बलरामपुर, 25 अक्टूबर । लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत आज नहाय-खाय के साथ पूरे उत्साह और श्रद्धा से हो गई। बलरामपुर जिले के रामानुजगंज स्थित जीवनदायिनी कन्हर नदी के तट पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। इस पवित्र नदी में डुबकी लगाकर श्रद्धालुओं ने अपने व्रत की शुरुआत की और सूर्य देव से सुख-समृद्धि की कामना की।
यहां हर वर्ष की तरह इस बार भी छठ घाटों पर छत्तीसगढ़ और झारखंड दोनों राज्यों के श्रद्धालु एक साथ आस्था की डोर में बंधे नजर आए। नदी तट पर भक्ति, लोकगीतों और पारंपरिक रीति-रिवाजों की गूंज से पूरा वातावरण आध्यात्मिक बना हुआ है।
रामानुजगंज के मुख्य छठ घाटों शिव मंदिर घाट, महामाया मंदिर घाट और राम मंदिर घाट पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। महिलाएं नई साड़ियां पहनकर, टोकरी में फल, गुड़ और सूप लेकर नदी की ओर जाती दिखीं। घाटों पर नगर पालिका की ओर से सफाई, प्रकाश व्यवस्था और सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम किए गए हैं।
स्थानीय श्रद्धालु गीता देवी ने बताया, हम हर साल यहीं कन्हर नदी में छठ करते हैं। यहां की मिट्टी में ही भक्ति बसती है। जब तक प्राण हैं, यहीं से सूर्य देव को अर्घ्य देंगे।
झारखंड के गढ़वा से आए व्रती संजय प्रसाद ने कहा, कन्हर नदी हम सबकी साझा आस्था का प्रतीक है। यहां दो राज्यों के लोग मिलकर पूजा करते हैं यही इसकी खूबसूरती है।
नगर पालिका अध्यक्ष रमन अग्रवाल ने कहा, छठ पर्व हमारी सांस्कृतिक पहचान है। श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए सभी घाटों पर सफाई, बिजली और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
कल खरना, फिर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य
नहाय-खाय के साथ आज से छठ पर्व की शुरुआत हो चुकी है। कल यानी रविवार को व्रती महिलाएं खरना करेंगी, जिसमें गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद तैयार किया जाएगा। इसके बाद अगले दो दिन डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व संपन्न होगा।
छठ घाटों पर गूंजे भक्ति गीत, गहराया माहौल
सुबह से ही घर-घर में पारंपरिक लोकगीतों की स्वर लहरियां गूंजने लगीं केतकी के फूलवा से सजल छठी मईया... बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी के चेहरों पर आस्था और उत्साह झलक रहा है। रामानुजगंज की कन्हर नदी एक बार फिर आस्था का साक्षी बन गई है। दो राज्यों की सीमाएं यहां मिट जाती हैं, जब श्रद्धा की लहरें एक साथ सूर्य देव के चरणों में अर्घ्य चढ़ाती हैं।
आस्था और सूर्य उपासना का पर्व
छठ पूजा सूर्य देव और माता छठी मइया की उपासना का पर्व है, जो सूर्य की उपासना और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि सूर्य की आराधना से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत की शुरुआत त्रेतायुग में माता सीता ने की थी, जब उन्होंने रामराज्य स्थापना के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दिया था। इसके अलावा महाभारत काल में कुंती और द्रौपदी द्वारा भी इस व्रत के पालन का उल्लेख मिलता है।
छठ पर्व का वैज्ञानिक पहलू भी है सूर्य किरणों से शरीर में ऊर्जा और विटामिन-D का संतुलन बनता है, इसलिए इसे आध्यात्मिक और स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व भी माना जाता है।
रामानुजगंज की श्रद्धालु पुष्पा देवी कहती हैं, छठ मइया के बिना जीवन अधूरा है। हम सूर्य देव को अर्घ्य देकर अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। ये सिर्फ व्रत नहीं, आस्था का उत्सव है।
छठ पूजा यह सिखाती है कि सूर्य केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि जीवन का भी आधार है। यही कारण है कि यह पर्व हर वर्ष श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है।
