भारत विभिन्न भाषाओं, बोलियों और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों से समृद्ध एक ऐसी सभ्यता है, जिसकी प्रत्येक भाषा अपने आप में विशिष्ट होते हुए भी एक साझा भावनात्मक और सांस्कृतिक सार से जुड़ी हुई है। यही बहुभाषी भावना भारत की विविधता में निहित एकता को मजबूत करती है। इसी सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने के उद्देश्य से महाकवि सुब्रमण्यम भारती की जयंती पर प्रतिवर्ष 11 दिसंबर को भारतीय भाषा उत्सव मनाया जाता है, जो भारत की भाषाई परंपराओं को जोड़ने वाले इस शाश्वत बंधन का उत्सव है।
तमिल साहित्य के महान कवि सुब्रमण्यम भारती न केवल एक साहित्यिक व्यक्तित्व थे बल्कि एक दूरदर्शी विचारक भी थे, जिन्होंने भाषाओं के माध्यम से एकजुट भारत का सप ना देखा। तमिल, संस्कृत, हिंदी, तेलुगु, बंगाली सहित अनेक भारतीय भाषाओं में उनकी दक्षता भारतीय सभ्यता के बहुभाषी स्वरूप का प्रतीक है। स्वतंत्रता, समानता और प्रगति जैसे विचारों से ओतप्रोत उनकी कविताएँ भाषाई सीमाओं से परे जाकर पूरे राष्ट्र में सांस्कृतिक जागरण को प्रेरित करती हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के दृष्टिकोण के अनुरूप भारतीय भाषा उत्सव का उद्देश्य “राष्ट्रीय एकता के लिए बहुभाषावाद” के सिद्धांत को मजबूत करना है। उत्सव के दौरान छात्रों, शिक्षकों और समुदाय को विविध भारतीय भाषाओं पर केंद्रित आनंददायक और अनुभवात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाता है, जिससे भाषाई सद्भाव, रचनात्मकता और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
भारतीय भाषा उत्सव 2025 का विषय “भाषाएँ अनेक, भाव एक” देश की भाषाई एकता की भावना को उजागर करता है। यह विचार बताता है कि भले ही भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हों, लेकिन हमें जोड़ने वाला सांस्कृतिक और भावनात्मक सार एक ही है। प्रत्येक भारतीय भाषा राष्ट्र की सामूहिक पहचान और सांस्कृतिक मजबूती में योगदान करती है, जिससे भारत का बौद्धिक और साहित्यिक ताना-बाना और समृद्ध होता है।
उत्सव का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं और साहित्य के प्रति सम्मान और गर्व की भावना को बढ़ाना है। साथ ही यह विभिन्न समुदायों के बीच भाषाई आदान-प्रदान को प्रोत्साहित कर "एक भारत श्रेष्ठ भारत" की भावना को सुदृढ़ करता है। यह आयोजन छात्रों को अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त कम से कम एक और भारतीय भाषा सीखने की प्रेरणा देता है, जिससे राष्ट्रीय एकता और भाषाई समावेशिता दोनों मजबूत होती हैं। बहुभाषावाद के महत्व को रेखांकित करते हुए उत्सव शिक्षकों और शिक्षार्थियों को बहुभाषी शिक्षा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, ताकि वे समग्र शिक्षा, सांस्कृतिक सहानुभूति और राष्ट्रव्यापी एकता के मूल्यों को आगे बढ़ा सकें।
भारतीय भाषा उत्सव 2025 से यह अपेक्षा की जा रही है कि यह छात्रों और शिक्षकों दोनों में भारत की भाषाई विविधता के प्रति जागरूकता और गर्व की भावना को बढ़ाएगा। इससे अनेक भारतीय भाषाओं के सीखने और उपयोग में भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत से गहरा जुड़ाव स्थापित होगा। साथ ही यह सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाते हुए भाषाई तथा क्षेत्रीय विविधता के बावजूद समावेशिता और आपसी सम्मान को मजबूत करेगा। अंततः, यह उत्सव अनुभवात्मक शिक्षण के माध्यम से एकता, विविधता और अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देकर "एक भारत श्रेष्ठ भारत" के संकल्प को सुदृढ़ करेगा।
इसी क्रम में “एक और भारतीय भाषा सीखें” पहल देश में भाषाई दक्षता और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण प्रयास है। भारत, जहाँ अधिकांश लोग अनेक भाषाएँ समझते और बोलते हैं, वहाँ बहुभाषावाद मात्र संप्रेषण का साधन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का आधार है। एनईपी 2020 इस बहुभाषी क्षमता को राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रभावी माध्यम मानती है और छात्रों को विभिन्न भारतीय भाषाओं के अध्ययन के लिए प्रेरित करती है।
भविष्य की दृष्टि से बहुभाषी दक्षता शिक्षा, रोजगार और सामाजिक उन्नति के अवसरों को विस्तृत करती है। “एक और भारतीय भाषा सीखें” पहल एक भाषा अभियान भर नहीं, बल्कि भाषाई रूप से कुशल, सांस्कृतिक रूप से जागरूक और राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत पीढ़ी के निर्माण का आंदोलन है। यह पहल संचार, समावेशिता और राष्ट्रीय एकता की भावना को गहरा करती है तथा शिक्षकों और छात्रों दोनों के व्यावसायिक विकास में सहायक सिद्ध होती है।
समग्र रूप से, भारतीय भाषा उत्सव 2025 और इससे जुड़ी पहलें महाकवि सुब्रमण्यम भारती की उस परिकल्पना को साकार करती हैं जिसमें भारत अनेक भाषाओं की विविध ध्वनियों के बावजूद एक साझा भावना और सांस्कृतिक सार से बंधा हुआ है।
