चाणक्य नीति:- गुणवान पुत्र एक ही पर्याप्त है Date : 10-Jul-2024 एकोपि गुणवान पुत्रो निर्गुणैश्च शतैर्वर: | एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च तारा: सहस्रश: || आचार्य चाणक्य यहां उपादेयता, गुण तथा योग्यता के आधार पर पुत्र के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहते है, कि केवल एक गुणवान और विद्वान बीटा सैकड़ों गुणहीन, निकम्मे बेटों से अच्छा होता है | जिस प्रकार एक चाँद ही रात्रि के अन्धकार को दूर करता है , असंख्य तारें मिलकर भी रात्रि के गहन अंधकार को दूर नहीं कर सकते, उसी प्रकार एक गुणी पुत्र ही अपने कुल का नाम रोशन करता है, उसे ऊंचा उठाता है; ख्याति दिलाता है | सैकड़ों निकम्मे पुत्र मिलकर भी कुल की प्रतिष्ठा को ऊंचा नहीं उठा सकते| निकम्मे गुणहीन पुत्र उलटे अपने बुरे कामों से कुल को कलंकित करते हैं | उनका होना भी किसी काम का नहीं | वे तो अनर्थकारी ही होते हैं |