और जहां स्थापित किया जाना था, उसके पहले ही एक चबूतरे पर रख दिया। प्रतिमा वहीं स्थापित हो गई। राजा ने प्रतिमा को उठाकर निर्धारित जगह पर रखने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। प्रतिमा को रखने के लिए जो जगह बनाई गई थी वह कुछ ऊंचा स्थान था। इसी वजह से मां की प्रतिमा चौखट से तिरछी दिखाई पड़ती है। मंदिर को तैयार करवाकर देवी की भी स्थापना करवाई | शक्तिपीठ महामाया मंदिर की दैवीय शक्ति का अहसास आपको मंदिर में जाते ही हो जाता है. मंदिर के समृद्ध पौराणिक इतिहास और मान्यताओं के साथ ही इसकी बनावट की भव्यता और कारीगरी भी बेजोड़ है. तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी राजधानी के इस मंदिर का प्रदेश के शक्तिपीठों में विशेष स्थान है। मंदिर प्रांगण में एक यज्ञ कुंड है. मंदिर के दूसरे हिस्से की तरह ही इस कुंड का भी अपना इतिहास है. ऐसी मान्यता है कि कई साल पहले इस कुंड की जगह पर ही मंदिर के पुजारी के ऊपर बिजली गिर गई थी |लेकिन पुजारी को कुछ नहीं हुआ. लोग इसे मां महामाया की कृपा मानते है।
देश के दूसरे जागृत देवी स्थलों की तरह महामाया मंदिर के साथ भी चमत्कारों की कई बातें जुड़ी हुई हैं । यहां विशेष मौकों पर कई बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जिन्हें सामान्य अर्थों में अलौकिक कहा जा सकता है ।
एक खिड़की से मां दिखती हैं दूसरी से नहीं
जानकारों के मुताबिक मंदिर का निर्माण राजा मोरध्वज ने तांत्रिक विधि से करवाया था। इसकी बनावट से भी कई रहस्य जुड़े हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह के बाहरी हिस्से में दो खिड़कियां एक सीध पर हैं। सामान्यतः दोनों खिड़कियों से मां की प्रतिमा की झलक नजर आनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। दाईं तरफ की खिड़की से मां की प्रतिमा का कुछ हिस्सा नजर आता है परंतु बाईं तरफ नहीं।
प्रमाणिक है मंदिर से जुड़ा इतिहास
मंदिर से जुड़ा इतिहास प्रमाणिक है। इस पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने कई रिसर्च किए हैं। शासन के पुरातत्व विभाग ने मंदिर के इतिहास को प्रमाणिक किया है। मंदिर के इतिहास पर सबसे पहले 1977 में महामाया महत्तम नामक किताब लिखी गई। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट ने 1996 में इसका संशोधिक अंक प्रकाशित करवाया। 2012 में मंदिर की ओर से प्रकाशित की गई रायपुर का वैभव श्री महामाया देवी मंदिर को इतिहासकारों ने प्रमाणिक किया है। सभी किवदंतियों और जनश्रुति का उल्लेख प्रमाणिक किताबों में मिलता है।
मुस्लिम परिवारों की जुड़ी आस्था
मंदिर में हर साल नवरात्र पर आस्था के ज्योत जगमगाते हैं। कई ज्योत मुस्लिम परिवारों के भी हैं। मंदिर के पुजारी पं. शुक्ला बताते हैं कि मंदिर से मुस्लिम परिवारों की आस्था भी जुड़ी हुई हैं। मंदिर में इस साल 9403 मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित किए गए हैं। ज्योत जलवाने वालों में देश-प्रदेश के साथ ही अमेरिका, लंदन, जापान और चीन के लोग भी शामिल हैं।
माता के मंदिर के बाहरी हिस्से में सम्लेश्वरी देवी का भी मंदिर है। मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला ने बताया कि सूर्योदय के समय किरणें सम्लेश्वरी माता के गर्भगृह तक पहुंचती हैं। सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें मां महामाया के गर्भगृह में उनके चरणों को स्पर्श करती हैं। मंदिर की डिजाइन से यह अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है कि प्रतिमा तक सूर्य की किरणें पहुंचती कैसे होंगी। उन्होंने बताया कि मंदिर के गुंबद के आकार में श्री यंत्र है। ऐसे में पौराणिक मान्यता है कि मंदिर के साथ दिव्य शक्तियां जुड़ी हुई हैं। तांत्रिकीय पद्धति से बनने वाले मंदिरों में इस तरह की विशेषता पाई जाती है।
हमारी संस्कृति में जल को देवता और नदियों को मां की सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त है। जल को जीवन की संज्ञा देकर उसके संरक्षण को अत्यधिक महत्व दिया गया है। मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण सभ्यता और संस्कृति है। इस दिव्य और रहस्यमयी नदी की महिमा वेदों तक में लिखी है। युगों-युगों से प्रदेश की माटी को अपने अमृत सलिल से सोना उपजाने योग्य बनाने और करोड़ों लोगों का प्यास बुझाने वाली इस पवित्र नदी को पूजते आए हैं। इस नदी के तट पर अनेक तीर्थ स्थल हैं, जहां सदा से साधकों ने तपस्या और भक्ति के परम तत्व का अनुभव किया।
अनूपपुर जिले के पवित्र नगरी अमरकंटक मां नर्मदा का उद्गम स्थान है। नर्मदा नदी अमरकंटक से अपनी यात्रा शुरु करती है और अरब सागर में विलीन हो जाती है। नर्मदा नदी की पूजा हिन्दू धर्म के अनुयायियों के बीच अत्यधिक महत्व रखती है, क्योंकि यह शांति और समृद्धि लाती है। यह भक्तों को पवित्रता और आध्यात्मिकता प्राप्त करने में मदद करती है। स्कंध पुराण के अनुसार नर्मदा नदी हमेशा बाढ़ या किसी अन्य तबाही के दौरान स्थिर रही है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार नर्मदा के तट पर लाखों तीर्थ हैं यह विश्व की एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। महर्षि मार्कण्डेय, अगस्त्य, कपिल और कई अन्य ऋषि मुनि ने इस नदी के तट पर ध्यान किया है।
12 ज्योर्तिलिंगों में से एक ओंकारेश्वर इसी नदी के तट पर स्थित है। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है। सरस्वती नदी में तीन दिन स्नान करने से यमुना नदी में सात दिन स्नान करने से और गंगा नदी में एक दिन स्नान करने से मनुष्य का पाप नष्ट हो जाता है, किन्तु नर्मदा नदी के केवल दर्शन से ही मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं। नर्मदा जी का उगम पर्वत पर होने से उन्हें मैकल कन्या भी कहा जाता है। भारत के पाँचवे क्रमांक की बड़ी नदी के रूप में नर्मदा जी का उल्लेख किया जाता है। नर्मदा जी एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर प्रभावित होती है, उनकी लम्बाई एक सहस्त्र 312 किलोमीटर है और वे गुजरात के भड़ोच में अरब सागर में मिलती हैं इस प्रकार यह पवित्र नदी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात राज्यों से प्रवाहित होती है। नर्मदा नाम में ही गूढ़ अर्थ छिपा है। ‘नर्म’ अर्थात् आनंद तथा ‘दा’ अर्थात् प्रदान करने वाली नर्मदा अर्थात् सभी को जन्म-मृत्यु के चक्र से, बंधन से मुक्त कर शास्वत आनंद की प्राप्ति कराने वाली नर्मदा है। सतपुड़ा, विंध्याचल जैसे विषाल पर्वतों से अपनी राह बनाती हुई ‘‘रव-रव’’ की ध्वनि करती हुई जाने से उनका नामकरण रेवा भी है। नर्मदाजी की तीन परिक्रमा 1.रुद्र परिक्रमा 2. जल हरि परिक्रमा एवं 3. हनुमान परिक्रमा। इनमें से जल हरि परिक्रमा एवं हनुमान परिक्रमा करना अत्यंत कठिन होने से बहुत अल्प श्रद्धालु ये परिक्रमाएं करते हैं। अधिकांष श्रद्धालु रुद परिक्रमा ही करते हैं।
