संघशक्ति के सहयोग, मोदीजी के संकल्प से साकार हुआ संतो के संघर्ष का सपना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शक्ति की सहभागिता
संतों द्वारा आरंभ किये गये जन्म स्थान पर प्रतिष्ठापना संघर्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहभागिता से निर्णायक गति मिली । पूरे देश की भावनाएँ तो थीं पर उन भावनाओं को संगठित कर दिशा देने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया । यूँ तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के साथ ही संतों के अभियान का समर्थक रहा है फिर भी माना जाता है कि 1966 में आरंभ हुये गौरक्षा आँदोलन से गति तेज हुई । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी की गोरखपुर और काशी यात्रा में संतों ने उनके सामने अयोध्या का विषय रखा । चर्चा है कि 1961 में सुन्नी बक्फ बोर्ड की सक्रियता बढ़ने से संतों में चिंता बढ़ी और संतों ने संघ से सहयोग की अपेक्षा की । संघ के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक कोई विषय नहीं उठाता । पहले विषय को समझता है, जन भावनाओं का अध्ययन करता है फिर आगे बढ़ने की तैयारी होती है । संभवतः भारत पाकिस्तान युद्ध, जेपी आँदोलन और फिर आपातकाल आदि के चलते कोई निर्णायक योजना न बन सकी । माना जाता है कि आपातकाल के बाद संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी के समय इस विषय पर गंभीरता से विचार मंथन हुआ और 1984 से इस संघर्ष संघ की खुली सहभागिता देखी गई। चर्चा है कि तब देवरस जी ने संघ के प्रचारकों से बहुत स्पष्ट शब्दों में कमसेकम तीन दशक तक यह संघर्ष चलाने की तैयारी करने का संकेत किया था । इतनी मानसिक तैयारी के साथ संघ इस आँदोलन में खुलकर सामने आया । लेकिन संघ की यह भूमिका या सहभागिता श्रेय लेने की नहीं थी अपितु संतों को पूरी शक्ति से सहयोग करने की ही रही । इसकी झलक आठ अप्रैल 1984 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित पहली धर्मसंसद में दिखती है । जिसमें संघ की भूमिका केवल सेवा प्रबंधन में थी । इस धर्म संसद में 76 मत एवं पंथ के कुल 558 धर्माचार्य और संत उपस्थित थे । जिसमें राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ । समिति के अध्यक्ष महंत अवैधनाथ, महामंत्री दाउदयाल खन्ना मुख्य महामंत्री तथा महंत नृत्य गोपाल दास, महंत रामंचद्र दास, ओंकार भावे, महेश नारायण सिंह और दिनेश त्यागी को महामंत्री घोषित हुये। समिति ने देश व्यापी जन जागरण अभियान चलाने का निर्णय लिया । विश्व हिंदू परिषद को इस आंदोलन के संचालन का दायित्व सौंपा गया । इसके बाद युवाओं को जोडऩे के लिये हिंदू युवा सम्मेलनों का आयोजन आरंभ हुये ।
इसी वर्ष युवाओं को जोडऩे के लिए बजरंग दल का गठन हुआ। विनय कटियार इसके प्रथम राष्ट्रीय संयोजक बने। बजरंग दल ने आठ अक्तूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ तक श्रीराम रथयात्रा का आयोजन किया जिसमें नारा लगा
"बजरंग दल की है ललकार, ताला खोले यह सरकार" इस पदयात्रा में हजारों की संख्या में साधु-संत, युवा चल पड़े और "आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला खोलो", "जबतक ताला नहीं खुलेगा, तब तक हिंदू चैन न लेगा" आदि नारे भी लगे । विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और रामजन्म भूमि मुक्ति अभियान समिति ने 1984 में तालों में बंद रामलला के बड़े-बड़े बैनर 40 ट्रकों पर लगाए और उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश में यात्रा निकालकर सामाजिक जागरण