भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास लेखन का सबसे दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि बरतानिया सरकार के विरुद्ध जितने भी सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम हुए, उनको विद्रोह, गदर, लूट, डकैती और आतंकवाद की संज्ञा दे दी गई और बरतानिया सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शासन में सहभागिता कर रही कांग्रेस ने भी तथाकथित स्वाधीनता संग्राम लड़ते हुए यही विचार रखा। स्वाधीनता के उपरांत भी न्याय नहीं हुआ। कांग्रेस सरकार में लगातार 11 वर्ष मौलाना अब्दुल कलाम आजाद शिक्षा मंत्री रहे और उन्होंने इतिहास के पन्नों को और विषाक्त कराया। कांग्रेस ने वामपंथियों और तथाकथित सेक्यूलर इतिहासकारों की जमात भारत के सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में बैठा दी गई फलस्वरूप इन्होंने भी बरतानिया सरकार और कांग्रेस के इतिहास को बुलंद करते हुए सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इतिहास को क्षत - विक्षत किया । वहीं दूसरी ओर बॉलीवुड उद्योग में वामपंथियों, तथाकथित सेक्यूलर, मुस्लिम और ईसाई फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेताओं ने सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर जितनी भी फिल्में बनाईं उन सब में छवि धूमिल करने का कुत्सित प्रयास किया गया है। मसलन बतौर नायक आमिर खान ने महा महारथी श्रीयुत मंगल पांडे पर जो फिल्म बनाई , उसमें मंगल पांडे के विवाह का झूठा दृश्य और उनके संबंध तवायफ के साथ स्थापित करने का प्रयास किया गया जो कि घोर आपत्तिजनक है। इस तरह से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई परंतु मंगल पांडे के परिवार से संबद्ध सदस्य रघुनाथ पांडे ने इस पर आपत्ति दर्ज की, तदुपरांत न्यायाधीश महोदय ने भी इस फिल्म को देखकर कहा कि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है, तो इसे एक नाटकीय रुप दे दिया गया, तथापि जनसाधारण के विरोध से यह काल्पनिक फिल्म फ्लॉप हो गई।बरतानिया सरकार के साथ तथाकथित सेक्यूलर और वामपंथी इतिहासकारों ने यह बताने का कुत्सित प्रयास किया है कि 29 मार्च सन् 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने भांग आदि का नशा किया था, इसलिए उसने नशे की पिनक में अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर दिया परंतु यह किसी भी दृष्टि से सही नहीं हो सकता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति नशे की हालत में इतनी देर तक व्यवस्थित रुप से युद्ध नहीं कर सकता है जितना कि महारथी मंगल पांडे ने किया है। अतः मंगल पांडे के बारे में सही इतिहास सबके सामने आना ही चाहिए। महारथी मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक ब्राह्मणपरिवार में हुआ था।इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। ब्राह्मण होने के कारण मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में भर्ती किये गए, जिसमें ज्यादा संख्या में ब्राह्मणों की भर्ती की जाती थी।बैरकपुर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तर 24 परगना ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यह कोलकाता महानगर क्षेत्र का भाग है और हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित नगर है।19वीं सदी में बैरकपुर में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध दो सशस्त्र संघर्ष हुए। इनमें से पहला सन् 1824 का बैरकपुर संघर्ष था, जिसका नेतृत्व सिपाही बिंदी तिवारी ने किया था, इस संग्राम में, 47वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री ने भाग लिया था। परंतु सन् 1857 में, बैरकपुर एक ऐसी घटना का स्थल बना जिसे सन् 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रारंभ करने का श्रेय प्राप्त हुआ। एक महान् भारतीय सैनिक, मंगल पांडे ने बैरकपुर में अपने ब्रिटिश कमांडरों पर हमला किया,और बाद में उनका कोर्ट-मार्शल कर फांसी पर लटका दिया गया। उनके कार्यों की स्मृति में हुगली नदी की शांति में 'शहीद मंगल पांडे उद्यान' नामक एक पार्क खोला गया है ।
