भारत के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा न केवल एक महान वैज्ञानिक थे, बल्कि उन्होंने भारत को विश्व की प्रमुख परमाणु शक्तियों में शामिल करने की दूरदर्शी कल्पना भी की थी। 30 अक्टूबर 2023 को उनकी 114वीं जयंती मनाई गई। भाभा ने भारत को आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाने में जो योगदान दिया, उसकी बदौलत आज देश वैश्विक परमाणु मंच पर अग्रणी है।
डॉ. होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता होर्मुसजी भाभा एक प्रसिद्ध वकील थे, जबकि माता मेहरबाई टाटा उद्योगपति रतनजी दादाभाई टाटा की पुत्री थीं। संपन्न परिवार में जन्म लेने के कारण भाभा को प्रारंभ से ही उत्कृष्ट शिक्षा मिली। मुंबई से शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे 1930 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने अपने पिता और चाचा की इच्छा अनुसार मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। हालांकि, जल्द ही उनका रुझान भौतिकी की ओर बढ़ गया और उन्होंने 1935 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से परमाणु भौतिकी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनके परिवार की अपेक्षा थी कि वे पढ़ाई पूरी कर भारत लौटकर टाटा स्टील या टाटा मिल्स में इंजीनियर के रूप में काम करेंगे, परंतु भाभा का सपना कुछ और ही था — भारत को वैज्ञानिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना।
साल 1940 में होमी भाभा छुट्टियों में भारत लौटे ही थे कि द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया, जिसके कारण वे यहीं रुक गए। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बैंगलोर में बतौर रीडर काम शुरू किया। 1944 में उन्होंने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक विशेष संस्थान की स्थापना की जाए। इस प्रस्ताव पर दिसंबर 1945 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना हुई। यहीं से भारत के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
भाभा ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत का स्वतंत्र परमाणु कार्यक्रम शुरू करने के लिए राजी किया। उनके प्रयासों से अप्रैल 1948 में एटॉमिक एनर्जी एक्ट पारित हुआ, जिसके तहत इंडियन एटॉमिक एनर्जी कमीशन (IAEC) की स्थापना की गई। इसका लक्ष्य था भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना। भाभा ने दक्षिण भारत के तटीय इलाकों में उपलब्ध यूरेनियम और थोरियम जैसे खनिजों के उपयोग से स्वदेशी परमाणु ऊर्जा के विकास की दिशा में कदम बढ़ाया।
होमी भाभा के नेतृत्व में 1956 में भारत का पहला परमाणु रिएक्टर “अप्सरा” तैयार किया गया। यह भारत के वैज्ञानिक इतिहास का ऐतिहासिक क्षण था। उस समय दुनिया के विकसित देशों, खासकर अमेरिका और यूरोप, को भरोसा नहीं था कि भारत जैसे नए स्वतंत्र देश में इतनी बड़ी तकनीकी उपलब्धि संभव है। लेकिन भाभा ने सभी संदेहों को गलत साबित कर दिया।
जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने, तो भाभा के लिए परिस्थितियाँ बदल गईं। शास्त्री गांधीवादी विचारधारा के समर्थक थे और परमाणु हथियारों के विरोधी। लेखक बख्तियार दादाभौय की किताब ‘होमी जे. भाभा: अ लाइफ’ में उल्लेख है कि भाभा और शास्त्री के बीच इस विषय पर गंभीर मतभेद थे। 8 अक्टूबर 1964 को चीन के परमाणु परीक्षण से पहले भाभा ने लंदन में यह घोषणा की थी कि भारत 18 महीनों के भीतर अपना परमाणु परीक्षण करने की क्षमता रखता है। हालांकि, शास्त्री ने उन्हें केवल शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के उपयोग तक सीमित रहने का आदेश दिया। बाद में भाभा ने उन्हें शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु शक्ति की आवश्यकता समझाई।
साल 1965 में ऑल इंडिया रेडियो को दिए गए एक इंटरव्यू में होमी भाभा ने कहा था, “अगर मुझे पूरी छूट मिले, तो मैं 18 महीनों के भीतर भारत के लिए एटम बम बना सकता हूँ।” उनकी यह घोषणा उस समय पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाली थी। इस बयान ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत के पास न केवल तकनीकी क्षमता है, बल्कि वैज्ञानिक आत्मविश्वास भी।
23 जनवरी 1966 को होमी भाभा एयर इंडिया की फ्लाइट से जेनेवा जा रहे थे। विमान में कुल 117 यात्री और क्रू सदस्य सवार थे। लैंडिंग से कुछ मिनट पहले विमान फ्रांस के आल्प्स पर्वतों में क्रैश हो गया। फ्रांसीसी अधिकारियों के अनुसार, खराब मौसम के कारण बचाव कार्य कठिन था। दुर्घटना के बाद किसी भी यात्री का शव नहीं मिला, न ही ब्लैक बॉक्स बरामद हुआ। अधिकांश मलबा ग्लेशियर में धँस गया था। इसी कारण उनकी मौत आज तक एक रहस्य बनी हुई है।
डॉ. होमी जहांगीर भाभा न केवल भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक थे, बल्कि वे उस युग के ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य की नींव रखी। उनकी दूरदृष्टि, समर्पण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने भारत को वह पहचान दी, जिससे आज देश विश्व की अग्रणी परमाणु शक्तियों में शामिल है। भाभा का नाम हमेशा उस वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक रहेगा, जिसने भारत को शक्ति और शांति दोनों के मार्ग पर अग्रसर किया।
