अयोध्या, 22 मार्च । श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने आज श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर और द्वितीय तल के कई नए चित्र जारी किए हैं। मंदिर निर्माण का कार्य तेजी से पूर्ण किया जा रही है।
मंदिर ट्रस्टी डाॅ. अनिल मिश्रा ने बताया कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का शिखर और द्वितीय तल में निर्माण कार्य निर्धारित गति से चल रहा है। प्रत्येक कार्य के लिए योजना बनाकर समय निश्चित कर दिया गया है। निर्माण इकाई गुणवत्तापूर्ण कार्य के साथ तय समय को ध्यान में रखकर काम कर रही है। ट्रस्ट का यही प्रयास है कि मंदिर निर्माण का शेष बचा चार प्रतिशत कार्य हर हाल में जून माह तक पूरा कर लिया जाएगा। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की बैठक में भी ऐसी प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।
रुद्रप्रयाग। शीतकालीन यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या 20,000 के पार पहुँच गई है। शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में बाबा केदार और द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुँच रहे हैं। इसके अलावा, तृतीय केदार तुंगनाथ के शीतकालीन गद्दीस्थल मर्कटेश्वर मंदिर में भी हजारों श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं।
बीते वर्ष 3 नवंबर को केदारनाथ धाम, 4 नवंबर को तृतीय केदार तुंगनाथ और 20 नवंबर को द्वितीय केदार के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए थे। 23 नवंबर को द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर की डोली ओंकारेश्वर मंदिर में शीतकालीन पूजा-अर्चना के लिए विराजमान हुई, जिसके साथ ही शीतकालीन यात्रा की शुरुआत हुई।
8 दिसंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ओंकारेश्वर मंदिर पहुँचकर भगवान केदारनाथ और भगवान मद्महेश्वर के दर्शन किए और विधिवत रूप से शीतकालीन यात्रा का उद्घाटन किया। तब से अब तक, श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार, 23 नवंबर से लेकर अब तक ओंकारेश्वर मंदिर में 20,177 श्रद्धालु बाबा केदार और द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर के दर्शन कर पूजा-अर्चना कर चुके हैं।
रुद्रप्रयाग, 20 मार्च। केदारनाथ यात्रा की तैयारियों के तहत गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का कार्य तेजी से चल रहा है। रामबाड़ा से लिनचोली के बीच मजदूर बेलचा और फावड़े की मदद से चार फीट चौड़ा रास्ता बना रहे हैं। अधिकारियों का लक्ष्य है कि अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक केदारनाथ तक पहुंच मार्ग पूरी तरह से तैयार हो जाए।
14 मार्च से लोनिवि द्वारा केदारनाथ यात्रा के लिए बर्फ सफाई का काम शुरू किया गया था। इस दौरान पहले चरण में रामबाड़ा से लिनचोली के बीच बर्फ की सफाई की जा रही है। पिछले छह दिनों में लोनिवि के मजदूर दो किमी से ज्यादा क्षेत्र में बर्फ हटा चुके हैं, और रास्ते को आवाजाही के लिए खोलने में सफल हुए हैं। टीएफटी चट्टी हिमखंड को काटकर रास्ता साफ किया जा रहा है।
हालांकि, छोटी लिनचोली से केदारनाथ तक बर्फ की अधिकता होने के कारण सफाई में कुछ दिक्कतें आ रही हैं। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता विनय झिक्वांण ने बताया कि चटक धूप में ऊपरी हिस्से से बर्फ सिसकने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे कार्य में रुकावट आती है। उन्होंने बताया कि यदि मौसम अनुकूल रहा, तो अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक पैदल मार्ग को पूरी तरह से आवाजाही के लिए खोल दिया जाएगा।
