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13 जनवरी 1948 : गाँधीजी के जीवन अंतिम अनशन

Date : 13-Jan-2024

अनशन और अहिसंक आँदोलन से स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लाने वाले गाँधीजी का अंतिम अनशन स्वतंत्रता के बाद 13 जनवरी 1948 को आरंभ हुआ जो पाँच दिन चला था । भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने के लिये किये गये इस अनशन की कुल पाँच माँगों में दो माँगे प्रमुख थीं। एक तो दिल्ली में उन मुसलमानों के घर हिन्दु शरणार्थियों से खाली कराए जाये जो पाकिस्तान चले गये और दूसरा रोके गये पचपन करोड़ रुपये पाकिस्तान को जारी किये जाँय ।

भारतीय स्वतंत्रता का सूरज सामान्य नहीं था । देश विभाजन के समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले दायित्ववान अधिकारियों ने उन नागरिकों की पूरी सुरक्षा की गारंटी ली थी जो स्वेच्छा से अपना देश बदलना चाहते हैं। लेकिन पाकिस्तान में ऐसा न हो सका । मुस्लिम लीग के सशस्त्र गार्ड स्वतंत्रता से पहले जो बलपूर्वक मतान्तरण का अभियान चला रहे थे वह पाकिस्तान का आकार लेते ही विस्फोटक हो गया । वहाँ उन्होंने बलपूर्वक वहाँ रह रह हिन्दू नागरिकों पर मतान्तरण करने का दबाब बनाया जो नहीं माने उनके साथ बर्बर हिंसक घटनाएँ घटीं। लाखों रोते बिलखते लुटे पिटे लोग किसी प्रकार भारत पहुँचे। पंजाब से लेकर दिल्ली तक देश शरणार्थियों से पट गया था । अकेली दिल्ली में लाखों शरणार्थी थे । इधर दिल्ली में हजारों की संख्या में मुस्लिम नागरिक स्वेच्छा से चले गये थे । कुछ तो अपने मकान बेच गये थे और कुछ ताला लगाकर गये थे । और कुछ परिवारों में आधे लोग गये और आधे संपत्ति के कारण रह गये । 
इससे बाद साम्प्रदायिक हिंसा और तनाव में पूरा वातावरण डूब गया था ।
स्वतंत्रता के समय गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे । वे 9 सितम्बर 1947 को दिल्ली आये और विरला हाउस में ठहरे । पाकिस्तान से आने वाली हिंसा की खबरों की प्रतिक्रिया कुछ दिल्ली में भी होने लगी । उधर पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने का कुचक्र आरंभ कर दिया वहाँ भी हिंसा आरंभ हो गई। यह अफवाह भी फैलाई गई कि कश्मीर पर पाकिस्तान का अधिकार होने वाला है । इससे कश्मीर के हिन्दुओं में भय उत्पन्न हुआ और दिल्ली आने वाले शरणार्थियों में कश्मीर के भी लोग  आने लगे । जिस प्रकार पाकिस्तान ने कश्मीर पर अधिकार करने का कुचक्र किया । इसे विभाजन की शर्तों का उलंघन माना गया और भारत सरकार ने समझौते के अनुरूप पाकिस्तान को दिये जाने पचपन करोड़ की राशि रोक ली । इधर मुस्लिम समाज के जो लोग पाकिस्तान चले गये थे उनके खाली पड़े मकानों पर शरणार्थियों को बसाने का काम भी आरंभ हो गया । ये दोनों बातें गाँधी जी को पसंद न आई।  
वस्तुतः गाँधी जी पहले भारत विभाजन के पक्ष में थे । और, जब हुये तब उनका मानना था व्यक्ति से स्वेच्छा से आये जाये । किसी पर किसी प्रकार की कोई रोकटोक न हो । इंसानियत के नाते सब मिलजुलकर रहें। किन्तु पाकिस्तान और मुस्लिम लीग ने ऊपर से तो यह कहा पर उनके भीतर कितनी कुटिलता थी यह बात विभाजन की भूमिका बनाने केलिये अगस्त 1946 में डायरेक्ट एक्शन और विभाजन के बाद की साम्प्रदायिक हिंसा से बहुत स्पष्ट थी । पर गाँधी जी अपने मानवीय सिद्धांत पर अडिग रहे । वे चाहते थे कि जिन खाली पड़ी मस्जिदों को शरणार्थी कैंप बनाये गये हैं उन्हे खाली किया जाय । मुसलमानों के जिन खाली पड़े मकानों पर शरणार्थियों ने कब्जा कर लिया है उनसे खाली कराया जाय और समाज और सरकार मिलकर यह प्रबंध करे कि मुस्लिम समाज के लोग निर्भय होकर रह सकें तथा जो लोग एक बार पाकिस्तान चले गये थे वे यदि लौटकर आ रहे हैं तो उन्हे बेरोकटोक रहने दिया जाये । 
गाँधीजी ने अपनी बातें सरकार तक पहुंचाई। और जब बात नहीं बनी तो अनशन की घोषणा कर दी । गाँधी जी यह आमरण अनशन 13 जनवरी1948 को प्रातः 11:55 बजे आरंभ हुआ। गाँधी जी की बातों को सरकार तक पहुँचाने का काम उनके निजी सहायक प्यारेलाल जी ने किया । पहले गाँधी जी को समझाने का प्रयास हुआ । किन्तु गाँधी जी नहीं माने। गाँधी जी के समर्थन और विरोध में सभाएँ होने लगी । पाकिस्तान से आये हिन्दु सिक्ख शरणार्थी प्रदर्शन को भी पहुँचे। लेकिन बात नहीं बनी । अंततः सरकार झुकी और गाँधी जी की सभी माँगे स्वीकार कर लीं गईं। यह अनशन कुल पाँच दिन चला । पाँचवे दिन रविवार को दिन के 11 बजे कांग्रेस के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद सहित कांग्रेस के विभिन्न नेता गाँधी जी के पास आये । डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने गाँधी जी माँगे मानने का हस्ताक्षर युक्त पत्र सौंपा । मौलाना आजाद और जवाहरलाल नेहरू ने संतरे का रस अपने हाथों में लेकर गांधी जी को पिलाकर अनशन तुड़वाया ।
यह अनशन गाँधी जी के जीवन का अंतिम अनशन था । इसकी प्रतिक्रिया दोनों प्रकार से हुई । एक ओर गाँधी जी मानवीय सिद्धांतों को बल मिला और पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हो रही हिंसा की जो थोड़ी-बहुत प्रतिक्रिया भारत में होने लगी थी वह रुकी । किन्तु दूसरी ओर गाँधी जी द्वारा पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने और हिन्दु शरणार्थियों से मकान खाली कराने को हिन्दू विरोधी माना गया और  यही बात अंततः उनकी हत्या का एक बड़ा कारण बनी ।
 
 
लेखक - रमेश शर्मा 
 
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