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" लक्ष्य निर्धारण एक सम्मोहक भविष्य का रहस्य है " -टोनी रॉबिंस

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वरुथिनी एकादशी

Date : 04-May-2024

  

वरुथिनी एकादशी

 

पदम पुराण के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और अनेक वर्षों तक तप करने पर मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। मनुष्य वरूथनी एकादशी का व्रत करके साधक विद्यादान का फल भी प्राप्त कर लेता है। यह एकादशी सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है एवं दरिद्रता का नाश करने वाली और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली भी मानी गई है।

 

वरुथिनी एकादशी 2024 शुभ मुहूर्त

वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ-  3 मई 2024 को रात 11 बजकर 24 मिनट से 

वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त-  4 मई 2024 को रात 8 बजकर 38 मिनट पर

वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा का समय-   4 मई 2024 को सुबह 7 बजकर 18 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 58 मिनट तक

वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण का समय- 5 मई 2024 को  सुबह  5 बजकर 37 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 17 मिनट तक

 

वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि

इस दिन व्रत करने वाले मनुष्य को सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिये। दूसरों की बुराई और दुष्ट लोगों की संगत से बचना चाहिए। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. व्रत से एक दिन पूर्व यानि दशमी को एक ही बार भोजन करना चाहिए।
  2. व्रत वाले दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान की पूजा करनी चाहिए।
  3. व्रत की अवधि में तेल से बना भोजन, दूसरे का अन्न, शहद, चना, मसूर की दाल, कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। व्रती को सिर्फ एक ही बार भोजन करना चाहिए।
  4. रात्रि में भगवान का स्मरण करते हुए जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करना चाहिए।

व्रत वाले दिन शास्त्र चिंतन और भजन-कीर्तन करना चाहिए और झूठ बोलने व क्रोध करने से बचना चाहिए।

 

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा 

 

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन समय में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम के राजा का राज हुआ करता था। वह तपस्वी था। एक समय ऐसा आया कि राजा की तपस्या के दौरान एक जंगली भालू आया और उसके पैर को चबाने लगा, लेकिन राजा तपस्या में लीन रहा। भालू राजा को घसीट कर जंगल में ले गया। भालू को देख राजा अधिक डर गया।

रक्षा के लिए भगवान विष्णु से की प्रार्थना

इस दौरान उसने भगवान भगवान विष्णु से जीवन की रक्षा के लिए प्रार्थना की। उसकी पुकार सुन प्रभु वहां प्रकट हुए और भालू को मारकर राजा के प्राण बचाए। तब तक भालू ने राजा का पैर खा लिया था। इसकी वजह वह बेहद दुखी था। राजा को इस परिस्थिति में देख भगवान विष्णु ने उसको एक उपाय बताया। प्रभु ने राजा को वरूथिनी एकादशी करने के लिए कहा।

मृत्यु के बाद राजा को स्वर्ग की हुई प्राप्ति

राजा ने प्रभु की बात को मानकर वरूथिनी एकादशी व्रत किया और उसने वराह अवतार मूर्ति की पूजा की। इसके बाद इस व्रत के प्रभाव से राजा फिर से सुंदर शरीर वाला हो गया। मृत्यु के पश्चात उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसी तरह वरूथिनी एकादशी की शुरुआत हुई।

 

 

 

 
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