गांवों में भोर से लेकर शहरों की चहल-पहल तक गौरैया कभी हवा को अपनी खुशनुमा चहचहाहट से भर देती थीं। इन नन्हें पक्षियों के झुंड, बिन बुलाए मेहमान होने के बावजूद स्वागत योग्य, अविस्मरणीय यादें बनाते थे। लेकिन समय के साथ, ये नन्हें दोस्त हमारी जिंदगी से गायब हो गए हैं। कभी बहुतायत में पाई जाने वाली घरेलू गौरैया अब कई जगहों पर एक दुर्लभ दृश्य और रहस्य बन गई है। इन छोटे प्राणियों के प्रति जागरुकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए, हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार विश्व गौरैया दिवस की शुरुआत "नेचर फॉरएवर" नामक एक पक्षी संरक्षण संगठन ने 2010 में की थी। इसका उद्देश्य गौरैया की घटती आबादी के बारे में जागरुकता बढ़ाना था। अब यह आयोजन 50 से अधिक देशों में फैल चुका है। इसका लक्ष्य गौरैयों की रक्षा करना और उनकी संख्या में कमी को रोकना है। 2012 में घरेलू गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी बनाया गया। इसके बाद से इस आयोजन ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। हर जगह लोग गौरैया का जश्न मनाते हैं और उन्हें बचाने के लिए काम करते हैं।
गौरैया छोटे लेकिन महत्वपूर्ण पक्षी हैं, जो पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वे विभिन्न कीड़ों और कीटों को खाकर कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त, गौरैया परागण और बीज प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। उनकी उपस्थिति जैव विविधता को बढ़ाती है, जिससे वे ग्रामीण और शहरी दोनों पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण बन जाती हैं।
भारत में गौरैया सिर्फ पक्षी नहीं हैं, वे साझा इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं। हिंदी में "गोरैया" , तमिल में "कुरुवी" और उर्दू में "चिरिया" जैसे कई नामों से जानी जाने वाली गौरैया पीढ़ियों से दैनिक जीवन का हिस्सा रही हैं। वे अपने खुशनुमा गीतों से हवा को भर देती थीं, खासकर गांवों में, जिससे कई लोगों की यादें जुड़ी हुई थीं।
समाज के लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी होने के बावजूद गौरैया तेजी से लुप्त हो रही हैं। इस गिरावट के कई कारण हैं। सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग से जहरीले यौगिक पैदा हुए हैं, जो उन कीटों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिन पर गौरैया भोजन के लिए निर्भर हैं। शहरीकरण ने उनके प्राकृतिक घोंसले के स्थान भी छीन लिये हैं। शहरीकरण ने उनके प्राकृतिक घोंसले के स्थानों को छीन लिया है। आधुनिक इमारतों में वे स्थान नहीं होते, जहां गौरैया घोंसला बना सकें, जिससे उनके बच्चों को पालने के लिए जगह कम हो गई है।
इसके अलावा, कृषि में कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीटों की संख्या में कमी आई है, जिससे गौरैया के भोजन की आपूर्ति पर और असर पड़ा है। कौओं और बिल्लियों की बढ़ती मौजूदगी और हरियाली की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है। इन कारकों और जीवनशैली में बदलाव के कारण गौरैया के अस्तित्व पर संकट आ गया।
इन चुनौतियों के बीच गौरैयों की रक्षा करने और उन्हें हमारे जीवन में वापस लाने के लिए कई प्रेरणादायक प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयास है पर्यावरण संरक्षणवादी जगत किंखाबवाला द्वारा शुरू की गई "गौरैया बचाओ" मुहिम। वे विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर देते हैं। 2017 में प्रधानमंत्री मोदी के इस मुहिम के समर्थन ने जागरूकता को काफी बढ़ाया है।
चेन्नई में कुडुगल ट्रस्ट द्वारा एक और उल्लेखनीय पहल की गई है। इस संगठन ने स्कूली बच्चों को गौरैया के घोंसले बनाने में शामिल किया है। बच्चे छोटे लकड़ी के घर बनाते हैं, जिससे गौरैया को भोजन और आश्रय मिलता है। वर्ष 2020 से 2024 तक ट्रस्ट ने 10,000 से ज़्यादा घोंसले बनाए हैं, जिससे गौरैया की संख्या में वृद्धि हुई है। इस तरह के प्रयास संरक्षण में युवा पीढ़ी को शामिल करने के महत्व को उजागर करते हैं।
कर्नाटक के मैसूर में "अर्ली बर्ड" अभियान बच्चों को पक्षियों की दुनिया से परिचित कराता है। इस कार्यक्रम में एक पुस्तकालय, गतिविधि किट और पक्षियों को देखने के लिए गांवों की यात्राएं शामिल हैं। ये शैक्षिक प्रयास बच्चों को प्रकृति में गौरैया और अन्य पक्षियों के महत्व को पहचानने और समझने में मदद कर रहे हैं।
