(18 जून सन्, 1576 हल्दीघाटी के महान् युद्ध और हिंदुत्व की विजय स्मृति में सादर समर्पित -प्रामाणिक शोध)
महाराणा और राणा पुंजा भील ने हल्दीघाटी में धूर्त अकबर को धूल चटाई "
18 जून,सन् 1576 में हल्दीघाटी घाटी का युद्ध तथाकथित मध्य काल में भारत की स्वतंत्रता, संप्रभुता और स्वाभिमान का विजय दिवस है। रक्ततलाई (हल्दीघाटी का युद्ध) का युद्ध भारत वर्ष की आन-बान-शान, स्वतंत्रता और स्वाभिमान का प्रतीक है।हल्दीघाटी भारतीयों के शौर्य और स्वाभिमान की विजय का सर्वाधिक पवित्र तीर्थ है।हिंदुत्व के एकत्व की विजय का अद्भुत एवं अद्वितीय स्मारक है।
भगवान् एक लिंग नाथ के दीवान महा महारथी राणा कीका (महाराणा प्रताप)और राणा पुंजा (पूंजा) भील, हिन्दू धर्म ध्वज रक्षक, हिंदुत्व के सूर्य, भारतीय स्वतंत्रता, स्वाभिमान और शौर्य के प्रतीक के रुप शिरोधार्य हैं। महाराणा प्रताप मुगलों के लिए यमराज की भाँति थे, वहीं राणा पुंजा भील ने अकबर के लालच भरे प्रस्ताव को ठुकरा कर यमदूत का रुप ले लिया था। इसलिए दोनों, धूर्त और लंपट अकबर के लिए भय का पर्याय बन गए थे। इतिहास गवाह है कि भयाक्रांत धूर्त अकबर कभी युद्ध के लिए राणा कीका के सामने नहीं आया।
इतिहास, इतिहास को दोहराता है, और इस दृष्टि से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में लव जिहाद की आड़ में इस्लामिक स्टेट की जो अवधारणा है वही अवधारणा प्रकारांतर से मध्यकाल में भारत में देखी जा सकती हैं। वर्तमान में प्रचलित लव जिहाद की आड़ इस्लामिक स्टेट की अवधारणा में अनेक मनोवैज्ञानिक पहलू हैं परंतु मध्यकाल में लव जिहाद की आड़ में इस्लामिक स्टेट की अवधारणा का मनोवैज्ञानिक पहलू भय तथा तथाकथित प्रेम का संदेश था। तथाकथित सल्तनत काल में अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए लव जिहाद का उद्घोष किया था परंतु उसका राणा रतन सिंह ने माकूल जवाब दिया था और रानी पद्मावती के साथ हजारों वीरांगनाओं ने जौहर कर नारी अस्मिता की रक्षा की थी। अकबर ने राजपूताना में पूतना के रुप में प्रवेश किया था और लव जिहाद की आड़ में इस्लामिक स्टेट की स्थापना करना उदेश्य से घुसपैठ की थी परंतु महाराणा प्रताप ने लंपट अकबर के मंसूबों पर पानी फिर दिया। यहाँ अकबर के बारे में लव जेहादी शब्द का प्रयोग उस भाव के रुप में हुआ है जिसका खुलासा कम ही हुआ है।
अब देखिए न समकालीन लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी बताता है कि अकबर के हरम में 5 हजार औरतें थीं और देखें 300 पत्नियों के साथ ढेर सारी रखैलें भी थीं। यहाँ तक कि अकबर ने तो अपने संरक्षक पितृ तुल्य बैरम खान की पत्नी सलीमा बेगम को भी अपनी पत्नी बना लिया था। ऐंसे थे तथाकथित अकबर महान्!!!
अकबर राजपूताना के साथ मैत्री पूर्ण संबंधों की आड़ में अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा की प्रतिपूर्ति करना चाहता था, इसलिए उनसे कन्या लेकर वैवाहिक संबंध स्थापित करना आरंभ किया था। हल्दीघाटी के युद्ध के विविध कारण हैं परंतु उनमें से एक प्रमुख कारण यह भी है कि महाराणा प्रताप अन्य राजाओं की तरह अपने कुल की कन्याओं को समर्पित करने तैयार न थे।
अकबर ने इस्लामिक स्टेट की अवधारणा को लेकर संपूर्ण भारत में कहर बरपा दिया था और इसी संदर्भ में महाराणा प्रताप के पास 4 बार मैत्रीपूर्ण संधि करने के लिए अकबर ने विभिन्न राजदूत मंडल भेजें, परंतु महाराणा प्रताप, अकबर के कुचक्र को समझते थे इसलिए अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता और अस्मिता के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहते थे।
वहीं दूसरी ओर भोमट क्षेत्र पानरवा के भील राजा भील वंश के गौरव महारथी राणा पूंजा को अनेक बार धूर्त अकबर ने प्रकारांतर मिलाने के अथक प्रयास किए परंतु सब व्यर्थ गए। उल्लेखनीय है, कि जब - जब भारतवर्ष के स्व पर आंच आई है तब - तब जनजातियों ने सर्वस्व अर्पित किया है, जिसका अनूठा दृष्टांत हल्दीघाटी का युद्ध है।
गौरतलब है कि मेवाड़ के राज्य चिन्ह में एक ओर महाराणा प्रताप हैं तो दूसरी ओर राणा पुंजा भील हैं। राज्य चिन्ह में आदर्श वाक्य के रुप में अंकित है कि,
" जो दृढ़ राखे धर्म को, तिही राखे करतार।"
अकबर जब राणा पुंजा भील को नहीं मिला सका तब उसने राणा पुंजा को युद्ध से पृथक रहने के लिए धमकाया, परंतु कोई लाभ न हुआ। अतः युद्ध होना अवश्यंभावी हो गया था।
रणनीति के अनुसार राणा पूंजा भील ने हल्दीघाटी के युद्ध के एक दिन पूर्व 17 जून को ही अरावली पर लामबंदी कर ली थी ताकि मुगलों पर घात लगा कर हमला किया जा सके।
18 जून सन् 1576 को प्रातः 8 बजे हल्दीघाटी में भयंकर मोर्चा खुल गया। महाराणा प्रताप अग्रिम दस्ते ने हकीम सूर के निर्देशन में और दूसरी ओर दक्षिण पक्ष के नायक राजा रामशाह ने मुगलों पर भयानक हमला किया। मुगल सेना को खमनौर तक जमकर खदेड़ा, मुगल और कछवाहा राजपूत सैनिक भेड़ों की झुंड की भांति भाग निकले।
मुगल सेनानायक गाजी खां मुल्ला चिल्लाता हुआ भागा कि,
"घोर आपत्ति के समय भाग जाना मोहम्मद साहब की उक्तियों में से एक है"
महाराणा के प्रथम आक्रमण के तीव्र वेग से ही मुगलों की पीठें मुड़ गईं।
अब्दुल कादिर बदायूंनी ने जो स्वयं रण क्षेत्र में विद्यमान था, अपनी पुस्तक मुन्तखब - उत-तवारीख में लिखा है कि
"हमारी जो फौज पहिले हमले में ही भाग निकली थी वह बनास नदी को पार कर पांच-छह कोस तक भागती रही।"
युद्ध भयानक हो उठा था। पुन:शहजादा सलीम, मान सिंह, सैय्यद बारहा और आसफ खान ने मोर्चा संभाला। शहजादा सलीम और मान सिंह की रक्षार्थ 20 हाथियों ने घेराबंदी कर रखी थी। घेराबंदी तोड़ने के लिए राणा प्रताप ने रामप्रसाद को आगे बढ़ाया अपरान्ह लगभग 12.30 बजे हाथियों का घमासान युद्ध हुआ। शस्त्रों से सुसज्जित रामप्रसाद ने भयंकर रौद्र रुप धारण किया अकबर के 13 हाथियों को अकेले रामप्रसाद ने मार डाला और 7 हाथियों को मोर्चे से हटा दिया गया। इस तरह राणा प्रताप के लिए रामप्रसाद ने शहजादा सलीम और मानसिंह तक पहुंचने का मार्ग खोल दिया।
महाराणा प्रताप ने शहजादा सलीम पर भयंकर आक्रमण किया, महावत मारा गया और हौदे पर जबरदस्त भाले का प्रहार किया, शहजादा सलीम नीचे गिर गया जिसे बचाने मान सिंह आया परिणाम स्वरूप मान सिंह की भी वही दुर्गति हुई। शहजादा सलीम और मान सिंह युद्ध भूमि से पलायन कर गए।