नर्मदा परिक्रमा की कालावधि कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादषी से लेकर आषाढ़ शुक्ल दशमी तक होता है। आगे जाकर आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी (आषाढ़ी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी (कार्तिकी एकादशी) तक परिक्रमा बन्द होती है। क्योंकि वर्षा के कारण नर्मदा जी में बाढ़ आकर परिक्रमा का मार्ग बन्द हो जाता है। इसलिए इस कालावधि में अर्थात् चातुर्मास में अनेक परिक्रमावासी नर्मदा तट पर विद्यमान संतों के आश्रम में निवास कर कार्तिकी एकादशी के पश्चाात पुनः परिक्रमा के लिए अग्रसर होते हैं। जिन श्रृद्धालुओं को पैदल चलकर परिक्रमा करना संभव नहीं होता, वह गाड़ी से भी परिक्रमा करते हैं। नर्मदा जी की पैदल परिक्रमा करते समय नर्मदा जी के अनेक रूप देखने के लिए मिलते हैं। कभी विशाल नदी क्षेत्र तो कभी शांति से प्रवाहित नर्मदा माता तो कभी धुआंधार (जोरों से गिरने वाला प्रवाह), तो कभी सात खड़कों से सप्त धाराओं से प्रवाहित नर्मदा माता दिखाई पड़ती हैं। नर्मदा परिक्रमा अनेक अनुभवों का कोष है। श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ परिक्रमा करने वाले पात्रता के अनुसार उसे अनुभव प्राप्त होते हैं।
पश्चिमी घाट की विशालता में प्रकृति प्रेमियों के लिए कुछ न कुछ है। केरल में सबसे अच्छे घाट हैं, और मुन्नार केरल का सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है। जब आप मुन्नार के पास घूमने की जगहें की तलाश में हों तो प्रकृति की जीवंतता लगभग सभी रंगों में देखी जा सकती है ।
दक्षिण में इस लोकप्रिय मुन्नार का आकर्षण स्थल में प्रत्येक यात्री के लिए प्रकृति का वरदान है। समझदार यात्रियों के बीच एक लोकप्रिय गंतव्य, मुन्नार के पास घूमने की जगहें हैं जो एक पागल पथिक को प्रेरित करते हैं।
“केरल के कश्मीर” के रूप में भी जाना जाता है, मुन्नार केरल का एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता और हरे भरे परिदृश्य के लिए जाना जाता है। यहां मुन्नार पर्यटन में घूमने लायक आकर्षण स्थल हैं जिन्हें मुन्नार से आसानी से कवर किया जा सकता है यदि आपके पास एक या दो दिन का समय है।
कुमिली
लोकप्रिय रूप से थेक्कडी के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है, कुमिली घाटों के घने जंगलों के बीच में बसा है। इसके अलावा, थेक्कडी के पास सबसे बड़ी ग्राम पंचायत, पेरियार वन्यजीव अभयारण्य के बाहरी इलाके में स्थित स्थान मुन्नार के पास घूमने की जगहें की सूची में एक आदर्श स्थान है।
चाय और मसालों के बागानों के लिए मुख्य रूप से लोकप्रिय कुमिली चाय और मसालों का व्यापार करने वाले लोगों के लिए एक रणनीतिक स्थान है। इसमें मुख्य बस स्टैंड और आसपास ठहरने के बहुत सारे विकल्प हैं।
पीरमाडे
नीले-भूरे-हरे रंग में रंगी दुनिया में आपका स्वागत है! इस जगह को प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आकर्षक संभावना बनाने के लिए पीरमाडे में प्रकृति का पूरा आकर्षण है। कॉफी, चाय, काली मिर्च, इलायची और रबर के बागानों के हरे भरे आवरण पहाड़ियों की साफ-सुथरी आकृति के साथ एक सुंदर दृश्य बनाते हैं।
समुद्र तल से 950 मीटर की ऊंचाई पर, पीरमाडे मुन्नार और उसके आसपास परम पर्यटन स्थलों की तलाश करने वाली आंखों और तड़प रहे दिलों के लिए एक पुरस्कार है । चारों ओर शानदार विहंगम दृश्य का आनंद लें।
परुंथुमपारा
पीरमाडे और थेक्कडी के बीच स्थित, परुंथुमपारा इडुक्की जिले का एक सुरम्य गांव है जो मुन्नार केरल के पास घूमने के लिए लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। स्थानीय भाषा में परुंथुमपारा नाम का अनुवाद ईगल रॉक के रूप में किया जाता है।
एक बार जब आप इस जगह की यात्रा करते हैं, तो प्रकृति की भव्यता के साथ चारों ओर फैली हरियाली के रोमांचक दृश्य आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। प्रकृति की सैर के लिए जाएं और चारों ओर प्रकृति की सुंदरता को अपनाएं, घाटों के पहाड़ आपका इंतजार कर रहे हैं। यह निश्चित रूप से मुन्नार के पास घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है ।
पेरियार
पश्चिमी घाट के पहाड़ी इलाकों में पेरियार राष्ट्रीय उद्यान है – बाघों की आबादी के लिए जाना जाने वाला संरक्षित वन्यजीव अभ्यारण्य। राष्ट्रीय उद्यान 350 वर्ग किमी में फैला है और पंडालम पहाड़ियों और इलायची पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
पर्यटकों के लिए बहुत सारे लोकप्रिय आकर्षण और गतिविधियों और आसपास के असाधारण प्रकृति के दृश्यों के साथ, पेरियार वन्यजीव अभयारण्य की यात्रा मुन्नार के आसपास घूमने की जगहें हर यात्री के लिए जरूरी है।
चालकुडी नदी
थीम पार्क, मंदिर और विचित्र गांव, मुन्नार के पास घूमने के लिए लोकप्रिय स्थानों में से एक, चालकुडी के उत्कट आकर्षण को परिभाषित करते हैं। त्रिशूर जिले में चालकुडी नदी के तट पर स्थित यह स्थान आपको चकित करने के लिए असाधारण प्रकृति के दृश्य प्रस्तुत करता है। सेंट मैरी चर्च में पवित्र भूमि प्रतिकृति की करामाती सुंदरता और वास्तुकला को देखें।
थंबूर्मुझी बांध पर प्रसिद्ध निलंबन पुल पर चलो, यह चारों ओर के शानदार दृश्य खोलता है। चलाकुडी एक ऐसी जगह है जो आपको कई तरह से चकित कर देगी।
अथिरापल्ली जलप्रपात
कनाडा में नियाग्रा फॉल्स है और फिर हम भारत में एक जैसे दिखते हैं। त्रिशूर जिले में अथिरापल्ली जलप्रपात एक प्रमुख आकर्षण है और यात्रियों के लिए मुन्नार के निकट दर्शनीय स्थलों में से एक है। 80 फीट की ऊंचाई से और 330 फीट चौड़े फैले हुए, अथिरापल्ली जलप्रपात शोलायर पर्वतमाला को देखने के लिए एक प्रकृति का चमत्कार है।
चारों ओर महान जैव विविधता के साथ धुंध में भीगा हुआ वातावरण आपको निश्चित रूप से मंत्रमुग्ध कर देगा। चलकुडी नदी पर स्थित झरने पश्चिमी घाट में अनामुडी पहाड़ों से निकलते हैं।
चलकुडी से मलक्कापारा तक 90 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर अथिरापल्ली में जंगल सफारी के लिए जाएं। पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित इस दौरे में इस क्षेत्र की महान प्राकृतिक विविधता को करीब से देखा जा सकता है।
