प्रयागराज, 14 जनवरी । तीर्थों के तीर्थ प्रयागराज में आज सुबह महाकुंभ का प्रथम अमृत स्नान शुरू हुआ। गंगा और यमुना के तटों के साथ समूचा प्रयाग क्षेत्र हर-हर गंगे और हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान है। चहुं ओर सभी दिशाओं में अखाड़ों के धर्म ध्वजा लहरा रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रथम अमृत स्नान पर कहा है कि यह हमारी सनातन संस्कृति और आस्था का जीवंत स्वरूप है। उन्होंने लोक आस्था के महापर्व मकर संक्रांति पर महाकुंभ-2025 में प्रथम अमृत स्नान कर पुण्य अर्जित करने वाले सभी श्रद्धालुजनों का अभिनंदन किया है। उनके आधिकारिक एक्स हैंडल पर आस्था की डुबकी के कुछ विहंगम दृश्य साझा किए गए हैं।
प्रथम अमृत स्नान के मौके पर अखाड़ों के संतो का दर्शन करने के लिए उमड़ा जनसैलाब
महाकुम्भ नगर, 14 जनवरी । हर हर महादेव , हर गंगे के जयकारे के साथ मकर संक्रांति के अवसर पर महाकुंभ 2025 का अमृत स्नान शुरू हो चुका है। मंगलवार भोर में सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी अपनी प्राचीन परम्पराओं एवं बैंड बाजे के साथ भव्य
दिव्य रथों पर सवार होकर अखाड़ों के प्रमुख संत एवं नागा सन्यासी पतित पावनी मां गंगा के संगम तट पर पहुंचे। पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने माला पहनाकर स्वागत किया। अखाड़ों के संत धर्म ध्वजा लेकर चल रहे हैं।
हर हर गंगे और हर हर महादेव के जयकारे से पूरा संगम तट गुंजायमान हो गया। अखाड़ों के संतों का भव्य शाही स्नान देखने वाले लाखों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। नागा संत एवं अखाड़ों के प्रमुख संतों के स्नान शुरू होते ही संगम तट पर बने हर घाट पर लाखों स्नानार्थियों का हुजूम उमड़ पड़ा। सुरक्षा के मद्देनजर भारी पुलिस बल एवं पीएसी तैनात की गई है। करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं का रेला लगा हुआ है।
करोड़ों श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर लिया गया ऐतिहासिक निर्णय
महत्वपूर्ण पर्व पर नहीं खुलेगा मंदिर
महाकुम्भ नगर, 12 जनवरी । अमृत स्नान महाकुम्भ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं की सम्भावित भीड़ की सुरक्षा को लेकर श्री बड़े हनुमान जी का शिखर दर्शन कराने का निर्णय लिया गया है। महाकुम्भ के तीनों अमृत स्नान पर्व पर मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। यह निर्णय बड़े हनुमान जी की प्रेरणा से लिया गया है।
यह जानकारी रविवार को मंदिर के श्री महंत बलबीर गिरि महाराज ने दी। उन्होंने महाकुम्भ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं से अपील किया है कि श्रद्धालु अमृत स्नान करने के बाद अपने सामान को सुरक्षित अपने साथ लेकर और अपने जूते चप्पल, अपनी पोटली अथवा बैग में सुरक्षित रखकर ही मंदिर परिसर में प्रवेश करें और शिखर दर्शन करते हुए अपने गंतव्य के लिए रवाना हो जाए। वे अपने बच्चों, परिवार समेत एक साथ मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे और शिखर दर्शन करके अपने घर के लिए रवाना हो जाएंगे।
श्री महंत बलवीर गिरि महाराज ने बताया कि तीर्थराज प्रयागराज में अमृत स्नान महाकुम्भ 13 से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। जिसमें तीन महत्वपूर्ण अमृत स्नान होगा। पहला 14 जनवरी मकर संक्रांति, दूसरा 29 जनवरी मौनी अमावस्या एवं तीसरा 3 फरवरी बसंत पंचमी को आयोजित होगा। इन अमृत स्नान के मौके पर शुभ अवसर पर करोड़ों की संख्या में भक्तगण आएंगे। जिसमें बुजुर्ग, महिला,बच्चे सभी स्नान करने के बाद सभी भक्त श्री बड़े हनुमान जी का दर्शन करना चाहते हैं। ऐसे मौके पर मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर और श्री बड़े हनुमान जी के प्रेरणा से यह निर्णय लिया गया है कि मंदिर के अन्दर प्रवेश नहीं दिया जाएगा और शिखर दर्शन कराकर श्रद्धालुओं को सुरक्षित उनके गन्तव्य को रवाना कर दिया जाएगा।
