कुग्रामवास: कुलहीन सेवा, कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या |
पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या, विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम ||
आशय, यह है कि ये सब बातें व्यक्ति को भारी दुःख देती हैं -यदि दुष्टों (लम्पटों) के बीच में रहना पड़े, नीच खानदान वाले की सेवा करनी पड़े, घर में झगड़ालू कर्कशा पत्नी हो, पुत्र मुर्ख हो, पढ़े-लिखे नहीं, बेटी विधवा हो जाए -ये सारे दुःख बिना आग के ही व्यक्ति को अंदर-ही-अंदर से जला डालते हैं |