सैय्यद बारहा और आसफ खां पर राणा पूंजा भील ने घात लगाकर हमला किया फलस्वरूप मुगल सेना हल्दीघाटी से पलायन कर गई और महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी का युद्ध जीत लिया। परंतु दूसरी ओर रामप्रसाद ने शेष हाथियों का पीछा किया और आगे निकल गया परंतु थकान अधिक हो गई थी और महावत भी मारा गया तब 7 हाथियों और 14 महावतों की सहायता से पकड़ा गया। अकबर के इस युद्ध का एक कारण रामप्रसाद हाथी की प्राप्ति भी करना था, परंतु सब व्यर्थ गया अकबर ने इसका नाम पीरप्रसाद रखा और हर प्रकार के मनपसंद खाद्यान्न प्रस्तुत किए परंतु रामप्रसाद ने ग्रहण नहीं किया और इसी अवस्था में 18 दिन बाद रामप्रसाद ने प्राणोत्सर्ग किया। धूर्त अकबर ने स्वयं रामप्रसाद की मृत्यु पर कहा कि "जिसके हाथी को मैं नहीं झुका सका.. उसके स्वामी को क्या झुका सकूंगा"। चेतक के महान् योगदान और बलिदान ने उसे विश्व का महानतम घोड़ा बना।
युद्ध के मध्य हुए एक प्रसंग को यहाँ रेखांकित करना अनिवार्य है, ताकि तथाकथित सेक्युलर हिन्दुओं की आंखें खुल सकें!!!प्रसंग इस प्रकार है कि इस युद्ध में अकबर का दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूँनी भी सम्मिलित हुआ था,उसने सेनानायक आसफ खान से पूछा कि
" दोनों ओर से राजपूत युद्ध कर रहे हैं, तो पक्ष के राजपूत कौन है,और विपक्ष के कौन हैं?" आसफ खान ने उत्तर दिया कि
"राजपूत चाहे जिस पक्ष के हों, उनके मारे जाने से इस्लाम का ही लाभ होगा।"
इस परामर्श पर बदायूंनी ने मित्र और शत्रु राजपूतों पर समान रुप से निशाना लगाकर उन्हें मारा। इस प्रकार राजपूतों को मारने से उसे हर्ष हो रहा था। उसकी धारणा थी, कि इससे वह इस्लाम की सेवा कर रहा था और एक गाजी का पुण्य अर्जित कर रहा था। इधर अकबर के खेमे के राजपूतों को बाद समझ आया।
18 जून 1576 को महाराणा प्रताप की ओर से न केवल राजपूतों वरन् सभी जातियों के सर्वोत्तम योद्धाओं के रक्त से इस पवित्र भूमि का तिलक हुआ था, जबकि वर्णसंकर मुगलों के रक्त से भूमि अपवित्र हुई और चगताई तुर्कों (मुगलों) को मैदान छोड़कर भागने पड़ा, जिसकी सजा चालाक अकबर ने मान सिंह और आसफ खाँ को दी।नवीन शोधों और तत्कालीन समय के जमीन के पट्टे तथा अन्य साक्ष्य महाराणा प्रताप की विजय को प्रमाणित करते हैं।
यह भी विचारणीय है, कि अब्दुल कादिर बदायूँनी लिखता है कि मुग़ल सेना,हल्दीघाटी से पलायन कर गोगुन्दा पहुँच गई और दूसरे दिन तक भयाक्रांत रही और प्रताप के " रात्रि आक्रमण से सुरक्षा के लिए,वहां सब गलियों में आड़ करवा दी गई और समूचे गोगुंदा कस्बे के चारों ओर खाई खुदवाकर इतनी ऊंची दीवाल बनवा दी, कि उसके ऊपर से कूदकर घोड़ा उसे फांद नहीं सके। तत्पश्चात ही मुग़ल सेनानायक निश्चिन्त हुए।"
यह दहशत इस बात का प्रमाण है कि हल्दीघाटी में राणा प्रताप की ही विजय हुई थी।
कतिपय इतिहासकारों का मत है, कि जून की भीषण गर्मी थी और हल्दीघाटी की धूल धीरे-धीरे तपने लगी, इसलिए मुगलों की हालत खराब होने लगी थी क्योंकि ऐंसी परिस्थितियों में मुग़ल लड़ने के लिए अभ्यस्त नहीं थे।अपरान्ह 12 बजे के बाद
" मुगल सैनिकों की खोपड़ी में दिमाग तक उबलने लगा और हवा भट्टी की तरह हो गई थी, तथा सैनिकों में हिलने की शक्ति तक नहीं रह गई थी।" इसलिए मुग़ल सैनिक पलायन करने की स्थिति में थे और जब पुंजा भील ने घात लगाकर हमला किया तो मुग़ल सेना भाग निकली। इसलिए हल्दीघाटी में विजयश्री राणा प्रताप को ही मिली।
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने 18 युद्ध जीते और 25 वर्ष तक संघर्ष कर मुगलों को धराशायी कर दिया।
वामपंथी इतिहासकारों,पाश्चात्य इतिहासकारों, इन पर एक दल विशेष के समर्थक परजीवी इतिहासकारों ने गहरी साजिश रची और हल्दीघाटी के युद्ध को अनिर्णायक बता दिया,तो कुछ ने मुगलों को ही जिता दिया,और पाठ्य पुस्तकों में ठूंस दिया,अब हटाना है, जबकि सच आपके सामने है।
डॉ आनंद सिंह राणा