गुरुवायूर मंदिर
भारत में भगवान कृष्ण के तीसरे सबसे बड़े मंदिर का घर, गुरुवायूर मंदिर एक आदर्श आध्यात्मिक निवास है जहाँ भक्त बड़ी संख्या में आते हैं। निश्चित रूप से, मुन्नार के पास घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक, त्रिशूर जिले में स्थित गुरुवायूर को तिरुपति और सबरीमाला के बराबर माना जाता है।
फरवरी-मार्च के दौरान, वार्षिक गुरुवायुर उत्सव बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है और यह मंदिर जाने का सही समय है।
चेराई
केरल के एर्नाकुलम जिले में अरब सागर की ओर 15 किमी लंबा समुद्र तट गंतव्य निश्चित रूप से मुन्नार के पास अत्यधिक अनुशंसित स्थानों में से एक है। समुद्र तट की गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला और आसपास की रोमांचक प्रकृति के साथ, बाहर घूमने और फिर से जीवंत करने के लिए इससे अधिक रोमांचक गंतव्य नहीं हो सकता है।
वायपीन द्वीप पास में एक लोकप्रिय आकर्षण है जो लक्षद्वीप सागर के साथ केरल बैकवाटर के बीच विभाजक के रूप में कार्य करता है। घूमें, आपके पास तलाशने के लिए बहुत कुछ है। मुनंबम ब्रेकवाटर पॉइंट और समुद्र तट के उत्तरी छोर की ओर पेरियार नदी और अरब सागर के मिलन के असाधारण दृश्य प्रस्तुत करता है
नेल्लियंपथी
हरियाली से आच्छादित और तैरते बादलों से आच्छादित नेल्लियंपथी मुन्नार के आदर्श पर्यटन स्थलों में से एक है । हरे-भरे धान के खेतों और विशाल चाय बागानों से गुजरते हुए प्रकृति के असंख्य रंग आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे। इससे भी बेहतर, पलक्कड़ गैप के मनोरम दृश्य आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे।
निजी तौर पर प्रबंधित जैव-खेतों, संतरे के बागान, और चारों ओर अजीबता हर प्रकृति प्रेमी के लिए एकदम सही तमाशा है और इसलिए नेल्लियंपैथी निश्चित रूप से मुन्नार के पास घूमने के लिए उनकी सबसे अच्छी जगहों में से एक है ।
सबरीमाला
सबरीमाला – पथानामथिट्टा के केंद्र में भगवान अयप्पा का लोकप्रिय पहाड़ी मंदिर, मुन्नार के पास सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां देश भर से भक्त आशीर्वाद लेने आते हैं। समुद्र तल से 914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर पश्चिमी घाट की विशाल पहाड़ियों में स्थित है।
नवंबर – मध्य जनवरी को मंदिर जाने का सही समय माना जाता है। 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को छोड़कर सभी को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति है।
कोडाइकनाल
हिल स्टेशनों की राजकुमारी के रूप में प्रसिद्ध, कोडाइकनाल जितना खूबसूरत है उतना ही खूबसूरत है। यह भारत में सबसे लोकप्रिय हनीमून स्थलों में से एक है । अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विदेशी पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाने वाला, कोडाइकनाल मुन्नार के पास सबसे अच्छे पर्यटन स्थलों में से एक है।
समुद्र तल से 7200 फीट की ऊंचाई पर स्थित कोडाइकनाल का मौसम बेहतरीन होने के लिए साल भर यहां जाया जा सकता है। अगर आप खूबसूरत झीलों की यात्रा नहीं करते हैं तो कोडाइकनाल की यात्रा अधूरी है। सुनिश्चित करें कि आप उनको जांचें।
वागामोन
भीड़-भाड़ वाले शहरों और हलचल भरे शहर के जीवन से दूर, वागामोन वह जगह है जहाँ शांति और शांति चाहने वाले सभी लोग जा सकते हैं। समुद्र तल से 1100 मीटर ऊपर, वागामोन मुन्नार के पास कुछ ऑफबीट स्थानों में से एक है।
हरी-भरी हरियाली और कई पर्यटक आकर्षण जैसे वागामन पाइन फॉरेस्ट, वागामोन झील और मरमाला झरने काफी आकर्षक हैं। प्रचार क्या है, यह जानने के लिए आपको वागामोन के इन दर्शनीय स्थलों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
एलेप्पी
एलेप्पी को ‘पूर्व का वेनिस’ कहा जाता है और ठीक ही ऐसा है। दुनिया भर में अपने बैकवाटर के लिए काफी प्रसिद्ध, एलेप्पी मुन्नार के पास सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। यह कुछ बहुत ही खूबसूरत समुद्र तटों का भी घर है जो आपको जगह तलाशने का एक और कारण देता है। अगर आप सिर्फ तरोताजा और तरोताजा होने के लिए और व्यस्त शहर के जीवन से दूर होने और दिनचर्या से दूर जाने के लिए यात्रा करना चाहते हैं तो एलेप्पी भी एक अच्छा विकल्प है क्योंकि खूबसूरत शहर कई आयुर्वेदिक स्पा और वेलनेस सेंटर का घर है।
कोयंबटूर
इसे ‘भारत का माचेस्टर‘ कहा जाता है और सभी सही कारणों से। आप पूछेंगे क्यों? यही पर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शहर में एक विशाल कपड़ा उद्योग है जो आसपास के कपास के खेतों से पोषित होता है। खूबसूरत शहर नोय्याल नदी के तट पर स्थित है और जगह की प्राकृतिक सुंदरता लुभावनी है।
अपने कई प्राकृतिक आकर्षणों के लिए जाना जाता है, कोयंबटूर तमिलनाडु का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और दिन-ब-दिन एक महानगरीय होता जा रहा है। देखने के लिए कई रेस्तरां और शानदार जगहें इसे मुन्नार के पास सबसे अच्छी जगहों में से एक बनाती हैं ।
कोच्चि
कोच्चि को ‘अरब सागर की रानी‘ के रूप में जाना जाता है और हम इससे अधिक सहमत नहीं हो सकते। कोच्चि एक राजसी मुहाने पर स्थित है और 600 से अधिक वर्षों से पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है। प्राचीन मस्जिदें, चीनी मछली पकड़ने के जाल, पुर्तगाली युग के घर और ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव कोच्चि के कुछ मुख्य आकर्षण हैं। ब्रिटिश संस्कृति की बारीकियों और पुर्तगाली संस्कृति के एक अतिरिक्त स्पर्श के साथ एक भारतीय गांव कोच्चि है। यहां आपकी झोली में इतना कुछ होगा कि आप कभी वापस नहीं आना चाहेंगे। नहीं भूलना चाहिए, दक्षिण भारतीय संस्कृति भी जगह को प्रभावित करती है।
कुन्नूर
कुन्नूर भारत के सबसे खूबसूरत और शांत हिल स्टेशनों में से एक है। कुन्नूर पश्चिमी घाट की अद्भुत नीलगिरि पहाड़ियों में दूसरा सबसे बड़ा हिल स्टेशन भी है। यह 1,930 मीटर की ऊंचाई पर और ऊटी से सिर्फ 19 किमी की दूरी पर स्थित है।
कैथरीन फॉल्स और नीलगिरि पहाड़ियों के मनोरम दृश्य के साथ कुन्नूर एक रमणीय स्थान है। हरियाली से भरपूर, मनीकृत पहाड़ियां, औपनिवेशिक संस्कृति और कुन्नूर के अद्भुत दृश्य आपको सुकून और प्रेरणा देंगे।
कुर्ग