महाकुम्भ नगर, 11 जनवरी । प्रयागराज महाकुंभ की तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। अखाड़ों के छावनी प्रवेश से लेकर, कल्पवासियों और श्रद्धालुओं का संगम की पवित्र भूमि पर आना लगातार जारी है। 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ में पुण्य का भागी बनने के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने नागा और अघोरी साधु भी पहुंच रहे हैं।
अक्सर नागा और अघोरी साधु को एक ही मान लिया जाता है। सनातन धर्म की अखाड़ा व्यवस्था में नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना जाता है, जबकि अघोरी साधु अपनी अद्भुत और रहस्यमयी प्रथाओं के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, इन दोनों के तप करने के तरीके, जीवनशैली, ध्यान और आहार में भिन्नता होती है, लेकिन यह सत्य है कि दोनों ही शिव की आराधना में संलग्न रहते हैं।
12 वर्षों की कठोर तपस्यानागा साधुओं और अघोरी बाबाओं को अत्यंत कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। साधु बनने के लिए इन्हें लगभग 12 वर्षों की कठोर तपस्या करनी होती है। अघोरी बाबा श्मशान में साधना करते हैं और उन्हें वर्षों तक वहीं समय बिताना पड़ता है।
धर्म के रक्षक नागा साधु‘नागा’ शब्द की उत्पत्ति के संबंध में कुछ विद्वानों का मानना है कि यह संस्कृत के ‘नागा’ से आया है, जिसका अर्थ ‘पहाड़’ होता है। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और शास्त्रों के ज्ञान में निपुण होना है। वे अखाड़ों से जुड़े हुए होते हैं और समाज की सेवा करते हैं साथ ही धर्म का प्रचार करते हैं। ये साधू अपनी कठोर तपस्या और शारीरिक शक्ति के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। नागा साधु धर्म और समाज के लिए काम करते हैं।
मानव खोपड़ी अघोरी साधुओं की खास निशानीअघोरी शब्द का अर्थ संस्कृत में ‘उजाले की ओर’ होता है। अघोरी साधुओं को भगवान शिव का अनन्य भक्त माना जाता है। वह हमेशा अपने साथ एक मानव खोपड़ी रखते हैं, जो उनकी भक्ति का प्रतीक है। भगवान दत्तात्रेय को अघोरी संतों का गुरु माना जाता है, जिन्हें शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा जाता है। ये साधु दुनिया की आम परंपराओं से दूर रहकर जीवन और मृत्यु के रहस्यों को समझने में लगे रहते हैं। अघोरी साधु अपने ध्यान में लीन रहते हैं और केवल भगवान शिव की पूजा करते हैं। इन्हें नागा साधुओं की तरह समाज से कुछ ज्यादा लेना देना नहीं होता।
मांसाहारी और शाकाहारी नागा साधुकुछ नागा साधु मांसाहारी होते हैं, लेकिन कई शाकाहारी भी होते हैं। वहीं, अघोरी बाबा भी भगवान शिव के उपासक होते हैं, लेकिन उनकी साधना का तरीका थोड़ा अलग और डरावना होता है। ये श्मशान भूमि में रहते हैं और अपने शरीर पर श्मशान की राख लगाते हैं। अघोरी बाबा जानवरों की खाल या किसी साधारण कपड़े से शरीर का निचला हिस्सा ढकते हैं।
जबलपुर, 10 जनवरी । मध्य प्रदेश में साहसिक पर्यटन की संभावनाओं को प्रदर्शित करने तथा ऑफ बीट डेस्टिनेशन (अनोखे पर्यटन स्थल) का प्रचार करने के उद्देश्य से 28 बाइकर्स पांच जनवरी को सात दिवसीय यात्रा पर प्रदेश के भ्रमण पर हैं। ‘राइडर्स इन द वाइल्ड-2025’ के तीसरे संस्करण का शुभारंभ भोपाल के पर्यटन विभाग के रिसार्ट ‘विंड एंड वेव्स’ से हुआ। संयुक्त संचालक मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड (एमपीटीबी) संतोष श्रीवास्तव, कार्यपालिक निदेशक पर्यटन निगम अरुण पालीवाल एवं मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों ने फ्लैग ऑफ कर सुपर बाइक रैली को मध्य प्रदेश भ्रमण के लिए रवाना किया।
