गोपाष्टमी वह पावन तिथि है जब भगवान कृष्ण ने पहली बार गायों को चराना शुरू किया था। इसे कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। इसी दिन से भगवान कृष्ण की गौ-चारण लीला आरंभ हुई थी, इसलिए इस दिन को खास महत्व दिया जाता है। गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा और सम्मान किया जाता है, क्योंकि गायें हमारे लिए बहुत पूजनीय और जीवनदायी होती हैं।
अब गोपाष्टमी से जुड़ी पूरी कथा और पूजा के बारे में विस्तार से समझते हैं:
इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले नहाना-पहनना होता है। फिर गायों और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है ताकि वे साफ-सुथरे हो जाएं। इसके बाद गायों के शरीर पर मेहंदी, हल्दी और रोली जैसे रंग लगाए जाते हैं और उन्हें अच्छे से सजाया जाता है।
फिर सुबह-सुबह पूजा की जाती है, जिसमें गाय को धूप, दीप, फूल, अक्षत (चावल), रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र और जल चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद आरती की जाती है। पूजा के बाद गायों को ताजा घास खिलाई जाती है और उनकी परिक्रमा की जाती है, मतलब उनके चारों ओर घूमा जाता है। इसके बाद पूजा करने वाला कुछ दूर तक गायों के साथ चलता भी है।
अब श्री कृष्ण की गौ-चारण की कथा सुनते हैं। जब भगवान कृष्ण छह साल के थे, तब उन्होंने अपनी माता यशोदा से कहा कि वे अब बछड़े नहीं बल्कि गायें चराएंगे। मां ने पहले पंडित से मुहूर्त (शुभ समय) पूछने को कहा। नंद बाबा ने पंडित जी से पूछा, तो पंडित जी ने बताया कि उसी दिन का मुहूर्त शुभ है और अगले एक साल तक ऐसा कोई शुभ मुहूर्त नहीं आएगा। इसलिए नंद बाबा ने कृष्ण को गौ-चारण करने की अनुमति दे दी।
कृष्ण ने उसी दिन से गाय चराना शुरू किया। उस दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी थी, जो गोपाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
माता यशोदा ने कृष्ण के पैरों में जूते पहनाने की कोशिश की, लेकिन कृष्ण ने मना कर दिया, क्योंकि अगर गायें जूते नहीं पहनतीं, तो वे क्यों पहनें। तब से उन्होंने कभी जूते नहीं पहने।
कृष्ण और उनके भाई बलराम अपने दोस्तों के साथ गाय चराने जाते थे, बांसुरी बजाते और गायों के साथ घूमते। उनके कदमों से वृंदावन की धरती पवित्र हो जाती थी, जहां हरी-भरी घास उग आती थी और रंग-बिरंगे फूल खिलते थे।
इस तरह गोपाष्टमी के दिन गायों का विशेष सम्मान किया जाता है और भगवान कृष्ण की गौ-चारण लीला को याद किया जाता है। यह पर्व हमें प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान सिखाता है।
