भारत में इस दिन को एक जागरूकता अभियान के रूप में मनाया जाता है, जहां समाज के सभी वर्गों को शिक्षा से जोड़ने की कोशिश की जाती है। यह केवल सरकारी औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक जन-जागरण है, जिसे सरकारी योजनाओं और सामूहिक प्रयासों से आगे बढ़ाया जाता है। जैसे सर्व शिक्षा अभियान, नवभारत साक्षरता कार्यक्रम, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, और डिजिटल इंडिया—ये सभी योजनाएं देश के हर नागरिक तक शिक्षा पहुंचाने का संकल्प दर्शाती हैं।
‘साक्षरता’ का अर्थ सिर्फ अक्षरज्ञान नहीं है। इसका दायरा अब इतना व्यापक हो गया है कि इसमें तकनीकी समझ, डिजिटल जानकारी, और मीडिया साक्षरता भी शामिल हो गई है। यानी आज साक्षर वही है, जो न सिर्फ पढ़-लिख सके, बल्कि उपलब्ध जानकारी को समझकर उसका व्यवहारिक रूप से सही उपयोग भी कर सके।
इस दिन की शुरुआत 1965 में ईरान की राजधानी तेहरान में आयोजित एक वैश्विक शैक्षिक सम्मेलन के विचार से हुई थी। इसके बाद यूनेस्को ने 1966 में 8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में घोषित किया। पहली बार यह दिन 1967 में मनाया गया और तब से यह दुनिया भर में शिक्षा के प्रसार और निरक्षरता के खिलाफ एक वैश्विक संदेश बन गया है।
साल 2025 की थीम है: "डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना"। यह विषय आज की बदलती दुनिया में शिक्षा की नई ज़रूरतों को समझने और डिजिटल माध्यमों से सशक्त बनाने पर बल देता है। इससे पहले 2024 की थीम थी: "बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना: आपसी समझ और शांति के लिए साक्षरता", जिसमें भाषाई विविधता के माध्यम से समावेशिता की बात की गई थी।
आज भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। 2025 तक देश की औसत साक्षरता दर 80% से ऊपर पहुंच चुकी है। पुरुषों की दर लगभग 84% है, जबकि महिलाओं में यह आँकड़ा करीब 76% तक पहुंच गया है। केरल अब भी सबसे अधिक शिक्षित राज्य है, वहीं मिजोरम, गोवा, और त्रिपुरा जैसे राज्य पूर्ण साक्षरता की दिशा में अग्रसर हैं। दूसरी ओर, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों को अभी भी शिक्षा के क्षेत्र में और प्रयासों की आवश्यकता है, लेकिन वहां भी बदलाव की गति तेज हो रही है।
साक्षर होना सिर्फ शब्दों को पहचानना नहीं, बल्कि अपने जीवन को संवारने की क्षमता प्राप्त करना है। शिक्षा व्यक्ति को न केवल आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि उसे समाज में समान अवसर पाने का अधिकार भी देती है। यह जागरूकता का द्वार खोलती है, और सामाजिक असमानताओं को मिटाने की दिशा में मजबूत कदम होती है।
8 सितंबर केवल एक तारीख नहीं है, यह एक प्रेरणा है—हर व्यक्ति तक ज्ञान की रोशनी पहुँचाने की। इस दिन हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि न केवल खुद सीखें, बल्कि दूसरों को भी सिखाने और प्रेरित करने की दिशा में योगदान दें।