बाइकर्स आज (शुक्रवार को) को जबलपुर पहुंचेंगे और संभावित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भेड़ाघाट, धुआंधार जलप्रपात पहुंचेंगे और नौका विहार और स्काई डाइनिंग जैसी गतिविधियों का अनुभव करेंगे। इसके बाद राइडर्स भीमबेटका का दौरा करेंगे और 11 जनवरी को भोजपुर मंदिर में इस रैली का समापन होगा।
भारत के हृदयस्थल में बाइकर्स की 7 दिवसीय यात्रा
संयुक्त निदेशक संतोष श्रीवास्तव ने बताया कि ‘राइडर्स इन द वाइल्ड 3.0’ बाइकिंग अभियान भारत के हृदयस्थल में 7 दिवसीय यात्रा पर है। विविध प्रकार के परिदृश्य और सांस्कृतिक अनुभव और रोमांच से भरी इस यात्रा के माध्यम से प्रदेश की प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दिखाया जा रहा है। बाइकर्स भोपाल से राजगढ़ और झालावाड़ होते हुए गांधीसागर फॉरेस्ट रिट्रीट पहुंचे, जहां साल भर चलने वाले आलीशान टेंट सिटी में रात व्यतीत की। इसके बाद, राइडर्स गुना और अशोकनगर होते हुए चंदेरी पहुंचे, जहां उन्होंने चंदेरी की समृद्ध विरासत देखी। पहले क्राफ्ट टूरिज्म विलेज प्राणपुर के अनूठे आकर्षण का अनुभव किया और चंदेरी इको-रिट्रीट टेंट सिटी में रात व्यतीत की। इसके बाद, राइडर्स टीकमगढ़ होते हुए यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल खजुराहो पहुंचे, जहां हेरिटेज वॉक और बुंदेलखंड की जीवंत संस्कृति को अनुभूत किया और अंत में खजुराहो से पन्ना होते हुए, बाइकर्स सतना, रीवा और सीधी होते हुए एमपीटी पारसिली रिसॉर्ट पहुंचे, जहां नंगे पांव रेत पर ट्रैकिंग, पक्षियों का अवलोकन, जंगल सफारी और बाजरा संग्रहालय का दौरा किया तथा मध्य प्रदेश द्वारा पेश किए जाने वाले ग्रामीण भ्रमण का अनुभव करने के लिए एक ग्रामीण होमस्टे में रात व्यतीत की।
28 बाइकर्स भाग ले रहे हैं
दो महिलाओं सहित 28 राइडर्स ने 'राइडर्स इन द वाइल्ड 3.0' बाइकिंग अभियान शुरू किया है। प्रतिभागी मुंबई, हैदराबाद, उदयपुर और राजस्थान सहित भारत भर के विभिन्न स्थानों से हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड ने रैली के साथ एक एम्बुलेंस और चिकित्सा पेशेवरों की एक टीम प्रदान की है।
मध्य प्रदेश को हाल ही में सर्वश्रेष्ठ साहसिक पर्यटन पुरस्कार मिला
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश को अपने बढ़ते साहसिक पर्यटन क्षेत्र के लिए मान्यता मिली है। हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ATOAI) के राष्ट्रीय सम्मेलन में राज्य को "सर्वश्रेष्ठ साहसिक पर्यटन राज्य" के प्रतिष्ठित खिताब से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य की प्रतिबद्धता को और भी रेखांकित करता है।
महाकुम्भ नगर, 9 जनवरी | प्रयागराज में स्थित कई मंदिर न सिर्फ आध्यात्मिक साधना के केंद्र हैं, बल्कि ये लोगों को अच्छाई, नैतिकता और सत्कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं। यह स्थान आस्थाओं और विश्वासों के साथ-साथ जीवन के उच्चतम आदर्शों की ओर मार्गदर्शन करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसी कड़ी में श्री आदिशंकर विमान मंडपम, जिसे शंकराचार्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक अद्वितीय स्थल है। यह मंदिर हिंदू धर्म की गहन आध्यात्मिक परंपराओं और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यह स्थान आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं और हिंदू धर्म की तीन प्रमुख धाराओं-शैव, वैष्णव, और शक्तिवाद-का प्रतीक है।
