दादाभाई नौरोजी को भारत का ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ कहा जाता है। वे एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के वास्तुकार के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने इसके आधार की नींव रखी थी। दादाभाई पारसी समुदाय से थे और एक अच्छे शिक्षक, कपास व्यापारी, तथा एक प्रारंभिक भारतीय राजनीतिक और सामाजिक नेता थे। 1892 से 1895 के बीच वे लिबरल पार्टी के सदस्य के रूप में ब्रिटिश संसद के सदस्य रहे, और वे पहले एशियाई थे जो ब्रिटिश संसद में पहुंचे। नौरोजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रचियता माना जाता है। उन्होंने ए ओ हुम और दिन्शाव एदुल्जी के साथ मिलकर इस पार्टी की स्थापना की थी। दादाभाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष भी रहे थे। वे पहले भारतीय थे जिन्हें किसी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। 1906 में कांग्रेस ने पहली बार ब्रिटिश सरकार से स्वराज की मांग की थी, और यह पहल दादाभाई ने सबसे पहले की थी।
दादाभाई ने मुंबई के एल्फिंस्टोन इंस्टिट्यूट से अपनी पढ़ाई पूरी की और वहीं अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। वे गणित और अंग्रेजी में बहुत कुशल थे और बाद में लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में पढ़ाने लगे। लंदन में उनके घर पर वहां पढ़ने वाले भारतीय छात्र आते-जाते रहते थे।
दादाभाई के अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना थी। वे सामाजिक और क्रांतिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे, जिन्होंने 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लीज नवीनीकरण का विरोध किया था। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को कई याचिकाएं भेजीं, लेकिन सरकार ने उनकी बात को नकार दिया और लीज को पुनः नवीनीकृत कर दिया। दादाभाई का मानना था कि भारत के लोगों में अज्ञानता के कारण ब्रिटिश शासक जुल्म ढा रहे हैं। उन्होंने व्यस्क शिक्षा के लिए ज्ञान प्रसारक मंडली की स्थापना की और भारत की समस्याओं को लेकर राज्यपालों तथा वायसराय को कई याचिकाएं लिखीं। 1855 में मात्र 30 वर्ष की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए।
इंग्लैंड में रहते हुए दादाभाई ने कई अच्छी सोसायटियों को जॉइन किया और भारत की दुर्दशा बताने के लिए कई भाषण दिए तथा लेख लिखे। 1 दिसंबर 1866 को उन्होंने ‘ईस्ट इंडियन एसोसिएशन’ की स्थापना की, जिसमें भारत के उच्च पदस्थ अधिकारी और ब्रिटिश संसद के सदस्य शामिल थे। 1880 में वे पुनः लंदन गए। 1892 में ब्रिटिश आम चुनाव में ‘सेंट्रल फिन्स्बरी’ से लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुने गए और पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद बने। उन्होंने भारत और इंग्लैंड में आई.सी.एस की प्रारंभिक परीक्षाओं के आयोजन के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पारित कराया। साथ ही, उन्होंने प्रशासनिक और सैन्य खर्च के वितरण के लिए विले आयोग और भारत व्यय पर रॉयल कमीशन बनवाया।
दादाभाई नौरोजी को स्वतंत्रता आंदोलन के समय सबसे महत्वपूर्ण भारतीयों में से एक माना जाता है। उनके सम्मान में ‘दादाभाई नौरोजी रोड’ का नाम रखा गया है। उन्हें भारत का ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ कहा जाता है। 30 जून 1917 को 91 वर्ष की उम्र में भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का निधन हो गया।