छत्तीसगढ़ की संस्कृति और उदारता का उत्सव: छेरछेरा | The Voice TV

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ज्ञान ही एकमात्र ऐसा धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता - अज्ञात

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छत्तीसगढ़ की संस्कृति और उदारता का उत्सव: छेरछेरा

Date : 13-Jan-2025

छेरछेरा छत्तीसगढ़ के सबसे प्रमुख और साल का पहला त्यौहार है। यह त्योहार हर साल पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और नए धान से कोठार भर जाने का उत्सव है। छेरछेरा का मुख्य संदेश है कि अपनी जरूरत का धान रखो और जो भी दान मांगने आए, उसे खाली हाथ लौटाओ।

त्योहार की परंपरा और मान्यता

इस दिन बच्चे और युवा टोलियों में घर-घर जाकर आवाज लगाते हैं:

"छेरछेरा, माई कोठी के धान हेरहेरा।"

 जब तक दान नहीं मिलता, वे यह कहते रहते हैं:

"अरन बरन कोदो करन, जब्भे देबे तब्भे टरन।"

यह माना जाता है कि इस दिन दान करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

2025 में छेरछेरा का पर्व

इस वर्ष छेरछेरा का पर्व 13 जनवरी, सोमवार को मनाया जाएगा।पौष पूर्णिमा तिथि की शुरुआत: 13 जनवरी को सुबह 5:45 बजे। तिथि का समापन: 14 जनवरी को सुबह 3:59 बजे।

पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यता:

यह दिन भगवान शिव और माता अन्नपूर्णा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। इसके साथ ही, यह मां शाकंभरी जयंती का भी दिन है। मां शाकंभरी को देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है, जिन्होंने पृथ्वी पर अकाल और गंभीर खाद्य संकट से छुटकारा दिलाने के लिए जन्म लिया था। इसलिए उन्हें सब्जियों और फलों की देवी के रूप में पूजा जाता है।

ऐतिहासिक मान्यता:

कहा जाता है कि कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्ध कला की शिक्षा ली थी। लगभग आठ वर्षों तक राज्य से दूर रहने के बाद, जब वे रतनपुर लौटे, तो प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई। राजा की वापसी पर पूरे राज्य में उत्सव का माहौल था। लोग लोकगीत गाते हुए और बाजे- गाजे के साथ नाचते-गाते राजमहल की ओर बढ़े।

राजा की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने राजकाज संभाला था। पति की वापसी से खुश होकर उन्होंने प्रजा पर सोने-चांदी के सिक्के लुटाने शुरू कर दिए। राजा कल्याण साय ने इसे यादगार बनाने के लिए आदेश दिया कि इस दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा। साथ ही यह सुनिश्चित किया गया कि इस दिन कोई भी खाली हाथ लौटे।

सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व

छेरछेरा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों का प्रतीक है। यह किसानों के लिए खुशी का दिन हैं, जब वे अपनी मेहनत की फसल को सुरक्षित कर उत्सव मनाते हैं। यह पर्व लोगों को उदारता, सहृदयता, और सामूहिकता का महत्व सिखाता है।

संस्कृति और परंपरा का प्रतीक

छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। यह केवल लोगों को एकजुट करता है, बल्कि समाज में सहयोग, दान, और परस्पर प्रेम का संदेश भी देता हैं

 

 
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