बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन महान दार्शनिक, तत्ववेत्ता, धर्मशास्त्री, शिक्षाशास्त्री और कुशल राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद को सुशोभित किया। उनके जन्मदिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं, जो शिक्षा के प्रति उनके समर्पण और दृष्टिकोण को सम्मान देने का एक माध्यम है। शिक्षा के महत्व को उन्होंने जिस स्पष्टता और गहराई से समझाया, वह अनुकरणीय है।
अपने जीवन के 40 महत्वपूर्ण वर्ष उन्होंने एक शिक्षक के रूप में बिताए। वे एक आदर्श शिक्षक थे, जिनमें विद्यार्थियों की रुचि जगाने और उन्हें सही दिशा देने की विलक्षण क्षमता थी। उनका मानना था कि एक अच्छे शिक्षक को यह पता होना चाहिए कि वह अध्ययन को रोचक और प्रेरणादायक कैसे बना सकता है।
उनके जीवन से जुड़ा एक प्रेरणादायक प्रसंग यह दर्शाता है कि सीखने की प्रक्रिया केवल एकतरफा नहीं होती—एक शिक्षक भी किसी छात्र से सीख सकता है।
बचपन में जब राधाकृष्णन मद्रास के एक ईसाई मिशनरी स्कूल में पढ़ते थे, तब एक दिन उनके शिक्षक, जो ईसाई धर्म से संबंधित थे, पढ़ाते-पढ़ाते हिंदू धर्म की आलोचना करने लगे। वे इसे रूढ़िवादी, अंधविश्वासी और पिछड़ा बताने लगे। कक्षा में बैठे छोटे राधाकृष्णन ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे। जब शिक्षक रुके, तो राधाकृष्णन ने विनम्रता से हाथ उठाया और पूछा, "महाशय, क्या आपका धर्म दूसरों की निंदा करना सिखाता है?"
इस छोटे से बालक का यह प्रश्न सुनकर शिक्षक अचंभित रह गए। प्रश्न में गहराई और सच्चाई दोनों थी। शिक्षक ने प्रत्युत्तर में पूछा, "क्या हिंदू धर्म अन्य धर्मों का सम्मान करता है?"
राधाकृष्णन ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, "बिल्कुल महोदय! गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि भगवान तक पहुंचने के अनेक मार्ग हो सकते हैं, पर लक्ष्य एक ही होता है। 'सर्व धर्म सम भाव' हिंदू धर्म की मूल भावना है, जिसमें सभी धर्मों का सम्मान होता है। कोई भी सच्चा धर्म दूसरों की निंदा की शिक्षा नहीं देता। एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति वही है जो सभी धर्मों का आदर करता है।"
राधाकृष्णन की बातों ने शिक्षक को आत्मचिंतन के लिए विवश कर दिया, और उन्होंने तय किया कि भविष्य में वे कभी भी किसी धर्म की निंदा नहीं करेंगे।
यही तो होते हैं सच्चे शिक्षक—जो न सिर्फ ज्ञान देते हैं, बल्कि अपने विचारों और व्यवहार से दूसरों को सोचने की दिशा भी दिखाते हैं।
साक्षर हमें बनाते हैं,
जीवन क्या है समझाते हैं।
जब गिरते हैं हम हार कर,
तो साहस वही बढ़ाते हैं।
ऐसे महान व्यक्ति ही तो,
सच्चे शिक्षक और गुरु कहलाते हैं।