हिन्दू धर्मावलंबियों की यही प्रथम त्रासदी रही है, कि वे सदैव आवश्यकता से अधिक उदार और अहिंसक हो जाते हैं और कई बार 'वसुधैव कुटुंबकम्' तथा 'अतिथि देवो भव' को लेकर इतने अतिवादी हो जाते हैं कि स्वयं के कुटुम्ब के अस्तित्व को ही खतरे में डाल देते हैं, जिसे इस्लाम और ईसाईयत बड़े आसानी से लक्षित कर अपना विस्तार करते चले जाते हैं, हिन्दू सिमटता जाता है। दूसरी विकट त्रासदी यह है कि हिन्दुओं में अविलम्ब सेक्युलर उत्पन्न हो जाते हैं और ये हिंदुत्व के लिए ही घातक सिद्ध होते हैं।
हर हिन्दू को ये समझना होगा कि भारत में इस्लाम के प्रवेश और प्रसार के दो स्वरुप हैं प्रथम ताड़का के रुप में, जिसमें इस्लामिक आक्रांताओं ने भारत धर्मान्तरण के लिए कहर बरपाया, तो वहीं दूसरी ओर पूतना के रुप में उदार इस्लाम की आड़ में सूफ़ीयों ने भारत में प्रवेश किया और हिन्दुओं को प्रकारान्तर से धर्मान्तरण के लिए बरगलाकर अपने मकड़जाल में फंसाया।हिन्दू समझ ही नहीं पाया कि दोनों का उद्देश्य एक ही था।
तथाकथित सेक्युलर हिन्दुओं को सनातन में संतों की इतनी कमी पड़ गई कि उन्होंने सूफ़ीयों को संत बनाकर, सूफ़ी संत के रुप में प्रस्तुत किया। फिर क्या था!अनेक सूफ़ी संतों ने हिन्दुओं को महा मूर्ख बनाकर अपनी उपासना करवाई और आज भी चादर चढ़ ही रही हैं।
सूफ़ी संतों और सूफीज्म को लेकर तथाकथित सेक्युलर इतिहासकारों ने हिन्दुओं को जमकर बेवक़ूफ़ बनाया है और बॉलीवुड ने सूफ़ी संगीत के बहाने आध्यात्मिक रुप से पागल बनाया ! अनेक सूफ़ी अल्लाह को ही अपनी माशूका मान लेते हैं और फिर प्रत्यक्ष और परोक्ष में अल्लाह के नाम पर क्या-क्या करते हैं?ये तो अल्लाह ही जानें?
भारत में समलैंगिक संबंधों को वैधानिक और लोकप्रिय बनाने में तथाकथित सूफ़ी संतों का बड़ा योगदान रहा है। रूमी,जमाली, और सरमद काशानी जैसे तथाकथित संत सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त, शाह हुसैन और माधो लाल हुसैन के बीच के प्रेम संबंध को भी सूफी परंपरा में मान्यता दी गई है।प्रसिद्ध सूफी कवि और रहस्यवादी जलालुद्दीन रूमी को उनके काम में समलैंगिक प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए जाना जाता है।
16वीं सदी के सूफी कवि, जमाली और उनके साथी कमाली के बीच के प्रेम संबंध को दिल्ली की मौखिक परंपरा में समलैंगिक प्रेम के रूप में मान्यता दी गई है।लाहौर के एक सूफी संत, शाह हुसैन और उनके शिष्य माधो लाल के बीच के प्रेम को सूफी परंपरा में एक पवित्र प्रेम माना जाता है, और उनके मजार (दरगाह) को आज भी एक पवित्र स्थान माना जाता है।एक अर्मेनियाई सूफी संत, सरमद को एक हिंदू लड़के, अभय चंद से प्यार हो गया था और उनकी कब्र को समलैंगिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।
अब उत्तरप्रदेश के बलरामपुर का एक भयानक तथाकथित सूफ़ी छांगुर बाबा उर्फ़ जमालुद्दीन को, हिन्दू लड़कियों को बहला- फुसलाकर धर्मांतरण कराने के आरोप में गिरफ्तार किया है।
