Quote :

" लक्ष्य निर्धारण एक सम्मोहक भविष्य का रहस्य है " -टोनी रॉबिंस

Art & Music

अशोक कुमार की शराब और शतरंज में पहली हार

Date : 17-Oct-2023

 हर साल 13 अक्टूबर को हिंदी सिनेमा के पहले स्टार अशोक कुमार की जयंती मनाई जाती है। कोलकाता में कानून की पढ़ाई कर रहे अशोक कुमार का फिल्मों में आना एक संयोग ही था। वह अपने जीजा शशधर मुखर्जी से मिलने बंबई (अब मुंबई ) गए थे। उनके जीजा बॉम्बे टॉकीज में साउंड रिकॉर्डिस्ट थे। नौकरी दिलाने के उद्देश्य से वे उन्हें बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय से मिलाने ले गए। अशोक कुमार तब निर्देशक बनना चाहते थे किंतु हिमांशु राय ने यह कहकर कि अच्छे निर्देशक होने के लिए पहले अभिनेता बनना जरूरी है, उन्हें अपने जर्मन निर्देशक फ्रैंज ऑस्टिन से मिलने भेज दिया। फ्रैंज ऑस्टिन ने उन्हें पहली नजर में ही रिजेक्ट कर दिया। बीएससी होने के कारण शशधर ने पहले सहायक कैमरामैन फिर सहायक फिल्म संपादक और लैब टेक्नीशियन बनाकर बॉम्बे टॉकीज में ही रख लिया। एक दिन जीवन नैय्या फिल्म का हीरो अचानक गायब हो गया तो उन्हें हीरो बनकर कैमरे के आगे खड़ा कर दिया गया और यहीं से अशोक कुमार की फिल्म जीवन की नाव चल पड़ी।

इसी दौरान देविका रानी के साथ बनी अछूत कन्या फिल्म ने देशभर में धूम मचा दी। इसमें उनका गाया हुआ गाना "मैं वन की चिड़िया बनके वन-वन बोलूं रे ... बहुत लोकप्रिय हुआ। उसके बाद तो बॉम्बे टॉकीज की कई हिट फिल्में उनके नाम रहीं जैसे वचन, कंगन, बंधन, झूला, किस्मत, चल चल रे नौजवान आदि। हिमांशु राय की मृत्यु के बाद 1947 से 1949 तक अशोक कुमार ने बॉम्बे टॉकीज को चलाने के लिए दूसरे बैनर की फिल्में नहीं की। इस दौरान मजबूर, जिद्दी, महल, मुकद्दर, मां , मशाल, तमाशा और संग्राम जैसी सफल फिल्मों का निर्माण हुआ। लेकिन वहां के अकाउंटेंट की धोखाधड़ी से कंपनी घाटे में रही। 1953 में उन्होंने बॉम्बे टॉकीज छोड़ दी और अपनी एक फिल्म कंपनी फिल्मिस्तान का निर्माण किया।

किशोर साहू जो अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता-निर्देशक थे ने अशोक कुमार के साथ का एक किस्सा बड़े रोचक ढंग से अपनी आत्मकथा में लिखा है। किशोर साहू, अशोक कुमार से पहली बार बॉम्बे टॉकीज में जब मिले तब वह काम की तलाश में वहां पहुंचे थे। यह पहली मुलाकात उस आम के पेड़ के नीचे हुई जिसकी डाली पर बैठकर अशोक कुमार और देवका रानी पर अछूत कन्या का गाना मैं वन की चिड़िया...फिल्माया गया था। अशोक कुमार के साथ उन्होंने सावित्री फिल्म में चित्रकार का एक छोटा सा रोल भी किया। आगे अशोक कुमार के जीजा शशधर मुखर्जी ने उनको एक मकान किराये पर दिलाया जो की मान बाग के नाम से प्रसिद्ध था बॉम्बे टॉकीज के स्टूडियो के नजदीक था। तभी किशोर साहू को वहां की फिल्म जीवन प्रभात में हीरो का रोल मिला।