राज्य सभा सांसद बृज लाल ने भी गौरैया संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपने घर में 50 घोंसले बनाए हैं, जहां हर साल गौरैया अंडे देने आती हैं। वह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें खाना मिले और उनकी देखभाल हो। उनके प्रयासों की तारीफ प्रधानमंत्री मोदी ने भी की, जिन्होंने गौरैया संरक्षण में इस तरह की पहल के महत्व पर प्रकाश डाला।
विश्व गौरैया दिवस यह याद दिलाने का एक अवसर है कि हमें हमारे छोटे पंखों वाले मित्रों को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए। चाहे वह ज्यादा हरियाली लगाने, कीटनाशकों के उपयोग को कम करने या सुरक्षित घोंसला बनाने जैसे छोटे प्रयास हों, हर कदम मायने रखता है। विश्व गौरैया दिवस मना कर हम इन छोटे पक्षियों को अपने जीवन में वापस ला सकते हैं और प्रकृति और मानवता के बीच सामंजस्य को बनाए रख सकते हैं।
इंदौर, 19 मार्च । देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में बुधवार को रंगपंचमी पर अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है। यहां मध्यक्षेत्र राजवाड़ा में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी रंगपंचमी पर ऐतिहासिक-पारंपरिक गेर निकली जा रही है। पूरा क्षेत्र रंगों से सराबोर है। टैंकरों से रंग और पानी की बौछार कई फीट ऊपर तक की जा रही है। वहीं मिसाइलों से गुलाल उड़ाया जा रहा है। 75 साल से चले आ रहे इस पारंपरिक आयोजन में फाग यात्रा में झांकियां भी शामिल की गई हैं। ब्रज की लठ्ठमार होली, रासरंग, श्रीकृष्ण की झांकी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यूनेस्को की टीम भी यहां पहुंच गई है।
दरअसल, इंदौर की इस पारंपरिक गेर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसी उद्देश्य से यूनेस्को की टीम यहां पहुंची है और रंगारंग गेर में शामिल हुई है। इस विश्व प्रसिद्ध गेर को देखने के लिए इंदौर में छतों की बुकिंग की गई है। फाग यात्रा में मंत्री तुलसी सिलावट और विधायक मालिनी गौड़ भी शामिल हैं। इसमें कालीचरण महाराज सहित कई देशी-विदेशी मेहमान शामिल हुए हैं।
परम्परा के अनुसार, रंगपंचमी पर राजवाड़ा क्षेत्र में टोरी कार्नर से बुधवार को सुबह 10.30 बजे से गेर निकलने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। गेर में शामिल होने आए लोग ट्रैक्टर-ट्रॉली पर चढ़कर रंग-गुलाल उड़ा रहे हैं। यहां हर पॉइंट पर पुलिस नजर रखे हुए है। वहीं, नरसिंह बाजार से भी गेर की फाग यात्रा भगवान श्रीकृष्ण की आरती के बाद शुरू हो गई है। यात्रा में श्रीकृष्ण की लीलाओं को दर्शाया गया है। इस यात्रा में प्रदेश के मंत्री तुलसी सिलावट और विधायक मालिनी गौड़ भी शामिल हैं।
गेर की यात्रा में नगर निगम की झांकी भी शामिल है। इसके माध्यम से संदेश दिया जा रहा कि इंदौर 8वीं बार भी देश में सबसे स्वच्छ शहर का अवॉर्ड जीतेगा। हुरियारों की टोलियां पूरे शहर से गेर देखने के लिए राजवाड़ा पहुंची। पूरा क्षेत्र रंगों से सराबोर है। इस अद्भुत नजरों के गवाह शहर के हर उम्र के लोग बन रहे हैं। लाखों लोग इस दौरान यहां मौजूद हैं। गेर के चलते इंदौर की गलियां लोगों से पट गई हैं। हर तरफ भीड़ और गुलाल नजर आ रहा है।
गेर की तैयारी एक दिन पहले ही पूरी हो चुकी थी और राजवाड़ा क्षेत्र में घरों और मंदिरों को प्लास्टिक शीट से ढंक दिया गया था। टोरी कार्नर से शुरू होकर राजवाड़ा, सराफा होते हुए नर्सिह बाजार गेर और फाग यात्रा पहुंचेगी। इसमें राधा कृष्ण फाग यात्रा, संगम कार्नर गेर, टोरी कार्नर गेर, रसिया कार्नर और मारल क्लब की गेर निकलती है। रसिया कार्नर की गेर इस बार नहीं निकलेगी।
