लोकतंत्र के मूल्यों पर सवाल: छत्तीसगढ़ में 2897 शिक्षकों की नौकरी पर संकट
Date : 04-Feb-2025
"Of the People, By the People, For the People" – अब्राहम लिंकन के इस ऐतिहासिक वाक्य ने लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को परिभाषित किया था। लेकिन जब यही लोकतंत्र अपने नागरिकों की समस्याओं के समाधान में असफल होता है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ में हाल ही में सामने आया शिक्षकों की नौकरी का मामला इस विचार को चुनौती देता है।
मामले की पृष्ठभूमि
पिछले महीने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें सहायक शिक्षक पद के लिए केवल D.Ed (डिप्लोमा इन एजुकेशन) डिग्री धारकों को उपयुक्त माना गया। कोर्ट ने B.Ed (बैचलर ऑफ एजुकेशन) डिग्री धारकों की नियुक्तियों को रद्द करने का आदेश दिया और निर्देश दिया कि 10 दिसंबर 2024 तक इस प्रक्रिया को पूरा किया जाए। इसके तहत 2897 B.Ed डिग्री धारक शिक्षकों की नियुक्तियों को अवैध घोषित किया गया और उनकी जगह D.Ed डिग्री धारकों को नियुक्त करने का आदेश दिया गया।
प्रभावित शिक्षक और उनकी पीड़ा
इस फैसले ने न केवल 2897 शिक्षकों की नौकरी छीन ली, बल्कि उनके परिवारों को भी अनिश्चितता और संकट में डाल दिया। ये शिक्षक पिछले एक महीने से धरने पर बैठे हैं, अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनकी मांगें सुनने के बजाय, उन्हें पुलिसिया बल का सामना करना पड़ा।
धरने के दौरान कई शिक्षकों के साथ मारपीट की गई, महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार हुआ, और यहां तक कि कुछ महिला शिक्षिकाओं के कपड़े फाड़ने जैसी बर्बर घटनाएं भी सामने आईं। यह सब उस राज्य में हुआ, जहां लोकतांत्रिक सरकार का दावा है कि वह जनता की भलाई के लिए काम करती है।
शिक्षकों की मांग और सरकार की भूमिका
इन शिक्षकों की मुख्य मांग है कि उन्हें किसी अन्य पद पर समायोजित किया जाए या उनकी नियुक्तियों को वैध ठहराया जाए। लेकिन सरकार की ओर से अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। नौकरी से हटाए गए B.Ed सहायक शिक्षकों के बढ़ते दबाव और आंदोलन के बीच सरकार ने एक उच्च स्तरीय प्रशासनिक कमेटी का गठन किया है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी में 5 बड़े अधिकारियों को शामिल किया गया है, जिनमें प्रमुख सचिव विधि विभाग, सचिव स्कूल शिक्षा विभाग, सचिव वित्त विभाग और सचिव सामान्य प्रशासन विभाग शामिल हैं। ये वो पदाअधिकारी है जिन्होंने ना तोह कभी इन लोगो से मुलाकात की होगी नहीं ना ही इनकी पीडा व्यक्तिगत तौर से सुना होगा, और आखिर में कागज़ी कर 2-3 साल बाद निष्कर्ष पर आएँगे |
लोकतंत्र में जनता ही सरकार को चुनती है, और ये शिक्षक भी उसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जब इन शिक्षकों ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर सरकार बनाने में भूमिका निभाई, तो अब सरकार उनकी समस्याओं को अनसुना क्यों कर रही है?
कानूनी और नैतिक जटिलताएं
हाई कोर्ट का फैसला कानूनी रूप से सही हो सकता है, लेकिन इसका सामाजिक और मानवीय प्रभाव गहरा है। B.Ed डिग्री धारक शिक्षक यह सवाल उठा रहे हैं कि जब उनकी नियुक्ति पहले वैध मानी गई थी, तो अब इसे अवैध क्यों घोषित किया जा रहा है? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा नहीं है?
आगे की राह -
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकार इस संकट का समाधान कैसे करती है। क्या सरकार B.Ed डिग्री धारकों को अन्य पदों पर समायोजित करने का रास्ता निकालेगी, या फिर कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए D.Ed डिग्री धारकों को ही नियुक्त करेगी?
इस पूरे मामले ने लोकतंत्र की उस भावना पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जो जनता की भलाई और उनकी समस्याओं के समाधान पर आधारित है। यह समय है कि सरकार संवेदनशीलता के साथ इस मुद्दे को सुलझाए और यह सुनिश्चित करे कि किसी भी शिक्षक और उनके परिवार को अन्याय का सामना न करना पड़े।
लोकतंत्र की सफलता इसी में है कि वह हर वर्ग के लिए समान रूप से काम करे। छत्तीसगढ़ में शिक्षकों का यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी का भी सवाल है। सरकार को इस संकट का समाधान निकालने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे, ताकि इन शिक्षकों का विश्वास लोकतांत्रिक व्यवस्था में बना रहे।