कुर्ग को आधिकारिक तौर पर कोडागु के नाम से जाना जाता है, जो कर्नाटक का एक समृद्ध हिल स्टेशन है। कर्नाटक में भव्य पहाड़ों के बीच स्थित, कूर्ग वह स्थान है जहाँ आप एक प्रकृति प्रेमी हैं। कूर्ग बहुत अधिक कॉफी का उत्पादन करता है और अपनी संस्कृति के कारण एक लोकप्रिय गंतव्य के रूप में भी खड़ा है। कूर्ग में लुभावने आकर्षक दृश्य, हरी-भरी हरियाली, जंगल से ढकी पहाड़ियाँ, मसाले और कॉफी के बागान हैं जो केवल परिदृश्य को जोड़ते हैं।
कुमारकोम
वेम्बनाड झील के तट पर स्थित, कुमारकोम कई छोटे मानव निर्मित द्वीपों का एक संग्रह है। कुमारकोम, एलेप्पी की तरह, कुछ खूबसूरत बैकवाटर क्षेत्र हैं क्योंकि वे सामूहिक रूप से केरल के सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों का निर्माण करते हैं।
धान के खेतों के साथ, एक समृद्ध मछली पकड़ने की संस्कृति, स्वादिष्ट स्थानीय व्यंजन, लक्जरी रिसॉर्ट, कुमारकोम एक शीर्ष गंतव्य है। 14 एकड़ में फैला कुमारकोम पक्षी अभयारण्य प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा अड्डा और पक्षी विज्ञानी का स्वर्ग है।
ऊटी
ऊटी कपल्स और हनीमून मनाने वालों के लिए समान रूप से एक आदर्श स्थान है। अपनी सीट से ही इस खूबसूरत हिल स्टेशन के मनोरम दृश्यों का आनंद लें। नीलगिरि माउंटेन रेलवे का पूरे एशिया में सबसे कठिन ट्रैक है, और यह सबसे अच्छी ट्रेन की सवारी में से एक है जिसे आपको कभी भी अनुभव करने का मौका मिलेगा।
ऊटी सादगी से मिलता-जुलता है, इसलिए जो कोई भी इस जगह पर जाता है, वह स्थानीय संस्कृति के साथ एक महसूस कर सकता है। ऊटी की यात्रा विस्मयकारी नीलगिरी पहाड़ियों, चाय बागानों और शांत झरनों के शानदार स्थलों से युक्त है। यदि आप मुन्नार जा रहे हैं तो आपको ऊटी में होना चाहिए क्योंकि यह मुन्नार के पास घूमने की जगहें में से एक है।
देवीकुलम
देवीकुलम में एक प्रसिद्ध झील है, जिसमें हरे-भरे दृश्य, झरने और चाय के बागान हैं। मुन्नार के पास घूमने के लिए यह एक खूबसूरत हिल स्टेशन है । समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, आप पौराणिक सीता देवी झील, लुढ़कती पहाड़ियों, झरनों और चाय और मसाले के बागानों की यात्रा कर सकते हैं।
राजस्थान का इतिहास
राजस्थान का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से प्रारंभ होता है जो की आज से इसा पूर्व 3000 से 1000 के बीच माना जाता है जब सिंधु घाटी सभ्यता अस्तित्व में थी 12वीं सदी तक राजस्थान के ज्यादातर भाग पर गुर्जरों का अधिपत्य रहा है। गुजरात तथा राजस्थान का अधिकांश भाग को गुर्जरो से रक्षित राज्य के नाम से जाना जाता था।गुर्जर आदिवासी ने 300 सालों तक पूरे उत्तरी-भारत को अरब के लोगो से बचाया था।]बाद में जब राजपूतों ने इस राज्य के विविध भागों पर अपना आधिपत्य जमा लिया तो यह क्षेत्र ब्रिटिशकाल में राजपूताना के नाम से जाना जाने लगा |उसके बाद 12वीं शताब्दी में मेवाड़ पर गहलोतों ने शासन किया। मेवाड़ के अलावा जो अन्य प्रमुख रियासतें – भरतपुर, जयपुर, बूँदी, मारवाड़, कोटा, और अलवर है। इन सभी रियासतों ने 1818 मे अंग्रेजो की संधि स्वीकार कर ली जिसमें राजाओं के हितों की रक्षा की बात की गयी थी लेकिन आम जनता इसको सहमत नहीं थी |
राजस्थान की कला और संस्कृति
त्यौहार राजस्थान की कला और संस्कृति की समृद्धि को सुशोभित करते हैं, जिससे राजस्थानियों का जीवन रंग और उत्सव से भरा हुआ दिखाई पड़ता है। भारत के सभी मुख्य त्योहारों जैसे दिवाली, होली, और जन्माष्टमी को राजस्थान में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं। सभी राजस्थानी मेलों और त्योहारों में राज्य की पारंपरिक परिधान, लोक गीत, लोक नृत्य और विभिन्न आकर्षक प्रतियोगिताएं प्रमुखता से दिखाई जाती हैं।विशेषकर अगर रेगिस्तानी त्यौहार जो राजस्थानी संस्कृति के लिए बहुत अहम् हैं जिसमे राजस्थानी संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है। त्योहार समाप्त होने के बाद राजस्थान में कई पारंपरिक मेलों का आयोजन किया जाता है। राज्य के त्योहार पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं और बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटक यहाँ की संस्कृति को जानने आते है |
मेले का आयोजन भी मस्ती के साथ और मस्ती के लिए किया जाता है। सपेरों, कठपुतलियों, कलाबाजों और कलाकारों मेले में पर्यटकों का मनोरंजन करते है | ऊंट राजस्थान में देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होते है क्युकी मेले में कुछ अद्भुत गेम ऊंटों द्वारा ही किए जाते हैं । अन्य प्रमुख आयोजनों में मूंछें और पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताएं होती हैं |
राजस्थान के लोकनृत्य
राजस्थान में विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य देखने को मिलते है जो राजस्थान की कला और संस्कृति को दर्शाते है |यहाँ पर अलग अलग जगहों अलग अलग नृत्य प्रचलित है यह नृत्य मानवीय अभिव्यक्ति का अद्भुत प्र्दशन है राजस्थान के लोकनृत्यों में शास्त्रीय नृत्यों के जैसे ताल , लय, व्याकरण ने नियमो का सख्ती से पालन नहीं किया जाता है इनको हम देसी नृत्य भी बोल सकते है | राजस्थान के लोकनृत्यों में यहाँ के प्रकृतिक वातावरण , नदिया यहाँ के वनो , मरुस्थलों , एवं जलवायु से प्रभावित मानव जीवन का चित्रण दिखाई पड़ता है एवं प्रदेश की भौगोलिक परिस्तिथि एवं सामाजिक बंधनो का भी असर दिखाई देता है |
राजस्थान के लोकनृत्यों की काफी लम्बी लिस्ट है जिसमे छेत्रीय नृत्य इस प्रकार है घूमर नृत्य , ढोल नृत्य , झूमर नृत्य ,चंग नृत्य , घुड़ला नृत्य , अग्नि नृत्य,गरबा नृत्य,सूकर नृत्य ,बिंदौरी नृत्य,नाहर नृत्य , खारी नृत्य, गैर नृत्य ,नाहर नृत्य , खारी नृत्य ,भैरव नृत्य ,चरकूला नृत्य ,हिंडोला नृत्य, आदि प्रमुख है | इसके अलावा व्यवसायिक लोकनृत्यों में भवाई नृत्य, तेरहताली नृत्य,कच्छी घोड़ी नृत्य आदि है | इसके अलावा भी राजस्थान के जातीय और जनजातीय नृत्यों की भी काफी लम्बी लिस्ट है |
राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध नृत्य घूमर नृत्य है जो मारवाड़ छेत्र में स्त्रियो द्वारा किया जाता है यह राजस्थान का राजकीय लोकनृत्य नृत्य है |
राजस्थान का संगीत
राजस्थान की कला और संस्कृति में संगीत भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्युकी राजस्थान में लोकसंगीत की एक पुरानी एवं लम्बी परम्परा रही है यहाँ के ज्यादातर लोकगीत धार्मिक रीति-रिवाजों, त्योहारों, मेलों और देवताओं को समर्पित होते है ।
राजस्थान में संगीत अलग-अलग जातियों के हिसाब से अलग अलग होता है ,राजस्थान लोकसंगीत में जातियां की बात करे तो इसमें लांगा ,सपेरा , मांगणीयरभोपा और जोगी आदि आती है | यहां संगीत की दो परम्परागत कक्षाएं आती है जिसमे एक लांगा और और दूसरी मांगणीयर है | राजस्थानी पारम्परिक संगीत में महिलाओं का गाना भी काफी प्रसिद्ध है जिसको (पणीहारी) के नाम से जाना जाता है। इनके अतिरिक्त अलग अलग जातियों द्वारा अलग-अलग तरीकों से गायन किया जाता हैं।
जिसमे सपेरा बीन बजाकर सांप को नचाता दिखाई देता है तो भोपा फड़ में गायन करता नजर आता है। राजस्थान के संगीत लोकदेवाताओ पर भी काफी केंद्रित होते है जिसमें प्रमुख रूप से पाबूजी ,बाबा रामदेव जी ,तेजाजी जैसे लोकदेवाताओं पर भजन गाये जाते है।राजस्थान के प्रमुख संगीत क्षेत्र की बात करे तो जोधपुर ,जयपुर ,जैसलमेर तथा उदयपुर आदि हैं।
राजस्थानी लोगो की वेशभूसा
राजस्थानी लोग अपने विशेष पहनावे के लिए जाने जाते है | यहाँ के पारम्परिक लोगो को रंगीन कपड़े, पगड़ी और साड़ियों जो पत्थरों और घृंगुओं से सुशोभित होती है पहनना पसंद होता है | राजस्थान में कई प्रकार की जाति एवं जनजातीया निवास करती है इसलिए छेत्र के अनुसार इनका पहनावा भी थोड़ा अलग होता है राजस्थान के ग्रामीण छेत्रो में रहने वाले लोगो में औरतें-घाघरा कुर्ती तथा पुरुष- धोती,कुर्ता पेंट एवं जोधपुरी सफा’ या ‘जयपुरी पगड़ी’ के रूप में जाने वाली पगड़ी पहनते हैं। जो उनकी वेशभूसा एवं पहचान प्रतीक है। अनग्रक्ष, कपास से बने एक फ्रॉक प्रकार परिधान ऊपर के शरीर को कवर करता है और निचला हिस्सा धोती या पजामा के साथ लिपटा जाता है। राजस्थानी महिलाएं आभूषण की शौकीन होती हैं और वे अपने कपड़े को चंकी चांदी और लाख के गेहने के साथ पहनती है |
राजस्थान का खाना
राजस्थान की कला और संस्कृति में अगर बात खाने की करे तो यह एक विशेष स्थान रखता है |
राजस्थानी खाना मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन होता है क्युकी राजस्थान में शाकहारी लोगो की संख्या सबसे अधिक है | राजस्थानी खाना पूरी दुनिया में अपने सवाद के लिए जाना जाता है |अगर देखा जाए तो राजस्थान के लोग मसालेदार खाना ज्यादा खाते हैं इसका कारण है राजस्थानी पारम्परिक खाने में उस समय हरी सब्जियों की कम उपलव्धता के कारण इनका प्रयोग कम ही हुआ है राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितयो की वजह से राजस्थानी खाने में बेसन, दाल, मठा, दही, सूखे मसाले, सूखे मेवे, घी, दूध का अधिक से अधिक प्रयोग होता है। हालाँकि राजस्थानी मिठाईयां भी काफी अलग तरह से बनायीं जाती है |
राजस्थानी लोकप्रिय खानो में बाजरे की रोटी और लहसुन की चटनी , दाल-बाटी चूरमा, भुजिया और केर ,सान्गरी की सब्जी ,हल्दी का साग ,गट्टे की सब्जी, पंचकूट, आदि शामिल है |
राजस्थानी मिठाइयों की बात करे तो बीकानेरी रसगुल्ला, मावा मालपुआ ,घेवर, फीणी, तिल के लढू, लापसी
बालूशाही आदि प्रमुख है |
राजस्थान की प्रमुख जनजातीया
ऐसे देखा जाये तो राजस्थान में जनजातियों की संख्या ज्यादा नहीं है राजस्थान की कुल जनसंख्या का 12 % हिस्सा ही जनजातियों का है इसमें भी राजस्थान की दो प्रमुख आदिवसीय समुदाय भील और मीणा राजस्थान में बड़ी संख्या में निवास करते है | भील और मीणा की जनसंख्या राजस्थान के विंध्य, अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बड़ी संख्या में है। राजस्थान की जनजातीया अपने आप में एक दूसरे से काफी अलग होती है | अपनी आजीविका चलाने के लिए राजस्थान की जनजातीय मुख्य रूप से खेती पर निर्भर होती है | राजस्थान की जनजातियों में भील ,मीणा , सहारिया, गरासिया ,गादिया लोहार ,सांसी ,डामोर , कथोरी ,कंजर आदि प्रमुख है |
राजस्थान की अनुसूचित जनजाति में भील और गादिया लोहार मुख्य रूप से आती है | मीणा जनजाति को सिंधु घाटी सभ्यता के लिए भी जाना जाता है |
ऐसे देखा जाये तो राजस्थान में जनजातियों की संख्या ज्यादा नहीं है राजस्थान की कुल जनसंख्या का 12 % हिस्सा ही जनजातियों का है इसमें भी राजस्थान की दो प्रमुख आदिवसीय समुदाय भील और मीणा राजस्थान में बड़ी संख्या में निवास करते है | भील और मीणा की जनसंख्या राजस्थान के विंध्य, अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बड़ी संख्या में है। राजस्थान की जनजातीया अपने आप में एक दूसरे से काफी अलग होती है | अपनी आजीविका चलाने के लिए राजस्थान की जनजातीय मुख्य रूप से खेती पर निर्भर होती है | राजस्थान की जनजातियों में भील ,मीणा , सहारिया, गरासिया ,गादिया लोहार ,सांसी ,डामोर , कथोरी ,कंजर आदि प्रमुख है |
तमिलनाडु के सबसे शांत और खूबसूरत शहरों में से एक, कन्याकुमारी भारत के सबसे दक्षिणी बिंदु पर स्थित है और तीन प्रमुख जल निकायों से घिरा हुआ है। इतिहास, संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और आधुनिकीकरण के अद्भुत मिश्रण के साथ, इस अद्भुत तटीय शहर में सभी के लिए कुछ न कुछ है। यह खूबसूरत समुद्र तटीय शहर आपकी छुट्टियां बिताने के लिए एक बेहतरीन जगह है
विवेकानंद रॉक मेमोरियल
एक छोटे से द्वीप पर स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल, कन्याकुमारी में घूमने के लिए लोकप्रिय स्थानों में से एक है। यहीं पर स्वामी विवेकानंद ने 1892 में तीन दिनों के ध्यान के बाद ज्ञान प्राप्त किया था। विवेकानंद मंडपम और श्रीपाद मंडपम रॉक स्मारक की प्रमुख विशेषताएं हैं। इसके पीछे हिंद महासागर के साथ एक विशाल स्वामीजी की मूर्ति का नजारा रोमांचकारी है। विवेकानंद रॉक मेमोरियल अपने आध्यात्मिक खिंचाव और शांत वातावरण के कारण कन्याकुमारी में एक प्रमुख आकर्षण है।
तिरुवल्लुवर की मूर्ति
कन्याकुमारी के पास एक छोटे से द्वीप पर स्थित, यह प्रतिमा प्रसिद्ध दार्शनिक और कवि तिरुवल्लुवर का सम्मान करती है। तिरुवल्लुवर तमिल साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कार्यों में से एक, तिरुक्कुल के लेखक थे। इसकी 133 फुट की ऊंचाई के साथ, मूर्ति 38 फुट की कुरसी पर रहती है और दूर से दिखाई देती है। सबसे लोकप्रिय कन्याकुमारी स्थानों में से एक के रूप में, यह स्थान संस्कृति में
हमारी लेडी ऑफ रैनसम चर्च
कन्याकुमारी में स्थित अवर लेडी ऑफ रैनसम चर्च, मदर मैरी को समर्पित एक प्रसिद्ध कैथोलिक चर्च है। चर्च 15वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह गोथिक वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। चर्च का नीला रंग इसके पीछे समुद्र के झटकेदार सर्फ के विपरीत है, जो एक लुभावनी दृष्टि बनाता है। इस भव्य संरचना के मध्य मीनार पर सुनहरा क्रॉस इसे और जोड़ता है सुंदरता और अपील, और इसकी शांति और शांति लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है।
सुनामी स्मारक
अपनी तरह का अनोखा, सुनामी स्मारक कन्याकुमारी के दक्षिणी तट के पास स्थित है। 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में आए भूकंप और सुनामी में मारे गए हजारों लोगों को इस स्मारक के माध्यम से याद किया जाता है। इस प्राकृतिक आपदा में न केवल भारत में बल्कि सोमालिया, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड और इंडोनेशिया में भी लगभग 2,80,000 लोगों की जान चली गई थी। जीवन के सभी क्षेत्रों के आगंतुक इस स्मारक पर मृतक को श्रद्धांजलि देने के लिए आते हैं।
थिरपराप्पु जलप्रपात
थिरपराप्पु जलप्रपात, जो 50 फीट 50 फीट की ऊंचाई से, कन्याकुमारी में सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मानव निर्मित झरने के नीचे एक कुंड में पानी गिरता है। फॉल्स में समय बिताने के अलावा, आप पूल में एक ताज़ा डुबकी का आनंद भी ले सकते हैं, प्राकृतिक परिवेश में पिकनिक ले सकते हैं, या क्षेत्र में नाव की सवारी कर सकते हैं। झरने के प्रवेश द्वार के पास एक छोटा शिव मंदिर है, जहां भक्त आशीर्वाद ले सकते हैं।
भारत के सबसे दक्षिणी बिंदु पर, कन्याकुमारी सुंदर, अदूषित समुद्र तट का घर है जो दिन के समय के आधार पर रंग बदलता है। यह तीन समुद्रों पर स्थित है : बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर। अविश्वसनीय रूप से, आप यहां देख सकते हैं कि तीन समुद्रों का पानी मिश्रित नहीं होता है, लेकिन तीन समुद्रों के गहरे नीले, फ़िरोज़ा नीले और हरे समुद्र के पानी को उनके अलग-अलग रंगों से अलग किया जाता है, जो मौसम और मौसम की स्थिति के साथ बदलते हैं। दिन।
पवित्र मंदिर, जिसे सुचिन्द्रम में स्थानुमलयन कोविल के नाम से जाना जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का सम्मान करने के लिए बनाया गया था, जिन्हें त्रिमूर्ति भी कहा जाता है। मंदिर के शिलालेख 9वीं शताब्दी के हैं, और इसे 17 वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया गया था। एक वास्तुशिल्प उत्कृष्ट कृति, यह मंदिर महान सुंदरता का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर का अलंकार मंडपम क्षेत्र अपने चार संगीत स्तंभों के लिए एक ही पत्थर से उकेरा गया सबसे उल्लेखनीय है। एक अंगूठे का प्रहार इन संगीत स्तंभों को विविध संगीत नोटों का उत्सर्जन करने का कारण बनता है। यह भी उल्लेखनीय है कि स्थानुमलयन पेरुमल मंदिर हिंदू धर्म के शैव और वैष्णव दोनों वर्गों का
पद्मनाभपुरम पैलेस, त्रावणकोर के शासकों की पूर्व सीट, तिरुवनंतपुरम से 64 किमी दूर स्थित है। यहां का थुकले मंदिर स्वदेशी केरल वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है और कन्याकुमारी के रास्ते में पाया जा सकता है। अपनी उम्र के बावजूद, महल अपने भित्ति चित्रों, शानदार नक्काशी और काले ग्रेनाइट के फर्श से विस्मयकारी बना हुआ है। महोगनी संगीतमय धनुष, रंगीन अभ्रक खिड़कियां, सुदूर पूर्व में खुदी हुई शाही कुर्सियाँ और रानी माँ के महल " थाइक्कोट्टारम" की चित्रित छतें, जगह के रहस्यवाद को बढ़ाती हैं।
3000 साल पुराना यह मंदिर, जिसे देवी कन्याकुमारी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, कन्याकुमारी के सबसे धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर देवी कन्याकुमारी अम्मन को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है। जब भगवान शिव ले गए देवी सती अपने कंधों पर विनाश का नृत्य करते हुए, उनका बेजान शरीर एक बार इस स्थान पर गिर गया था। मंदिर में देवी कन्याकुमारी अम्मन की एक छवि है, जिसके हाथ में एक माला है और उनके नथुने में सोने के आभूषण हैं। मंदिर अपने आकर्षक दृश्यों और प्रभावशाली प्राचीन वास्तुकला के साथ-साथ अपनी आध्यात्मिक आभा के लिए भी जाना जाता है।
कन्याकुमारी का मोम संग्रहालय लंदन वैक्स संग्रहालय की प्रतिकृति है, जो इसे एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण बनाता है। संग्रहालय में रखे गए आंकड़ों में सर अब्दुल कलाम, महात्मा गांधी, चार्ली चैपलिन, मदर टेरेसा और माइकल जैक्सन जैसी प्रसिद्ध राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां हैं। शहर में एक प्रमुख आकर्षण, संग्रहालय भारत और अन्य देशों के इतिहास और संस्कृति को प्रदर्शित करता है।
कन्याकुमारी के पास एक समुद्र तटीय किला, भारत का सबसे दक्षिणी छोर, वट्टाकोट्टई किला का अर्थ है 'गोलाकार किला।' किले के अधिकांश निर्माण के लिए ग्रेनाइट ब्लॉकों का उपयोग किया जाता है, और किले का कुछ हिस्सा समुद्र में भी फैला हुआ है। किला अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, जिसने हाल ही में किले की एक बड़ी बहाली पूरी की।
नागरकोइल में स्थित सेंट जेवियर चर्च, 1600 के दशक में सेंट फ्रांसिस जेवियर द्वारा निर्मित, धार्मिक महत्व की सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक है। अनादि काल से, इस चर्च में चमत्कार होते हुए देखे गए हैं, जिससे इसकी प्रसिद्धि और सम्मान स्थापित हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चर्च अपनी यात्रा के कारण नागरकोइल पर्यटन स्थलों में से एक है आध्यात्मिकता, शक्ति और दिव्यता।
सुंदर परिवेश के बीच शांत समय चाहने वालों को सनसेट पॉइंट की यात्रा करनी चाहिए। शाम के आकाश और शक्तिशाली समुद्र के बीच डूबते सूरज को देखने का अविस्मरणीय अनुभव कन्याकुमारी में सबसे अच्छी चीजों में से एक है। जब आप यहां पूर्णिमा पर या उसके आसपास जाते हैं तो आप डूबते सूरज की किरणों और उगती चांदनी को एक साथ पकड़ सकते हैं। इसके अलावा, यह बिंदु विवेकानंद रॉक मेमोरियल सहित आस-पास के आकर्षण के अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है, और फोटोग्राफरों के लिए एक लोकप्रिय
चित्राल जैन स्मारक परिसर लंबे समय से वास्तुकला के प्रति उत्साही और जैन तीर्थयात्रियों दोनों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य रहा है। ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण होने के अलावा, ये स्मारक देश में विभिन्न धर्मों के सह-अस्तित्व के उत्कृष्ट उदाहरण भी प्रदान करते हैं। चित्राल कभी दिगंबर जैन भिक्षुओं का घर था, यही वजह है कि यहां 9 वीं शताब्दी के विभिन्न देवताओं की चट्टानों को काटकर की गई नक्काशी वाला एक गुफा मंदिर है । राजसी स्मारकों के साथ, जगह की शांति और मोहक आभा इसे अवश्य देखें।