मीडिया के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार,इस मामले में नीतू रोहरा उर्फ नसरीन को भी गिरफ्तार किया गया है। यह गिरोह बलरामपुर के उटरौला में लंबे समय से सक्रिय था। जाँच एजेंसियों के मुताबिक, इस नेटवर्क को विदेशों से 100 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली है।
छांगुर बाबा और उसका नेटवर्क
जमालुद्दीन खुद को हाजी पीर जलालुद्दीन बताता था। वह अपने दलालों के जरिए हिंदू लड़कियों को धर्मांतरण के लिए उकसाता था। जानकारी के अनुसार, इस काम के लिए लड़कियों की जाति के हिसाब से फीस तय थी।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, सरदार लड़कियों के लिए 15-16 लाख रुपए, पिछड़ी जाति की लड़कियों के लिए 10-12 लाख रुपए और अन्य जातियों के लिए 8-10 लाख रुपए मिलते थे।
ए. डी. जी. पी. (लॉ एंड ऑर्डर) ने बताया कि छांगुर बाबा ने 40 से 50 बार इस्लामिक देशों की यात्रा की है। जाँच में पता चला है कि बलरामपुर में उसने कई संपत्तियाँ खरीदी हैं। मीडिया सूत्रों के अनुसार, फंडिंग से जमालुद्दीन बाबा ने लग्जरी गाड़ियाँ, बंगले और शोरूम की खरीदारी की है।
इस ख़तरनाक गिरोह के पास 40 से अधिक बैंक खाते हैं। इनमें 100 करोड़ रुपये से अधिक का लेन-देन हुआ है। यह पैसा कथित तौर पर धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। गौरतलब है कि खाड़ी देशों से फंडिंग आने की बात सामने आई है।
जमालुद्दीन बाबा का नेटवर्क गरीब और असहाय लोगों को निशाना बनाता था। उन्हें पैसों और विदेश में नौकरी का लालच दिया जाता था। अगर कोई बात नहीं मानता तो उसे मुकदमे में फँसाने की धमकी दी जाती थी।
इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने और ब्रेनवॉश करने के लिए जमालुद्दीन बाबा ने ‘शिजर-ए-तैय्यबा‘ नाम से किताब भी छपवाई थी। वह खुद को पीर बाबा या हजरत बाबा नाम से बुलवाना पसंद करता था।
मुंबई के एक सिंधी परिवार का ब्रेनवाश कर इस्लाम कबूल करवाया गया था। परिवार में नवीन घनश्याम रोहरा, उनकी पत्नी नीतू और बेटी का नाम बदलकर जमालुद्दीन, नसरीन और सबीहा रख दिए गया था।
लखनऊ की एक गुंजा गुप्ता हिंदू लड़की को एक मुस्लिम लड़के ने ‘अमित’ बनकर प्रेमजाल में फँसाया। फिर छांगुर बाबा की दरगाह ले जाकर उसका ब्रेनवॉश किया और उसे अलीना अंसारी बना दिया गया था।
इस छाँगुर बाबा ने तो अपने पूर्व के सभी तथाकथित सूफ़ी संतों को पीछे छोड़ दिया और उनका असली चेहरा भी दिखा दिया। उत्तरप्रदेश ए. टी. एस. की माने तो वर्तमान परिदृश्य में,भारत में हर नगर में ऐंसे तथाकथित सूफ़ी बाबा घूम रहे हैं इसलिए केवल प्रशासन ही नहीं वरन् हर हिन्दू का कर्तव्य है कि वह इनको पहचाने और इनके षड्यंत्र को उजागर कर सनातन की रक्षा करे।
लेखक - डॉ. आनंद सिंह राणा