Quote :

“काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे ”- अज्ञात

Editor's Choice

5 अप्रैल जयंती विशेष :- आराध्य माता कर्मादेवी

Date : 05-Apr-2024

 साहू समाज की आराध्य देवी कर्मादेवी सेवा, त्याग और भक्ति समर्पण की देवी हैं।परम् आराध्य साध्वी भक्ति शिरोमणी मां कर्मादेवी देश-विदेश में सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी कर्माबाई की गौरव गाथा जन-जन के मानस में श्रद्धा भक्ति के भाव से विगत हजारों वर्षो से चली आ रही है। इनका जन्म:- संवत् 1073 सन 101 7ई0 में पाप मोचनी एकादशी के दिन झांसी नगर में चैत्र कृष्ण पक्ष को प्रसिद्ध व्यापारी राम साहू जी के घर में हुआ था। उनमें बाल्यावस्था से ही धार्मिक कहानियां सुनने की रुचि हो गई थी। कर्माबाई को जितना भी समय मिलता था, वह समय वे भगवान श्रीकृष्ण के भजन-पूजन व ध्यान आदि में लगाती थीं।

नगर साहू समाज के अध्यक्ष रघुवीर प्रसाद साहू, नव युवक मंडल अध्यक्ष घनश्याम साहू ने 5 अप्रैल 2024 को भक्त शिरोमणि मां कर्मा देवी जयंती मनाए जाने को लेकर विचार विमर्श किया। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 5 अप्रैल को साहू समाज की आराध्य में कर्मा देवी जयंती मनाई जाएगी। 

अतीत में उनकी पावन गाथा तथा उसने सम्बन्धित लोकगीत और किंवदतिया इस बात के प्रमाण है कि मां कर्मा देवी कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। मां कर्मादेवी बाथरी वंश की थी। श्री राम साहू की बेटी कर्मादेवी से साहू समाज का वंश और छोटी बेटी धर्माबाई से राठौर समाज का वंश चला आ रहा है। इसलिए साहू और राठौर दोनों तैलिकवंशीय समुदाय के वैश्य समाज है। मां कर्मादेवी का विवाह मध्य प्रदेश के जिला शिवपुरी की तहसील मुख्यालय नरवर के निवासी पद्मा जी साहू के साथ हुआ था। उस समय नरवरगढ़ एक स्वतंत्र जिला था। परम् आराध्य साध्वी भक्ति शिरोमणी मां कर्मादेवी देश-विदेश में सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी कर्माबाई की गौरव गाथा जन-जन के मानस में श्रद्धा भक्ति के भाव से विगत हजारों वर्षो से चली आ रही है।
कथा-कहानियां सुनने की रुचि
बाल्यावस्था से ही कर्मादेवी को धार्मिक कथा-कहानियां सुनने की अधिक रुचि हो गई थी। यह भक्ति भाव मन्द-मन्द गति से बढता गया। कर्मा जी के विवाह योग्य हो जाने पर उसका सम्बंध नरवर ग्राम के प्रतिष्ठित व्यापारी के पुत्र के साथ कर दिया गया।पति सेवा के बाद कर्माबाई को जितना भी समय मिलता था वह समय भगवान श्री क्रष्ण के भजन-पूजन ध्यान आदि में लगाती थी। उनके पति पूजा, पाठ, आदि को केवल धार्मिक अंधविश्वास ही कहते थे।
सामाजिक कार्यों में रुचि
सामाजिक और धार्मिक कार्यो में तन, मन, और धन से लगन लगनपूर्वक लगे रहना उनमें अत्यधिक रुचि रखना, दीन-दुखियो के प्रति दया भावना रखना। इन सभी करणों से कर्माबाई का यशगान बड़ी तेजी से फेलने लगा। कर्मा देवी जगन्नाथपुरी में समुद्र के किनारे ही रहकर बहुत समय तक अपने आराध्य बालकृष्ण को खिचड़ी का भोग अपने हांथों से खिलाती रहीं और उनकी बाल लीलाओं का आनन्द साक्षात मां यशोदा की तरह लेती रहीं।
किए भगवान के दर्शन
आराध्य मां कर्माबाई के जीवन से आत्मबल, निर्भीकता, साहस, पुरूषार्थ, समानता और राष्ट्रभावना की शिक्षा मिलती है। वे अन्याय के आगे कभी झुकी नहीं। उन्होंने संसार के हर दुःख-सुख को स्वीकारा और डट कर उसका मुकाबला किया। गृहस्थ जीवन पूर्ण सम्पन्नता के साथ यापन कर नारी जाति का सम्मान बढ़ाया। अपनी भक्ति से साक्षात् श्रीकृष्ण के दर्शन किए और अपनी गोद में लेकर बालकृष्ण को अपने हाथों खिचड़ी खिलाई।






 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement