गुलजारीलाल नंदा — दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री और श्रम नेता | The Voice TV

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गुलजारीलाल नंदा — दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री और श्रम नेता

Date : 04-Jul-2025
श्री गुलजारीलाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को पंजाब के सियालकोट में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा लाहौर, आगरा और इलाहाबाद में प्राप्त की. 1920-1921 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में श्रम संबंधी समस्याओं पर शोध अध्येता के रूप में कार्य करने के बाद, वे 1921 में नेशनल कॉलेज (मुंबई) में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक बने. इसी वर्ष वे असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए.

1922 में, वे अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव बने और 1946 तक इस पद पर रहे. उन्हें 1932 में सत्याग्रह के लिए और फिर 1942 से 1944 तक जेल जाना पड़ा.

श्री नंदा 1937 में बंबई विधान सभा के लिए चुने गए और 1937 से 1939 तक बंबई सरकार के संसदीय सचिव (श्रम एवं उत्पाद शुल्क) के रूप में कार्य किया. बाद में, 1946 से 1950 तक बंबई सरकार में श्रम मंत्री के रूप में, उन्होंने राज्य विधानसभा में सफलतापूर्वक श्रम विवाद विधेयक पेश किया. उन्होंने कस्तूरबा मेमोरियल ट्रस्ट में न्यासी, हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ में सचिव और बॉम्बे आवास बोर्ड में अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. वे राष्ट्रीय योजना समिति के सदस्य भी थे और राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके बाद में वे अध्यक्ष भी बने.

1947 में, उन्होंने जेनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में एक सरकारी प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया. उन्होंने सम्मेलन द्वारा नियुक्त 'द फ्रीडम ऑफ़ एसोसिएशन कमेटी' पर कार्य किया और स्वीडन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम और इंग्लैंड का दौरा कर उन देशों में श्रम एवं आवास की स्थिति का अध्ययन किया.

मार्च 1950 में, वे योजना आयोग में उपाध्यक्ष के रूप में शामिल हुए. अगले वर्ष सितंबर में, वे केंद्र सरकार में योजना मंत्री बने, साथ ही उन्हें सिंचाई एवं बिजली विभागों का प्रभार भी दिया गया. 1952 के आम चुनाव में वे मुंबई से लोकसभा के लिए चुने गए और फिर से योजना, सिंचाई एवं बिजली मंत्री के रूप में नियुक्त हुए. उन्होंने 1955 में सिंगापुर में आयोजित योजना सलाहकार समिति और 1959 में जेनेवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.

श्री नंदा 1957 के आम चुनाव में लोकसभा के लिए चुने गए और श्रम तथा रोजगार और नियोजन के केंद्रीय मंत्री बनाए गए. बाद में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए. उन्होंने 1959 में जर्मन संघीय गणराज्य, यूगोस्लाविया एवं ऑस्ट्रिया का दौरा किया.

1962 के आम चुनाव में वे गुजरात के साबरकांठा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित हुए. उन्होंने 1962 में समाजवादी लड़ाई के लिए कांग्रेस फोरम की शुरुआत की. वे 1962 एवं 1963 में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री और 1963 से 1966 तक गृह मंत्री रहे.

पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद उन्होंने 27 मई 1964 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. ताशकंद में श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद, उन्होंने 11 जनवरी 1966 को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. गुलजारी लाल नंदा जी आदर्शवादी राजनीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे. उनके लिए राजनीतिक और धार्मिक होने के मायने काफी अलग थे. वे भारत को आधुनिक बनाने के पक्षधर थे, लेकिन सभी धर्मों और वर्गों को समान स्तर पर देखना चाहते थे. नंदा सच्चे अर्थों में गांधीवादी मूल्यों पर खरा उतरने वाले शख्स थे.

अफसोस की बात है कि सर्वधर्म समभाव की बात करने वाले नंदा जी को अपने जीवन के अंतिम दिन बड़े कष्ट से व्यतीत करने पड़े. वे उच्च पदों पर रहकर भी जीवन की आम ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाए. कभी किराए न देने की वजह से मकान-मालिक ने उन्हें घर से बाहर कर दिया, तो कभी वे 500 रुपये मासिक पेंशन में खर्च चलाते दिखे. जिस देश में ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्य तक के ठाठ-बाट हों, वहां गुलज़ारी लाल नंदा जी जैसा होना आम बात नहीं है.