इस आयोजन में मुख्यमंत्री मोहन यादव भी शामिल होंगे। पुलिस सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभाल रही है। ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों से पूरी गेर पर नजर रखी जा रही है। पूरे गेर मार्ग को कानून व्यवस्था की दृष्टि से नौ सेक्टरों में विभाजित कर अपर कलेक्टर स्तर के अधिकारियों को प्रभारी बनाया गया है। इन सेक्टरों की जवाबदारी एसडीएम को सौंपी गई है। अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी रोशन राय संपूर्ण कानून व्यवस्था के समन्व्यक हैं।
यूनेस्को में शामिल करने गेर को शालीन बनाना होगाः कलेक्टर
इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया कि गेर के रास्ते सेक्टर में बांटे गए हैं। सभी सेक्टर में एम्बुलेंस, फायर फाइटर्स, सीसीटीवी, पुलिस तैनात की गई है। कंट्रोल रूम के माध्यम से नजर रखी जा रही है। यूनेस्को में शामिल होने का हमारा दावा भी तभी मजबूत होगा जब हम शालीन तरीके से, महिलाओं की सहभागिता और सुरक्षित तरीके से गेर निकालेंगे। जिसमें सभी लोग अपने आप को सेफ महसूस कर पाएं।
मुरादाबाद | जिले में स्थित प्राचीन श्री हुल्का देवी माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। मंदिर के महंत बीएन गोस्वामी ने बताया कि यह 500 से अधिक वर्ष पुराना प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है। यहां पर होली के अगले दिन से 14 दिवसीय बसौड़ा मेला लगता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु मंदिर आते
हैं और पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाते हैं।
श्री हुल्का देवी माता मंदिर को शीतला माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के महंत पंडित ब्रह्मानंद गोस्वामी ने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में मंदिर के इतिहास की जानकारी दी। उन्हाेंने बताया कि यहां लगभग 500 वर्ष पूर्व शीतला माता स्वयं अवतरित हुई थी। उसके बाद यहां मठ (चामुंडा मंदिर) बना, जिसमें माता की स्वयंभू मूर्ति को स्थापित किया गया। यहां पर पहले महंत गिरी बाबा का स्थान हुआ करता था। बाद में उनके शिष्य भागीरथ दास और हरद्वार गोस्वामी ने मठ में मंदिर का निर्माण किया।
महंत बीएन गोस्वामी ने बताया कि मंदिर परिसर में सेवा की एक छावनी बनी हुई थी, जहां अधिकतर जवान आए दिन बीमार रहते थे। एक दिन छावनी के कैप्टन को शीतला माता ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि अगर तुम्हारे सैनिक मेरे मंदिर में दर्शन करने के साथ ही प्रसाद चढ़ाकर पूजा अर्चना करेंगे तो वह ठीक हो जाएंगे और उनकी बीमारी दूर हो जाएगी। इसके बाद छावनी कप्तान ने अपने सैनिकों के साथ माता रानी के दर्शन कर प्रसाद चढ़ाया और पूजा अर्चना की। जिसके बाद से सभी स्वस्थ रहने लगे। यह बात धीरे-धीरे लोगों को पता चली और मंदिर में लोगों के आने की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गई।
उन्हाेंने बताया कि दुल्हैंडी (रंग वाली होली) के अगले दिन चैत्र मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि से मंदिर में 14 दिवसीय बसौड़ा मेला प्रारंभ हो जाता हैं, जो चैत्र नवरात्र के प्रारंभ होने तक चलता है। मेले के दौरान शीतला माता के पूजन के लिए हर वर्ष जिले के अलावा पड़ोसी जनपदों, उत्तराखंड व दिल्ली आदि से भी से भी श्रद्दालु आते हैं।
मंदिर परिसर में शीतला माता के अलावा काली माता, भगवान विष्णु, हनुमान जी, भगवान कृष्ण और शिव परिवार स्थापित हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु माता रानी को प्रसाद में बताशे, लौंग का जोड़ा, कौड़ी, फल फूल के साथ जल इत्यादि चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर के पुरोहितों के द्वारा मोरपंखी से उनके ऊपर झाड़ा लगाया जाता है। बसौड़ा मेले में आने वाले भक्त एक दिन पूर्व घर पर बनाए गए बासी भोजन को लेकर आते हैं और माता रानी को भोग लगाते हैं। फिर परिवार संग मंदिर परिसर में बैठकर उसे ग्रहण करते हैं।
बीएन गोस्वामी ने बताया कि विवाह के बाद मायके में पहली होली पर आईं नव विवाहिता शीतला माता को प्रसाद चढ़कर अपनी ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं। बसौड़ा मेले में काफी श्रद्धालु बच्चों को मुंडन के लिए भी आते हैं। इसके अलावा नव विवाहित जोड़े माता से सुखद दांपत्य जीवन के लिए प्रसाद चढ़ाकर आशीर्वाद लेते हैं।
