मूर्खश्चिरायुर्जातोपि तस्माज्जातमृतो वर: |
मृत: सचालपदु:खाय यावज्जीवं जडो दहेत ||
और संसार में ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि मूर्ख पुत्रों ने विरासत में पाए विशाल साम्राज्य को धूल में मिला दिया| पिता की अतुल सम्पत्ति को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया | मानव तो स्वभावत: अपनी संतान से प्रेम करता है परन्तु उसके साथ ही वह यदि वास्तविकता से भी आँखें मूंद ले तो फिर क्या हो सकता है ? आचार्य चाणक्य यहां इसी प्रवृत्ति के प्रति सचेत कर रहे हैं |
