मंदिर श्रृंखला विशेष: मां राज राजेश्वरी चूलागढ़ शक्तिपीठ
हिमालय का गढ़वाली क्षेत्र देवभूमि का नाम से जाना जाता है। यह भूमि अनादिकाल से देवी देवताओं की निवास स्थली और अवतारों की लीला भूमि रही है। यहां प्रसिद्ध ऋषियों ने ज्ञान विज्ञान की ज्योति जलाई और समस्त वेद, पुराण, शास्त्र की रचनाएं बताईं।
माँ राज राजेश्वरी का पावन शक्तिपीठ समान हिमालय पर्वत पर स्थित है। श्रीमुख पर्वत, बालखिल्य पर्वत, वारणावत पर्वत और श्रीक्षेत्र के अंतर्गत माँ राज राजेश्वरी के परमधाम का वर्णन है। मां राजराजेश्वरी का मंदिर बालखिल्य पर्वत की सीमा पर मणि द्वीप आश्रम में स्थित है जो कि बासर, केमर, भिलंग एवं गोनगढ़ के केंद्र स्थल चमियाला से 15 कि. मि. और मंदरा से 2 कि. मि. दूरी रमानिक पर्वत पर स्थित है। माँ राज राजेश्वरी के बारे में आख्यान में कहा गया है कि देवासुरमबत के समय आकाश मार्ग से गमन करते समय भगवती का खड्ग (एक अज्ञात धातु से एक "शक्ति हथियार" तलवार को हथियार के रूप में बनाया गया था) चूलगढ़ की पहाड़ी पर गिरा था। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार पिछले लाखों वर्षों से मंदिरों के गर्भगृह में यह 'शक्ति शस्त्र' मौजूद है। माँ राज राजेश्वरी दस "महाविद्या" में से एक 'त्रिपुर सुंदरी' का रूप हैं। माता राज राजेश्वरी अचल संपत्ति के राज वंश पूजी द्वारा दी गई थी। कनक वंश के राजा सत्य सिंध (छत्रपति) ने 14वीं शताब्दी में मां राजराजेश्वरी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।
स्कंदपुराण में यह उल्लेख है कि एक बार जब पृथ्वी अवतरित हुई तो ब्रह्मा जी ने इसी देव भूमि में मां राज राजेश्वरी का स्थापन किया। स्कन्दपुराण में निम्न उल्लेख है:- शिव सरस्वती लक्ष्मी, सिद्धि बुद्धि महोत्सव। केदारवास सुंभंगा बद्रीवास सुप्रियम।। राज राजेश्वरी देवी सृष्टि संहार कारिणीम्। माया मायास्थितां वामा, वाम शक्ति मनोहरम्।। (स्कन्दपुराण, केदारखण्ड अध्याय 110)
राजा सत्यसिंध (छत्रपति) की राजधानी छत्तीयारा थी जो कि चूलागढ़ से लगभग 6 कि.मी. दूर थी। पर स्थित है. राजा सत्यसिंध ने चूलागढ़ में मां राज राजेश्वरी की पूजा की राजधानी के ध्वजावशेष के आज भी छतरीयारा के निकटतम दर्शन मिलते हैं। प्रसिद्ध वंशीय शासक अजयपाल का यहाँ गढ़ होने का प्रमाण है। चूलागढ़ पर्वत से खत पर्वत, यज्ञकुट पर्वत, भैरवचट्टी पर्वत, , हटकुनी तथा भृगु पर्वत के समीप से दर्शनलोक किया जा सकता है। माँ राज राजेश्वरी मंदिर से थोड़ी दूरी पर "गज का चबूतरा" नामक स्थान है जहाँ पर राजा का आश्रम बना था। इससे पहले भी राजमहल और सामंतों के निवास थे। जहां ध्वजावशेष यहां विखरे पड़े हैं। गढ़पति ने पानी की व्यवस्था एवं सुरक्षा का ध्यान रखते हुए मंदिर से दो किलोमीटर लंबी गंगा भूमि के अंदर खुदाई थी जो मंदिर के नीचे वहने वाली बालगंगा तक गयी थी। इस जगह जहां पत्थर के दीपक रोशन थे, वहां रोशनी की रोशनी थी। सुरंग में जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ बनी हुई थी। अभी यह सुरंग बंद हो गई है।
मंदिर में पूजा दो रावल (पुजारी) द्वारा की जा रही है, जो गांव "मांद्रा" के नौटियाल राजवंशीय परिवार के हैं। रावल की सहायता के लिए महाराजाधिराज ने केपर्स के चौहान परिवार को गजावन गांव की जमीन पर दान दी थी। जो कि भगवती के नाम से आज भी भगवान है। मंदिरों में सेवा कार्य केपर्स और गदरा के 'चौहान' परिवार द्वारा किया जाता है।
मंदिर में नवरात्रि, पूजन और जात के दौरान छतियारा के 'गड़वे' (माता के दास) द्वारा ढोल, दमानु बजाया जाता है। उदाहरण के लिए महाराजा द्वारा भरण पोषण भूमि दान दी गई है। माँ राजेश्वरी मंदिर में प्रत्येक नवरात्रि में पूजा अर्चना की जाती है। और दूर-दूर से यहां आते हैं और अपनी मनौती मांगते हैं और मां का आशीर्वाद लेते हैं। मंदिर में मां राज राजेश्वरी मंदिर के ट्रस्टियों द्वारा पिछले एक वर्ष से एक सेवक की नियुक्ति की गई है जो कि नित्य धूप दीप, स्वच्छता और दीक्षा का कार्य करता है। इस प्रकार पिछले एक साल से यहां अनोखा दीपक जलता रहता है। मंदिर में जाने वाले के लिए आश्रम की पूरी व्यवस्था है। कर्ण गांव में मंदिर के लिए--माँ राज राजेश्वरी मोटर मार्ग का प्रस्ताव भी जल्द ही सरकार के पास विचाराधीन है।
बिहार के बक्सर में राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर के बातूनी देवता - हिंदू मंदिर चमत्कार
वैज्ञानिक, धर्मनिरपेक्ष , संशयवादी, नास्तिक और भक्त सभी बिहार के बक्सर में राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी में रात में देवताओं के बात करने की अप्राकृतिक घटना के बारे में समझाने में असमर्थ हैं। रात के समय मंदिर से तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर में देवता रात में एक-दूसरे से बात करते हैं।
इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि ये आवाजें तभी सुनाई देती हैं जब मंदिर के आसपास कोई जीवित प्राणी नहीं होता है। तो यह रात के समय होता है जब आवाजें सुनाई देती हैं।
राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का निर्माण लगभग 400 वर्ष पूर्व हुआ था। यह देवी शक्ति के विभिन्न रूपों को समर्पित एक तांत्रिक मंदिर है। मंदिर में पूजी जाने वाली मुख्य देवी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी हैं। यहां देवी त्रिपुर, धूमावती, बगलामुखी, तारा, काली, छिन्नमस्ता, षोडशी, मातंगी, कमला, उग्र तारा और भुवनेश्वरी सहित देवी शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इस प्रकार यह मंदिर दस महाविद्याओं को भी समर्पित है।
मंदिर में पूजे जाने वाले भैरव हैं- दत्तात्रेय भैरव, बटुक भैरव, अन्नपूर्णा भैरव, काल भैरव और मातंगी भैरव।
आवाजें बहुत साफ हैं लेकिन कोई उन्हें समझ नहीं पा रहा है। लोग आवाजों के स्रोत का भी पता नहीं लगा पा रहे हैं.
वैज्ञानिकों की एक टीम ने उस स्थान का दौरा किया और इस बात की पुष्टि की कि मंदिर से तब भी आवाजें आती रहती हैं जब वहां कोई व्यक्ति नजर नहीं आता। उन्हें रात में आवाजों का सही कारण पता नहीं चल सका।
यह मंदिर क्षेत्र के हिंदुओं के बीच बहुत प्रसिद्ध है। मान्यता है कि मंदिर में देवी मां शक्ति को समर्पित मंत्रों का जाप करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस मंदिर में देश भर से तांत्रिक आते हैं।
विज्ञान भले ही मंगल और चांद पर आशियाने बसाने के सपने देख रहा हो लेकिन धार्मिक स्थलों में आज भी ऐसे कई गूढ़ रहस्य छिपे हैं, जिनके बारे में विज्ञान तह तक नहीं पहुंच सका। जहां विज्ञान पीछे हो जाता है और वहां सिर्फ विश्वास आगे रहता है। बक्सर के डुमरांव में तंत्र साधना के प्रसिद्ध राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर में स्थापित मूर्तियां सच्चे इंसानों की तरह आपस में बातें करती हैं। निस्तब्ध निशा में मूर्तियां की आपस में फुसफुसाहट सुनी जाती है, तंत्र साधना के लिए भी यह मंदिर प्रख्यात है।
राज राजेश्वरी मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना
शारदीय एवं वासंतिक नवरात्र में कलश स्थापित कर शक्ति स्वरूपा की पूजा-अर्चना की पुरानी परंपरा है, लेकिन डुमरांव नगर के लाला टोली मोहल्ला में स्थापित इस तांत्रिक मंदिर में कलश स्थापित नहीं होता है एवं न ही आम देवी-देवताओं की तरह मंदिरों में तरह पूजा-पाठ होती है। तंत्र साधना के लिए प्रख्यात इस राज-राजेश्वरी मंदिर में साधकों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
मंदिर में स्थापित है तीन महाविद्याएं
राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर के प्रति साधकों की आस्था यूं ही नहीं है। बल्कि इस मंदिर में प्रधान देवी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी के साथ ही बगलामुखी देवी, तारा माता के अलावे पांचों भैरव में दत्तात्रेय भैरव, बटुक भैरव, अन्नपूर्णा भैरव, काल भैरव व मातंगी भैरव की प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर में काली, त्रिपुर भैरवी, द्युमावती, तारा, छिन्नमस्तिका, षोड़सी, मातंगड़ी, कमला, उग्र तारा, भुवनेश्वरी आदि दस महाविद्याएं भी हैं।
चार सौ साल पुराना है मंदिर का इतिहास
जाने-माने तांत्रिक भवानी मिश्र द्वारा लगभग चार सौ वर्ष पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी। तब से आज तक इस मंदिर में उन्हीं के परिवार के सदस्य पुजारी की भूमिका निभाते है। मंदिर के मुख्य पुजारी पं.किरण प्रकाश मिश्रा ने बताया कि पूर्णत: तांत्रिक इस मंदिर में कलश स्थापना नहीं कराया जाता है। इस मंदिर में बगलामुखी राज राजेश्वरी माता को सूखे मेवे का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है।
रात में मूर्तियों से आती है आवाज
राज राजेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी मंदिर की सबसे अनोखी मान्यता यह है कि निस्तब्ध निशा में यहां स्थापित मूर्तियों से बातचीत की आवाज आती है। मध्य रात्रि में नागरिक जब यहां से गुजरते है, तो उन्हें मूर्तियों की आवाज सुनाई पड़ती है। मंदिर के पुजारी पं. किरण मिश्र ने इस बात की पुष्टि की है। नगर के कई लोगों ने भी रात में मंदिर से कानाफूसी होने की आवाज सुनने की बात कही है। ऐसा लगता है मानो निस्तब्ध निशा में मूर्तियां आपस में बात करती हैं।