गुलजारी लाल जी का प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल दो बार करीब 13-13 दिनों का रहा. भारत के संविधान के अनुसार, देश के प्रधानमंत्री के पद को कभी रिक्त नहीं रखा जा सकता. किसी कारणवश अगर प्रधानमंत्री अपना पद छोड़ दें या पद में रहते हुए उनकी मृत्यु हो जाए, तो तुरंत नए प्रधानमंत्री का चुनाव होता है. अगर यह तुरंत संभव नहीं होता है, तो कार्यवाहक या अंतरिम प्रधानमंत्री को नियुक्त किया जाता है. कार्यवाहक तब तक उस पद पर कार्यरत रहता है, जब तक विधिवत रूप से नए प्रधानमंत्री का चुनाव न हो जाए. 1964 में नेहरू जी की मृत्यु के पश्चात, गुलजारी लाल जी ही वरिष्ठ नेता थे, यही वजह है कि उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया. गुलजारी जी, जवाहरलाल जी के प्रिय थे, दोनों साथ में लंबे समय से काम कर रहे थे, गुलजारी लाल जी नेहरू जी के काम को अच्छे से समझते थे. 1962 में चीन से युद्ध समाप्त हुआ था, नेहरू जी की मृत्यु के समय प्रधानमंत्री पद के ऊपर बहुत अधिक दबाव था, इसके बावजूद नंदा जी ने इस पद को बखूबी संभाला था.

1966 में लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात, उन्हें पुन: कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया. 1965 में पाकिस्तान के युद्ध की समाप्ति हुई थी, जिस वजह से देश एक बार फिर कठिन दौर से गुज़र रहा था. लाल बहादुर शास्त्री जी की आकस्मिक मौत के बाद, गुलजारी लाल जी ने देश की गरिमा को बनाए रखा. दोनों समय अपने कार्यकाल के दौरान नंदा जी ने कोई भी बड़े निर्णय नहीं लिए थे, इस दौरान उन्होंने बहुत ही शांति व संवेदनशील होकर कार्य किया था. गुलजारी जी को संकटमोचन कहना गलत नहीं होगा.

नवंबर 1966 में व्यापक स्तर पर हुए गौहत्या विरोध आंदोलन में संत स्वामी करपात्री जी महाराज लगातार गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून की मांग कर रहे थे. लेकिन केंद्र सरकार इस तरह का कोई कानून लाने पर विचार नहीं कर रही थी. इससे संतों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा था. उनके आह्वान पर सात नवंबर 1966 को देशभर के लाखों साधु-संत अपने साथ गायों-बछड़ों को लेकर संसद के बाहर आ डटे थे. संतों को रोकने के लिए संसद के बाहर बैरिकेडिंग कर दी गई थी. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार को यह खतरा लग रहा था कि संतों की भीड़ बैरिकेडिंग तोड़कर संसद पर हमला कर सकती है. फिर देखते ही देखते मामला हाथ से निकल गया और गोलीबारी तक पहुंच गई, जिसमें आठ लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए. कांग्रेस संसदीय दल की कार्यकारी समिति के प्रमुख सदस्यों ने कथित तौर पर इस विफलता के लिए गृह मंत्री नंदा को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें बर्खास्त करने की मांग की. इंदिरा गांधी ने अगले ही दिन गृह मंत्री गुलजारीलाल नंदा को बर्खास्त कर दिया. हालांकि, नंदा की भूमिका भारत साधु समाज के संरक्षक के रूप में अवश्य रही, लेकिन वे इस आंदोलन के साजिशकर्ताओं में शामिल नहीं थे.

सत्ताधारी कांग्रेस के सदस्य होने के बावजूद, नंदा ने 1975 में आपातकाल लगाने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि इस कदम ने भारत में लोकतंत्र लाने के बलिदान को निरर्थक बना दिया. उन्हें 1997 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. 15 जनवरी, 1998 को लगभग 100 वर्ष की आयु में नंदा ने अंतिम सांस ली.
 
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