उस दौरान अशोक कुमार लंबी छुट्टी लेकर खंडवा आराम करने चले गए थे । 22 अक्टूबर को किशोर साहू का जन्मदिन होता है उस दिन अशोक कुमार ने उनसे कहा कि चलो साहू आज बंबई चलकर तुम्हारा जन्मदिन मनाते हैं। दोनों लोकल ट्रेन लेकर मलाड से बंबई पहुंचे। वीटी स्टेशन पर उतरकर उन लोगों ने एम्पायर थियेटर में अंग्रेजी फिल्म देखी और फिर अशोक कुमार के कहने पर एम्पायर रेस्त्रां में चले गए। इससे पहले न किशोर साहू ने और न अशोक कुमार ने कभी शराब पी थी। अशोक कुमार के पूछने पर की क्या पीना है उन्होंने ब्रांडी का नाम लिया। अशोक कुमार भी ब्रांडी पीने को तैयार हो गए ।

दोनों ने एक-एक पैग ब्रांडी पी और साथ में मूंगफली और नमकीन चिप्स खाए। आधे घंटे बाद जब दोनों महात्मा गांधी रोड (उस समय हॉर्नबी रोड) पर निकले तो विक्टोरिया टर्मिनल स्टेशन के भारी भरकम घड़ी के कांटे उन दोनों को धुंधले दिखाई दे रहे थे, कदम डगमगा रहे थे। अब बारी इतनी चौड़ी सड़क पार करने की थी। दोनों डर भी रहे थे और शर्म के चलते एक- दूसरे को यह भी नहीं कह पा रहे थे कि उन्हें शराब चढ़ गई है। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर किसी तरह साथ-साथ सड़क पार की और वहां से लोकल ट्रेन पकड़ कर रात 11:00 बजे मलाड पहुंचे । तब तक नशा उतर चुका था ।

इसी रास्ते में उनके जीजाजी मुखर्जी का घर पड़ता था। अशोक कुमार की बहन खाना बहुत अच्छा बनाती थी, इसलिए दोनों लोगों ने वहां पहुंचकर खाना खाया । खाने के दौरान ही अशोक कुमार ने ब्रांडी पीने की पूरी बात अपने जीजा और दीदी को बता दी। बात सुनकर जीजा जी उन दोनों पर यह कहकर गुस्सा हुए कि इतनी रात तक वहां क्यों रहे और पार्टी के लिए उन्हें साथ क्यों नहीं ले गए। इसके बाद तो कई दिनों तक शशधर मुखर्जी ने उन दोनों का खूब मजाक यह कहते हुए उड़ाया कि मध्य प्रदेश के दो अनाड़ी... बंबईकर ब्रांडी पीने चले... और एक ही पैग में चकराने लगे...।

चलते-चलते

259 फिल्मों के महान और लोकप्रिय अभिनेता अशोक कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में आदर के साथ दादा मुनि कहा जाता था। एक अच्छे अभिनेता के अलावा वे अच्छे ज्योतिषी, होम्योपैथी चिकित्सक, चित्रकार और शतरंज के खिलाड़ी के रूप में भी जाने जाते थे। होम्योपैथी से उन्होंने कई गंभीर रोगियों का इलाज सफलतापूर्वक किया था। उर्दू साहित्यकार सआदत हसन मंटो दादा मुनि के ज्योतिष ज्ञान पर फिदा थे। मंटो की जन्म कुंडली देखते ही अशोक कुमार ने उनसे कहा था कि आपका कोई पुत्र नहीं है। जिस व्यक्ति की कुंडली में ऐसे ग्रह हों उनका पहला पुत्र पैदा होते ही मर जाता है।


यह बात सच थी। दादा मुनि को चित्रकारी उस समय के प्रख्यात चरित्र अभिनेता इफ्तिखार ने सिखाई थी। शतरंज भी वह बहुत अच्छा खेलते थे और कभी हारते नहीं थे। एक बार रूस यात्रा के दौरान प्राग हवाई अड्डे पर समय काटने के लिए वे एक महिला के साथ शतरंज खेलने लगे और लगातार हारने लगे। तब दादा मुनि के उतरे चेहरे को देख उस महिला ने बताया कि वह वॉट विटन (जो उस समय शतरंज के चैंपियन थे) की पत्नी हूं और अकसर उनको भी हरा देती हूं...।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement