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समाज को बदलना होगा दिव्यांगों के प्रति नजरिया

Date : 02-Dec-2025

 रमेश सर्राफ धमोरा

तीन दिसंबर को देश-दुनिया में अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जाता है। आजादी के 78 वर्ष बाद भी देश में दिव्यांगों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ हैं। दिव्यांग लोग आज भी समाज में बराबरी के अधिकारों के लिये संघर्षरत हैं। सरकारी स्तर पर भी कागजी कार्रवाई ज्यादा हुई है। धरातल पर आज भी दिव्यांगों की स्थिति दयनीय है। समाज में उनका मजाक उड़ाया जाता है। ऐसी ही एक घटना से नाराज होकर कुछ दिनो पूर्व देश के उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से दिव्यांगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी से निपटने के लिए कड़े कानून बनाने पर विचार करने को कहा । न्यायालय ने एसएमए क्योर फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुये केंद्र सरकार से दिव्यांगों और दुर्लभ आनुवंशिक विकारों से ग्रस्त व्यक्तियों का उपहास करने वाली अपमानजनक टिप्पणियों को अनुसूचित जाति-अनुसूचित जन जाति अधिनियम की तर्ज पर दंडनीय अपराध बनाने के लिए एक कानून बनाने को कहा है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अभद्र, आपत्तिजनक और अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए एक तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय की आवश्यकता है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस बारे में न्यायालय को सूचित किया कि सरकार में कुछ दिशा-निर्देश बनाने पर विचार हो रहा है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हास्य किसी की गरिमा की कीमत पर नहीं हो सकता। याचिका में इंडियाज गॉट लेटेंट के होस्ट समय रैना और सोशल मीडिया पर प्रभावशाली लोगों, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर के चुटकुलों की निंदा की गई थी। अदालत ने उन्हें भविष्य में अपने आचरण के प्रति सावधान रहने का निर्देश दिया। न्यायालय ने हास्य कलाकार रैना और अन्य को दिव्यांग व्यक्तियों, विशेष रूप से स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए धन जुटाने के लिए दिव्यांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियों पर प्रत्येक माह दो कार्यक्रम या शो आयोजित करने का भी निर्देश दिया।

अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर इस वर्ष का विषय है सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए विकलांगता समावेशी समाजों को बढ़ावा देना। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1992 में हर वर्ष 3 दिसंबर को अंतररा्राष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में मनाने घोषणा की थी। तब से सरकार ने देश में दिव्यांगो के लिए कई नीतियां बनाई हैं। उन्हें सरकारी नौकरियों, अस्पताल, रेल, बस सभी जगह आरक्षण प्राप्त है। दिव्यांगो के लिए सरकार ने पेंशन की योजना भी शुरू की है। लेकिन ये सभी सरकारी योजनाएं महज एक मजाक बनकर रह गई हैं। इनके पास इन सुविधाओं को हासिल करने के लिए दिव्यांगता का प्रमाणपत्र ही नहीं है। इसको मनाने का उद्देश्य समाज के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को बढ़ावा देना और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में दिव्यांग लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। मगर आज भी लोगों को तो इस बात का भी पता ही नहीं होता है कि हमारे आस-पास कितने दिव्यांग रहतें हैं। उन्हे समाज में बराबरी का अधिकार मिल रहा है कि नहीं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक ‘दिव्य क्षमता’ है और उनके लिए ‘विकलांग’ शब्द की जगह दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने विकलांगों को दिव्यांग कहने की अपील की थी। जिसके पीछे उनका तर्क था कि शरीर के किसी अंग से लाचार व्यक्तियों में ईश्वर प्रदत्त कुछ खास विशेषताएं होती हैं। विकलांग शब्द उन्हे हतोत्साहित करता है। प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर देश के लोगों ने विकलांगो को दिव्यांग तो कहना शुरू कर दिया लेकिन लोगों का उनके प्रति नजरिया आज भी नहीं बदल पाया है।

दुनिया में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जो बताते है कि सही राह मिल जाये तो अभाव एक विशेषता बनकर सबको चमत्कृत कर देती है। भारत में दिव्यांगो की मदद के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन इतने वर्षो बाद भी देश में आज तक आधे दिव्यांगो को ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र मुहैया कराया जा सका है। शक्तिशाली शासक तैमूर लंग हाथ और पैर से शक्तिहीन था। मेवाड़ के राणा सांगा तो बचपन में ही एक आंख गंवाने तथा युद्ध में एक हाथ एक पैर तथा 80 घावों के बावजूद कई युद्धों में विजेता रहे थे। सिख राज्य की स्थापना करने वाले महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख बचपन से ही खराब थी। सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सुधा चंद्रन की दायीं टांग नहीं थी। फिल्मी गीतकार कृष्ण चंद्र डे तथा संगीतकार रविंद्र जैन देख नहीं सकते थे। पूर्व क्रिकेटर अंजन भट्टाचार्य मूक-बधिर थे। वर्ल्ड पैरा चैम्पियनशिप खेलों में झुंझुनू जिले के दिव्यांग खिलाड़ी संदीप कुमार व जयपुर के सुन्दर गुर्जर ने भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत कर भारत का मान बढ़ाया है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) से एकत्र किए गए द्वितीयक डेटा के भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद प्रकाशन के विश्लेषण के अनुसार भारत में विकलांग लोगों की कुल व्यापकता जनसंख्या का 4.52 प्रतिशत है। भारत विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक पक्ष है। यह डेटा दर्शाता है कि भारत में लगभग 6 करोड़ 32 लाख 80 हजार लोग किसी न किसी प्रकार की विकलांगता के साथ जीवन यापन करते हैं। लोकोमोटर (गतिशील) विकलांगता सभी विकलांगताओं में सबसे आम है, इसके बाद मानसिक और वाक् (बोलने से संबंधित) विकलांगताएं हैं।

भारत में आज भी दिव्यांगता प्रमाण पत्र हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि सरकारी दावे कहते हैं कि इस प्रक्रिया को काफी सरल बनाया गया है। देश में दिव्यांगो को दी जाने वाली सुविधाएं कागजों तक सिमटी हुई हैं। अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां दिव्यांगो को एक चौथाई सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है। केंद्र सरकार ने देशभर के दिव्यांग युवाओं को सीधी भर्ती वाली केंद्रीय सेवाओं में दृष्टि बाधित, बधिर और चलने-फिरने में दिव्यांगता या सेरेब्रल पल्सी के शिकार लोगों को उम्र में 10 साल की छूट देकर एक सकारात्मक कदम उठाया है। अब दिव्यांग लोगों के प्रति अपनी सोच को बदलने का समय आ गया है। दिव्यांगो को समाज की मुख्यधारा में तभी शामिल किया जा सकता है ,जब समाज इन्हें अपना हिस्सा समझे। इसके लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान की जरूरत है।

 
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