प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन कि “मध्यप्रदेश पर्यटन भारत की अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार करेगा” केवल एक औपचारिक प्रशंसा भर नहीं है, देखा जाए तो यह उस गहन परिवर्तन की ओर संकेत है जो राज्य ने पिछले कुछ वर्षों में पर्यटन के क्षेत्र में किया है। आज जब वैश्विक परिदृश्य में पर्यटन उद्योग अर्थव्यवस्था की धुरी, रोजगार का प्रमुख स्रोत और सांस्कृतिक कूटनीति का माध्यम बन चुका है, तब मप्र का यह उदय राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक संदर्भ में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मप्र की धरती पर नजर डालें तो यह मानो भारत का एक सजीव मिनिएचर प्रतीत होती है। यहां की सांस्कृतिक विविधता, प्राचीन धरोहरें, प्राकृतिक सौंदर्य, जनजातीय जीवन और आध्यात्मिक वातावरण सभी मिलकर एक ऐसी समृद्ध विरासत का निर्माण करते हैं जो पर्यटकों को अद्भुत अनुभव प्रदान करती है। खजुराहो में बाहर से अंदर की यात्रा कराते कामुक शिल्प से लेकर भीमबेटका की गुफा चित्रकल, सांची के स्तूप, ग्वालियर-ओरछा के भव्य किले, सतपुड़ा की गहरी वादियों से लेकर बांधवगढ़ और कान्हा के बाघों तक यह प्रदेश पर्यटन के हर आयाम को अपने भीतर समेटे हुए है। किंतु इस विरासत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का कार्य केवल प्राकृतिक उपहारों से नहीं हुआ है, उसके लिए दूरदृष्टि, प्रशासनिक इच्छाशक्ति और सतत प्रयास आवश्यक रहे हैं।
अभी हाल ही में केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड (एमपीटीबी) को प्रतिष्ठित बेस्ट स्टेट टूरिज्म बोर्ड अवॉर्ड से सम्मानित किया है। इस राष्ट्रीय स्तर के सम्मान ने भारत के पर्यटन क्षेत्र में नवाचार, उत्कृष्टता और सतत विकास को लेकर मध्य प्रदेश की अग्रणी भूमिका को रेखांकित किया है। इस तरह के अनेक सम्मान एवं पुरस्कार लगातार मप्र को पर्यटन क्षेत्र में मिल रहे हैं। वास्तव में यही वह बिंदु है जहां राज्य के पर्यटन विभाग और विशेष रूप से अपर मुख्य सचिव पर्यटन, संस्कृति, गृह और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व तथा प्रबंध संचालक, मप्र टूरिज्म बोर्ड शिव शेखर शुक्ला के नेतृत्व को रेखांकित करना जरूरी हो जाता है। प्रशासनिक सेवा में अपने व्यापक अनुभव और गहन समझ के कारण शुक्ल ने पर्यटन को केवल सरकारी विभाग की गतिविधि न मानकर इसे राज्य की अर्थव्यवस्था और समाज का केंद्र बिंदु बनाने का प्रयास किया। उनके प्रयासों ने यह सिद्ध किया कि यदि नियोजन और क्रियान्वयन में स्पष्टता हो तो किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन संभव है।
सबसे पहले बात करें दृष्टिकोण की। शिव शेखर शुक्ला ने पर्यटन को एक समग्र विकास उपकरण के रूप में देखने की सोच विकसित की। उनके लिए पर्यटन केवल होटल या गाइड तक सीमित नहीं था, बल्कि यह ग्रामीण आजीविका, महिला सशक्तिकरण, हस्तशिल्प संवर्द्धन और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा एक समग्र अभियान था। यही कारण है कि उन्होंने पर्यटन स्थलों को विकसित करते समय स्थानीय समुदाय को केंद्र में रखा। चाहे ओरछा में होमस्टे मॉडल की शुरुआत हो या भील व गोंड अंचलों में सांस्कृतिक महोत्सवों का आयोजन, इन पहलों ने न केवल पर्यटकों को आकर्षित किया बल्कि स्थानीय लोगों के लिए स्थायी आजीविका भी सुनिश्चित की।
पर्यटन की आधुनिक अवधारणा में अनुभव आधारित यात्रा (Experience-based tourism) की बड़ी भूमिका है। शुक्ल ने इस प्रवृत्ति को भलीभांति समझा और राज्य में नाइट सफारी, हेरिटेज वॉक, एडवेंचर ट्रेल्स और कुलिनरी फेस्टिवल्स जैसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया। इससे एक ओर जहां पर्यटक केवल दर्शक न रहकर सहभागी बन पाए, वहीं दूसरी ओर राज्य ने खुद को एक ब्रांड के रूप में स्थापित किया। “एमपी गजब है” जैसी टैगलाइन को नई ऊर्जा मिली और यह केवल एक विज्ञापन वाक्य नहीं रहा, बल्कि वास्तविक अनुभवों से जुड़कर पर्यटकों के मन में बसा।
आधुनिक तकनीक के प्रयोग में भी शुक्ल ने खास पहल की। डिजिटलीकरण के युग में पर्यटन को यदि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे लाना है तो तकनीक का उपयोग अनिवार्य है। शुक्ल ने डिजिटल कैंपेन, वर्चुअल टूर और ऑनलाइन बुकिंग पोर्टल को बढ़ावा दिया। कोविड-19 महामारी के दौरान जब यात्रा ठप हो गई थी, तब मप्र पर्यटन विभाग ने वर्चुअल प्लेटफॉर्म के जरिए पर्यटकों से जुड़ाव बनाए रखा। यह दूरदृष्टि ही थी जिसने राज्य को महामारी के बाद तेजी से उबरने में मदद की।
