य एतान् विंशतिगुणानाचरिष्यति मानवः ।
कार्याऽवस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ।
यहां आचार्य चाणक्य पूर्वोक्त साधनों से प्राप्त गुणों से युक्त व्यक्ति के सफल काम होने की चर्चा करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य इन बीस गुणों को अपने जीवन में धारण करेगा, वह सब कार्यों और सब अवस्थाओं में विजयी होगा।
भाव यह है कि इन बीस गुणों को उन-उन पशुओं से सीखने का अभिप्राय मनुष्य को साहसी, अभिमान रहित और दृढ़निश्चयी बनाता है। साथ ही जीवन में अच्छे गुणों का आदान करता है तथा दुर्गुणों को छोड़कर सत्संकल्प और सत्समाज के निर्माण में योगदान देता है। अतः इसमें पशु-पक्षी भी हमारे लिए दृष्टान्त हैं। इसलिए पं. विष्णुशर्मा ने पञ्चतन्त्र में सभी पशु-पक्षियों को कथानक का पात्र बनाकर मानव के लक्ष्य-सिद्धि में सहायक कथाओं का निर्माण किया है। जिसका उद्देश्य राजा के मूर्ख चार पुत्र भी छह महीने के अन्दर ही राजनीति में कुशल और विद्वान् बनाना था।
इस प्रकार जो व्यक्ति इन ऊपर बताये गए गुणों को धारण करने का प्रयत्न करता है, उन्हें अपना लेता है, वह जीवन में कभी भी किसी भी, स्थिति में पराजित नहीं होता। उसे जीवन में सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति में स्वाभिमान जागृत होता है और वह अपने प्रत्येक कार्य को निष्ठा और लगन से पूरा करके उन्नति को प्राप्त करता है। वही सफल व्यक्ति कहलाता है।