सहकारिता के सिद्धांतों पर आधारित संस्थाएँ व्यापार और अर्थशास्त्र में नई नैतिकता और मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ये संस्थाएँ न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक विकास में भी अहम योगदान देती हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारिता दिवस पहली बार 2005 में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में मनाया गया, हालांकि इसकी शुरुआत 1923 में हुई थी जब इसे अंतर्राष्ट्रीय सहकारी आंदोलन और अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन द्वारा पहली बार मनाया गया था। इस दिवस की प्रत्येक वर्ष की थीम का निर्धारण सहकारिता के संवर्धन और उन्नति समिति (COPAC) द्वारा किया जाता है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) एक सक्रिय सदस्य है।
यह दिन नीति निर्माताओं, सामुदायिक नेताओं और स्वयंसेवकों सहित विभिन्न हितधारकों को एक साथ आने और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाने का अवसर प्रदान करता है। यह उत्सव सहकारी मॉडल की दक्षता और उसके योगदान को उजागर करने का एक ज़रिया बनता है, साथ ही यह यह दर्शाता है कि सहकारी संस्थाएँ आर्थिक विकास, सामाजिक समावेशन और स्थिरता में किस प्रकार मदद कर सकती हैं। यह प्रयास 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी प्रेरणा प्रदान करता है।
इस दिन दुनिया भर की सहकारी संस्थाएँ अपनी उपलब्धियों और समुदायों को सशक्त बनाने में अपने योगदान को प्रदर्शित करती हैं। इससे अन्य संगठन और व्यक्ति भी सहकारी मॉडल को अपनाने की प्रेरणा लेते हैं। इसके साथ ही, यह दिन सहकारिता के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं, सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य हितधारकों को आपसी सहयोग और नेटवर्किंग का एक साझा मंच प्रदान करता है। ऐसे सहयोगी प्रयास सहकारी संगठनों की प्रभावशीलता और नवाचार क्षमता को और अधिक मज़बूत बनाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस, सहकारी संस्थाओं के विकास को समर्थन देने वाली नीतियों की वकालत का एक अवसर भी प्रदान करता है। इस दिन के माध्यम से नीति निर्माताओं को इस ओर प्रेरित किया जाता है कि वे एक ऐसा वातावरण तैयार करें जो सहकारी समितियों की वृद्धि और प्रभाव को बढ़ावा दे सके।
भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में हुई। 1904 में सहकारी ऋण समिति अधिनियम के पारित होने के बाद देश में सहकारी समितियों की स्थापना की नींव पड़ी। सर फ्रेडरिक निकोलसन को भारत में सहकारी आंदोलन का जनक माना जाता है। भारत की पहली सहकारी संस्था कर्नाटक में स्थापित हुई थी, जबकि प्रारंभिक पंजीकृत समितियाँ असम में थीं। समय के साथ यह आंदोलन कृषि, डेयरी, बैंकिंग, आवास और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में फैल चुका है। इसका सबसे सफल उदाहरण ‘अमूल सहकारी मॉडल’ है। सहकारिता की महत्ता को देखते हुए भारत सरकार ने हाल ही में एक अलग सहकारिता मंत्रालय की भी स्थापना की है।