गुरु पूर्णिमा भारत की उन अनमोल सांस्कृतिक परंपराओं में से एक है जो ज्ञान, विनम्रता और आभार की भावना को दर्शाती है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि गुरु और शिष्य के बीच के गहरे और अटूट संबंध का उत्सव है। हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली यह पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास को समर्पित है – जो वेदों के संकलक, महाभारत के रचयिता और हमारी सनातन ज्ञान परंपरा के आदर्श प्रतिनिधि हैं।
महर्षि वेदव्यास को भारतीय इतिहास में "अंतरात्मा के दृष्टा" के रूप में जाना जाता है। उन्होंने वेदों को चार भागों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में विभाजित कर उन्हें व्यवस्थित किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने पुराणों की रचना की और महाभारत जैसे महान ग्रंथ की भी रचना की, जिसमें भगवद गीता जैसे आध्यात्मिक गूढ़ रहस्य समाहित हैं। वे केवल एक लेखक नहीं, बल्कि एक सच्चे गुरु थे, जिन्होंने मानवता को धर्म, कर्म और मोक्ष का मार्ग दिखाया।
भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। "गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः..." यह श्लोक केवल शब्द नहीं, बल्कि एक गहरा दर्शन है – गुरु वह है जो अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन में प्रकाश फैलाता है। गुरु केवल स्कूल या मठ में शिक्षा देने वाला व्यक्ति नहीं होता, बल्कि वह कोई भी हो सकता है जो हमें सही दिशा दिखाए – चाहे वे हमारे माता-पिता हों, शिक्षक हों, साधु-संत हों या फिर स्वयं हमारे अनुभव।
इस पावन दिन पर शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में नमन करते हैं, उन्हें पुष्प, वस्त्र या अन्य वस्तुएँ अर्पित कर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। विद्या-अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। कई स्थानों पर ध्यान, योग, भक्ति और सत्संग का आयोजन होता है। बौद्ध और जैन धर्म में भी यह दिन अत्यधिक महत्वपूर्ण है – बौद्ध मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
आज की तेज़ी से बदलती दुनिया में, जहाँ इंटरनेट हमें जानकारी तो देता है, पर दिशा नहीं, ऐसे समय में एक सच्चे गुरु की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। गुरु केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाते हैं – जैसे धैर्य, करुणा, विवेक और आत्मबोध।
गुरु पूर्णिमा केवल अतीत की एक परंपरा नहीं, बल्कि वर्तमान की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता भी है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में हम कितनी भी उन्नति क्यों न कर लें, एक सच्चे गुरु का स्थान हमेशा विशेष रहेगा। तो, इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें – यही इस पर्व की सच्ची भावना है।