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विकसित भारत का प्रण और प्रधानमंत्री

Date : 04-Nov-2022

 डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारत कभी विश्व गुरु था। ब्रिटिश काल तक विश्व व्यापार में अधिकांश हिस्सा भारत का हुआ करता था। प्राचीन भारत में ज्ञान-विज्ञान और शिक्षण संस्थानों के अनगिनत केंद्र थे। दुनिया की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता संस्कृति भारत की है। पिछले आठ वर्षों में देश का नेतृत्व राष्ट्रीय गौरव की इसी भावना के अनुरूप कार्य कर रहा है। वह तत्व पुनर्जीवित हो रहे हैं, जिन्होंने भारत को विश्व गुरु पद पर विभूषित किया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में आज भी विकसित बनने की पूरी क्षमता है। देश के वर्तमान नेतृत्व ने इस क्षमता को पहचाना है। इसी प्रक्रिया में ही बाधक तत्वों की पहचान हुई है। सेक्युलर राजनीति के नाम पर देश को आत्म गौरव से विहीन बनाया गया। परिवार आधारित पार्टियों को भी ऐसी ही राजनीति पसन्द थी। लेकिन अब देश में राष्ट्रीय गौरव का संचार हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से विकसित भारत के लिए पांच प्रण का महत्व रेखांकित किया। हमको भारतीय विरासत पर गर्व करना चाहिए। वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन के माध्यम से सम्भव है। भारत लोकतंत्र की जननी है। इसका भी देश को गर्व होना चाहिए। दासता के किसी भी निशान को हटाना, विरासत पर गर्व, एकता और अपने कर्तव्यों को पूरा करना सभी का दायित्व है। इससे भारत को विकसित बनाया जा सकता है। पंच प्रण पर अपनी शक्ति, संकल्पों और सामर्थ्य को केंद्रित करना आवश्यक है।

भ्रस्टाचार और परिवार वाद भारत को विकसित बनाने की राह में सबसे बड़े बाधक है। देश के हर संस्थान में परिवारवाद को पोषित किया गया है। विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में देश के खिलाड़ियों को पहले से अधिक पदक मिल रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने ठीक कहा कि यह प्रतिभाएं पहले भी भारत में थीं, लेकिन भाई भतीजावाद के कारण वह नहीं उभर पायीं। भारत को विकसित बनाने के मार्ग में दूसरी सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है। इसमें भी परिवारवादी पार्टियों पर सर्वाधिक आरोप लगते हैं। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। उससे देश को लड़ना ही होगा। सरकार का प्रयास है कि जिन्होंने देश को लूटा है, उनको लूट का धन लौटाना पड़े। मोदी सरकार ने व्यवस्था में व्यापक सुधार किया है।चालीस करोड़ जनधन खाते खोले गए। विगत आठ वर्षों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के द्वारा आधार, मोबाइल जैसी आधुनिक व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए देश के दो लाख करोड़ रुपये को गलत लोगों के हांथों तक जाने से रोक दिया गया। आत्मनिर्भर अभियान भी भारत को विकसित बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। इसमें निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पीएलआई योजनाओं के माध्यम से हम दुनिया के विनिर्माण बिजलीघर बन रहे हैं। लोग मेक इन इंडिया के लिए भारत आ रहे हैं। मोदी ने लाल किले की प्राचीर से विकसित भारत के पंच प्रण का उद्घोष किया था। पंच प्राण के माध्यम से भारत को एक विकसित देश बनाने का संकल्प लेने का आह्वान किया था। 'पंच प्रण' में देश को विकसित भारत के रूप में आगे बढ़ाने, गुलामी के सभी निशान मिटाने, भारत की विरासत पर गर्व करने, देश की एकता और अखंडता को मजबूत करना और देश के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का संकल्प शामिल है।

अमृत काल के लिए प्रधानमंत्री के 'पंच प्रण' के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने और जागरुकता लाने के लिए पिछले दिनों हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने संयुक्त रूप से 'दीपोत्सव: पंच प्रण' कार्यक्रम की शृंखला प्रारंभ की थी। इसमें 'पंच प्रण' लेते हुए प्रत्येक दिन पचहत्तर सौ दीप प्रज्वलित किए गए। कार्यक्रम का आदर्श वाक्य 'एक दीप राष्ट्र के नाम' था। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में पांच सत्रों में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 'पंच प्रण' को केंद्र में रखकर व्याख्यान के पांच विषय और सत्र आयोजित किए गए। इन विषयों पर अलग-अलग सत्र में वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। पंच प्रण' कार्यक्रम में संत अतुल कृष्ण महाराज, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, चिंतक, विचारक एस. गुरुमूर्ति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर सहित कई साहित्य, संगीत और कला के क्षेत्र से जुड़े लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए।

यह बताया गया कि एकता एकात्मता का सिद्धांत भारतीय संस्कृति का प्राण है। उसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल के रूप में सिद्ध किया। भारतीय वैज्ञानिकों ने पहले ही कहा है कि जड़ और चेतन दोनों में परमात्मा है। जिसकी सत्ता होती है वह सत्य है। वाणी,चिंतन और कर्म के बल पर परमात्मा की अनुभूति करते हुए आप हर संकट से पार हो जाएंगे। अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा दिए पंच प्रण पंच महाभूत है। एकता एकात्मता को जानने के लिए सत्य को जानना होगा और राम नाम ही सत्य है। जो जड़ में से चेतन को प्रकट कर दें, वही सत्य है। प्रत्येक कण में परमात्मा को देंखे, तब पंच प्रण की शुरुआत होगी। परमात्मा ने सबसे सुंदर देश भारत बनाया है। भारत में छह ऋतुएं हैं। प्रत्येक संस्कृति के व्यक्ति को अपनी जलवायु के अनुसार जीवनयापन करना चाहिए। आसुरी विद्याएं तोड़ने और दैवीय विद्याएं जोड़ने का काम करती है। सबके सुख की कामना करने से ही विकसित भारत कहलाएगा। तभी भारत विश्वगुरु बनेगा।

आरिफ मोहम्मद ने कहा कि अनेक सभ्यताएं इस बात का दम्भ भरती हैं कि उन्होंने भारत पर आक्रमण कर और यहां राज कर हमें सभ्य बनाया। सच्चाई यह है कि वे सभ्यताएं जिस समय बर्बर थीं, जीने का रास्ता तलाश रही थीं उस समय भारत भूमि अपनी ज्ञान सम्पदा के दम पर ‘सोने की चिड़िया’ थी। अतीत में भारत ‘सोने की चिड़िया’ इसलिए नहीं था कि अकूत धन संपदा हमारे पास थी, बल्कि हम ज्ञान का केंद्र थे। भारतीय दर्शन का मानना है कि जिसने ज्ञान प्राप्त कर लिया, ब्रह्म को प्राप्त कर लिया उसे इस सम्पदा को साझा करने की भूख जग जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने भारत पर राज किया और ताज महल, लाल किला दिया, उन्हें यह जानना चाहिए कि अरब में पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बहुत पहले ही कहा था कि भारत भूमि से ज्ञान की ठंडी हवा के झोंके आ रहे हैं। अतीत में यह हमारी ज्ञान, संपदा की देन थी। विश्व के हर विद्वान ने जो दुनिया के इतिहास पर जो कुछ भी लिखा है उसमें सबसे पहले एक बड़ा हिस्सा भारत पर रचा-पढ़ा गया। भारत इकलौता देश है जो ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्धन के लिए जाना जाता है।

