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27 फरवरी पुण्यतिथि विशेष:- भारत रत्न से सम्मानित नानाजी देशमुख का राजनीतिक सफर

Date : 27-Feb-2024

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के मज़बूत स्तंभ और प्रख्यात समाजसेवक नानाजी देशमुख का पहला नाम चंडिकादास अमृतराव देशमुख था। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाजे गए नानाजी देशमुख शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं।

नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र राज्य के परभनी ज़िले में एक छोटे से गाँव 'कदोली' में 11 अक्टूबर, 1916 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख तथा माता का नाम श्रीमती राजाबाई अमृतराव देशमुख था।

 

नानाजी देशमुख का राजनैतिक सफ़र (1950- 1977) 

 

1950 के आते-आते आरएसएस से प्रतिबंध हट गया था, जिसके बाद संघ के लोगों ने भारतीय कांग्रेस के सामने खुद की पार्टी खड़ी करने का विचार किया. 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के साथ मिल कर भारतीय जन संघ की स्थापना की थी. यही आगे चलकर देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी बनी.

उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रचारक के लिए नानाजी को चुना गया था. वे वहां महासचिव के रूप में कार्यरत थे. 1957 तक नानाजी ने यूपी के हर जिले में जाकर पार्टी का प्रचार किया. लोगों को पार्टी से जुड़ने का आग्रह किया, जिसके फलस्वरूप पुरे प्रदेश के हर जिले में पार्टी की इकाई खुल गई थी.

उत्तरप्रदेश में भारतीय जन संघ (BJS) एक बड़ी राजनैतिक पार्टी बनकर उभरी थी. उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्र भानु गुप्ता को प्रदेश के राजनैतिक युद्ध में देशमुख जी के नेतृत्व में बीजेएस से एक, दो नहीं बल्कि तीन बार बड़ी टक्कर दी थी. यह उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार था, जब कोई पार्टी कांग्रेस के सामने इतने बड़े रूप में खड़ी हो सकी थी. भारतीय जन संघ को यूपी में लोकप्रियता दिलाने का श्रेय अटल बिहारी बाजपेयी जी, दीनदयाल उपाध्याय जी एवं नानाजी को जाता है. तीनों की कड़ी मेहनत, दृष्टिकोण, कौशल से भारत की राजनीति में यह बड़ा फेरबदल हुआ था.

नानाजी बहुत ही शांत और नम्र किस्म के इन्सान थे, वे सभी से बड़ी नम्रता से बात करते थे, फिर चाहे वो उनकी पार्टी का मेम्बर हो या विपक्ष का कोई इन्सान. यही वजह थी कि दूसरी पार्टी के लोग भी नानाजी के साथ बहुत ही आदर के साथ व्यवहार करते थे.

नानाजी देशमुख ने विनोबा भावे द्वारा शुरू किये गए भू दान आन्दोलन में भी बढचढ कर हिस्सा लिया था.

इंदिरा गाँधी जी की के समय जब देश में आपातकाल चल रहा था, तब देश की राजनीति में भी बहुत उठक पटक हुई थी. देशमुख जी ने इस दौरान अपनी समझ और हिम्मत का परिचय दिया था, जिसकी तारीफ़ बाद में बीजेएस के प्रधानमंत्री बने मुरारजी देसाई ने भी की थी.

1977 में नानाजी यूपी के बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेएस पार्टी की तरफ से चुनाव में उतरे थे, जहाँ एक बड़े मार्जिन के साथ उनको जीत हासिल हुई थी.

1980 में नानाजी ने राजनीति छोड़ कर सामाजिक और रचनात्मक कार्यों को करने का फैसला किया. इससे उनके चाहने वालों को बहुत दुःख हुआ था, लेकिन सभी ने उनके फैसले का सम्मान किया था.

जब जनता पार्टी का गठन हुआ था, देशमुख इसके मुख्य वास्तुकारों में से एक थे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ उन्होंने पार्टी के लिए रुपरेखा बनाई थी. कुछ ही सालों में आगे चलकर यही जनता पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से हटाकर, खुद देश की सरकार बना ली थी.

 

सामाजिक कार्य –

 

राजनीति से सन्यास लेने के बाद नानाजी ने 1969 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की थी, उनका उद्देश्य था कि यह संस्थान भारत को मजबूत बनाने के लिए कार्यरत रहे. राजनीति के बाद नानाजी ने अपना समय इसके निर्माण कार्य में ही लगा दिया था.

नानाजी ने ग्राम में कृषि क्षेत्र को बढ़ाने, उससे जुडी सारी सुख सुविधाएँ को पहुँचाने के लिए कार्य किया था. गाँव में कुटीर उद्योग को बढ़ाने के लिए, वे ग्रामवासी को हमेशा सही शिक्षा दिया करते थे.

इसके अलावा गाँव का पूरा विकास, लोगों की रोजमर्रा की जरूरतें जैसे ग्रामीण स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, पानी आदि के लिए भी बहुत मेहनत की थी.

नानाजी ने मुख्यरूप से उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के लगभग 500 गाँव में बड़े-बड़े विकास कार्य किये थे.

पहली बार जब नानाजी इस जगह पर गए, तो उन्हें वो बेहद अच्छी लगी, जिसके बाद उन्होंने अपने आगे के जीवन को यही बिताने का फैसला लिया था. 1969 में नानाजी ने रामभूमि चित्रकूट के विकास कार्य को करने का दृढ संकल्प ले लिया. उस समय चित्र्कूफ़ की हालात अच्छे नहीं थे, विकास के नाम पर राम की कर्मभूमि पर कुछ भी नहीं हुआ था.

रामजी जब अपने वनवास काल में थे, तो उन्होंने 14 में से 12 साल इसी जगह में व्यतीत किये थे, उसी समय से उन्होंने दलितों के विकास के लिए काम शुरू किया था. नानाजी ने भी इस कार्य को आगे बढ़ाने का सोचा और चित्रकूट को अपने सामाजिक कार्यों का केंद्र बना दिया था.

नानाजी ने गरीब से गरीब वर्ग को ऊँचा उठाने के लिए कार्य किये थे, वे समाज के पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए कार्यरत थे.

 

अवार्ड्स एवं उपलब्धियां–

 

नानाजी को 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित नानाजी देशमुख को भारत रत्न देने का फैसला लिया गया. भारत देश के विकास में नानाजी का बहुत योगदान है, गाँव में विकास को महत्ता उन्ही ने लोगों को बताई. ऐसे महान हस्ती को हम प्रणाम करते है.

 

अंतिम समय–

 

27 फ़रवरी 2010 में 93 साल की उम्र में नानाजी का निधन चित्रकूट के उन्ही के द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय में हुआ था. नानाजी लम्बे समय से बीमार थे, लेकिन वे इलाज के लिए चित्रकूट छोड़कर नहीं जाना चाहते थे.

नानाजी ने मरने से पहले ही निर्णय ले लिया था, कि वो अपना देह दान करेंगें. उन्होंने दधीचि देहदान संस्थान को अपना शरीर दान दे दिया था. मरने के बाद उनके शरीर को अनुसन्धान के लिए वहीँ पहुंचा दिया गया. 

नानाजी देशमुख को मरणोपरांत 2019 में देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न दिया गया।

 

 
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