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बड़ा बनना है तो दूसरों को उठाना सीखो, गिराना नहीं - अज्ञात

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चाणक्य नीति :- दुष्कर्मी नरक भोगते हैं-

Date : 10-Sep-2025

अत्यन्तलेपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ।

 

नीच प्रसंगः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् ॥ 

आचार्य चाणक्य दुष्ट या नीच कर्म करनेवाले व्यक्ति को नरक का अधिकारी होने के संदर्भ में कहते हैं कि अत्यन्त क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा-नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं।

आशय यह है कि दुष्ट व्यक्ति अत्यन्त क्रोधी स्वभाव का होता है। उसकी वाणी कड़वी होती है, उसके मुंह से मीठे बोल निकल ही नहीं सकते। वह सदा दरिद्र-गरीब ही रहता है। औरों की बात ही छोड़िए, उसकी अपने परिवार वालों से भी शत्रुता ही रहती है। नीच लोगों का साथ और ऐसे ही लोगों की सेवा करना ही उसका काम होता है। जिस व्यक्ति में ये सब अवगुण दिखाई दें उसे किसी नरक की आत्मा का अवतार समझना चाहिए।

गम्यते यदि मुगेन्द्रमन्विरे लभ्यते करिकपोलमौक्तिकम् ।

 

जम्बुकाश्रयगतं च प्राप्यते वत्सपुच्छखरचर्मखण्डम् ॥ 

संगति के प्रभाव को दर्शाते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि कोई सिंह की गुफा में जाए, तो उसे वहां हाथी के कपोल का मोती प्राप्त होता है। यदि वही व्यक्ति गीदड़ की मांद में जाए, तो उसे बछड़े की पूंछ तथा गधे के चमड़े का टुकड़ा ही मिलेगा। आशय यह है कि शेर की गुफा में जाने पर व्यक्ति को हाथी की खोपड़ी का मोती

मिलता है, जबकि वही व्यक्ति गीदड़ की मांद में जाता है, तो वहां उसे केवल बछड़े की पूंछ या गधे के चमड़े का टुकड़ा ही मिल सकता है। कहने का आशय यह है कि यदि व्यक्ति महान् लोगों का साथ करता है, तो उसे ज्ञान की बातें सीखने को मिलती हैं, जबकि नीच-दुष्ट लोगों की संगति करने पर केवल दुष्टता ही सीखी जा सकती है। अतः सज्जनों का ही साथ करना चाहिए।

 

 

 
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