मध्य प्रदेश के शहडोल जिले का पकरिया गांव अद्भुत है। जनजातीय संसार में जीवन अपनी सहज निश्छलता के साथ मुस्कान बिखेरता यह गांव इंद्रधनुष की तरह गतिमान है। शहडोल जिले का पकरिया गांव सघन वनों से आच्छादित एक ऐसा गांव है, जहाँ साल, सागौन, महुआ, कनेर, आम, पीपल, बेल, कटहल, बांस और अन्य पेड़ों से गुजरती हवाएं उन्नत मस्तक का गौरव-गान करती है। उनकी उपत्यकाओं में कल-कल निनाद से आनंदित करती सोन नदी की वेगवाही रजत-धवल धाराएँ मानो, वसुंधरा के हरे पृष्ठों पर अंकित पारंपरिक गीतों की मधुर पंक्तियाँ है।
जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. आरआर पटेल ने बताया कि पकरिया गांव में लगभग 4700 लोग निवास करते हैं, जिसमें से लगभग 2200 लोग मतदान करते हैं। गांव में लगभग 700 घर जनजातीय समाज के हैं। जिनमें गोंड समाज के 250, बैगा समाज के 255, कोल समाज के 200, पनिका समाज के 10 तथा अन्य समाज के लोग निवास करते हैं। पकरिया गांव में तीन टोला है, जिसमें जल्दी टोला, समदा टोला एवं सरकारी टोला शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार, 27 जून को मध्य प्रदेश प्रवास के दौरान पकरिया गांव पहुंचने वाले थे, लेकिन भारी बारिश के अलर्ट के कारण उनका यह दौरा रद्द हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को बताया कि मंगलवार को भारी वर्षा की संभावना को देखते हुए प्रधानमंत्री ने शहडोल जिले के लालपुर और पकरिया के दौरे को फिलहाल स्थगित किया है। लालपुर में लाखों नागरिक कार्यक्रम में पहुँचने वाले थे। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के आने पर उन्हें वर्षा के कारण होने वाली संभावित परेशानी को देखते हुए प्रधानमंत्री का यह कार्यक्रम स्थगित हुआ है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि भारी वर्षा के कारण नागरिकों को परेशानी न हो, उनके आगमन की नई तिथि शीघ्र ही तय होगी। मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए इस कार्यक्रम को फिलहाल स्थगित करने का निर्णय लिया है। भोपाल के 27 जून के सभी कार्यक्रम यथावत रहेंगे।
जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की लीला-मुद्राओं का अनुकरण
जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. पटेल के अनुसार, ढोल, माँदर, गुदुम, टिमकी, डहकी, माटी माँदर, थाली, घंटी, कुंडी, ठिसकी, चुटकुलों की ताल पर जब बाँसुरी, फेफरिया और शहनाई की स्वर-लहरियों के साथ भील, गोंड, कोल, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया आदि जनजातीय युवक-युवतियों की तरह बुंदेलखंड-शिखर थिरक उठते हैं, जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की इन्हीं लीला-मुद्राओं का अनुकरण है।
पकरिया गांव का जनजातीय समुदाय अद्भुत एवं अद्वितीय इसलिए भी है कि यहां के जनजातियों के रीति-रिवाज, खानपान, जीवन शैली में विशिष्टता है। जनजातीय समुदाय प्राय: प्रकृति सान्निध्य में रहते हैं। इसलिए निसर्ग की लय, ताल और राग-विराग उनके शरीर में रक्त के साथ संचरित होते हैं। वृक्षों का झूमना और कीट-पतंगों का स्वाभाविक नर्तन जनजातियों को नृत्य के लिये प्रेरित करते हैं। हवा की सरसराहट, मेघों का गर्जन, बिजली की कौंध, वर्षा की साँगीतिक टिप-टिप, पक्षियों की लयबद्ध उड़ान ये सब नृत्य-संगीत के उत्प्रेरक तत्व हैं।
नृत्य-संगीत जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग
नृत्य मन के उल्लास की अभिव्यक्ति का सहज और प्रभावी माध्यम है। संगीत सुख-दुख यानी राग-विराग को लय और ताल के साथ प्रकट करता है। कहा जा सकता है कि नृत्य और संगीत मनुष्य की सबसे कोमल अनुभूतियों की कलात्मक प्रस्तुति हैं। जनजातियों के देवार्चन के रूप में आस्था की परम अभिव्यक्ति के प्रतीक भी। नृत्य-संगीत जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग है। यह दिनभर के श्रम की थकान को आनंद में संतरित करने का उनका एक नियमित विधान भी है।
गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएँ चमत्कृत
गांव में गोंड जनजाति समूह में करमा, सैला, भड़ौनी, बिरहा, कहरवा, ददरिया, सुआ आदि नृत्य-शैलियाँ प्रचलित हैं। गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएँ चमत्कृत करती हैं। इनका दिवाली नृत्य भी अनूठा होता है। माँदर, टिमकी, गुदुम, नगाड़ा, झांझ, मंजीरा, खड़ताल, सींगबाजा, बाँसुरी, अलगोझा, शहनाई, बाना, चिकारा, किंदरी आदि इस समुदाय के प्रिय वाद्य हैं। बैगा माटी माँदर और नगाड़े के साथ करमा, झरपट और ढोल के साथ दशहरा नृत्य करते हैं। विवाह के अवसर पर ये बिलमा नृत्य कराते हैं। बारात के स्वागत में किया जाने वाला परघौनी नृत्य आकर्षक होता है। छेरता नृत्य नाटिका में मुखौटों का अनूठा प्रयोग होता है। इनकी नृत्यभूषा और आभूषण भी विशेष होते हैं।
भील जनजाति समूह के लोग नृत्य को 'सोलो' या 'नास' कहते हैं। लाहरी, पाली, गसोलो, आमोसामो, सलावणी, भगोरिया आदि इस जनजाति समूह की बहु प्रचलित नृत्य-शैलियाँ हैं। भील नृत्य के साथ प्राय: बड़ा ढोल, ताशा, थाली, घंटी, ढाक, फेफरिया, पावली (बाँसुरी) आदि वाद्यों का प्रयोग करते हैं।
जनजातीय समाज के लोगों की पूजा-अर्चना
पकरिया गांव में भील जनजाति समूह में हरहेलबाब या बाबदेव, मइड़ा कसूमर, भीलटदेव, खालूनदेव, सावनमाता, दशामाता, सातमाता, गोंड जनजाति समूह में महादेव, पड़ापेन या बड़ादेव, लिंगोपेन, ठाकुरदेव, चंडीमाई, खैरमाई, बैगा जनजाति में बूढ़ादेव, बाघदेव, भारिया दूल्हादेव, नारायणदेव, भीमसेन और सहरिया जनजाति में तेजाजी महाराज, रामदेवरा आदि की पूजा पारंपरिक रूप से प्रचलित है। पूजा-अनुष्ठान में मदिरा और पक्वान्न का भोग लगता है। भीलों के त्योहारों में गोहरी, गल, गढ़, नवई, जातरा तो गोंडों में बिदरी, बकबंदी, हरढिली, नवाखानी, जवारा, छेरता, दिवाली आदि प्रमुख हैं।
पकरिया गांव के जनजातियों का विशेष भोजन
पकरिया गांव के जनजातियों के विशेष भोजन में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, साँवा, मक्का, चना, पिसी, चावल आदि अनाज शामिल हैं। महुए का उपयोग खाद्य और मदिरा के लिये किया जाता है। आजीविका के लिये प्रमुख वनोपज के रूप में भी इसका संग्रहण सभी जनजातियाँ करती हैं। बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के लोगों को वनौषधियों का परंपरागत रूप से विशेष ज्ञान है। बैगा कुछ वर्ष पूर्व तक बेवर खेती करते रहे हैं।