एस गुरुमूर्ति ने कहा कि समय की आवश्यकता है कि हम भारत को समझें। 'पंच प्रण' का विचार तभी साकार होगा जब हम भारत के बारे में फैले भ्रम का निवारण करेंगे। जिस भारत को हम जानते हैं वह प्रोपेगंडा पर आधारित है। हम अपने भारत के गौरवशाली इतिहास से अनभिज्ञ हैं। भारत केवल आध्यात्मिक शक्ति के तौर पर ही समृद्ध नहीं रहा, बल्कि अर्थशास्त्र, विज्ञान, सामाजिक व्यवस्था के विषयों में भी यूरोप और अन्य सभ्यताओं से अधिक आगे रहा था। भारत की आर्थिक व्यवस्था बेहद मजबूत थी और इसने कभी धर्म के नाम पर कत्लेआम नहीं किया। विश्व की आबादी का अठारह प्रतिशत हिस्सा हमारे पास है, धरती का दो प्रतिशत भू-क्षेत्र हमारे पास है और विश्व में सबसे ज्यादा पशुधन हमारे पास है। दुनिया भर में होने वाले मांस की खपत में हम सबसे कम है। स्वामी चिन्मयानंद ट्रस्ट के प्रमुख स्वामी प्रकाशानन्द ने कहा कि हमारे वेद-शास्त्रों में कर्तव्यपूर्ति का जितना ज्ञान घर-घर पहुंचेगा उतना ही हमारा समाज सशक्त होगा। एक सशक्त समाज ही मजबूत और विकसित राष्ट्र तैयार करता है। नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि अपने आसपास की समस्या, समाज की समस्या के लिए सरकार और प्रशासन पर ही निर्भर न रहें, बल्कि एकजुट होकर राह की हर चुनौती का सामना करें। जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका व्यापक ज्ञान हमारे वेदों में है। वेदों में दिए कर्तव्य बोध के ज्ञान को धर्मशास्त्र कहते हैं। इसलिए वेदों को पढ़ना आवश्यक है। राष्ट्र की संस्कृति का आधार कर्तव्यबोध पर आधारित है।

श्रीराम ने वनवास के दिन ही संसार को निश्चरहीन करने का संकल्प लिया था। यह कर्तव्यबोध है। कर्तव्यबोध से परिपूर्ण होना बहुत आवश्यक है। इससे भारत अपने पुराने वैभव पर लौटेगा। हमारा डीएनए एक है। हिन्द, हिन्दू और हिंदुत्व से ही दुनिया में शांति है। इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारत तीर्थों, त्योहारों और मेलों का देश है। तीर्थ, त्योहार और मेले ही एकता और एकात्मता का मार्ग है। ये हमें कपड़ा, रोटी, छत और संस्कार देते हैं, इसलिए भारतीय मानवता और जीवन मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। मेलों और त्योहारों से करोड़ों लोगों को रोजगार, रोटी मिलती है। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। एक ही कुल और डीएनए के होने के बाद भी कंस राक्षस कहलाए तो श्रीकृष्ण भगवान बन गए। हम अपना धर्म बदल सकते हैं पूर्वज नहीं बदल सकते। भोग में सम्मान हो सकता है, पूजा नहीं हो सकती। त्याग में पूजा होती है। इसी बल पर भारत विश्वगुरु बना। हम भोगवाद की दुनिया नहीं है, आदेश, त्याग और सेवा का समाज है। हमें दुनिया का नेतृत्व करना है। कर्म और किरदार तय करता है कि अच्छा है या बुरा है। ईसाई, इस्लाम में बहुत भेद है। हर समूह की पहचान उसके देश से होती है। हमारे देश के पांच नाम है, बाकी के एक ही हैं। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। सुनील आम्बेकर ने कहा कि दुनिया में कई देश, विचार ताकत, धर्म के आधार पर हमें बांटने की कोशिश करते रहे हैं। आक्रमणकारियों ने भी हमारे समाज में फूट डालने के लिए भाषा, जाति और संस्कृति पर चोट की, बावजूद इसके हमारी एकता बरकरार रही। इसमें हमारे त्योहारों का बड़ा योगदान रहा है। इसलिए हमें अपने पर्वों, त्योहारों और संस्कृति को मिटाने के प्रयास करने वालों को रोकना ही होगी। बोली, भाषा, जाति, धर्म, पहनावा भिन्न होने के बावजूद हम एक हैं और यही एकता एकात्मता का सूत्र है। भारत की संस्कृति ही जोड़ने की, एक सूत्र में पिरोने की संस्कृति है। उन्होंने कहा कि हमारी कलाएं भी हमारे पर्व, उत्सव से जुड़ी हुई है। यह सराहनीय है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से 'पंच प्रण' का पालन करने और शिक्षा प्रणाली में उसी भावना को आत्मसात करने का आग्रह किया है। कहा गया कि उच्च शिक्षा प्रणाली में 'पंच प्रण' और पर्यावरण के लिए जीवन शैली मिशन की भावना को आत्मसात करने के तौर-तरीकों पर काम करें। इस संबंध में की गई गतिविधियों को यूजीसी के विश्वविद्यालय गतिविधि निगरानी पोर्टल पर साझा किया जा सकता है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद

 
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