उन्हाेंने बताया कि हुल्का देवी मंदिर का निर्माण महंत गिरी बाबा के शिष्य महंत भागीरथ दास व महंत भागीरथ दास के शिष्य महंत हरद्वार गोस्वामी ने कराया था। वर्तमान में मंदिर परिसर में महंत हरद्वार गोस्वामी व उनके पुत्र महंत सच्चिदानंद गोस्वामी की समाधि बनी हुई हैं।
वायुमंडल के बढ़े तापमान को कम करने के लिए चढ़ाते हैं जल
पंडित बीएन गोस्वामी ने बताया कि मान्यता है कि होलिका दहन के बाद वायुमंडल का तापमान बढ़ता है। उसे कम करने के लिए माता शीतला पर जल चढ़ाया जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि चौराहों पर होली जलने वाले स्थान पर लोग जल चढ़ाकर और शीतला माता मंदिर में जल चढ़कर होलिका माता/शीतला माता को शांत (ठंडा) करते हैं।
जगदलपुर। बस्तर की रियासत कालीन शताब्दियाें पुरानी परंपरानुसार गुरुवार देर रात्रि 11:45 बजे मावली मंदिर के सामने माता मावली, भगवान श्रीजगन्नाथ एवं भगवान विष्णु के कल्की अवतार कलंकी मंदिर को समर्पित जोड़ा होलिका (दो होली) दहन संपन्न हुआ। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी-अपनी आस्था के अनुरूप स्वयं जाेड़ा हाेलिका कुंड की पूजा-अर्चना के साथ श्रीफल का अर्पण कर मंगलकामना का पुण्य लाभ अर्जित करते रहे। उल्लेखनीय है कि जोड़ा होलिक दहन में भक्त प्रहलाद और होलिका गौण हो जाते हैं, इनके स्थान पर कृष्ण के रूप में श्रीहरि विष्णु के कलयुग के अवतार कल्की के साथ माता मावली काे समर्पित कर रियासत कालीन हाेलिका दहन की परंपरा का निर्वहन किया जाता, इसके दाे हाेलिका कुड़ में एक में माता मावली का सफेद पताका लगाया जाता है, वहीं एक अन्य हाेलिक कुंड में भगवान विष्णु के कल्की अवतार कलंकी मंदिर के लाल पताका जाता है।
इससे पूर्व 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के द्वारा रियासत कालीन परंपरानुसार श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ की श्रीकृष्ण के रूप में दाे डाेली (पालकी) निकाली गई। इस दाैरान विलुप्तता की कगार में पहुंच चुकी नगाड़े की थाप पर फाग गीताें के साथ जोड़ा होलिका दहन स्थल लाई गई, जहां जाेड़ा हाेलिका कुड़ के तीन परिक्रमा के बाद उसके समक्ष रखकर परंपरानुसार जाेड़ा हाेलिका कुड़ एवं जाेड़ा डाेली की पूजा-अर्चना के बाद माता मावली, भगवान जगन्नाथ एवं श्रीकृष्ण के कल्की अवतार कलंकी मंदिर को समर्पित जोड़ा होलिका (दो होली) दहन संपन्न किये जाने की परंपरा का निर्वहन 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के द्वारा संपन्न कराया गया। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ की श्रीकृष्ण के रूप में दाे डाेली (पालकी) काे श्रीजगन्नाथ मंदिर से स्थापित किया गया । वहीं आज शुक्रवार काे विशेष पूजा में प्रभु श्रीजगन्नाथ, माता सुभद्र व बलभद्र स्वामी काे अबीर-गुलाल अर्पित कर चना एवं गुड़ का भाेग अर्पित किया गया। इसके उपरांत श्रृद्धालुओं काे अबीर-गुलाल का टीका लगकर चना एवं गुड़ का प्रसाद वितरित कर श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ के श्रीकृष्ण अवतार के साथ हाेली खेलने की परंपरा का निर्वहन किया गया।
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष वेदप्रकाश पांडे ने बताया कि रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन करते हुए माता मावली, भगवान जगन्नाथ एवं श्रीकृष्ण के कल्की अवतार कलंकी मंदिर को समर्पित जोड़ा होलिका (दो होली) दहन किया गया। इस जोड़ा होलिका दहन की रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन आज भी अनवरत 615 वर्षों से 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज करता चला आ रहा है, जिसमें श्रीजगन्नाथ मंदिर से श्रीकृष्ण की दो डोली नगाड़े की थाप पर फाग गीताें के साथ जोड़ा होलिका दहन स्थल लाई जाती है। तदुपरांत परंपरानुसार पूजा विधान के बाद होलिका दहन की जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रृद्धालू होलिका पूजन के बाद प्रज्वलित जाेड़ा होलिका की परिक्रमा कर पुण्य लाभ अर्जित करते रहे। वहीं आज शुक्रवार काे श्रीजगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा संपन्न का भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ के श्रीकृष्ण अवतार के साथ हाेली खेलने की परंपरा का निर्वहन किया गया।
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ सदस्य बनमाली पानीग्राही ने बताया कि रियासत कालीन जोड़ा होलिका दहन की शताब्दियों पुरानी परंपरा के निर्वहन के चलते श्रीजगन्नाथ मंदिर में नंगाड़े के धुन पर होली के फाग गाने की विलुप्त हो रही परंपरा को आज भी बनाये रखने के प्रयास में हम सफल रहे हैं। आगे भी 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज इस परंपरा का निर्वहन करता रहेगा। उन्होने बताया कि जगदलपुर में होली के कई दिन पहले से नंगाड़े के धुन पर होली के फाग गाने का दौर शुरू हो जाता था, लेकिन अब लगभग फाग गाने की परंपरा विलुप्तता की कगार पर पंहुच चुकी है, अब लाेग नंगाड़ा के बजाए डीजे को ज्यादा महत्व दे रहे है।बावजूद इसके श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ की श्रीकृष्ण के रूप में दाे डाेली (पालकी) निकालने एवं नगाड़े की थाप पर फाग गीताें के साथ जोड़ा होलिका दहन स्थल पंहुचाने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु के कुल 24 अवतार माने जाते हैं, किन्तु भगवान के मुख्य दस अवतारों की महिमा महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिसमें वराह अवतार, मत्स्य अवतार, कूर्म (कच्छप) अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, श्रीरामावतार, श्रीकृष्णावतार, भगवान बुद्ध अवतार, तथा दसवां भगवान का कल्कि अवतार प्रतीक्षित है। श्रीमद्भागवत पुराण के बारहवें स्कन्द के अनुसार कल्कि अवतार कल्कि भगवान का अवतार किसी भी समय हो सकता है। जिस काल में केवल यश के निमित्त कार्य किया जाएगा। जो धनहीन होगा, उसे चोर की संज्ञा दी जाएगी। पाखंडी और कपटी, साधु कहलाएंगे, बलवान, गुणवान, आचारवान और बुद्धिमान वे व्यक्ति कहलाएंगे, जिनके पास धन होगा। अधिक ज्ञान वालों को पंडित माना जायेगा। बीस से तीस की आयु परम आयु गिनी जायेगी। कलियुग के प्रभाव से शरीर छोटे हो जायेंगे। अकाल, वर्षा तथा राज्य के कर से प्रजा को क्लेश होगा। अन्न समाप्त हो जायेगा और वर्षा बन्द हो जायेगी। तब कलियुग पूरा हो जायेगा और सम्बल ग्राम में भगवान विष्णु का, यश नामक ब्राह्मण के घर कल्कि रूप में अवतार होगा, जिसका नाम देवदत्त होगा। तब फिर एक बार दुष्टों का विनाश होगा और लोगों के मन पुनः निर्मल हो जायेंगे। धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, यज्ञादि में मनुष्यों की फिर से निष्ठा बन जायेगी। धर्म की स्थापना के लिए भगवान कल्कि के रूप में अवतार लेंगे, तब 'सतयुग' प्रवेश करेगा और प्रजा की संतान भी सतोगुणी होगी।
डॉ. नवीन चन्द्र जोशी
देशभर में जहां रंगों से भरे और मौज-मस्ती के पर्व पर होली फाल्गुन माह में गाई व खेली जाती है, वहीं कुमाऊं की परंपरागत कुमाउंनी होली की एक विशिष्टता बैठकी होली यानी अर्ध शास्त्रीय गायकी युक्त होली है, जिसकी शुरुआत पौष माह के पहले रविवार से ही विष्णुपदी होली गीतों के साथ हो जाती है। पौष मास दसवां मास है जिसमें चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में होता है । पौष मासपूजा पाठ जप तप ,दान के लिए शुभ है । सूर्य की आराधना आरोग्य तथा सौभाग्य देता है। पौष के प्रथम रविवार से निर्वाण की होली बैठक के रूप में प्रारंभ होती है जो भक्ति पर आधारित होती है। विश्व की उत्पत्ति का जीवन की ऊर्जा का स्त्रोत्र है। वसंत पंचमी से शृंगार होली प्रारंभ होगी। होली ऋतु परिवर्तन दर्शाता है। शास्त्रीयता का अधिक महत्व होने के कारण शास्त्रीय होली भी कही जाने वाली कुमाऊं की शास्त्रीय होली की शुरुआत करीब 10वीं शताब्दी में चंद शासनकाल से मानी जाती है।
