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गणेश शंकर विद्यार्थी का जीवन और उनका योगदान

Date : 26-Oct-2025
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को अतरसुइया में हुआ था। उन्होंने मात्र 16 वर्ष की उम्र में अपनी पहली पुस्तक 'हमारी आत्मोसर्गता' लिखी थी। अपने जीवनकाल में विद्यार्थी जी पाँच बार जेल की सजा भुगत चुके हैं। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से अंग्रेजों के शासन के खिलाफ आवाज उठाई और अपना जीवन देश की आज़ादी तथा सामाजिक समानता के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन न केवल स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रहा, बल्कि पत्रकारिता और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी प्रेरणादायक रहा।

शुरुआती जीवन और शिक्षा
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था। उनके पिता एक शिक्षक थे, जिन्होंने बेटे की उच्च शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। विद्यार्थी जी ने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। इस दौरान ही उन्हें समाज में व्याप्त अन्याय और ब्रिटिश हुकूमत की नीतियों के प्रति कड़ा विरोध हुआ।

पत्रकारिता की शुरुआत
विद्यार्थी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका पत्रकारिता के जरिए निभाई। वर्ष 1913 में उन्होंने 'प्रताप' नामक अखबार शुरू किया, जो ब्रिटिश राज की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ आवाज़ बन गया। इस माध्यम से उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग की समस्याओं को उजागर किया। उनकी लेखनी ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रभावशाली हथियार का काम किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
गणेश शंकर विद्यार्थी सिर्फ पत्रकार नहीं थे, बल्कि सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और स्वराज की प्रबल वकालत की। अपने अखबार के जरिये अंग्रेज़ों की कठोर नीतियों की आलोचना करते हुए उन्होंने देशवासियों को आज़ादी के लिए प्रेरित किया। उनके लेखों ने क्रांतिकारी भावना को प्रज्वलित किया और कई युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया।

साम्प्रदायिक सद्भाव और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष
विद्यार्थी जी का जीवन केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था। वे सामाजिक समानता और साम्प्रदायिक मेलजोल के कट्टर समर्थक थे। 1931 में कानपुर में जब सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, तब उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। वे शांति और सद्भाव कायम करने के लिए लगातार प्रयासरत रहे, लेकिन उस दौरान उनकी हत्या कर दी गई। उनका बलिदान उनके समाज के प्रति समर्पण और सेवा भावना का प्रतीक है।

 
 
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