किया । देशभर में राम शिलापूजन आरंभ हुआ जो देश के तीन लाख से ज्यादा गांवों और कस्बों तक पहुँचा । भारतीय जनता पार्टी ने 1989 से राममंदिर का मुद्दा अपने एजेण्डे में लिया । यह माना जाता है कि संघ की सलाह पर ही भाजपा ने राम मंदिर को अपने एजेण्डे में लिया होगा । जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित संगठनों की सक्रियता से संतों के रामजन्म स्थान मुक्ति संघर्ष को गति मिली उसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के खुलकर सामने आने के बाद इस मुक्ति आंदोलन को गति मिली । इसके साथ कारसेवा आरंभ हुई और भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी ने रथ यात्रा भी आरंभ की । 1990 के गोलीकांड में बलिदान होने वाले कारसेवकों में अधिकांश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयं सेवक थे । और अंत में छै दिसम्बर को विवादास्पद ढांचा गिर गया ।
संतों और संघ से संबंधित संगठनों के अतिरिक्त कोई अन्य संगठन यह बात खुलकर नहीं कह पाया कि वहाँ राममंदिर था और राममंदिर ही बनना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प
अयोध्या में भगवान राम जन्मस्थान के गौरव की प्रतिष्ठापना यदि संतों के संघर्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय सहभागिता से हो सकी तो इसमें तीसरा महत्वपूर्ण आयाम है प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति। मोदी जी प्रधानमंत्री तो 2014 में बने । पर वे लगभग तैंतीस वर्ष पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता श्रीलालकृष्ण आडवाणी की रामजन्म मुक्ति संकल्प रथ यात्रा के समन्वयक थे । बिहार में रथयात्रा के रोके जाने के बाद मोदीजी श्री मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या आये और संकल्प व्यक्त किया कि अब जन्मस्थान की मुक्ति के बाद ही अयोध्या आयेंगे। मोदीजी ने प्रचार से दूर रहकर लगभग पूरे भारत की यात्रा की और जन जागरण किया । न्यायालयों के निर्णय तो इससे पहले भी आये थे लेकिन तब प्रत्येक सरकार ने उनके क्रियान्वयन में तुष्टीकरण का संतुलन बिठाने का प्रयास किया । यही नहीं ढांचा ढहने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने वहाँ पुनः मस्जिद बनाने की ही बात संसद में कही थी । लेकिन प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने न्यायालय के निर्णय को यथारूप में ही क्रियान्वयन करने की दिशा में कदम बढ़ाया। मोदी ने सबका साथ सबका विश्वास, सबका समन्वयक और सहमति की भावना के अनुरूप जन्मस्थान मंदिर निर्माण के प्रति पूरी दृढ़ता व्यक्त की । वे इस विषय पर सदैव चिंतित रहे । उन्होंने पिछले चार वर्षों में अयोध्या के विकास पर लगभग दो दर्जन बैठकें कीं । वस्तुतः मोदी जी अयोध्या में मंदिर का निर्माण के साथ उस स्थल के आध्यात्मिक केन्द्र बनाने के लिये प्रयत्नशील रहे जो उनकी ग्यारह दिनों की साधना तथा वहाँ अनुष्ठान से स्पष्ट है ।
जिस प्रकार प्रातःकालीन सूर्योदय के निमित्त हजारों पलों की आहूति होती है । उसी प्रकार लाखों संतों और भक्तों का बलिदान हुआ, जिस प्रकार ब्रह्म मुहूर्त प्रातःकालीन यात्रा के लिये मार्ग बनाता है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति ने पूरे देश में वातावरण बनाया और मानों ऊषाकाल अपनी विनती से भगवान सूर्यदेव को प्रकट करते हैं उसी प्रकार प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की संकल्प शक्ति से अंततः समस्त विश्व ने अपने जन्मस्थान पर रामलला विराजमान होते हुये देखा ।
लेखक: रमेश शर्मा