खूंटी, 25 जुलाई । वैसे तो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर खूंटी जिले में प्राचीन और ऐतिहासिक धर्म स्थलों की कोई कमी नहीं है, लेकिन कुछ काफी प्रसिद्ध हो गये है। पर कुछ ऐसे हैं, जो आज भी अधिकतर लोगों की नजरों से ओझल हैं। ऐसा ही एक प्रचीन धर्म स्थल है तोरपा प्रखंड की फटका पंचायत के सिड़ींग गाव के पास बनई और कारो नदी के संगम पर स्थित बाबा सिड़ींग महादेव स्थान। बताया जाता है कि यह शिवलिंग 16वीं सदी का है। हालांकि यह अब भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों की नजरों से यह देव स्थल दूर है, पर स्थानीय हिंदू और सरना धर्मावलंबियों के लिए यह युगों-युगों से आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। कई लोग इसे शिवलिंग और पर्वती की पत्थर की प्रतिमा को बौद्धाकालीन मानते हैं, तो कई लोगों का कहना है कि
यह सैकड़ों साल पुराना है। बनई और कारों नदी के संगम पर स्थित होने के कारण इस स्थान की सुंदरता और घने जंगलों का मनोरम दृश्य काफी आकर्षक है। नदी के संगम के पास कोई दो कुर्सी भी दिखाई देती है। दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण आज तक इस क्षेत्र के विकास पर न तो किसी सांसद या विधायक का ध्यान गया और न ही जिला प्रशासन या पंचायत प्रतिनिधियों का। यही कारण है कि इस धार्मिक स्थल तक पहुंचने के लिए कोई कच्चा रास्ता तक नहीं है। यहां पहुंचना अभी भी काफी दुरुह है। सैकड़ों सालों से इस स्थान पर पूजा-अर्चना होती आ रही है। ग्रामीणों का कहना है कि इस स्थान पर शिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है, जहां आसपास के लोग भारी संख्या में जुटते हैं। फिर भी यह स्थान जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग की नजरों से ओझल है। यदि जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग की नजर इस ऐतिहासिक स्थान पर पड़े, तो यह एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो सकता है और दूर-दूर से भी लोग यहां आ सकेंगे। क्षेत्र के लोग दो नदियों के संगम पर स्थित बाबा सिड़ींग महादेव के शिवलिंग के पास कई अवसरों पर अखंड कीर्तन करते रहते हैं। प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस स्थान की सुंदरता देखने योग्य है। दो नदियों की धारा का संगम स्थान होने के कारण पर्यटन के लिहाज से यहा काफी खास हो सकता है। जरूररत है इसे विकसित करने और आवागमन की सुविधा बहाल करने की। काली गाय के दूध से अभिषेक होने के बाद ही होती थी बारिश इस शिवलिंग को लेकर कई किंवदंतियों लोगों से सुनने को मिल जाती हैं। चुरदाग गांव के इंद्र सिंह, जय सिंह सहित कई स्थानीय लोग बताते हैं कि यह शिवलिंग आदि काल से स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ महीने में जब तक किसी काली गाय के दूध से शिवलिंग का अभिषेक नहीं होता था, तब तक बारिश शुरू नहीं होती थी। जैसे ही शिवलिंग का दुग्धाभिषेक होता था, वैसे ही जोरदार बारिश होने लगती थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था,
लेकिन कुछ सदी पूर्व पश्चिमी सिंहभूम के खंडा गांव का कोई पाहन इस शिवलिंग को अपने साथ ले गया। उसके बाद सिडींग तथा आसपास के लोग विचलित हो गए, बारिश बिल्कुल बंद हो गई और गांव वालों पर कोई न कोई में विपत्ति आने लगी। किसी तरह जब पता चला कि यहां का शिवलिंग चोरी कर खंडा गाव ले जाया गया, तो पूरेगांव के लोग खंडा गये और शिवलिंग को ले आये और उसी स्थान पर स्थापित कर कर दिया गया है। उस समय तपकारा के किसी पंडित ने वहां विधि-विधान के साथ रुद्राभिषेक किया था। कुछ वर्ष पहले तक फटका पंचायत में एक भी ईसाई धर्मावलंबी नहीं था, पर अब लगभग पूरे क्षेत्र में लोगों का धर्मांतरण हो गया और लोग गिरजा जाने लगे। कुछ सरना धर्मावलंबी अब भी यहा पूजा-पाठ करते हैं। गांव के पाहन भैवा पाहन अब भी हर साल आषाढ़ महीने में काली गाय के दूध से बाबा भोलनाथ का अभिषेक करते हैं। जब तक पूजा संपन्न नहीं हो जाती, तब तक पूरे गांव के लोग उपवास में रहते हैं। आदिकाल में कोई दर्शनीय स्थल रहा होगा। फटका गांव के मसकलन बोदरा और चुरदाग गांव के जय सिंह बताते हैं कि सिड़ींग गाव प्राकृतिक रूप से एक ऐसा स्थल है, जो खूंटी जिले में एकमात्र होगा, जहा चारों ओर पहाड़ और नदी की कलकल करती धारा है। हमारे पूर्वज कहते है कि यह स्थल आदिकाल में कोई दर्शनीय स्थल रहा होगा, जहां शिवलिंग के अलावा पत्थर की पार्वती की प्रतिमा, नंदी, हल, बड़े-बड़े पत्थरों में देवी-देवताओं की नक्काशी से ऐसा प्रतीत होता है कि इस जगह कभी कोई बहुत बड़ा मंदिर रहा होगा। अभी फिलहाल पानी से ढका है। गर्मी के दिनों में वहां कुर्सी दिखाई देती है।सिंड़ींग महादेव स्थल की जांच के लिए लगभग दस-बारह साल पहले पुरातत्व विभाग की टीम सिडींग पहुंची थी और उस स्थल की जाँच की थी। तोरपा प्रखंड की तत्कालीन प्रमुख मयलिना टोपनो सहित कई गणमान्य लोगों ने भी टीम के साथ पूरे क्षेत्र का भ्रमण किया था, लेकिन उसके बाद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।