कुछ विद्वानों के अनुसार चंद शासनकाल में बाहर से ब्याह कर आईं राजकुमारियां अपनी परंपराओं व रीति-रिवाजों के साथ होली को भी यहां साथ लेकर आईं। वहीं अन्य विद्वानों के अनुसार प्राचीनकाल में यहां के राजदरबारों में बाहर के गायकों के आने से यह परंपरा आई है। कुमाऊं के प्रसिद्ध जनकवि स्वर्गीय गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ के अनुसार कुमाऊं की शास्त्रीय गायकी होली में बृज व अवध से लेकर दरभंगा तक की परंपराओं की छाप स्पष्ट रूप से नजर आती है तो नृत्य के पद संचालन में ठेठ पहाड़ी ठसक भी मौजूद रहती है।
इस प्रकार कुमाउंनी होली कमोबेश शास्त्र व लोक की कड़ी तथा एक-दूसरे से गले मिलने में ईद जैसे आपसी प्रेम बढ़ाने वाले त्यौहारों की झलक भी दिखाती है। साथ ही कुमाउंनी होली में प्रथम पूज्य गणेश से लेकर गोरखा शासनकाल से पड़ोसी देश नेपाल के पशुपतिनाथ शिव की आराधना और ब्रज के राधा-कृष्ण की हंसी-ठिठोली से लेकर स्वतंत्रता संग्राम और उत्तराखंड आंदोलन की झलक भी दिखती है, यानी यह अपने साथ तत्कालीन इतिहास की सांस्कृतिक विरासत को भी साथ लेकर चली हुई है।
कुमाऊं में चीर व निशान बंधन की भी अलग विशिष्ट परंपरायें हैं। इनका कुमाउंनी होली में विशेश महत्व माना जाता है। होलिकाष्टमी के दिन ही कुमाऊं में कहीं कहीं मन्दिरों में ‘चीर बंधन’ का प्रचलन है। पर अधिकांशतया गांवों, शहरों में सार्वजनिक स्थानों में एकादशी को मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है। इसके लिए गांव के प्रत्येक घर से एक एक नऐ कपड़े के रंग बिरंगे टुकड़े ‘चीर’ के रूप में लंबे लटठे पर बांधे जाते हैं। इस अवसर पर ‘कैलै बांधी चीर हो रघुनन्दन राजा’, ’सिद्धि को दाता गणपति बांधी चीर हो’ जैसी होलियां गाई जाती हैं।
इस होली में गणपति के साथ सभी देवताओं के नाम लिए जाते हैं। कुमाऊं में ‘चीर हरण’ का भी प्रचलन है। गांव में चीर को दूसरे गांव वालों की पहुंच से बचाने के लिए दिन-रात पहरा दिया जाता है। चीर चोरी चले जाने पर अगली होली से गांव की चीर बांधने की परंपरा समाप्त हो जाती है। कुछ गांवों में चीर की जगह लाल रंग के झण्डे ‘निशान’ का भी प्रचलन है, जो यहां की शादियों में प्रयोग होने वाले लाल सफेद ‘निशानों’ की तरह कुमाऊं में प्राचीन समय में रही राजशाही की निशानी माना जाता है। बताते हैं कि कुछ गांवों को तत्कालीन राजाओं से यह ‘निशान’ मिले हैं, वह ही परंपरागत रूप से होलियों में ‘निशान’ का प्रयोग करते हैं। सभी घरों में होली गायन के पश्चात घर के सबसे सयाने सदस्य से शुरू कर सबसे छोटे पुरुष सदस्य का नाम लेकर ‘घर के मालिक जीवें लाख सौ बरीस…हो हो होलक रे’ कह आशीष देने की भी यहां अनूठी परंपरा है।
कुमाउंनी होली के समापन अवसर पर दी जाने वाली आशीषें
गावैं ,खेलैं ,देवैं असीस, हो हो हो लख रे।
बरस दिवाली बरसै फ़ाग, हो हो हो लख रे।
जो नर जीवैं, खेलें फ़ाग, हो हो हो लख रे।
आज को बसंत कृष्ण महाराज का घरा, हो हो हो लख रे।
श्री कृष्ण जीरों लाख सौ बरीस, हो हो हो लख रे।
यो गौं को भूमिया जीरों लाख सौ बरीस, हो हो हो लख रे।
यो घर की घरणी जीरों लाख सौ बरीस, हो हो हो लख रे।
गोठ की घस्यारी जीरों लाख सौ बरीस, हो हो हो लख रे।
पानै की रस्यारी जीरों लाख सौ बरीस, हो हो हो लख रे।
गावैं होली देवैं असीस, हो हो हो लख रे॥
जयपुर, 14 मार्च । जयपुर शहर में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। धुलंडी पर लोगों ने एक-दूसरे को रंग बिरंगी गुलाल लगाकर होली की बधाई दी। लाल, पीले, नीले रंग में सरोबार हो रहे लोगों ने एक दूसरे पर जमकर रंग लगाया। राजधानी में शुक्रवार की अलसुबह से ही बच्चे पिचकारी लेकर घरों से बाहर निकल आए और एक दूसरे पर रंगीन पानी की बौछार कर रहे थे। कोई पुपाड़ी बजा रहा था तो कोई लाल हरे रंग एक दूसरे को लगा रहा था। शहर में होली गीतों की धूम रही। सुबह से ही डीजे पर रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे, होली के दिन दिल मिल जाते हैं, रंगों में रंग खिल जाते हैं, होली खेलत रघुवीरा अवध में होली खेलत रघुवीरा