आज राज्य की पहचान ईको-टूरिज्म से भी है। सतपुड़ा, बांधवगढ़, कान्हा, पेंच जैसे राष्ट्रीय उद्यान विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं। किंतु चुनौती यह थी कि इन उद्यानों के विकास और संरक्षण के साथ-साथ वहां रहने वाले स्थानीय समुदायों को भी जोड़ा जाए। शुक्ल ने इस दिशा में ईको-टूरिज्म बोर्ड की गतिविधियों को मजबूती दी। अब गांवों में ईको हॉटल्स, गाइड प्रशिक्षण और स्थानीय हस्तशिल्प विपणन जैसी योजनाओं के जरिए वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया जा रहा है।
इसी तरह से संस्कृति और पर्यटन का गहरा संबंध है। शुक्ल ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए खजुराहो डांस फेस्टिवल, तांगा महोत्सव, ओरछा महोत्सव और मंडला आदिवासी उत्सव जैसे आयोजनों को नया आयाम दिया। इन आयोजनों ने एक ओर जहां देश-दुनिया के कलाकारों को मंच दिया, वहीं दूसरी ओर राज्य की विविधतापूर्ण सांस्कृतिक आत्मा को वैश्विक पहचान दिलाई। इसके लिए विदेशों में रोड शो, अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल मार्ट्स में भागीदारी और एमपी टूरिज्म की आक्रामक मार्केटिंग के माध्यम से राज्य की उपस्थिति को दर्ज कराया गया। परिणामस्वरूप मप्र न केवल घरेलू पर्यटकों का प्रिय गंतव्य बना है, बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
आंकड़े बताते हैं कि 2024 में राज्य ने लगभग 13.41 करोड़ पर्यटकों का स्वागत किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में करीब 19.6 प्रतिशत अधिक है। इनमें विदेशी पर्यटकों की संख्या लगभग 1.67 लाख रही। राज्य सरकार के अनुसार पर्यटन से प्राप्त राजस्व में वर्ष 2024-25 के दौरान 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई, और इसका योगदान प्रदेश की सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3 से 3.5 प्रतिशत तक रहा है। अब लक्ष्य इसे आगामी वर्षों में 5 प्रतिशत तक पहुँचाने का है। अत: पर्यटन में बढ़ते निवेश का सीधा असर रोजगार पर दिखाई दे रहा है। वैश्विक निवेश सम्मेलन 2025 में पर्यटन क्षेत्र से जुड़े प्रस्तावों की राशि लगभग ₹4,468 करोड़ रही। एक अध्ययन के अनुसार, पर्यटन क्षेत्र में प्रत्येक ₹10 लाख का निवेश औसतन 90 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियाँ सृजित करता है। इस पैमाने पर देखें तो यदि घोषित निवेश पूरी तरह लागू होता है, तो लाखों नए रोजगार अवसर पैदा हो सकते हैं।
इसी बीच, मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड ने कौशल विकास कार्यक्रमों पर भी जोर दिया है। अब तक 4000 से अधिक युवाओं को हॉस्पिटैलिटी, ट्रैवल मैनेजमेंट और सांस्कृतिक आयोजनों से जुड़े कौशलों का प्रशिक्षण दिया गया है। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत युवा पूर्णकालिक पेशेवर के रूप में कार्यरत हो चुके हैं। यह संकेत है कि पर्यटन न केवल बड़े निवेश से बल्कि मानवीय संसाधन विकास से भी रोजगार का मजबूत आधार तैयार कर रहा है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह वही परिदृश्य है, जिसकी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत करते हुए कहा था कि “मध्यप्रदेश पर्यटन भारत की अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार करेगा।” वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मध्यप्रदेश पर्यटन की प्रशंसा इसीलिए सार्थक है क्योंकि यह केवल प्राकृतिक सौंदर्य की देन नहीं, बल्कि योजनाबद्ध प्रशासनिक प्रयासों का परिणाम है। जिसमें शिवशेखर शुक्ल जैसे अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भूमिका अग्रगण्य है। निश्चित ही आज शुक्ल के नेतृत्व में पर्यटन विभाग ने यह सिद्ध किया है कि यदि ईमानदारी और समर्पण से काम हो तो भारत के किसी भी राज्य को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित किया जा सकता है।
अंततः यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मध्यप्रदेश पर्यटन की इस नई उड़ान के केंद्र में शिवशेखर शुक्ल जैसे अधिकारी की दूरदृष्टि और समर्पण प्रमुख कारक है। उनका कार्य हमें यह विश्वास दिलाता है कि यदि नेतृत्व सही हो, दृष्टिकोण स्पष्ट हो और प्रयास निरंतर हों तो कोई भी राज्य अपनी सीमाओं से निकलकर वैश्विक क्षितिज पर चमक सकता है।
(लेखक - डॉ. मयंक चतुर्वेदी राष्ट्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं)