अंबिकापुर, 27 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ का सरगुजा जिला अब सिर्फ अपने ठंडे मौसम या हरियाली के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यटन की नई पहचान के रूप में भी जाना जाने लगा है। घने जंगलों, झरनों, गुफाओं और ऐतिहासिक धरोहरों से भरपूर यह क्षेत्र अब देशभर के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
अंबिकापुर से लेकर मैनपाट की ऊंची पहाड़ियों तक फैले इस इलाके में प्रकृति ने अपनी सुंदरता खुलकर बिखेरी है। यहां की ठंडी हवाएं, हरियाली, और शांत वातावरण सैलानियों को शहरों के शोर-शराबे से दूर सुकून का अहसास कराते हैं।
मैनपाट: मिनी शिमला का सौंदर्य
मैनपाट को छत्तीसगढ़ का “मिनी शिमला” कहा जाता है। समुद्र तल से लगभग 1,078 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान गर्मी के मौसम में भी बेहद ठंडा रहता है। यहां का टाइगर पॉइंट झरना, परपटिया व्यू पॉइंट, जलजली और बूढ़ा देव मंदिर प्रमुख आकर्षण हैं।
यहां तिब्बती समुदाय का भी एक बड़ा इलाका है, जो अपने हस्तनिर्मित ऊनी कपड़ों और बौद्ध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। सर्दियों के दौरान यहां बर्फ जैसी ठंड का अनुभव होता है, जिससे हर साल हजारों पर्यटक यहां का रुख करते हैं।
जलजली और टाइगर पॉइंट: रोमांच प्रेमियों का ठिकाना
जलजली एक अनोखा स्थल है, जहां जमीन पर पैर रखते ही धरती हिलती हुई महसूस होती है। इसे “जीवित धरती” भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक दलदली इलाका है, लेकिन सैलानियों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं। वहीं टाइगर पॉइंट झरना अपनी ऊंचाई और आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य के कारण पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है।
ग्राम पंचायत बटई के निवासी लालधर यादव बताते हैं कि, पहले यहां सिर्फ आसपास के गांवों के लोग आते थे, लेकिन अब बाहर के शहरों से भी सैलानी आने लगे हैं। सड़कें सुधरने के बाद पर्यटक आसानी से पहुंच पाते हैं। हम लोग अब अपने घरों में होमस्टे की व्यवस्था भी कर रहे हैं, जिससे हमें रोज़गार मिल रहा है।
धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरें
सरगुजा सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य से नहीं, बल्कि अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत से भी समृद्ध है। देवी कुदरगढ़ मंदिर, सीताबेंगरा और जयगढ़ की गुफाएं, महेशपुर का ऐतिहासिक किला और रामगढ़ की पुरातात्विक गुफाएं इस क्षेत्र की पहचान हैं।
सीताबेंगरा की गुफा को रामायण काल से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि सीता माता ने वनवास के दौरान कुछ समय यहां बिताया था। महेशपुर किला छत्तीसगढ़ की प्राचीन स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां आज भी पुराने समय के अवशेष देखने को मिलते हैं।
गांव के ही एक बुजुर्ग शिवदयाल पांडेय कहते हैं कि, हमारे पुरखों से सुना है कि इन गुफाओं में भगवान राम और सीता माता का निवास रहा था। अब जब यहां सैलानी आते हैं, तो हमें गर्व होता है कि हमारे इलाके का इतिहास लोगों तक पहुंच रहा है।
प्रशासन की पहल
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन ने कई योजनाएं शुरू की हैं। अंबिकापुर से मैनपाट तक नई सड़कें बन रही हैं, पर्यटन स्थलों पर दिशा-सूचक बोर्ड लगाए जा रहे हैं और ठहरने की सुविधाएं सुधारी जा रही हैं।
स्थानीय हस्तशिल्प जैसे बांस से बने उत्पाद, लकड़ी की कारीगरी और पारंपरिक भोजन जैसे चुसेल, ठेठरी, खुरमी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
स्थानीय समाजसेवी संतोष मिश्रा ने बताया,
सरगुजा की प्राकृतिक सुंदरता पूरे वर्ष सैलानियों को आमंत्रित करती है। हमारा उद्देश्य है कि यहां के सभी पर्यटन स्थलों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले। उन्हाेंने कहा सरगुजा में पर्यटन बढ़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। मैनपाट, कुदरगढ़ और जलजली जैसे इलाकों में अब ग्रामीण अपने खेतों के पास छोटे दुकान, चाय ठेले और होमस्टे चला रहे हैं।
ग्राम कोरवा की सीमा टोप्पो बताती हैं,
हम पहले खेती पर ही निर्भर थे, लेकिन अब हमारे गांव में पर्यटक आने लगे हैं। मैंने अपने घर के दो कमरे सैलानियों के ठहरने के लिए तैयार किए हैं। इससे घर की आमदनी बढ़ी है और बच्चों की पढ़ाई में भी मदद मिल रही है।
सरगुजा की भौगोलिक बनावट, जंगलों की हरियाली और लोक संस्कृति इसे एक अनोखा पर्यटन सर्किट बना रहे हैं। यहां के आदिवासी नृत्य, लोकगीत और पारंपरिक मेले अब पर्यटन का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
राज्य सरकार की योजना है कि सरगुजा को उत्तर छत्तीसगढ़ पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया जाए, जिसमें मैनपाट, कुदरगढ़, सीताबेंगरा और रामगढ़ को जोड़ने वाला ईको-ट्रेल बनाया जाएगा।
सरगुजा अब सिर्फ एक जिला और संभाग नहीं, बल्कि प्रकृति, संस्कृति और इतिहास का संगम बन चुका है। यहां की पहाड़ियां, झरने और लोगों की आत्मीयता सैलानियों के दिल में अमिट छाप छोड़ जाती है।
प्रशासन की योजनाएं और स्थानीयों का सहयोग मिलकर सरगुजा को छत्तीसगढ़ का अगला बड़ा पर्यटन केंद्र बना रहे हैं, जहां हर मौसम में प्रकृति मुस्कुराती है और हर मुसाफिर को सुकून मिलता है।
