कोलकाता। नववर्ष की शुरुआत के साथ ही पश्चिम बंगाल में आध्यात्मिकता और श्रद्धा का संगम देखने को मिला। देश-विदेश से हजारों भक्त रामकृष्ण मिशन से जुड़े स्थलों पर पहुंचे, जहां श्रद्धा और भक्ति के साथ कल्पतरु उत्सव मनाया गया। इस उत्सव का मुख्य केंद्र कोलकाता के काशीपुर स्थित उद्यानबाटी रहा, जहां महान संत रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन के अंतिम समय बिताए थे।
1886 की घटना से शुरू हुआ यह परंपरागत उत्सव
कल्पतरु उत्सव की शुरुआत एक जनवरी 1886 को हुई थी। उस दिन रामकृष्ण परमहंस अत्यंत अस्वस्थ अवस्था में काशीपुर उद्यानबाटी में अपने शिष्यों के साथ थे। उनके शिष्य गिरीश घोष, सुरेंद्रनाथ, रामचंद्र दास और अन्य लोगों ने देखा कि अत्यधिक अस्वस्थता के बावजूद रामकृष्ण परमहंस दूसरे तल्ले से उतरकर बरामदे होते हुए उनकी ओर आ रहे थे। गुरु को इस प्रकार अपनी ओर आते देख शिष्य भावविभोर हो गए।
रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्यों को आशीर्वाद दिया और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे एक भगवत पुरुष हैं। इसके बाद वह आम के पेड़ के नीचे बैठ गए और सभी को आशीर्वाद देते हुए कहा, "आप सभी के जीवन में सत्यता आए।" उस दिन शिष्यों को अपने गुरु में भगवान के दर्शन हुए, और उनकी वर्षों की इच्छा पूरी हुई। इस घटना को श्रद्धालु कल्पतरु उत्सव के रूप में मनाने लगे, जो आज भी जारी है।