6 सितम्बर 1965 में हिंद की सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान को लाहौर तक ठोका था
06 सितंबर, सन् 1965 का दिन भारत–पाक युद्ध के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है,
क्योंकि इस दिन हिंद की सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान को लाहौर तक ठोका था।भारतीय सेना ने पाकिस्तान के पंजाब और राजस्थान मोर्चों पर बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान छेड़ा था। भारतीय जवानों ने लाहौर और सियालकोट की ओर तीव्रता से बढ़ते हुए अनेक रणनीतिक क्षेत्रों पर कब्जा किया और पाकिस्तान की सैन्य शक्ति को धूल चटाई थी।
सन् 1965 का भारत -पाकिस्तान युद्ध भारतीय इतिहास में इसलिए भी महत्वपूर्ण है,इस युद्ध में भारत की विजय ने, सन् 1962 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु और कांग्रेस की कूटनीतिक,राजनीतिक,और रणनीतिक विफलताओं और मूर्खता के कारण जन्मे भारत-चीन युद्ध में भारतीय सेना की पराजय के बाद,भारतीय सेना के टूटे आत्मविश्वास, मनोबल,बिखरे गौरव और पराजय के मनोविज्ञान से मुक्त कर, पुनः भारतीय सेना की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को पुर्नस्थापित किया,तदुपरान्त हिंद की सेना अपराजेय है।
भारत-पाकिस्तान युद्धों से लेकर पहलगाम हमले तक की असली जड़,पंडित जवाहरलाल नेहरु और उनके चाटुकार सहयोगियों की असफल कश्मीर नीति ही रही है,जिसका खामियाजा भारत आज भी भुगत रहा। पहलगाम हमले के बाद भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा था, कि यदि सन् 1948 में पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने सरदार वल्लभभाई पटेल के सुझाव मान लिए होते तो पहलगाम अटैक न झेलना पड़ता।
सन् 1965 के भारत -पाकिस्तान युद्ध की पूर्णपीठिका भी कश्मीर मसले से ही उदभूत है।कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में उठाया जाए, सरदार पटेल इस बात के घोर विरोधी थे।उनका अभिमत था, कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की आवश्यकता नहीं है। सरदार पटेल ने लार्ड माउंटबेटन के सामने भी कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय विषय मानने से इनकार किया था और कहा था कि इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाना रणनीतिक भूल होगी. उन्होंने कहा था -If Hyderabad is our internal matter, so is Kashmir.’ अर्थात् "यदि हैदराबाद हमारा आंतरिक मसला है,तो कश्मीर भी है।" लेकिन नेहरु जी का कश्मीर प्रेम प्रकारान्तर से इतना उमड़ा,कि उन्होंने सरदार पटेल की एक नहीं सुनी और 1 जनवरी 1948 को कश्मीर का मामला भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में उठाया गया।यहाँ तक की यह जानकारी जानबूझकर सरदार पटेल को विलम्ब से दी गई।
बहरहाल अब युद्ध की ओर चलते हैं, आज के दिन "जय जवान का नारा बुलंद हुआ"और राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एवं थल सेनाध्यक्ष जनरल जे.एन.चौधरी के नेतृत्व में सन् 1965 के युद्ध में पाकिस्तान(युद्ध के जिम्मेदार अयूब खान, मूसा खान एवं टिक्का खान) के विरुद्ध,भारतीय सेना ने पंजाब फ्रंट खोल दिया - आपरेशन जिब्राल्टर की धज्जियाँ उड़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर, लाहौर की ओर कूच किया। वर्ष के नौवें महीने का छठा दिन देश के इतिहास में सेना के शौर्य की याद दिलाता है।
पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर(Operation Gibraltar) का भारतीय सेना (Indian Army) ने 6 सितंबर 1965 को मुंहतोड़ जवाब दिया था। ऑपरेशन जिब्राल्टर पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने की रणनीति का कोड वर्ड था। जो भारतीय शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू करने के लिए किया गया था। सफल होने पर, पाकिस्तान को कश्मीर पर नियंत्रण हासिल करने की उम्मीद थी लेकिन उसके लिए यह अभियान एक बड़ी विफलता साबित हुआ। इसके जवाब में 6 सितंबर 1965 को भारतीय सैनिकों ने कार्रवाई की। अंतत: युद्ध छिड़ा और उसमें भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी।
उत्तर असल का युद्ध (Battle of Asaal north) विश्व के प्रसिद्ध युद्धों में गिना जाता है, क्योंकि यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद टेंकों का सबसे बड़ा युद्ध था। यह युद्ध 8 से 10 सितंबर के मध्य लड़ा गया। पाकिस्तान ने खेमकरण सेक्टर में अमेरिका के 100 से अधिक उन्नत पेटन टेंकों को उतारा, परन्तु भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए 100 पैटन टेंकों की धज्जियाँ उड़ाते हुए, शानदार विजय प्राप्त की। आज भी खेमकरण के उस क्षेत्र को" पैटन नगर" के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में भारत ने स्वदेशी तकनीक का भी इस्तेमाल किया और अमेरिका को अपने पैटन टैंकों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
पाकिस्तान के आपरेशन डेजर्ट हाक की कमर पहले ही तोड़ दी थी और आपरेशन ग्रेंड स्लेम को भी ध्वस्त कर दिया। 23 सितंबर को पाकिस्तान ने पूर्ण रुप से घुटने टेक दिए। भारत ने पाकिस्तान के 1500 वर्ग मील (3885वर्ग किलोमीटर) क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जबकि पाकिस्तान ने 210वर्ग मील (648 वर्ग किलोमीटर) का असत्य दावा किया, परंतु 11 जनवरी 1966 में ताशकंद समझौते के चलते भारत ने पाकिस्तान को भूमि वापस कर दी।
यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहा और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु आज भी रहस्यमयी बनी हुई है। सूत्र बताते हैं,कि प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री अडिग थे, कि भूमि तभी वापस होगी जब पाकिस्तान कश्मीर अधिकृत क्षेत्र भारत को समर्पित करेगा तथा और भी बहुत कुछ था। परंतु ये बात कुछ वंशानुगत शासकों को रास नहीं आई, इसलिए विजय के बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का बलिदान हुआ।
डॉ आनंद सिंह राणा,