गांधीजी की अस्थियों वाले 12 कलशों में से एक को महान नेता को श्रद्धांजलि के रूप में कन्याकुमारी के इस बड़े स्मारक में रखा गया है। गांधी के अवशेषों को बाद में त्रिवेणी संगम में दफनाया गया था। मंडपम के तस्वीरों के संग्रह में महात्मा गांधी को प्रमुखता से चित्रित किया गया है। यहां एक पुस्तकालय भी है जिसमें कई स्वतंत्रता-पूर्व पत्रिकाएं, पुस्तकें और अन्य प्रकाशन हैं।
कन्याकुमारी का संगुथुराई बीच शहर की यात्रा के दौरान घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है। भारत के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित संगुथुराई बीच पर आप हिंद महासागर की प्रचंड शक्ति को महसूस कर सकते हैं। अपने सफेद रेत समुद्र तटों और नाटकीय समुद्र तट के साथ, संगुथुराई समुद्र तट एक शांत पलायन के लिए बनाता है।
Corinthian columns; sculptures of goddesses and god-like figures; sun-baked buildings bleached bone white; geraniums planted in olive-oil cans; the obligatory cats lolling about – If you're dreaming of all things Greek, you're not alone. We're in the midst of a Hellenistic revival, a fascination with the Ancient Greek aesthetic that's being most keenly embraced by the post-millennial Gen Z, according to Pinterest. The site reports a rise in trending search terms searches such as Ancient Greek jewellery (up 120%) and wallpaper with an Aphrodite aesthetic (up 180%), and a triple increase in Greek statue art.
We can but speculate as to why this should this be, but perhaps there's truth in the idea that the fantasy and opulence of magical Ancient Greece is highly attractive in a post-lockdown age – just as Dior's New Look marked a return to indulgent fashion following World War Two's austerity and utilitarian clothing.
In interiors, fashion and jewellery, the Ancient Greek aesthetic is being embraced (Credit: Mind the Gap Wallpaper)
It's no surprise that the influence and impact of Ancient Greece resonates today. As defined by Britannica, the phrase refers to the northeastern Mediterranean region in the era between "the end of the Mycenaean civilisation (1200BC) and the death of Alexander the Great (323BC)", when it was one of the most important places in the world, according to National Geographic. The people of Hellas – as the lands of the Hellenes were called (the names Greece and Greek were conferred on them later by the Romans) were great thinkers, writers, warriors, actors, athletes, artists and politicians.
Roderick Beaton in his history book The Greeks, writes that the Greek civilisations were the "origin of much of the arts, science, politics and law as we know them throughout the developed world today".
Think Aristotle in his studies of plants, animals and rocks; Herodotus in writing history; Socrates and Plato in philosophy. The Greeks pioneered democracy; reading with an alphabet; the Olympics; geometry and mathematical calculations; health innovations (the Hippocratic oath is still a standard of ethics for physicians); great architecture, like the Parthenon, Temple of Zeus and Acropolis; theatre, care of Greek comedy and tragedy; and language – with an estimated 150,000 English words still in use being derived from Greek words.
All this before we've touched on religion and deities. For sheer fantasy value, what can beat the idea of a family of superpowers – such as Zeus, Hera, Aphrodite, Athena, Apollo and Poseidon – dwelling in a cloud palace above Mount Olympus, each controlling a different aspect of life? For some, such as Eric Weiner, author of The Socrates Express, a treatise on the ancients' philosophy and travel, the Ancient Greeks have a lot to teach us about values today. In an essay on how technology can deceive us, especially in relation to war reporting, he writes: "One way to build a brighter future is by revisiting the past. Ancient Greece in particular."
The Minoan frescoes unearthed in 1878 at Knossos on Crete were a stunning archaeological find (Credit: Alamy)
Weiner adds: "The Greeks, imperfect as they were, honoured beauty and justice and moral excellence, and so they cultivated these values. We honour speed and connectivity and portability, so that is what we get."
The first great Greek civilisation
However if the Ancient Greeks were high-achievers, they stood on the shoulders of giant civilisations that went before them, such as the Mycenaeans, whose story was told by Homer in the epic stories the Illiad and Odyssey. But arguably more fascinating, and certainly more mysterious, are the mighty Minoans. The first great Greek civilisation and the first literate one in Europe, the Minoans dwelt on Crete, the largest and most populated of the Greek islands, from 2200 to 1450BC. They were an "advanced civilisation" that lived in a "land of prosperity and plenty" writes Beaton.
Finds at the ancient city of Knossos revealed a civilisation of highly sophisticated seafarers, who made exquisite jewellery, pottery, sculpture and frescoes
The Minoans came to light when the ancient city of Knossos on Crete was discovered in 1878 by Minos Kalokairinos, a native of the island and an amateur archeologist. It wasn't excavated until 1900, when the British archeologist Sir Arthur Evans bought the site. He and his team worked for 35 years on five acres of ruins, unveiling the Minoan palace complex, Europe's oldest city. Finds revealed a civilisation, which Evans named after the island's King Minos, of highly sophisticated seafarers, who invented advanced drains, porches and verandas to protect them from the elements, and made exquisite jewellery, pottery, sculpture and frescoes painted with animals such as dolphins and bulls.
