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" लक्ष्य निर्धारण एक सम्मोहक भविष्य का रहस्य है " -टोनी रॉबिंस

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7 फरवरी 1833 अंग्रेजों ने वीर गंगा नारायण सिंह सहित सैकड़ो क्रान्तिकारियों को तोप से उड़ाया

Date : 07-Feb-2024

 इतिहास की पुस्तकों में इस संघर्ष का सबसे कम विवरण

यह अंग्रेजों के विरुद्ध एक गुरिल्ला युद्ध था । जिसे इतिहास में डकैतों का गिरोह लिखा । आजादी का यह संघर्ष 1767 से 1833 तक चला । अंतिम एक साल का युद्ध तो तोपखाने के साथ था । इसका अंदाजा सहज लग सकता है कि कितने लोग शहीद हुये होंगे । केवल इस संघर्ष के नायक का नाम मिलता है । अन्य बलिदानियों का नहीं। इस संघर्ष के नायक थे वीर गंगा नारायण सिंह । जिन्हे 7 फरवरी 1833 को तोप से उड़ाया गया
 
दीवानी मिलते ही अंग्रेजों ने आदिवासियों और नागरिकों का शोषण शुरू कर दिया । अंग्रेजों ने नमक कर, दरोगा प्रथा, जमीन बिक्री कानून इसपर टैक्स आदि लागू किये है । इसके अलावा सालाना बसूली की दर भी बढ़ा दी । इस अबैध बसूली के लिये उन्होंने एक लोकल ऐजेंट बनाया । वराह भूमि के राजा विवेक नारायण सिंह की दो रानियां थी । दोनों के एक एक बेटा । रीति के अनुसार बड़ी रानी के बेटा उत्तराधिकारी होता था । राजा के मरने के बाद अंग्रेजों ने छोटी रानी के बेटे रघुनाथ नारायण सिंह से संपर्क किया और सेना भेजकर गद्दी पर बिठा दिया । और बड़ी रानी का बेटा लक्ष्मण सिंह को निष्कासित कर दिया । उन्हे जंगल में कुछ जमीन निर्वाह के लिये दी । जनता का सद्भाव उनके साथ था । उनहोंने लोगों को संगठित किया । और अंग्रेजों से मुक्ति का संघर्ष शुरू हुआ । अंग्रेजों ने उन्हे पकड़ कर जेल में डाल दिया । उनकीं मृत्यु जेल में ही हुई । 
 
गंगा नारायण सिंह उन्ही के बेटे थे । उनके मन में अंग्रेजों से मुक्ति का तो सपना था अब पिता के बलिदान से गुस्सा बढ़ा । उन्होंने एक गुरिल्ला सेना गठित की और अपनी जन्म भूमि को मुक्त कराने का अभियान छेड़ा तथा । अंग्रेजों को किसी भी प्रकार का कर न देने का आव्हान किया । उनकी बात का प्रभाव पड़ा। पूरा समाज एकत्र होकर संघर्ष में जुट गया । इसमें नगरवासी, ग्रामवासी और वनवासी सब थे । यह संघर्ष इतना प्रबल था कि अंग्रेजों की साधारण सेना काम न आ सकी । दमन के लिये 1832 में अंग्रेजों ने वैरकपुर छावनी से तोपखाने के साथ सेना भेजी । यह युद्ध लगभग साल भर तक चला । अंत में जैसा हर युद्ध में हुआ । अंग्रेजों ने मुखविर से खबर ली और रात में घेर लिया । वहां जितने लोग़ थे उनमें कोई जिन्दा न बचा । वीर गंगा नारायण सिंह को तोप से उड़ा दिया । इस एक साल में कितने वीर शहीद हुये कितने गाँवों में आग लगाकर लोगों को जिन्दा जला कर मार डाला गया इसका हिसाब कहीं नहीं । अंग्रेजों ने इन क्राँतिकारी बलिदानियों के लिये डकैत लिखा । और अपने दमन को सही ठहराने के लिये गजेटियर में इतना लिखा कि "डकैतों की तलाश के लिये गांवो में आग लगाई गई "
भारत के इतिहास में ऐसी कहानियाँ हर क्षेत्र में फैली हैं। 
 
लेखक - रमेश शर्मा 
 
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