जालौन। यूं तो नवरात्र में मां के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। लेकिन, देश के कई हिस्सों में देवी मां के चमत्कार से जुड़े हुए तमाम किस्से और कहानियां मौजूद हैं। ऐसा ही एक किस्सा बुंदेलखंड के जालौन से जुड़ा हुआ है। यहां पर मौजूद शारदा माता का मंदिर जो आज भी पृथ्वीराज चौहान और आल्हा ऊदल के साथ भी युद्ध का साक्षी बना हुआ है। यह मंदिर जालौन जिले के बैरागढ़ गांव में स्थित है। जो शक्ति पीठ शारदा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां जालौन से ही नहीं बल्कि दूर-दराज इलाकों से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। नवरात्र पर यहां पर भव्य आयोजन किए जाते हैं।
दरअसल, शारदा देवी का यह मंदिर जालौन जिले के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलो मीटर दूरी पर ग्राम बैरागढ़ में बना हुआ है। यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं। मां शारदा देवी की अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है। मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मन्दिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडलमल द्वारा ग्यारहवी सदी में कराई गई थी। जबकि किवदंतियों के अनुसार यह मन्दिर आदिकाल में निर्मित कराया गया था और मां शारदा की मूर्ति मन्दिर के पीछे बने एक कुंड से निकली थी। किवदंतियों की मानें तो कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थी। इसीलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्ध पीठ कहा जाता है।
हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान और आल्हा-ऊदल के युद्ध की साक्षी है यह भूमि
मां शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी है। पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से 11 सदी के बुन्देलखंड के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढ़ाई की थी। उस समय चन्देलों की राजधानी महोबा थी। आल्हा- ऊदल राजा परमाल के मंत्री के साथ वीर योद्धा भी थे। बैरागढ़ के युद्ध मे आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था। बताया गया कि आल्हा और ऊदल मां शारदा के उपासक थे। जिसमें आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पायेगा। ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी। उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों के बगल में सांग गाढ़ दी। पृथ्वीराज चौहान सांग को न ही उखाड़ सके और न ही सांग की नोक को सीधा कर पाए।
30 फीट ऊंची गढ़ी सांग की लंबाई न नाप सका कोई
आलम है युद्ध में विजय हासिल करने के बाद मंदिर के ठीक बगल में एक लोहे की सांग को गाढ़ दिया जो कि ऊपर से 30 फीट ऊंचाई की दिखाई देती है। लेकिन जैसा जमीन में कितनी गहराई तक है। इस बात का अंदाजा आज तक किसी को नहीं हुआ। मंदिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता दर्शाता है। जब आल्हा ने युद्ध से बैराग लिया तभी से यहां का नाम बैरागढ़ पड़ गया। वहीं, मंदिर के पुजारी श्याम ने बताया कि श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओ के लिए चैत्र और शारदीय नवरात्रि नवरात्रि पर दर्शन करने आते है। यहां विशाल मेला लगता है जो पूरे एक माह चलता है। पुजारी के मुताबिक मंदिर के पीछे एक कुंड है। इस कुंड में नहाने से सभी प्रकार के चरम रोग ख़त्म हो जाते है।
दिन में तीन बार रंग बदलती है मंदिर की मूर्ति
मां शारदा शक्ति पीठ के बारे में दर्शन करने वाले लोगों के अनुसार मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है। सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है। जिनके दर्शनों के लिये पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालू दर्शन करने आते है। महाराज का कहना है कि मां शारदा माता के दर्शन करने से श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाये पूर्ण होती है। वहीं पिछले 20 सालों से दर्शन के लिए पहुंच रहे श्रद्धालुओं ने बताया कि जब तक माता रानी बुलाती रहेगी वो यहाँ आते रहेंगे। यहां दर्शन करने से दुखों और कष्टों का नाश होता है।