When news of the Minoans hit the press, it drew keen interest from scholars and artists globally. In 1933, the philosopher Georges Bataille and artist André Masson, both French, launched their avant-garde arts magazine, Minotaure. A mythological animal, part-bull, part-man, the minotaur dwelt in a labyrinth designed by Daedalus and his son Icarus, on the command of King Minos; the creature featured in their work, and that of Max Ernst, André Breton, and Pablo Picasso, who made many artworks of it. The minotaur's physical power and sexual energy, and its links to the unconscious, were aspects Picasso is said to have strongly related to himself.
The remarkably sophisticated art and ceramics created by the Minoan civilisation on Crete still fascinate today (Credit: Getty Images)
Fashion was fascinated by Minoan chic too: in 1912, Spanish fashion and textile designer Mariano Fortuny created a silk scarf titled Knossos, inspired by Ancient Cretan costumes, which made his name. The textiles of fashion designer Yannis Tseklenis, a big international brand, featured ancient Greek vases and Byzantine manuscripts; while Gianni Versace's bold, Hellenistic designs were a signature style, and became synonymous with 1970s and 80s Greek decadence.
Given the Minoans' influence on creatives, why do we seem to know less about them than other ancient civilisations? Nicoletta Momigliano, Professor of Aegean Studies at the University of Bristol, tells BBC Culture that one reason is "the Minoan civilisation was relatively circumscribed geographically, being found within the Aegean and Eastern Mediterranean regions – so they didn't have the same geographical spread as the Romans, for example".
She adds: "Also the Minoans' systems of writing – Linear A and Cretan Pictographic – have not been fully deciphered, and we do not know much about the languages they used. We have some written documents and can understand some of their content, but not much." It's difficult to decipher these texts, she says, because "unless you have something like the Rosetta Stone, you need to have lots of documents, just as when you decipher codes, as they did at Bletchley Park during the Second World War".
'Power, beauty and darkness'
But of all the finds at the Knossos ruins, one that caused the biggest sensation was the figures of the snake goddess. Found in 1903, the larger figure has a snake twining around its body and arms; a smaller figure holds snakes in each of her upraised hands. Both have bared breasts and bell-shaped skirts, said to suggest fertility and nature, while the snakes evoke the underworld.
The extraordinary figures of the snake goddess found in the Minoan ruins have inspired artists and designers over the decades (Credit: Getty Images)
According to the Heraklion Archaeological Museum in Crete, where they're on permanent display, the snake goddesses are "the most important cult objects from the Knossos Temple repositories". They also beg the question: was ancient Crete a matriarchy? Kelly Macquire, in a podcast for Ancient History Encyclopaedia, says: "Women were prominent in Minoan religion, more than any other civilisation, and we know this because of the snake goddess statues that have been found in Minoan contexts, and the prominence of priestesses in Minoan art".
Beaton, commenting on Crete's ancient palaces (of which Knossos was the biggest), writes: "It is possible the greatest deity of them all is the lithe-waisted, bare-breasted goddess often represented on top of a pinnacle of rock, while wild animals or male humans gaze at her in adoration". It's unclear whether the island was ruled by women but he adds: "It is a striking fact the Greeks of the classical age reserved prime positions for dominant females in their stories, while largely excluding women from public roles or positions of authority in real life," he writes, and lists the myths that "are full of powerful, feisty women", such as Clytemnestra, Electra, Medea, Medusa and Minos's "insatiable queen Pasiphae", while adding some had their monstrous sides.
The snake goddess figures have beguiled artists, including US feminist artist Judy Chicago. Her artwork, The Dinner Party (1974-79) is a conceptual piece in the shape of a triangle-shaped table, measuring almost 15 metres on each side, with 39 place settings, each representing a mythical, legendary or historical woman. One of the settings is a homage to the snake goddess, with its table runner embroidered with her name. According to the website of the Brooklyn Museum in New York City, where the work is a long-term installation, the design and colours of the setting's dinner plate, and that of its cutlery and chalice, are "largely based on the Cretan snake goddesses statues".
Greek fashion and jewellery designer Sophia Kokosalaki channelled the snake goddess enigma and Minoan culture
In more recent years, fashion designer Mary Katrantzou has infused her work with images of Minoan goddesses, while Greek fashion and jewellery designer Sophia Kokosalaki channelled the snake goddess enigma and Minoan culture more generally. Described by Vogue as "the designer who gave fashion fire and spirit", Kokosalaki sadly died in October 2019, aged 47. She was born in Athens, and trained at St Martin's in London, where she built her highly successful luxury brand of clothing and jewellery, always retaining a passion for her home country and Crete, where her parents were born. She said the snake goddess enigma was her "favourite", since she first saw her at the age six or seven. The goddess, with her "exposed breasts, and tiny waist" represented "power, beauty and also an element of darkness [that] framed my aesthetic early on," she told British Vogue.
The autumn/winter 2022/2023 Sophia Kokosalaki collection is inspired by the seafaring artefacts associated with Odysseus's voyage home (Credit: Sophia Kokosalaki)
Kokosalaki's name as a designer was sealed worldwide with her designs for the opening ceremony costumes for the Greek Olympics in Athens, 2004, and her designs drew high-profile fans such as Keira Knightley and Kate Hudson. Antony Baker, Kokosalaki's widower and business partner, is now director of the company they founded together in 1999, and has taken on the mantle of designer. Creating the designs himself has been easier than employing a designer, as he tells BBC Culture, "I'm so clear about what she liked… Before Sophia died, she told me she wanted me to keep the brand going, for our daughter, Stelli," he says.
With the new collection (autumn/winter 2022/23), it's clear Baker continues his late wife's vision, and the stunning pieces, wrought in gold, silver and pearls, were recently featured in Vogue. They are inspired by seafaring artefacts like anchors, ropes and the sails of ships, associated with the Trojan War and Odysseus's voyage home. "I looked into the boat that goes to Hades, and at how the boats were made, and the beautiful associations with that."
Sharing this passion for all things Cretan is Athens-based Katerina Frentzou, founder of Branding Heritage, a showcase for contemporary Greek designers and artisans, among them traditional weavers on Crete. Branding Heritage's first exhibition, Contemporary Minoans, showcased how the civilisation's art, such as geometric and labyrinthine patterns, lotus flower and bee symbols resonate today.
Branding Heritage is devoted to contemporary artisans and designers who are influenced by Ancient Greek heritage (Credit: Lilah Clarke/ Branding Heritage)
Branding Heritage's collection will launch as a virtual 3D museum in September; among its designs are a necklace by Sophia Kokosalaki featuring silver votive knives; designer Ergon Mykonos's draped jacket over a gathered skirt with a bra top, trimmed with fabric printed with the snake goddess emblem; and Maria Sigma's handwoven textiles inspired by the Minotaur and Asterion. Not forgetting a clay vessel decorated with a giant octopus – inspired by a Minoan vessel, the pot is by Lilah Clarke, the granddaughter of Theodore Fyfe, an architect in Arthur Evans's team, combining ancient culture and modern sensibilities.
Isn't that, after all, what these artisans and designers are doing today? Channelling a culture because of its beguiling mystery, which it will retain until we find a way to decipher its written texts. Until that day, we can continue to dream and to create, which is perhaps no bad thing. As Einstein famously said: "The most beautiful thing we can experience is the mysterious. It is the source of all true art and science."