स्वराज के प्रथम पुकारक: वासुदेव बलवंत फड़के | The Voice TV

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स्वराज के प्रथम पुकारक: वासुदेव बलवंत फड़के

Date : 04-Nov-2025

सही मायनों में वासुदेव बलवंत फड़के ही पहले भारतीय थे जिन्होंने स्वराज का सपना देखा, उसके लिए आह्वान किया और सीमित साधनों के बावजूद पूरी शक्ति से उसे साकार करने का प्रयास किया। फड़के का दृढ़ विश्वास था कि भारत के हर संकट — चाहे वह किसानों की समस्या हो, गरीबी का प्रश्न हो या स्व-रोजगार का मुद्दा — उसका एकमात्र समाधान स्वराज है।


1857 की क्रांति की विफलता के बाद देश निराशा के दौर से गुजर रहा था। क्रांति के अधिकांश नायक या तो फांसी पर चढ़ा दिए गए थे या गुमनामी में जीवन बिता रहे थे। जनता का हौसला टूट चुका था और लोगों ने यह मान लिया था कि अंग्रेजों को हराना असंभव है। ऐसे निराशाजनक समय में भारत माता का यह वीर सपूत समाज के कमजोर वर्गों को संगठित कर स्वतंत्रता की नई ज्योति जला रहा था।

महादेव गोविंद रानाडे के विचारों से प्रभावित होकर फड़के ने यह समझा कि अंग्रेज न केवल देश पर शासन कर रहे हैं, बल्कि उसकी संपदा और संसाधनों को भी लूटकर अपने देश भेज रहे हैं। उन्होंने गांव-गांव जाकर इस लूट के खिलाफ जनजागरण किया और महाराष्ट्र भर में घूमकर युवाओं को संगठित करने का प्रयास किया।

उन्होंने समाज के हाशिए पर खड़ी भील, डांगर, कोली और रामोशी जातियों के युवाओं को मिलाकर एक गुप्त सेना तैयार की। इस सेना को ‘रामोशी संगठन’ नाम दिया गया। फड़के जानते थे कि कुछ व्यक्तियों के बल पर अंग्रेजों को हराना कठिन है, फिर भी वे अपने लक्ष्य के लिए हर बलिदान देने को तैयार थे।

देशी रियासतों और संभ्रांत वर्ग से कोई सहायता न मिलने के बावजूद, फरवरी 1879 में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी। उनकी छोटी सी सेना ने कई स्थानों पर अंग्रेजों को भारी क्षति पहुंचाई, उनकी संपत्ति लूटी और वह धन गरीबों में बांट दिया।

उनकी बढ़ती शक्ति से घबराकर अंग्रेज सरकार ने उनकी गिरफ्तारी पर पचास हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया। इनाम के लालच में किसी विश्वासघाती ने उनकी सूचना अंग्रेजों को दे दी। 20 जुलाई 1879 को फड़के गिरफ्तार कर लिए गए और आजीवन कारावास की सजा के साथ अदन की जेल भेजे गए।

जेल में रहते हुए उन्होंने भूख हड़ताल शुरू की, जो अंततः 17 फरवरी 1883 को उनकी मृत्यु का कारण बनी। मात्र 37 वर्ष की आयु में यह महान क्रांतिकारी देश के लिए शहीद हो गया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।

1882 में, जब वे जेल में थे, तब बंकिमचंद्र चटर्जी का प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ प्रकाशित हुआ। यह कृति अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संन्यासियों के आंदोलन पर आधारित थी, किंतु उसमें फड़के की संघर्षगाथा और उनके क्रांतिकारी विचारों का भी प्रभाव दिखाई देता है। बाद में इसी उपन्यास से उपजा गीत “वंदे मातरम्” स्वतंत्रता संग्राम का अमर नारा बन गया — और वासुदेव बलवंत फड़के, उस प्रेरणा के मूल स्रोत।
 
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