8 अप्रैल बलिदान दिवस विशेष - स्व का सिंहनाद और पूर्णाहुति महारथी श्रीयुत मंगल पांडे "
इसके बाद क्रोध में भरा हुआ बाग तलवार लिए मंगल पर दौड़ा एक अंग्रेज अफसर इस समय तलवार लिए उसकी सहायता के लिए आ पहुँचा। दोनों अंग्रेज अफसर मंगल पांडे पर टूट पड़े, महारथी मंगल पांडे भी वीरता पूर्वक तलवारों का जवाब तलवार से देने के लिए तैयार था, तीनों की तलवार हवा में घूमने लगी चारों ओर लगभग 400 सिपाही खड़े युद्ध देख रहे थे। महारथी मंगल ने बड़ी वीरता और फुर्ती से दोनों के वार को बचाते हुए अपने विपक्षी एक अंग्रेज अफसर बाग को घायल कर अधमरा कर दिया तथा दूसरे अंग्रेज अफसर को भी भूमिसात कर दिया तब उस अंग्रेज के प्राण बचाने के लिए गद्दार शेख पल्टू नामक एक मुसलमान आगे आया, जैसे ही मंगल ने अंग्रेज़ अफसर को जान से मारने के लिए ताकत से तलवार चलाई वैंसे ही शेख पल्टू ने पीछे आकर मंगल की बांह पकड़ ली, पल्टू का बांया हाथ कट कर लहूलुहान हो गया पर उसने मंगल को ना छोड़ा इस प्रकार इस अंग्रेज अफसर की प्राण बचे पर उसे भी कई घाव लगे थे। दोनों अंग्रेज अधिकारी संतरियों की सहायता से भाग निकले। शेख पल्टू अब तक मंगल पांडे को पकड़े था, तब अन्य देशी सिपाहियों ने उसे जाकर कहा कि तुम मंगल को छोड़ दो नहीं तो हम लोग तुम्हें मार डालेंगे। मंगल पांडे छूट गया और मस्ती के साथ वहीं गश्त लगाने लगा। सेना की गड़बड़ का समाचार जनरल हेयर्स व ह्यूरसन तक पहुंचा। सेनापति हेयर्स अपने दोनों नौजवान पुत्रों सहित परेड के मैदान में पहुंच गया। हेयर्स ने देखा कि मंगल पांडे पागलों की तरह सेना में घूमता हुआ देश और धर्म रक्षा का उपदेश दे रहा है। सैनिक किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े हैं और मंगल पांडे अकेला बरतानिया सरकार को चुनौती दे रहा है। परंतु हैयर्स के धमकाने पर शेख पल्टू जैंसे डरपोक और गद्दार सैनिक हैयर्स के साथ चले गए जिसके कारण महारथी मंगल पांडे का मनोबल टूट गया और उन्होंने अंग्रेज अफसर को घायल कर स्वयं अपनी बंदूक से प्राणोत्सर्ग का प्रयास किया परंतु सफल न हो सके।सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम नायक मंगल घायल होकर गिर गए। 6 अप्रैल सन् 1857 को मंगल पांडे पर मुकदमा हुआ और कोर्ट मार्शल के साथ फांसी की सजा सुना दी गई। मंगल पांडे के घाव गहरे थे परंतु अब उन्हें आराम करने की चिंता नहीं थी!! इस दशा में भी धीर-वीर मंगल पांडे ने सहनशक्ति का पूर्ण परिचय दिया। उन्होंने कोई उफ या आह न की और ना किसी तरह का खेद प्रकट किया। 8 अप्रैल सन् 1857 को सारी सेना के सामने वीरवर मंगल पांडे को फांसी दे दी गयी। 10 अप्रैल सन् 1857 को एक जमादार का भी मुकदमा हुआ। इस जमादार का यह अपराध था कि इसने अंग्रेज अफसरों को घायल होते देखकर भी मंगल को गिरफ्तार करने का आदेश नहीं दिया। 21 अप्रैल को उस जमादार को भी फांसी दे दी गई। परंतु मंगल पांडे को पकड़ने वाले गद्दार शेख पल्टू को सिपाही से हवलदार बना दिया गया। महा महारथी मंगल पांडे के बलिदान से सिपाहियों में बड़ी सनसनी फैल गई थी। कायरों के दिल दहल गए थे लेकिन वीरों की आत्माएं आंदोलित होने लगीं। मंगल पांडे के गिरे हुए रक्त ने सारे भारत में सशस्त्र संग्राम का बीजारोपण कर दिया परिणामस्वरुप फिर उस संग्राम ने ऐंसा विशाल रुप धारण किया कि एक बार अंग्रेजों के पैर भारत से खिसकते हुए दिखाई दिए थे। सच तो यह है कि यदि बरतानिया सरकार का साथ भारत की देशी रियासतों और शेख पल्टू जैंसे गद्दारों ने न दिया होता तो भारत सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ही स्वतंत्र हो जाता।