कांचिकामकोटि के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने करवाया निर्माणमंदिर के प्रबंधक रमणी शास्त्री के अनुसार कांचिकामकोटि के 69वें पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने अपने गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती की इच्छापूर्ति के लिए श्री आदि शंकर विमान मंडपम् का निर्माण कराया। गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने वर्ष 1934 में प्रयाग में चातुर्मास किया था। उन दिनों वो दारागंज के आश्रम में रुके थे। प्रतिदिन पैदल संगम स्नान को आते थे।
उस दौरान बांध के पास उन्हें दो पीपल के वृक्षों के बीच खाली स्थान नजर आया। गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया और स्वयं के तपोबल से यह साबित किया कि इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट के बीच संवाद हुआ था। बाद में यहीं पर कुमारिल भट्ट ने तुषाग्नि में आत्मदाह किया था। रमणी शास्त्री ने बताया कि इसी स्थान पर गुरु चंद्रशेखरेंद्र ने मंदिर बनाने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसे शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने पूर्ण किया।
17 वर्ष लगे मंदिर निर्माण मेंश्री आदि शंकर विमान मंडपम् की नींव वर्ष 1969 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी. गोपाल रेड्डी ने रखी थी। तब इंजीनियर बी. सोमो सुंदरम् और सी. एस. रामचंद्र ने मंदिर का नक्शा तैयार किया था। मंदिर प्रबंधन के साथ उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने भी निर्माण में सहयोग दिया था। जिन 16 पिलर्स पर मंदिर टिका है, उनका निर्माण उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के तत्कालीन असिस्टेंट इंजीनियर कृष्ण मुरारी दुबे की देख-रेख में कराया गया था। 17 मार्च 1986 को मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। श्री आदि शंकर विमान मंडपम् में विग्रह और निर्माण में प्रयोग किए गए पत्थर दक्षिण भारत से लाए गए हैं। मंदिर द्रविड़ियन आर्किटेक्चर का नायाब उदाहरण है।
130 फीट ऊंचा है मंदिर130 फीट ऊंचे इस मंदिर में श्री आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की गई है। देवी कामाक्षी और 51 शक्तिपीठ के अलावा तिरुपति बालाजी और सहस्र योग लिंग के साथ 108 शिवलिंग मंदिर में स्थापित हैं। गणेश जी का मंदिर भी है। इसमें चार मंजिलें हैं, जिनमें प्रत्येक का अपना विशेष धार्मिक महत्व है। मन्दिर की पहली मंजिल पर आदि शंकराचार्य की मूर्तियां स्थापित हैं। दूसरी मंजिल देवी कामाक्षी और 51 शक्तिपीठों को समर्पित है।
तीसरी मंजिल वेंकटेश्वर (बालाजी) और 108 विष्णु-पीठों के लिए है। चौथी मंजिल पर सहस्र योग लिंग और 108 शिवलिंग विराजमान हैं। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की छवियों और रामायण के भित्ति चित्रों की सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर के ऊपरी तलों से संगम का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है।
मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वमंदिर के प्रबंधक रमणी शास्त्री के अनुसार यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण है, जहां शिव मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का नियमित जाप और भजन-कीर्तन होता है। महाशिवरात्रि, श्रावण सोमवार और कार्तिक पूर्णिमा जैसे त्योहार यहां विशेष उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।
महाकुंभ 2025 में विशेष भूमिकाआगामी प्रयागराज महाकुंभ 2025 में यह मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगा। महाकुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के माध्यम से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को जानने का अवसर मिलेगा। प्रयागराज सगम तट पर लेट हनुमान जी के पास श्री आदि शंकर विमान मंडपम स्थित है।