स्वामी विवेकानंद: भारत के महान संत और विश्व चिंतक की जीवनी | The Voice TV

Quote :

तुम खुद अपने भाग्य के निर्माता हो - स्वामी विवेकानंद

Editor's Choice

स्वामी विवेकानंद: भारत के महान संत और विश्व चिंतक की जीवनी

Date : 04-Jul-2025
स्वामी विवेकानंद, जिनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, एक महान भारतीय संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे. उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, एक सफल वकील थे, जिनकी रुचि कई विषयों में थी, और उनकी मां भुवनेश्वरी देवी गहरी भक्ति, मजबूत चरित्र और अन्य गुणों से संपन्न थीं. स्वामी विवेकानंद का जीवन हर युवा के लिए प्रेरणास्रोत है. उन्होंने अपने जीवन में जो उपलब्धियां अर्जित कीं, वह केवल उन तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि भारत और देशवासियों के लिए भी सम्मान योग्य बन गईं. 4 जुलाई को स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है. इस मौके पर स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े रोचक किस्से आपको प्रोत्साहित कर सकते हैं. हर भारतीय, खासकर हर युवा को स्वामी विवेकानंद के बारे में जान लेना चाहिए. स्वामी विवेकानंद के जीवन और शिक्षाओं ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में आध्यात्मिक जागरण और मानवता की सेवा की प्रेरणा दी.

कोलकाता में जन्मे नरेंद्र नाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) ने प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन से प्राप्त की. बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से शिक्षा पूरी की. वे एक अत्यंत मेधावी छात्र थे और पढ़ाई के साथ-साथ संगीत, खेलकूद और अन्य कलाओं में भी रुचि रखते थे.

जब नरेंद्र नाथ दत्ता युवावस्था की दहलीज पर थे, तब उन्हें आध्यात्मिक संकट के दौर से गुजरना पड़ा, जिसमें ईश्वर के अस्तित्व के बारे में संदेह ने उन्हें घेर लिया था. उस समय उन्होंने पहली बार कॉलेज में अपने एक अंग्रेजी प्रोफेसर से श्री रामकृष्ण के बारे में सुना था. नवंबर 1881 में एक दिन, नरेंद्र श्री रामकृष्ण से मिलने गए, जो दक्षिणेश्वर में काली मंदिर में ठहरे हुए थे. उन्होंने सीधे गुरु से एक प्रश्न पूछा, जो उन्होंने कई अन्य लोगों से किया था, लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला: "श्रीमान, क्या आपने भगवान को देखा है?" श्री रामकृष्ण ने उत्तर दिया: "हां, मेरे पास ही भगवान है. मैं उन्हें उतना ही स्पष्ट रूप से देखता हूं जितना मैं आपको देखता हूं, केवल अधिक गहन अर्थों में." नरेंद्र के मन से शंकाओं को दूर करने के अलावा, श्री रामकृष्ण ने अपने शुद्ध, निःस्वार्थ प्रेम से उन्हें जीत लिया. इस प्रकार एक गुरु-शिष्य संबंध शुरू हुआ जो आध्यात्मिक गुरुओं के इतिहास में काफी अनूठा है. नरेंद्र अब दक्षिणेश्वर के बार-बार आने लगे और गुरु के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक पथ पर तेजी से आगे बढ़े.

इन प्रेरक और गहन महत्वपूर्ण व्याख्यानों के माध्यम से स्वामीजी ने निम्नलिखित कार्य करने का प्रयास किया: लोगों की धार्मिक चेतना जगाना और उनमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व पैदा करना; अपने संप्रदायों के सामान्य आधारों को इंगित करके हिंदू धर्म का एकीकरण करना; दलित जनता की दुर्दशा पर शिक्षित लोगों का ध्यान केंद्रित करना और व्यावहारिक वेदांत के सिद्धांतों को लागू करके उनके उत्थान के लिए उनकी योजना को उजागर करना.

स्वामी विवेकानंद के योगदान निम्नलिखित हैं: हिंदू धर्म में एकीकरण लाने के लिए स्वामी जी का योगदान, स्वामी विवेकानंद का विश्व संस्कृति में योगदान, वास्तविक भारत की खोज में स्वामी जी का योगदान, और एक मठवासी भाईचारे की शुरुआत में स्वामी जी का योगदान. विश्व संस्कृति में स्वामी विवेकानंद के योगदान का वस्तुपरक मूल्यांकन करते हुए, प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार ए एल बाशम ने कहा कि "आने वाली शताब्दियों में, उन्हें आधुनिक दुनिया के प्रमुख निर्माताओं में से एक के रूप में याद किया जाएगा..." कुल मिलाकर स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति अपने अद्वितीय और उत्कृष्ट दृष्टिकोण के लिए हर युवा के दिल में हैं और हमेशा रहेंगे. उनका योगदान भारतीय समाज में उत्कृष्टता की भावना को जागरूक करने में महत्वपूर्ण रहा है. उनकी उपदेशों और विचारों का प्रभाव आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण है और उन्हें "विश्व धरोहर" कहा जाता है.

1886 में रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद, नरेन्द्रनाथ ने संन्यास ले लिया और अपना नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद रख लिया. इसके बाद उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की और भारतीय समाज की दशा को देखा और समझा.

स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया. यहां उनके भाषण ने पश्चिमी देशों में भारतीय संस्कृति और वेदांत दर्शन की महत्ता को उजागर किया. उनके भाषण की शुरुआत "अमेरिका के भाइयों और बहनों" के संबोधन से हुई, जिसने सबका दिल जीत लिया. दो मिनट तक धर्म संसद तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा.

1897 में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस को समर्पित रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सेवा, शिक्षा और आध्यात्मिकता के माध्यम से समाज की सेवा करना था. इस मिशन ने कई अस्पताल, विद्यालय और सामाजिक सेवा के कार्य शुरू किए. इसके अलावा उन्होंने बारानगोर मठ की स्थापना की थी, जो बाद में रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय बना. इस मठ का उद्देश्य था धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक कार्यों को समर्थन देना.

स्वामी विवेकानंद ने कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें "राजयोग," "ज्ञानयोग," "कर्मयोग," और "भक्तियोग" प्रमुख हैं. उनकी शिक्षाएं आत्म-ज्ञान, स्वावलंबन, और मानवता की सेवा पर आधारित थीं.

स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में हुआ. वे केवल 39 वर्ष के थे, लेकिन उनके जीवन और कार्यों का प्रभाव आज भी व्यापक रूप से महसूस किया जाता है.
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement