भारत विविधताओं का देश है, जहां प्रत्येक क्षेत्र में अपने-अपने रीति-रिवाज और परंपराओं के अनुसार अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। इन त्योहारों का न केवल धार्मिक महत्व होता है, बल्कि ये हमारे सांस्कृतिक जीवन का भी एक अभिन्न हिस्सा होते हैं। ऐसा ही एक पारंपरिक और कृषि से जुड़ा त्योहार है "अखती", जिसे "अक्षय तृतीया" के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से ग्राम्य जीवन और कृषक समुदाय के लिए अत्यंत महत्व रखता है।
अखती क्या है?
अखती, जिसे अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे अबूझ मुहूर्त कहा जाता है, यानी इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना पंचांग देखे किया जा सकता है। खासकर शादी-विवाह, गृह प्रवेश, सोना-चांदी की खरीदारी, और नए कार्य की शुरुआत के लिए यह दिन श्रेष्ठ माना जाता है।
गांवों में इस त्योहार का एक अलग ही स्वरूप देखने को मिलता है। किसानों के लिए यह दिन नई खेती की शुरुआत का प्रतीक होता है, और इस दिन वे खेत में हल चलाकर अगली फसल की नींव रखते हैं। इसे कृषि वर्ष की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है।
अखती का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
इस दिन को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, जिन्हें विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। इसके अलावा मान्यता है कि इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था।
यह भी माना जाता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर को इसी दिन अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था, जिससे उन्हें कभी अन्न की कमी नहीं हुई। इसलिए इस दिन को "अक्षय" यानी जो कभी खत्म न हो, ऐसे पुण्य और समृद्धि का दिन कहा जाता है।
ग्रामीण जीवन में अखती का महत्व:
ग्रामीण क्षेत्रों में अखती का त्योहार एक कृषि पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने बैलों को सजाते हैं, हल की पूजा करते हैं, और खेत में प्रतीकात्मक रूप से हल चलाकर नई खेती का शुभारंभ करते हैं। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि इस दिन खेत में हल चलाने से फसल भरपूर होती है और अन्न कभी खत्म नहीं होता।
इस दिन गांवों में पारंपरिक भोज, गीत-संगीत और मेलों का आयोजन भी किया जाता है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पूजा करती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
आधुनिक संदर्भ में अखती:
आज के समय में भले ही शहरी जीवन में इस त्योहार की पारंपरिक झलक कम हो गई हो, लेकिन इसका धार्मिक महत्व अब भी बरकरार है। सोना-चांदी और जमीन-जायदाद की खरीदारी के लिए लोग इस दिन का इंतजार करते हैं। कई परिवार इस दिन कन्याओं को भोजन करवाते हैं, दान-पुण्य करते हैं और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
साथ ही, पर्यावरण और कृषि की दृष्टि से यह त्योहार आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। बदलते मौसम और जलवायु संकट के बीच, किसान परंपरागत ज्ञान और प्रकृति के साथ सामंजस्य से खेती की शुरुआत करते हैं, जो टिकाऊ कृषि का संकेत है।
निष्कर्ष:
अखती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारे कृषि परंपरा, ग्रामीण संस्कृति, और प्राकृतिक जीवन शैली से गहराई से जुड़ा हुआ त्योहार है। यह त्योहार हमें प्रकृति से जुड़ने, परिश्रम करने, और आने वाले समय के लिए सकारात्मक सोच के साथ योजना बनाने की प्रेरणा देता है।
अखती का त्योहार हमें यह सिखाता है कि शुभ कार्यों की शुरुआत सही सोच और आत्मविश्वास के साथ की जाए, ताकि उसका फल भी “अक्षय” अर्थात् चिरस्थायी हो। ऐसे त्योहारों के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक जड़ें और गहरी होती हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को अपने मूल से जोड़े रखने का काम करती हैं।