छठ महापर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण और कठिन त्योहार है। यह पर्व नियम, संयम और तपस्या का प्रतीक है जो चार दिनों तक चलता है। हालांकि इसकी तैयारियां एक हफ्ते पहले से शुरू हो जाती हैं। छठ पर्व का मूल उद्गम बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र माना जाता है, लेकिन अब यह त्योहार भारत के कई अन्य राज्यों और विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। बिहार और पूर्वांचल के अलावा अन्य क्षेत्रों के लोग भी इस पर्व को श्रद्धा से मानते हैं और छठ व्रत करते हैं।
छठ पर्व और छठ मैया की मान्यताएँ
छठ पर्व मुख्यतः कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन इसके अतिरिक्त चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि को भी छठ का व्रत किया जाता है, जिसे चैती छठ कहा जाता है। ये दोनों छठ पर्व भगवान सूर्य और षष्ठी माता को समर्पित होते हैं। इसलिए इस पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और छठ मैया की पूजा-अर्चना की जाती है।
छठ पूजा की कथा
कथा के अनुसार छठ मैया ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन भी। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और सुख देने वाली देवी माना जाता है। वहीं सूर्यदेव अन्न और समृद्धि के देवता हैं। जब खरीफ और रवि की फसल कट जाती है तो इस अवसर पर सूर्यदेव को आभार प्रकट करने के लिए छठ पर्व मनाया जाता है, जो चैत्र और कार्तिक माह में आता है।
छठ पर्व के चार दिनों का महत्व
छठ पूजा का आरंभ नहाय-खाय से होता है। पहले दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान करते हैं और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन खरना मनाया जाता है, जिसमें व्रती दिनभर निर्जल रहते हैं और शाम को गुड़ की खीर, रोटी तथा फल का भोग लगाते हैं। तीसरे दिन सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। चौथे दिन, जो सप्तमी तिथि होती है, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त किया जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
छठ पूजा की तिथियाँ (2025 में)
नहाय-खाय: 25 अक्टूबर 2025, शनिवार
खरना: 26 अक्टूबर 2025, रविवार
संध्या अर्घ्य: 27 अक्टूबर 2025, सोमवार
प्रातःकालीन अर्घ्य: 28 अक्टूबर 2025, मंगलवार
छठ पूजा का महत्व
छठ व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है क्योंकि इस दौरान श्रद्धालुओं को कई सख्त नियमों का पालन करना होता है। यह व्रत परिवार की खुशहाली, संतान की दीर्घायु और रोगमुक्त जीवन के लिए किया जाता है। सूर्य की आराधना से जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।
छठ पूजा का प्रसाद
प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फल और नारियल का उपयोग किया जाता है। सभी प्रसाद शुद्ध सामग्री से बनाए जाते हैं और सूर्य देव को अर्पित किए जाते हैं।
छठ पूजा के पारंपरिक गीत
"कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये..."
"उग हो सूरज देव, भइल अर्घ के बेर..."
"केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव..."
"पटना के घाट पर, भोर के बेला..."
"हे छठी मैया, हम बानी तोहार पुजारी..."
छठ पूजा के आधुनिक गीत
"पार करो हे गंगा मइया, हमके पार करो..."
"छठी मईया आओ, अर्घ ले लो..."
"सूरज देव जी हे, आशीष दीजिये..."
इस तरह छठ महापर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह परिवार, समाज और प्रकृति के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का भी अवसर है।