जैसे गीतों की धुन पर जगह-जगह बच्चे युवा थिरकते हुए नजर आए। घरों में होली का मुख्य पकवान गुजिया के साथ तरह-तरह के व्यंजन पकाए गए। इन्हीं व्यंजनों से होली पर मिलने आए लोगों का स्वागत किया गया। शहर हो या गांव सभी जगह लोगों ने जमकर होली खेली। लोगों ने चंग और ढप बजाकर होली गीतों को गाया तो लोग खुद को झूमने से रोक नहीं पाए। होरियारों का हुड़दंग घरों में ही जारी रहा। लोग घरों में ही एक दूसरे को रंग व गुलाल लगा रहे थे। इस दौरान जहां तहां बच्चों से लेकर बड़ों व महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक अलग अलग रंगों में रंगे नजर आ रहे हैं। धुलंडी पर होलियारों की टोलियां घूमती हुई नजर आई।
विदेशी मेहमानों ने भी खेली होली
राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से खासा कोठी में पर्यटकों के लिए होली उत्सव मनाया गया। इस उत्सव में विदेशी मेहमान भी बड़ी संख्या में पहुंचे। इस खास आयोजन में जयपुर घूमने आए विदेशी सैलानियों ने भारतीय होली की परंपराओं को करीब से देखा और इसमें भाग लिया। पर्यटन विभाग ने उन्हें गुलाल से नहीं, बल्कि फूलों से होली खेलने का अनुभव कराया। इसके अलावा इस कार्यक्रम में राजस्थान के लोक कलाकारों ने गेर नृत्य, चंग वादन, कालबेलिया और घूमर की प्रस्तुति देकर होली के रंगों को और गहरा कर दिया। ढोल-नगाड़ों की थाप पर पर्यटकों ने भी नृत्य किया और राजस्थानी होली गीतों का आनंद लिया।
राजस्थान पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह आयोजन हर साल विदेशी सैलानियों को भारतीय त्योहारों और संस्कृति से जोड़ने के उद्देश्य से किया जाता है। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है और अतिथि देवो भव की परंपरा को आगे बढ़ाया जाता है।
मिठाइयों और रंगों के साथ होली की मस्ती
होली के इस जश्न में गुजिया,ठंडाई, दही भल्ले, मालपुए और अन्य पारंपरिक मिठाइयों का खास लुत्फ उठाया गया। लोगों ने एक-दूसरे को रंग लगाकर शुभकामनाएं दीं और त्योहार की खुशियों को साझा किया। जयपुर के विभिन्न इलाकों, क्लबों और होली फेस्टिवल्स में लोगों ने रंगों की मस्ती के साथ म्यूजिक बीट्स पर जमकर डांस किया। रंग-बिरंगे गुलाल, पानी के फव्वारे और ढोल की थाप ने माहौल को और भी उत्साहपूर्ण बना दिया। शहर के कई नामी होटल्स, रिसॉर्ट्स और आयोजनों में होली की थीम पर विशेष होली पार्टी आयोजित की गईं। जहां युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक ने डीजे म्यूजिक, लाइव बैंड और डांस परफॉर्मेंस का आनंद लिया। पारंपरिक फाग गीतों के साथ बॉलीवुड और पंजाबी गानों पर लोग झूमते नजर आए। वहीं इस बार कई आयोजनों में इको-फ्रेंडली होली मनाने पर जोर दिया गया। आयोजकों ने हर्बल गुलाल, फूलों की होली और पानी बचाने के संदेश को प्राथमिकता दी। इसके साथ ही, कई जगहों पर सूखी होली खेली गई, जिसमें केवल गुलाल और फूलों से रंग खेलकर जल संरक्षण का संदेश दिया गया। इसके अलावा जयपुर में पूर्व बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी कार्यकर्ताओं के साथ धुलंडी का पर्व मनाया। इस मौके पर उन्होंने चंग पर थाप भी दी और कार्यकर्ताओं के साथ डांस भी किया। कार्यकर्ताओं ने उन्हें कंधे पर उठाया, उसके बाद पूनिया जमकर नाचे।
वहीं राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने शेखावटी में होली के गीत गाए। उन्होंने भी अपने आवास पर कार्यकर्ताओं के लिए होली समारोह का आयोजन किया था।पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने सरकारी आवास पर आज शाम होली स्नेह मिलन कार्यक्रम रखा। इसमें उन्होंने कार्यकर्ता और नेताओं से मुलाकात की। इसके अलावा पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी आज अपने निजी आवास पर कार्यकर्ताओं के साथ होली खेली। बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और समर्थक उनके आवास पर पहुंचे और उन्हें रंग लगाकर शुभकामनाएं दी। पूर्व मंत्री खाचरियावास पारंपरिक लोकगीतों पर जमकर थिरके और ढपली भी बजाई।